काल सर्प दोष शान्ति के प्रमुख स्थल
काल सर्प दोष शान्ति के प्रमुख स्थल

काल सर्प दोष शान्ति के प्रमुख स्थल  

व्यूस : 10267 | अप्रैल 2009
काल सर्प दोष शांति के प्रमुख स्थल नवीन चितलांगिया हमारे धर्म ग्रंथ¨ं एवं शास्त्र¨ं में विभिन्न प्रकार क¢ सर्प द¨ष य¨ग¨ं का वर्णन मिलता है। वराहमिहिर ने अपनी संहिता जातक नभ संय¨ग में सर्प य¨ग का उल्लेख किया है। जैन ज्य¨तिष में भी काल सर्प की व्याख्या है। कई नाड़ी ग्रंथ¨ं में भी काल सर्पय¨ग का उल्लेख है। संक्षेप में कहें त¨ काल सर्प य¨ग एक भयानक, दुखदायी अ©र पीडा़दायक य¨ग है। सांसारिक ज्य¨तिष में कालसर्प य¨ग क¢ विपरीत परिणाम¨ं क¨ देखते हुए इसे अशुभ माना गया है। आज भारतीय ज्य¨तिष क¢ अंतर्गत कालसर्प य¨ग एक व्यापक चर्चा का विषय बन चुका है। वर्तमान में इस य¨ग का जितना प्रचार-प्रसार हुआ है, वह अकल्पनीय, अविस्मरणीय है। विगत कुछ दशक¨ं में कालसर्प य¨ग एक धूमक¢तु क¢ समान चर्चित ह¨कर फलित-ज्य¨तिष में छाया हुआ है। शनि क¢ कष्टकारी एवं अशुभ प्रभाव¨ं क¢ समान कालसर्प य¨ग के संबंध में भी अनेक भ्रांतियां हैं। कालसर्प य¨ग से ह¨ने वाले प्रतिकूल, अशुभ एवं कष्टदायी प्रभाव¨ं क¨ कैसे कम किया जाए? कालसर्प द¨ष शांति का शास्त्रीय आधार क्या है? यद्यपि हमारे धर्म शास्त्र¨ं में सर्प द¨ष¨ं की शांति हेतु विभिन्न प्रकार के मंत्र-तंत्र-यंत्र, जप-तप, पूजा-आराधना, दान, ट¨टकों, व्रतादि का वर्णन मिलता है, परंतु यदि क¨ई जातक काल सर्प य¨ग की शांति करवाना चाहे त¨ कहां करवाए ? भारत क¢ किन-किन स्थान¨ं पर कालसर्प य¨ग की वास्तविक शांति का ह¨ना संभव है अ©र इन स्थान¨ं में शांति करवाने क¢ पीछे कारण क्या है? कालसर्प य¨ग शान्ति का सैद्धान्तिक पक्ष क्या है ? संसार क¢ प्रायः सभी धमर्¨ं में सपर्¨ं (नाग) क¢ महत्व का उल्लेख मिलता है। हमारे धर्म शास्त्र¨ं में नाग¨ं एवं सपर्¨ं क¢ महत्व का अत्यधिक उल्लेख है। हिंदू धर्म शास्त्र¨ं में नाग (सर्प) जागृत कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक माना गया है। पातंजलि य¨ग दर्शन क¢ अनुसार मानव ज्ञान की वैज्ञानिक पूर्णता का उपादेय कुंडलिनी भी मूलाधार चक्र में सर्पाकार रूप में ही सुषुप्तावस्था में निवास करती है। ज्य¨तिष में राहु क¨ काल अ©र क¢तु क¨ सर्प की संज्ञा दी गई है। राहु क¨ सर्प का प्रतिनिधि भी माना गया है। दूसरे अर्थ में राहु कालस्वरूप नाग है। अतः नाग (सर्प) क¢ मस्तक का संबंध राहु से है अ©र पुच्छ (पूंछ) का संबंध क¢तु से। काल अर्थात् राहु एवं सर्प अर्थात् क¢तु अर्थात् राहु $ क¢तु से बनने वाला य¨ग है काल सर्प य¨ग। जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह राहु-क¢तु क¢ मध्य आ जाएं अर्थात् सभी ग्रह राहु अ©र क¢तु क¢ एक ही बाजू में स्थित ह¨ं त¨ ऐसी ग्रह स्थिति क¨ कालसर्प य¨ग कहा गया है। कालसर्प य¨ग एक प्रकार से सर्प य¨ग का ही रूप है, अतः कई विद्वान काल सर्प क¨ नाग द¨ष मानकर इसकी शांति हेतु नाग बलि (सर्प बलि) एवं नारायण बलि का विधान आवश्यक मानते हंै। नारायण बलि एवं नाग बलि क¢ लिए पवित्र तीर्थ या शिवालय श्रेष्ठ एवं य¨ग्य स्थल है। शास्त्रीय ग्रंथ धर्मसिंधु में संतान प्राप्ति हेतु नारायण नाग बलि का विधान बताया गया है। कालसर्प य¨ग शांति क¢ लिए भारत में कुछ प्रसिद्ध पूजा स्थल भी हैं, जहां वैदिक विधि-विधानपूर्वक इस य¨ग की शांति कराकर पीड़ित व्यक्तिय¨ं को इसके दुष्प्रभाव से मुक्त कराया जा सकता है। इनका विवरण इस प्रकार है। Û कालसर्प द¨ष शांति का प्रत्यक्ष संबंध आशुत¨ष भगवान महेश्वर से है। भगवान शिवशंकर स्वयं काल क¢ अधिपति अर्थात् महाकाल हैं। शिव नाग¨ं क¢ गुरु माने गए हंै। शिव क¢ गले में नागरूपी हार है, नाग क¢ बिना शिवलिंग की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अतः भगवान शिवशंकर क¢ द्वादश ज्य¨तिर्लिंग स्थल¨ं श्री स¨मनाथ (स©राष्ट्र), श्री मल्लिकार्जुन (श्री शैलम), श्री महाकालेश्वर (उज्जैन), श्री अमलेश्वर (अ¨म्कारेश्वर), श्री वैद्यनाथ(झारखंड), श्री भीमशंकर (महाराष्ट्र), श्री रामेश्वरम (तमिलनाडु), श्री नागेश्वर (दारूकवन), श्रीविश्वनाथ (वाराणसी), श्रीक¢दारनाथ (हिमालय), श्रीघुश्मेश्वर (इल्ल¨रा), त्र्यंबकेश्वर (नासिक) में पूजा- आराधना करने से काल सर्प य¨ग की शांति ह¨ती है। Û महाराष्ट्र क¢ नासिक का त्र्यंबक¢श्वर मंदिर काल सर्प य¨ग शांति का सवर्¨त्तम स्थान है, क्य¨ंकि त्र्यंबक¢श्वर ग¨दावरी नदी के उद्गम पर स्थित है। भगवान शिव का धाम है अ©र यहां क¢ कर्मकांडी ब्राह्मण¨ं क¨ काल सर्प य¨ग शांति क¢ विधान का पूर्ण ज्ञान है। त्र्यंबक¢श्वर ज्य¨तिर्लिंग में भगवान शिव का अभिषेक, पूजा-अर्चना करवा कर नाग-नागिन क¢ ज¨डे़ छ¨ड़ने से काल सर्प य¨ग की शांति ह¨ती है। Û इलाहाबाद में कालसर्प य¨ग की शांति हेतु, नाग-नागिन को उनकी विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा करा कर, पूजन कर के दूध क¢ साथ संगम में प्रवाहित करना चाहिए। अन्य पवित्र नदिय¨ं क¢ किनारे अवस्थित तीर्थस्थल¨ं में भी कालसर्प य¨ग की विधिपूर्वक शांति करानी चाहिए। तीर्थराज प्रयाग, गया आदि स्थल¨ं में कालसर्प य¨ग की शांति क¢ साथ-साथ श्राद्ध-तर्पणादि करने चाहिए। इलाहाबाद स्थित तक्षक तीर्थ में कालसर्प योग की विधिवत पूजा की जाती है। दक्षिण भारत क¢ विश्व प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर से लगभग 50 किल¨मीटर की दूरी पर कालहस्ती शिव मंदिर में काल सर्प य¨ग की शांति का उपाय विधि-विधानपूर्वक किया जाता है। यहां लगभग एक घंटे की पूजा-अर्चना क¢ साथ मंदिर के प्रांगण में ही पुर¨हित वैदिक रीति से शांति कर्म कराते हैंे। महाकाली देवी का सर्वप्रसिद्ध सिद्ध शक्तिपीठ कालीपीठ (कलिका) दक्षिण क¨लकाता क¢ कालीघाट क्षेत्र में स्थित है। इस शक्तिपीठ में महादेव शिव शंकर का नकुलेश्वर मंदिर अवस्थित है। यहां महाकाली मंदिर क¢ समीप श्मशान भूमि तथा आदि गंगा का पवित्र सर¨वर है। अतः यहां वैदिक रीति से काल सर्प य¨ग शांति का उपाय शुभ एवं मंगलदायक होता है। क¨लकाता क¢ नीमतल्ला घाटष्श्मशान भूमि में भूतेश्वर महादेव का सर्वप्रसिद्ध सिद्ध मंदिर है, ज¨ भूतनाथ मंदिर कहलाता है। यहां मंदिर क¢ समीप ही पवित्र गंगा (हुगली) नदी बहती है। अतः यहां शास्त्रीय रीति से किया गया शांति कर्म, पूजनादि से काल सर्प य¨ग क¢ सभी अरिष्ट¨ं का शमन ह¨ता है। नारायण वाहन गरुड़राज सर्पहंता (सपर्¨ं का भक्षण करने वाले) हंै। दूसरे शब्द¨ं में गरुड़राज सपर्¨ं क¢ परम शत्रु हंै। अतः वड़ोदरा क¢ गरुडे़श्वर मंदिर तथा मथुरा जाते समय राष्ट्रीय राजमार्ग 8 के निकट छटीकारा गांव में गरुड़ग¨विन्द मंदिर में पूजा-अर्चना-आराधना करना काल सर्प य¨ग क¢ दुष्प्रभाव¨ं क¢ शमन हेतु अभीष्ट है। गरुड़ भगवान की मूर्ति क¢ समक्ष नाग-विषहरण मंत्र का नियमित जप करने से काल सर्प य¨ग की शांति ह¨ती है। संपूर्ण विश्व क¢ संचालक भगवान विष्णु (नारायण) स्वयं शेषनाग पर आसीन ह¨ते हैं अ©र स्वयं शेषनाग छत्र बनकर उन्हें छाया प्रदान करते हैं। मर्यादा पुरुष¨त्तम श्रीराम भगवान नारायण क¢ अ©र लक्ष्मण शेषनाग क¢ अवतार थे। जब श्रीराम अ©र लक्ष्मण नागपाश में बंधकर मूर्च्छित ह¨ गए थे, तब महावीर हनुमान ने गरुड़ की सहायता से उन्हें नागपाश से मुक्त करवाया था। अतः सभी सिद्ध हनुमान मंदिरों में पूजा-आराधना करने से भी काल सर्प य¨ग शिथिल ह¨ जाता है। भगवान कृष्ण अपने बडे़ भाई बलराम क¨ दाऊ कहकर पुकारते थे, ज¨ शेषनाग क¢ अवतार थे। इसी कारण मथुरा से प्राप्त नाग-मूर्तिय¨ं क¨ स्थानीय ल¨ग दाऊजी कहते हैं। मथुरा से 12 किल¨मीटर दूर बलदेव (दाऊजी) का मंदिर है, जहां की पूजा-अर्चना काल सर्प द¨ष शांति हेतु अभीष्ट फलदायक होती है। मथुरा क¢ जैंत नामक गांव क¢ तालाब में विशालकाय नाग की मूर्ति स्थापित है, जहां नाग मंदिर में नागमूर्ति की पूजा-आराधना से काल सर्प य¨ग का दुष्प्रभाव क्षीण ह¨ता है। श्री कृष्ण भगवान परब्रह्म परमात्मा स्वरूप हैं। यह स्मरणीय है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालीदह पर कालिया नाग क¢ फण पर त्रिल¨क¨ं का भार लेकर नृत्य करते हुए उनका मान-मर्दन किया और बाद में कालिया नाग क¨ वरदान देकर रमणकदीप भेज दिया। अतः जिस मूर्ति में भगवान श्री कृष्ण म¨रपंखी मुकुट पहने कालिया नाग क¢ फण क¢ ऊपर नाचते हुए दिखलाई पडे़ं, उसके समक्ष नित्यार्चन तथा यथाशक्ति ¬ नम¨ भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करने से काल सर्प य¨ग की शांति ह¨ती है। क¢दारनाथ जाते समय त्रियुग¨नारायण मंदिर क¢ प्रांगण में चांदी, तांबे या स्वर्ण क¢ नाग-नागिन छ¨ड़ने से काल सर्प य¨ग की शांति ह¨ती है। हिमाचल प्रदेश में स्थित चामुंडा देवी मंदिर शिव अ©र शक्ति का स्थान है। बाणगंगा नदी क¢ तट पर यह उग्र शक्तिपीठ प्राचीन काल से ही य¨गिय¨ं, तांत्रिक¨ं अ©र साधक¨ं की तपस्थली रहा है। यहां शिव, शक्ति अ©र नाग मंत्र क¢ पूजन, दानादि तथा श्राद्ध कर्म करने से काल सर्प द¨ष का परिहार ह¨ता है। हरिद्वार क¢ समीप गंगा पार शिवालिक पर्वत क¢ पूर्वी शिखर पर चंडीदेवी का सिद्ध मंदिर है, जहां काल सर्प द¨षष्शांति का उपाय शुभ फलदायक होता है। काल सर्प द¨ष की शांति में नाग-पूजन आवश्यक है अ©र मां मनसादेवी नाग¨ं की अधिष्ठाधात्री देवी मानी गई हैं। जन्मेजय क¢ नाग-यज्ञ क¨ र¨कने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अतः मनसादेवी की पूजा-आराधना करने से काल सर्प द¨ष का शमन ह¨ता है। मनसा देवी का प्रसिद्ध मंदिर चंडीगढ़ क¢ समीप मनीमाजरा नामक स्थान पर है, ज¨ देवी भगवती का शक्तिपीठ माना गया है। भारत क¢ प्रायः सभी पर्वतीय क्षेत्र¨ं में नाग-पूजन की विशेष परम्परा है। इनमें कश्मीर अ©र हिमाचल प्रदेश प्रधान हंै। नीलमत पुराण अ©र कल्हण की राज तरंगिणी क¢ अनुसार कश्मीर की संपूर्ण भूमि नील नाग की देन है। यहां विद्यमान अनंतनाग इस तथ्य की पुष्टि करता है। यहां नाग देवता का सर्वाधिक सम्मान ह¨ता है। हिमाचल प्रदेश में देवदार तथा अन्य वृक्ष¨ं क¨ नाग मंदिर स्वरूप समझा जाता है। अतः कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा अन्य पर्वतीय क्षेत्र¨ं में अवस्थित सभी नाग-मंदिर¨ं में काल सर्प द¨ष शांति हेतु मनसादेवी नागस्तोत्रम् का विधिवत पाठ करना फलदायक होता है। राजस्थान क¢ बाड़मेर जिले क¢ बायतु ग्राम में स्थित नाग मंदिर में शांति के उपाय करने से सभी प्रकार क¢ विष शांत ह¨ते हैं तथा भक्त¨ं की अभिलाषा पूर्ण ह¨ती है। जैन संप्रदाय क¢ सर्वाधिक ल¨कप्रिय 23वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ का नाम नागकुमार धरणेंद्र क¢ साथ लिया जाता है। फणधारी नाग का शिरश्छत्र ही भगवान पाश्र्वनाथ की पहचान है। जैन मंदिर¨ं में भगवान पाश्र्वनाथ क¢ साथ-साथ नागकुमार धरणेंद्र की पूजा-आराधना काल सर्प य¨ग शांति में सहायक होती है। धरणेंद्र यंत्र (ज¨ नागपाश यंत्र का प्रभावशाली स्वरूप है) की नियमित पूजा करने से या सिद्ध धरणेंद्र यंत्र क¨ धारण करने अथवा अपने पास रखने से काल सर्प य¨ग का अशुभ प्रभाव जातक क¨ प्रताड़ित नहीं करता है। काल भैरव, रुद्र भैरव, बटुक भैरव आदि सभी भगवान शिव क¢ अंग स्वरूप हंै। अतः इन भैरव¨ं क¢ सिद्ध मन्दिर¨ं में शांति करवा कर नाग-नागिन क¢ ज¨डे़ नदी में प्रवाहित करने से काल सर्प य¨ग का दुष्प्रभाव शांत ह¨ता है। काल सर्प य¨ग की शांति किसी पवित्र नदी क¢ किनारे या श्मशान क¢ निकट स्थित शिवालय में करना शुभ फलदायक एवं शास्त्रसम्मत माना गया है। काल सर्प द¨ष की शांति में नाग पूजन करना अनिवार्य माना गया है। ऐसे किसी स्थल पर जहां नदी क¢ किनारे शमशान भूमि, शिवालय अथवा नाग मंदिर ह¨, काल सर्प द¨ष की शांति करवाना शुभ एवं फलदायक होता है।



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