पुरूषोत्तम श्री कृष्ण की अमृत वाणी
पुरूषोत्तम श्री कृष्ण की अमृत वाणी

पुरूषोत्तम श्री कृष्ण की अमृत वाणी  

व्यूस : 6976 | आगस्त 2013
पंच तत्व निर्मित इस शरीर का अंतिम लक्ष्य जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होना है। यह किसी भी व्यक्ति के लिए तभी संभव है, जब वह धर्म मार्ग का अवलंबन करे। भगवान श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से समस्त संसार को मुक्त भाव से जीने का साधन दिया है। अर्जुन को माध्यम बना कर, कर्म मार्ग पर निस्पृह भाव से जीने की कला समस्त प्राणियों में आये, यही लक्ष्य था भक्त वत्सल भगवान श्री कृष्ण का। भगवान की लीलाएं त्रिलोक प्रसिद्ध हैं। उन्हीं कथाओं में से एक कथा प्रस्तुत करते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। कार्तिक का महीना व्रतां-त्योहारों का महीना होता है। शरद् पूर्णिमा से ले कर कार्तिक, पूर्णिमा के मध्य भैया दूज, दीपावली, सूर्य षष्ठी व्रत, देवोत्थान एकादशी, हनुमान जयंती एवं पूर्णिमा व्रत प्रमुख हैं। यह कथा इसी कार्तिक महीने की है। कार्तिक का महीना था। भगवान अपने बाल काल में काफी चंचल थे। कार्तिक के महीने में स्त्रियां पुत्रों के कल्याण के लिए यमुना नदी में दीप दान करती हैं। अतः उसी कार्तिक महीने में माता यशोदा दीप दान हेतु प्रस्थान करने वाली थीं। भगवान कृष्ण भी उनके साथ जाने की जिद्द करने लगे। अपने बाल सुलभ हठ का प्रदर्शन करते हुए लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण माता यशोदा से बोले: मईया, मं भी चलूंगा। माता यशोदा ने कहा: तू वहां मत जा। तू अगर वहां जाएगा, तो उधम मचा देगा। पुत्र के हठ के सामने तो कोई भी माता अपना संतुलन खो देती है। यहां तो जगत पिता ही पुत्र थे। अतः उनके हठ को वह कैसे टालतीं? माता यशोदा की अंगुलियां पकड़े नंदलाल यमुना की ओर प्रस्थान कर गये। ज्यों ही माता ने दीप प्रज्ज्वलित करना शुरू किया कि भगवान श्री कृष्ण यमुना की ओर प्रस्थान कर गये और मधुसूदन यमुना जी में कूद पड़े। माता ने दीप दान करने के बाद देखा कि भगवान श्री कृष्ण यमुना में बहते दीपों को किनारे लगा रहे हैं। माता यशोदा थोड़ी विचलित हुईं और बोलीं: तू कर क्या रहा है नटवर? भगवान बोले: किनारे लगा रहा हूं। पुनः माता यशोदा बोली: तू किसको किनारे लगा रहा है? भगवान बोले- दीपों को माता ने कहा: क्यों? भगवान ने कहा: मैया, यही तो मेरा काम है। पुनः माता बोलीं: तो इतने असंख्य दीप जो बहते जा रहे हैं, तू उन सबको किनारे क्यों नहीं लगा देता?“ भगवान ने कहाः मैया, यह तो राज की बात है। माता यशोदा बोली: राज की बात? राज क्या है ? श्री गिरधर बोले: मैया, जो भी अनंत से किसी भी प्रकार बहते हुए मुझ तक आ जाता है, उसे तो मैं किनारे लगा ही देता हूं। औरों का मैंने ठेका नहीं ले रखा है। वास्तव में बहना ही तो जीवन है। अर्जुन बहे, सुदामा बहे, मीरा बही, रसखान बहे, तुलसी बहे, सुर बहे, सुदामा बहे और न जाने कितने बहे। सब बहें और उन्हीं पतित पावन के श्री चरणों तक बहें क्योंकि उन्होंने ही तो कहा है- ”सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज“ हम सभी की प्रीति भगवान श्री कृष्ण के चरणों में हो, इसी कामना के साथः ‘‘जय शिव, जय श्री राधेश्याम“



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.