राजनीति में सफलता के ज्योतिषीय योग
राजनीति में सफलता के ज्योतिषीय योग

राजनीति में सफलता के ज्योतिषीय योग  

व्यूस : 24421 | जनवरी 2014
प्रश्न: राजनीति में सफल राजनेता बनने के ज्योतिषीय योगों की विस्तृत चर्चा करें। साथ ही योगों के साक्ष्य के रूप में सफल राजनीतिज्ञों की कुंडलियों का समावेश करें। राजनीति दो शब्दों राज$नीति के योग से बना हुआ एक शब्द है जिसका सामान्य अर्थ है एक ऐसा राजा जिसकी नीतियां और राजनैतिक गतिविधियां इतनी परिपक्व और सुदृढ़ हों, जिसके आधार पर वह अपनी जनता का प्रिय शासक बन सके और अपने कार्यक्षेत्र में सम्मान और प्रतिष्ठा अर्जित करता हुआ उन्नति के चर्मात्कर्ष तक पहुंचे। राजनीति में पूर्णतया सफल केवल वही जातक हो सकता है जिसकी कुंडली में कुछ विशिष्ट धन योग, राजयोग एवं कुछ अति विशिष्ट ग्रह योग उपस्थित हों, क्योंकि एक सफल राजनेता को अधिकार, मान-सम्मान सफलता, रुतबा, धन शक्ति, ऐश्वर्य इत्यादि सभी कुछ अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। अतः एक सफल राजनेता की कुंडली में विशिष्ट ग्रह योगों का पूर्ण बली होना अति आवश्यक है क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में तभी सफल होगा जब कुंडली में उपस्थित ग्रह योग उसका पूर्ण समर्थन करेंगे। आइये देखें कि वे कौन-कौन से ग्रह योग हैं जो एक जातक को सफल राजनीतिज्ञ या राजनेता बना सकते हैं। राजनीति कारक ग्रह: एक सफल राजनेता बनने के लिए वैसे तो समस्त नौ ग्रहों का बली होना आवश्यक है किंतु फिर भी सूर्य, मंगल, गुरु और राहु में चार ग्रह मुख्य रूप से राजनीति में सफलता प्रदान करने में सशक्त भूमिका निभाते हैं। साथ ही चंद्रमा का शुभ व पक्ष बली होना भी अति आवश्यक है। सूर्य ग्रह तो है ही सरकारी राजकाज में सफलता का कारक, मंगल से नेतृत्व और पराक्रम की प्राप्ति होती है। गुरु पारदर्शी निर्णय क्षमता एवं विवेक शक्ति प्रदान करता है तथा राहु को ज्योतिष में शक्ति, हिम्मत, शौर्य, पराक्रम, छल कपट और राजनीति का कारक माना गया है। अतः कुंडली में यदि ये चारों ग्रह बलवान एवं शुभ स्थिति में होंगे तो ये एक सशक्त, प्रभावी, कर्मठ, जुझारु एवं प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की नींव पर एक पूर्णतया सरल एवं सशक्त राजनेता रूपी इमारत का निर्माण करेंगे जिस पर राष्ट्र सदैव गौरवान्वित रहेगा। राजनीति में संबंधित भाव: ज्योतिषीय दृष्टि से राजनीति से संबंधित भाव मुख्यतया- लग्न, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ, नवम्, दशम एवं एकादश हैं। लग्न व्यक्ति और व्यक्तित्व है, लग्नेश प्राप्तकर् है। तृतीय भाव सेना, चतुर्थ भाव जनता, पंचम भाव राजसी ठाटबाट एवं मंत्री पद की भोग्यता, षष्ठ भाव युद्ध एवं कर्म, नव भाव भाग्य, दशम् भाव कार्य, व्यवसाय, राजनीति और एकादश लाभ भाव है। दृढ़ व्यक्तित्व, जनमत संग्रह, पराक्रम, जनता का पूर्ण समर्थन, सफलता, धन और मंत्री पद की योग्यता। ये सभी गुण एक राजनेता बनने के लिए परमावश्यक तत्व हैं। साथ ही जब इन भावेशों का संबंध लाभ भाव से बनेगा तो ऐसे विशिष्ट ग्रहयोगों से युक्त कुंडली वाला जातक ‘‘एक सफल राजनेता’’ बनेगा। इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है। राजनीति क्षेत्र के योग: - सूर्य एवं राहु बली होने चाहिए। - दशमेश स्वगृही हो अथवा लग्न या चतुर्थ भाव में बली होकर स्थित हो। - दशम भाव में पंचमहापुरुष योग हो एवं लग्नेश भाग्य स्थान में बली हो तथा सूर्य का भी दशम भाव पर प्रभाव हो। उदाहरण डा. मनमोहन सिंह। - ग्रहों का रश्मि बल 50 प्रतिशत होने पर सफलता मिलती है। - दूसरे एवं पंचम भाव में क्रमशः बली मंगल एवं बुध, शुक्र, शनि हां . कुंडली में नीचत्व भंग योग इसमें सफल बनाता है। . दूसरे एवं पंचम भाव में क्रमशः बली गुरु एवं शनि, राहु, मंगल हों। . दोनों त्रिकोणेश एवं दोनों धनेश अष्टम या द्वादश भाव में हां। . कुंडली में 2, 5 एवं 8 भाव में क्रमशः बली सूर्य, गुरु, शनि, राहु एवं मंगल हां। . कुंडली में भाव परिवर्तन हो तथा इनका संबंध केंद्र या त्रिकोण से हो। . यदि दशमेश मंगल होकर 3, 4, 7, 10 भाव में स्थित हो। . यदि 1, 5, 9 एवं 10 भाव में क्रमशः बलवान सूर्य, बृहस्पति, शनि एवं मंगल स्थित हों। . यदि 1, 5, 9 एवं 10 भाव के स्वामियों में किसी भी रूप में संबंध हो। . दशम आजीविका भाव बलवान होना चाहिए। अर्थात् यह भाव किसी भी रूप में कमजोर नहीं होना चाहिए। जैसे - दशम भाव में कोई भी ग्रह नीच का नहीं होना चाहिए, चाहे नीचत्व भंग ही क्यों न हो जाये तथा त्रिकेश दशम भाव में नहीं होने चाहिए। . जिस जातक की जन्मपत्री में तृतीय या चतुर्थ ग्रह बली हो अर्थात् उच्च, स्वगृही या मूल त्रिकोण में हो तो जातक मंत्री या राज्यपाल पद को प्राप्त कर इसमें सफल होता है। . जिस जातक के 5 या 6 ग्रह बलवान हों अर्थात् उच्च, स्वगृही या मूल त्रिकोण में हों तो ऐसा जातक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद भी राज्य शासन कर सफल रहता है। . पाप ग्रह मंगल, शनि, सूर्य, राहु, केतु उच्च के होकर त्रिकोण भाव में स्थित हों। . जब लग्न में गजकेसरी योग के साथ मंगल हो या इन तीनों में से दो ग्रह मेष राशि लग्न में हों। . यदि पूर्णिमा या आस-पास का चंद्रमा, सिंह नवांश में हो और शुभ ग्रह केंद्र में हो। . यदि कोई भी ग्रह नीच राशि में न हो या नीचत्व भंग हो तथा गुरु व चंद्र केंद्र में हों तथा इन्हें शुक्र देखता हो। . यदि गुरु व शनि के लग्न हो अर्थात् धनु, मीन, मकर, कुंभ लग्न हों तथा मंगल उच्चस्थ हो एवं धनु राशि के 15 अंश तक सूर्य के साथ चंद्र हो। . यदि सौम्य ग्रह अस्त न हो (बुध, गुरु, शुक्र, चंद्र) और नवम भाव में स्थित होकर मित्र ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तथा चंद्र पूर्ण बली होकर मीन राशि में स्थित हो एवं इसे मित्र ग्रह देखते हों। . अग्नि तत्व राशि के लग्न हों अर्थात् 1, 5, 9 लग्न हों तथा इसमें मंगल स्थित हो व मित्र ग्रह की दृष्टि हो। . शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबंध बनाये तथा साथ में दशम भाव में मंगल भी हो। . राजनीति के लिए सिंह लग्न सफलता देने वाला होता है। . सूर्य, चंद्र, गुरु व बुध, द्वितीय भाव में हों, मंगल छठे भाव में हो, शनि 11वें व 12वें में राहु हो तो राजनीति विरासत में ही मिलती है। . यदि कुंडली में तीन या अधिक ग्रह उच्च या स्वगृही हों तो तथा साथ में ये केंद्र या त्रिकोण में हों तो ‘‘सोने में सुहागा’’ वाली बात बन जाती है। . दशम भाव में बली मंगल, सूर्य हां या इनका प्रभाव हो। . दशमेश लग्न में बली हो या इनका भाव परिवर्तन हो। . तृतीय, षष्ठम या एकादश स्थान में मंगल, बुध द्वितीय भाव में, सूर्य व शुक्र चतुर्थ भाव में, मंगल, दशम भाव में, गुरु लग्न में, शनि एकादश भाव में हो। राजनीति में सफलता के कुछ योग निम्न हैं - मुसल योग: जब जन्मकुंडली में सभी ग्रह स्थिर राशियों (2, 5, 8, 11) में हों तो यह योग बनता है। इसमें जन्मा व्यक्ति राजाधिकारी, शासनाधिकारी, प्रसिद्ध व ज्ञानी होता है। नल योग: जब पत्री में सभी ग्रह द्विस्वभाव राशियों (3, 6, 9, 12) में हों तो यह योग बनता है। इसमें जन्मा जातक राजनीति में दक्ष एवं चुनाव में सफलता प्राप्त करने वाला होता है। चक्र योग: लग्न में एक-एक स्थान छोड़कर अर्थात् 1, 3, 5, 7, 9, 11वें भाव में सभी ग्रह हों तो यह योग बनता है जिससे जातक राष्ट्रपति या राज्यपाल अथवा राजा बनता है। यूप योग: लग्न में लगातार चारों भाव में अर्थात् 1, 2, 3, 4 में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है जिससे जातक पंचायत या नगरपालिका की राजनीति में सफलता प्राप्त करता है तथा विवाद से निपटने में दक्षता प्राप्त होती है। कमल योग: जब जन्म कुंडली के केंद्र भाव अर्थात् 1, 4, 7, 10में सभी ग्रह हों तो योग बनता है जिससे व्यक्ति मंत्री व राज्यपाल बनता है तथा धनवान होकर प्रसिद्धि प्राप्त करता है। छत्र योग: यदि सप्तम भाव से आरंभ करते हुए आगे के सभी भावों में सभी ग्रह स्थित हों तो, यह योग बनता है जिससे जातक उच्च पदाधिकारी, शासनाधिकारी, उच्चाधिकारी तथा ईमानदार होता है। लग्नाधि योग: यदि कुंडली में लग्न से सप्तम भाव में शुभ ग्रह हां और उनपर किसी प्रकार का पाप प्रभाव न हो तो यह योग बनता है जिससे जातक राजनीति में सफल रहता है। दामिनी योग: जब छः राशियों में सभी ग्रह हों तो यह योग बनता है तथा जातक राजनीति में सफल रहता है। कुसुम योग: जब कुंडली का लग्न स्थिर (2, 5, 8, 11) राशि का हो, शुक्र केंद्र (1, 4, 7, 10) में हो, चंद्र, त्रिकोण (5, 9) में शुभ ग्रहों से युक्त हो तथा शनि, दशम भाव में हो तो यह योग बनता है जिससे जातक राज्यपाल, मंत्री, एम.एल.ए. या गवर्नर होता है। काटल योग: लग्नेश बली हो या चतुर्थेश व गुरु परस्पर केंद्र में हों और एक साथ उच्च या स्वगृही हों तो यह योग बनता है जिससे जातक राजनीति में अच्छी सफलता प्राप्त कर राजदूत आदि बनता है। महाराज योग: जब लग्नेश व पंचमेश क्रमशः पंचम व लग्न भाव में स्थित हो यानी भाव परिवर्तन हो तो यह योग बनता है जिससे जातक मुख्यमंत्री, राज्यपाल होता है। श्रीनाथ योग: जब सप्तमेश, दशम भाव में उच्च का हो तथा दशमेश व नवमेश की युति हो तो यह योग बनता है। यह योग केवल धनु लग्न में ही बनता है। धनु लग्न में सप्तमेश बुध, दशम भाव में कन्या राशि में उच्च स्वगृही होता है तथा नवमेश सूर्य की युति भी होनी चाहिए। इससे जातक पी.एम., मंत्री, एम.एल.ए. आदि बनता है। शंख योग: जब कुंडली में लग्नेश बली हो अथवा पंचमेश व षष्ठेश केंद्र में एक साथ हो अर्थात् नवमेश बली हो तथा लग्नेश, दशमेश चर राशि में हांे तो यह योग बनता है, जिससे जातक राजनीति क्षेत्र में मंत्री, मुख्यमंत्री आदि पद प्राप्त करता है। गजकेसरी योग: जब चंद्र से गुरु केंद्र स्थान (1, 4, 7, 10) में पाप रहित तथा शुभ ग्रहों से प्रभावित हा तो यह योग बनता है जिससे जातक मंत्री, मुख्यमंत्री आदि पद प्राप्त करता है। अधियोग: जब चंद्र से 6, 7, 8वें भाव में सभी शुभ ग्रह हों तो यह योग बनता है जिससे जातक राज्यपाल,सेनाध्यक्ष आदि पद प्राप्त करता है। पंचमहापुरुष योग: जब कुंडली में पंचमहापुरुष योग हो अर्थात् मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि लग्न से केंद्र स्थानों में स्वगृही या उच्च हांे तो क्रमशः रुचक, भद्र, हंस, मालव्य, शश नामक योग बनाते हैं। इनमें जन्मा जातक राजनीति में अपार सफलता प्राप्त करता है। वर्तमान में पी. एम. डाॅ. मनमोहन सिंह एवं गुजरात सी.एम. श्री नरेंद्र मोदी की कुंडली में क्रमशः दशम भाव में भद्र योग व लग्न में रुचक योग बन रहा है। ‘‘फल दीपिका’’ ग्रंथ के अनुसार राजयोग यदि कुंडली में 3, 4 ग्रह उच्च या स्वक्षेत्र में केंद्रगत हों तो मनुष्य राजा, राजकुलोत्पन्न अथवा वैभवशाली राजनेता होता है। यदि पांच या अधिक ग्रह उच्चगत हों तो साधारण वंश में उत्पन्न व्यक्ति भी राजा होता है। हाथी घोड़ों से युक्त वत्र्तमान प्रसंग में सर्वस, प्रभुता सम्पन्न राजनीतिज्ञ अथवा सफल राजनेता होता है। . यदि लग्नेश अथवा सूर्य दशम् भाव में हों तो ‘स प्राप्ति योग’ का निर्माण होता है। . लग्नेश और दशमेश का स्थान परिवर्तन योग विशेषतः दशम् भाव में ही बन रहा हो। . मंगल बली या उच्चगत होकर केंद्र, त्रिकोण अथवा शुभ भावों में हो। . कुंडली में सूर्य, मंगल, राहु या शनि, राहु अथवा चंद्र, राहु की युति दशम् भाव में हो। . गुरु केंद्र में बली हो तथा अन्य ग्रह शुभ भावों में हों। . गुरु केंद्र या त्रिकोण में उच्चगत एवं चंद्रमा (पक्षबली) शुभ भावों में हो। . लग्नेश उपर्युक्त भावों में हो तथा उसका संबंध तृतीयेश या दशमेश से हो तो जातक सुख प्राप्त करता है। . लग्नस्थ अथवा केंद्रस्थ राहु नीचस्थ स्थिति में जातक को कर्मठ, पराक्रमी, प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी बनाकर राजनीति में ‘विजय-श्री’ प्राप्त करवाता है। . यदि चतुर्थेश, नवमेश और दशमेश केंद्र या त्रिकोण में हो तथा उनका परस्पर दृष्टि या युति संबंध हो तो ऐसे जातक के पास महान राजनैतिक शक्ति होती है तथा वह राष्ट्रपति या सरकारी मुखिया होता है। . नवमेश-दशमेश की युति केंद्र में तथा राहु भी केंद्र में हो तो राजनीति में उच्चपद पर पहुंचना आसान हो जाता है। ‘‘सर्वार्थ चिन्तामणि’ ग्रंथ के अनुसार: यदि ग्रह अपने उच्च में हो तो राजाओं का राजा (राजनेता) और यदि पांच ग्रह उच्च में हों और बलवान बृहस्पति लग्न में हो तो भी जातक राजनेता अथवा राजा होता है। . वर्गोम लग्न या वर्गोम चंद्रमा का कुंडली में होना राजनीति में सफलता देने में अहम भूमिका निभाते हैं। . राहु और गुरु का किसी भी प्रकार की दृष्टि युति संबंध हो अथवा राहु गुरु के नक्षत्र में हो तो यह राजनीति में सफलतादायक योग का निर्माण करता है। . लगभग सभी ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार कुंडली में यदि तीन, चार ग्रह उच्च नीच राशि में हो, तीन-चार ग्रहों का राशि परिवर्तन योग अथवा दृष्टि परिवर्तन योग हो तो भी एक सफल राजनेता का जन्म होता है। . यदि कुंडली में विभिन्न राजयोगों का निर्माण हो रहा हो जैसे नीच भंग राजयोग, महापुरुष योगों में कोई योग, लग्न कारक योग (हंस, रुचक अथवा शश योग), कीर्ति, अमला, राजराजेश्वर योग उपस्थित हों तो व्यक्ति सर्वशक्ति प्रभुता स सम्पन्न राजनेता या राजनीतिज्ञ होता है। . यदि बुध, गुरु से देखा जाता हो अथवा बुध, गुरु दोनों एक-दूसरे के दृष्टि प्रभाव में हों तो यह एक अत्यंत शुभ एवं सफलतादायक राजयोग एवं राजनीति कारक योग है। ऐसे सफल राजनेता के शासन प्रबंधन को सभी लोग सर्वसम्मति से शिरोधार्य करते हैं। . एक सफल राजनीतिज्ञ के लिए कुंडली में ‘‘चक्रवर्ती राजयोग’’ का होना अतिआवश्यक है। इसके अनुसार यदि कोई भी ग्रह कुंडली में अपने पंचमांश में स्थित हो तो जातक एक सफल राजनेता और पूर्णबली हो तो चक्रवर्ती राजा होता है।



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