उत्तर-पूर्व में दोष- वंशवृद्धि में अवरोध पं. गोपाल शर्मा (बी.ई.) कुछ माह पूर्व पंडित जी मकराना राजस्थान में रह रहे एक प्रसिद्ध साॅफ्टवेयर इंजीनियर श्री धर्मेंद्र जी जो कि राजस्थान में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं के यहां वास्तु परीक्षण करने गये। उनसे मिलने पर उन्होंने बताया कि वह अपने माता-पिता की अकेली संतान है उनके विवाह को चार साल हो गये हैं और अभी तक उनकी कोई संतान नहीं हुई। जीवन के हर क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। परिश्रम करने पर भी असफलता ही हाथ आती है।
घर में वैचारिक मतभेद की वजह से मानसिक तनाव बना रहता है। घर के सदस्यों का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। वास्तु परीक्षण करने पर पाए गए वास्तु दोष: घर की अनियमित आकृति थी जो कि जीवन में कठिनाईयां तथा कमियां लाती है। कुछ भी आसानी से हासिल नहीं हो पाता तथा परिश्रम अधिक करना पड़ता है। दक्षिण में भूमिगत जल स्रोत बना था जो कि बीमारी एवं अनचाहे खर्चों का कारण होता है। पूर्व में सीढियां बनी थीं जो कि सभी ओर से विकास में बाधक होती हैं तथा घर में छाती संबंधी बीमारी होने का कारण हो सकती हैं। उत्तर में रसोईघर था जो कि वैचारिक मतभेद व भारी खर्च का कारण होता है। उत्तर-पूर्व में शौचालय बना था जो कि मानसिक तनाव, बीमारी व वंशवृद्धि में बाधक होता है। सुझाव: घर का आकार ठीक करना कठिन था इसलिए इस घर को छोड़ने की सलाह दी गई परन्तु तब तक निम्नलिखित उपाय करने को कहा गया। भूमिगत जल स्रोत को बंद करके गढ्ढे को अच्छे से भरने को कहा गया तथा उसे उत्तर पूर्व में बनाने को कहा गया। रसोईघर को दक्षिण में या उत्तर पश्चिम में बनाने की सलाह दी गई। बनाने की सलाह दी गई। उत्तर-पूर्व में बने शौचालय को हटाने की सलाह दी गई तथा उसे उत्तर में शाफ्ट के पास बनाने को कहा गया।