भोग का प्रदाता श्री तक्षक तीर्थ
भोग का प्रदाता श्री तक्षक  तीर्थ

भोग का प्रदाता श्री तक्षक तीर्थ  

व्यूस : 6740 | अकतूबर 2009
भोग का प्रदाता श्री तक्षक तीर्थ प्रयाग नगर के दक्षिणी क्षेत्र यमुना नदी के तट बलुआघाट और मीरापुर के मध्य स्थित प्राचीन एवं विशाल क्षेत्रफल में फैला दरियाबाद मुहल्ला प्रयाग के प्राचीन मुहल्लों में से एक है। इसी मुहल्ले के मध्य श्री तक्षक तीर्थ, लगभग एक बीघा जमीन के क्षेत्र में, विशाल प्राचीन मंदिर स्थित है। तीर्थराज प्रयाग स्थित 3 तीर्थ आदिकालीन हैं- तक्षक तीर्थ, अक्षय वट, नाग वासुकी। अक्षय वट निश्चित ही परम ब्रह्म परमेश्वर का स्थान है। श्रृष्टि के प्रथम मनुष्य की उत्पत्ति के साथ योग और भोग की विधाएं अवश्य ही जुड़ जाती हैं, जिसके पूरक क्रमशः वासुकी और तक्षक तीर्थ हैं। क्रमशः योग के प्रदाता वासुकी और भोग के प्रदाता तक्षक तीर्थ हैं। ज्ञान और वैराग्य का मेला गंगा मैया के तट वासुकी के निकट माघ मास में लगता है। ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सांसारिक मोह-माया का मेला यमुना के तट पर श्री तक्षक तीर्थ के निकट कार्तिक मास में लगता है। उस मास में लक्ष्मी, धनवंतरी, कुबेर, अन्य संसारी देवताओं की पूजा करते हैं। 3 प्रमुख गुणों में सतोगुणी वासुकी रजोगुणी अक्षय वट और तमोगुणी तक्षक कहे गये। स्वाधिष्ठान चक्र नाग वासुकी, मूलाधार चक्र अक्षय वट, मणि पूरक चक्र श्री तक्षक तीर्थ कहे गये, अर्थात पृथ्वी कुंडलिनी शक्ति श्री तक्षक तीर्थ में विराजती है। पृथ्वी के मूलाधार निश्चित ही अक्षय वट है, किंतु सृष्टि के मूलाधार नाग ही है। प्रत्यक्ष प्रमाण है शरीर के अन्य अंग के अस्थि-पंजर स्वस्थ हों, किंतु यदि रीढ़ की हड्डी में कोई कष्ट आ जाए, तो जीवन दुर्लभ हो जाता है। दृष्टव्य है कि रीढ़ की हड्डी का आकार सर्पीला है। तीर्थराज में परिलक्षित होता है संपूर्ण मानव जीवन दर्शन जिस प्रकार मनुष्य के जीवन में तमोगुण की एक सीमा पर भोग इच्छा समाप्त हो जाती है, उसी प्रकार तीर्थराज में, तमोगुणी गंगा में समाहित हो, बाकी बचे मार्ग को पूर्ण कर, महासागर में समाहित हो जाती है, जिसका आदि और अंत नहीं है, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भोग इच्छा समाप्त होने के बाद बचा जीवन व्यतीत कर वह जीवात्मा, जिससे यह संपूर्ण जीवन संचारित हैं उस महाप्रकाश में समाहित हो जाती है। जिसका आदि और अंत नहीं है। आदिकालीन श्री तक्षक तीर्थ यमुना नदी के तट पर स्थित प्राचीन नाम मौजा (हरबंस नगर) वर्तमान दरियाबाद के मध्य स्थित है। अति प्राचीन पुराण वर्णित प्रयाग मंडल के दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी की कंुडलिनी (मणि पूरक चक्र) श्री तक्षक तीर्थ है। सभी मासों की शुक्ल पक्ष की पंचमी विशेष को मर्म शीर्ष अगहन और श्रावण मास की पंचमी को श्री तक्षक कुंड में स्नान कर तक्षकेश्वर के पूजन, दान, जपादि करने से मनुष्य कुल विषबाधा से मुक्त तो होता ही है, साथ ही कुल धनवान और सांसारिक सुखों को प्राप्त करता है। यह स्थान काल सर्प योग राहु की दुष्प्रभाव व्यक्ति के जीवन में नहीं आने पाता। जो व्यक्ति इनकी पूजार्चना करता है, उस व्यक्ति के दर्शन करने मात्र से कुल में विषबाधा नहीं होती। सांप, बिच्छू, विषबल्ली आदि के काटने का भय नहीं होता। यह तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है। शुक्ल पक्ष की सब पंचमियों, विशेष मार्गशीर्ष (अगहन) और श्रावण की पंचमी को जो तक्षक कुंड में स्नान कर तक्षकेश्वर की पूजा करता है और वासुकी, रजोगुणी अक्षय वट और तमोगुणी तक्षक कहे जाते हैं। अध्यात्म के अनुसार यहां प्रवाहित हो रही ऊर्जा को ग्रहण कर 60 वर्ष का व्यक्ति भी अपनी कुंडलिनी जागृत कर लेता है। अध्यात्म योग के अनुसार श्री तक्षक तीर्थ के दर्शन से ही या तो उन कामनाओं की पूर्ति हो जाती है, जिनको भोगे बिना व्यक्ति सुख की अनुभूति नहीं कर सकता, या कामनाओं का अंत हो जाता है। अध्यात्म के दृष्टिकोण से श्री तक्षक तीर्थ के दर्शन के बिना तीर्थराज की तीर्थ यात्रा ही अपूर्ण है। यह स्थान काल सर्प योग, राहु की महादशा, नाग दोष, जादू, टोना, टोटका एवं असाध्य रोगों से मुक्तिदायक है। प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी, नाग पंचमी श्रावण मास, द्वितीय नाग पंचमी मार्गशीर्ष (अगहन), साप्ताहिक सोम, बुध, शनि को यहां विशेष पर्व होते है। श्री तक्षक तीर्थ संपूर्ण सर्प जाति के स्वामी का स्थान होने के कारण काल सर्प योग, राहु की महादशा, नाग दोष से मुक्तिदायक तीर्थ कहे जाते हैं, क्योंकि इनके दिये शाप से न कोई बचा सकता है, न इनके दिये हुए आशीर्वाद को कोई बाधित करता है। इस स्थान पर काल सर्प योग निवारण हेतु किये जाने वाले अनुष्ठान विशेष फलदायी होते हैं। महादशा और नाग दोष और विष बाधा से मुक्ति का तीर्थ है। यह तीर्थ सब तीर्थों का पुण्य देने वाला और सभी प्रकार के विष का विनाश करने वाला है। सांप, बिच्छू, विषबल्ली आदि के काटने का भय तो व्यक्ति के जीवन में समाप्त हो ही जाता है, साथ ही यदि ईष्र्या-द्वेष की भावना से कोई कुछ कर देना चाहे, खिला देना चाहे, उसका भी दान-जप आदि करता है, वह धनवान होता है। श्री तक्षक तीर्थ का आध्यात्मिक माहात्म्य बताते हुए श्री तक्षक तीर्थ पीठाधीश्वर रवि शंकर जी ने कहा: स्वाधिष्ठान चक्र नागवासुकी, मूलाधार चक्र अक्षय वट और मणिपूरक चक्र तक्षक तीर्थ है। 3 प्रमुख गुणों के द्योतक सतोगुणी



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