माता पिता के हाथ और संतान का स्वास्थ्य भारती आनंद ढींगरा यदि किसी व्यक्ति की जीवन रेखा सीधी हो, भाग्य रेखा पर द्व ीप हो और उसकी पहली संतान कन्या हो, तो उसका स्वास्थ्य ठीक रहता है। किंतु यदि पहली संतान पुत्र हो, तो वह अल्पायु होता है या उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता।
हाथ सामान्य से अधिक नरम हो और जीवन रेखा अधूरी हो, तो संतान को और स्वयं को दमा, गुर्दे के रोग तथा खांसने से संबंधित रोग होते हैं। किंतु कुछ समय पश्चात उनका स्वास्थ्य स्वतः ही सामान्य हो जाता।
हाथ बहुत ज्यादा सख्त होने पर स्वयं जातक को तथा उसकी संतान को आंतों के रोग, पेचिस, गुर्दे, जिगर आदि के रोगों की संभावना रहती है। ये रोग होने पर भी ऐसे लोग स्वास्थ्य के प्रति गंभीर नहीं रहते। जीवन और हृदय रेखाएं दोहरी हांे और स्वास्थ्य रेखा अच्छी हो, तो संतान को छिटपुट रोग होते ही रहते हैं जो स्वतः ठीक हो जाते हैं।
कोई बड़ा रोग उन्हें नहीं होता। मस्तिष्क रेखा टूटने की दिशा में यदि हृदय रेखा की कोई शाखा टूटकर उसी स्थान पर मिले तो जातक तथा उसकी संतान को जीवन के आरंभ में अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिसकी वजह से उन्हें हृदय रोग की भी संभावना रहती है।
स्वास्थ्य रेखा अच्छी हो और अन्य रेखाएं साफ-सुथरी हों, तो जातक की संतान का स्वास्थ्य ठीक रहता है तथा जीवन में कोई भयंकर रोग होने की संभावना नहीं रहती।
सामान्य मंगल रेखा के साथ जीवन रेखा घुमावदार हो, शुक्र प्रधान हो, उंगलियां सख्त हों, तो व्यक्ति की संतान की मानसिकता अस्थिर होती है। उसे बुरे सपने आते हैं, मन में गलत विचार पनपते रहते हैं और निद्रा या अनिद्रा जैसे रोग होते हैं।
यदि भाग्य रेखा एवं हृदय रेखा एक हो, उंगलियां लंबी हों, हाथ नरम हो और भाग्यरेखा पर बड़ा द्वीप हो, तो जातक की संतान का स्वास्थ्य ढीला-ढाला रहता है। उसे तथा उसकी संतान को उदर रोग एवं गले के रोग होने की प्रबल संभावना रहती है। किंतु उसकी संतान बुद्धि की धनी होती है।
यदि मस्तिष्क रेखा चंद्रमा तक जा रही हो, जीवन रेखा सीधी हो और उंगलियां लंबी हों, तो व्यक्ति की संतान बहुत ही संवेदनशील होती है। वह योग्य एवं काबिल होती है, किंतु तनाव के कारण अकसर उसे माइग्रेन, सिर का भारीपन, चक्कर आना जैसे रोग भी होते हैं।
यदि जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जोड़ लंबा हो, तो जातक की किसी एक संतान को दमा या बचपन से ही पेट संबंधी रोग होता है।
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