पीतांबरा शक्तिपीठ दतिया वेदव्रत भटनागर मां शक्तिस्वरूपा जगदंबा अपने शक्तिपीठों के माध्यम से देश के कोने-कोने में मौजूद हैं। ऐसी मान्यता है कि तंत्र साधना बिना मां के आशीर्वाद के सफल नहीं होती। इसलिए तंत्र साधक शक्तिपीठों में जाकर साधना करते हैं। पीतांबरा शक्तिपीठ में न सिर्फ तांत्रिकों बल्कि सैकड़ों दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है। पढ़िए, इस स्थल के ऐतिहासिक महत्व की झांकी प्रस्तुत करता आलेख...
द स महा विद्याओं में मां काली, त ा र ा , ष् ा ा े ड श् ा ी , भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला आती हैं। इन सभी की साधना तांत्रिक विधि से करने का विधान है। मां बगलामुखी को पीतांबरा नाम से भी जाना जाता है। मां की उपासना से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा शास्त्रों में लिखा है। बहुत से लोग मां के नाम से भयभीत हो जाते हैं एवं उनकी आराधना से मुंह चुराते हैं। पर डरने की कोई बात नहीं है। आप स्वयं शनि मूल मंत्र का एक माला जप कर एवं मां का कवच नित्य पढ़ कर देख सकते हैं कि इनका क्या प्रभाव है। मा ं की उपासना स े ग्रह पीड़ा, शत्रु पीड़ा एवं अन्य सभी प्रकार की पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है।
शास्त्रों के अनुसार मां बगलामुखी के मंत्र के जप से पहले हरिद्रा गणपति के मंत्र ‘‘¬ हुं गं गलों हरिद्रागणपतये वर वरद सर्वजन हृदय स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा’ का एक माला जप कर के बटुक भैरवजी के मंत्र ¬ ह्रीं बटुकाय आपादु(रणाय कुरु-कुरु बटुकाय ह्रीं का भी एक माला जप करें। फिर मां के मूल मंत्र ‘‘¬ ींीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं, मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बु(ि विनाशय ींीं ¬ स्वाहा’’ का जप करें।
मां के मंत्र का पुरश्चरण एक लाख का होता है। इसका दशांश हवन फिर हवन का दशांश तर्पण एवं तर्पण का दशांश मार्जन करके ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। जप पीले वस्त्र पहनकर पीले आसन पर बैठकर हल्दी की माला पर करें। हल्दी की माला न हो, तो जप कमलगट्टे की माला पर भी किया जा सकता है। जप उत्तर या पूरब की ओर मुंह करके करना चाहिए। जप के दौरान घी का दीपक एवं धूप आदि जलते रहने चाहिए। मां की साधना मकर संक्रांति की रात्रि में जब चतुर्दश तिथि एवं दिन मंगलवार हो, तो अतिसिद्धिप्रद मानी गई है।
मां की साधना रात्रि में 9 बजे से 12 बजे के मध्य करने पर फल की प्राप्ति शीघ्र होती है। पीतांबरा शक्ति पीठ की स्थिति एवं महत्व: पीतांबरा शक्तिपीठ दतिया की आध्यात्मिक शक्ति करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा का केंद्र ही नहीं बल्कि वरदान भी है। यह केंद्र तंत्र साधकों को सिद्धि प्रदान करता है। शनिवार की रात यहां व्यतीत करें, तो असीम आनंद की प्राप्ति होगी । यहां माता धूमावती जी का मंदिर भी परिसर में है जो रात में खुलता है।
अतः रात भर काफी चहल पहल बनी रहती है। मां धूमावती जी को सफेद फूलों की माला एवं उड़द की दाल के पकौड़े या नमकीन दालमोठ का प्रसाद चढ़ाया जाता है। परिसर में हरिद्रा गणपति, काल भैरव, बटुक भैरव गणेशजी, कार्तिकेय जी, हनुमान जी, महाभारत कालीन शिव जी आदि की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इस क्षेत्र की ऐतिहासिक महत्ता को सभी लोग स्वीकार करते हैं। पीतांबरा शक्ति पीठ की स्थापना: पीतांबरा शक्तिपीठ को देशव्यापी प्रतिष्ठा हासिल कराने का श्रेय परम पूज्यपाद ब्रह्मलीन अनंत श्री विभूषित स्वामी जी महाराज को है।
कुछ भक्तजन बताते हैं कि सन् 1929 में महाराज जी दतिया आए थे। वह धौलपुर, राजस्थान के मूल निवासी थे। उस समय यहां घने जंगल में एक चबूतरे पर महाभारत कालीन महादेव जी (वन खंडेश्वर जी) का एक छोटा मंदिर था। एक जनश्रुति के अनुसार यह मंदिर अश्वत्थामा के द्वारा स्थापित किया गया था। किसी समय में यह स्थान घोरतम वाम मार्ग का केंद्र था। इसी स्थान पर महाराज जी ने मां बगलामुखी का ध्यान किया और मां ने उन्हें दर्शन दिए। जिस कुटिया में उन्हें दर्शन हुए उसी कुटिया में उन्होंने ज्येष्ठ कृष्ण गुरुवार पंचमी सन् 1934-35 में मां बगलामुखी की, जिन्हें पीतांबरा भी कहते हैं, मूर्ति स्थापित की। मां बगलामुखी का महत्व: अग्नि पुराण के अनुसार दस महा विद्याओं में मां बगलामुखी को सिद्ध विद्या कहा गया है।
शास्त्रों के अनुसार मां की साधना से शत्रुओं का स्तंभन हो जाता है। यह साधना साधक को मोक्ष एवं भोग दोनों ही प्रदान करती है। यहां प्रतिदिन दूर-दूर से आने वाले भक्तजनों का तांता लगा रहता है। कहा जाता है कि भक्तों की सभी मनोकामनाएं मां पूरी करती हैं। कई असाध्य रोगी भी मां की कृपा से पूर्ण स्वस्थ हो चुके हैं। भूत, प्रेत आदि से ग्रस्त लोग भी मां के दर्शन से पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं। मां के दरबार में सच्चे मन से की गई प्रार्थना सुनी जाती है। मां के दर्शन से मन में असीम आनंद अनुभूति होती है। यहां यदि आप पीली धोती एवं पीले कुर्ते में आएं, तो आप को सभी स्थानों के दर्शन हो जाएंगे। यहां पर कई विशाल हवन कुंड हैं जिनमें हवन करने की अनुमति लेनी पड़ती है।
यह स्थान तंत्रस्थली होने के कारण यहां की गई पूजा, जप, हवन आदि का प्रभाव तुरंत ही दिखाई देने लगता है। यहां साधकों द्वारा समय-समय पर अनेक अनुष्ठान और यज्ञ कुशल पंडितों की देख-रेख में संपन्न किए जाते हैं। मां पीतांबरा, मां धूमावती और स्वामी जी महाराज की अनुकंपा से इस स्थान का विकास हो रहा है।
इस स्थान में नवरात्र या किसी अन्य पर्व वाले दिन की गई साधना साधक को समृद्ध बना देती है। कैसे जाएं/कहां ठहरें: दतिया झांसी से 30 किमी दूर ग्वालियर रोड पर स्थित है। यहां बस एवं रेल दोनों के द्वारा पहुंचा जा सकता है। झांसी से दिल्ली जाने वाली सभी गाड़ियां इसी मार्ग से होकर जाती हैं। यहां ठहरने एवं खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था है।
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