हस्तरेखाओं के दोष मिटाए भाग्य जगाए शंख भारती आनंद सृष्टि ने जब पृथ्वी पर मानव को जन्म दिया, तो जन्म के समय उसकी मुट्ठी बंद रखी क्योंकि उस मुट्ठी के हाथ में सृष्टि ने आड़ी तिरछी रेखाओं के रूप में उस बच्चे के भाग्य को चित्रित कर दिया था। परंतु उसी के साथ-साथ तीनों लोकों के स्वामी ब्रह्माजी ने उस बच्चे के मस्तिष्क में बुद्धि का संचार भी किया ताकि अच्छे और कर्मशील लोग अपने कर्मों के अनुरूप उसका उपयोग कर अपनी मुट्ठी में बंद भाग्य को और भी उज्ज्वल कर सके। सृष्टि ने ही मानव के भाग्य को उन्नत करने के लिए धरती और समुद्र में हीर,े मोती आदि रत्न ज्वाहरात की अपार संपदा वरदान के रूप में प्रदान की। समुद्र में पाए जाने वाले रत्नों में शंख एक महत्वपूर्ण रत्न है, जो विधिवत पूजा और स्थापना करने से उपासक के भाग्य को चार चांद लगा देता है। लोक मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है उसमें लक्ष्मीजी का स्थायी वास होता है क्योंकि लक्ष्मीजी व शंख दोनों की उत्पत्ति समुद्र से हुई है। स्वर्ग लोक से प्राप्त आठ सिद्धियों एवं नौ निधियों में शंख को विशेष स्थान प्राप्त है। यह भाग्वान विष्णु के हाथ में सदैव विद्यमान रहता है। शंख विभिन्न प्रकार के होते हैं और प्रत्येक की उपयोगिता उसके आकार के अनुरूप अलग-अलग होती है। अच्छी गुणवत्ता के शंख भारत में कैलाश मानसरोवर, लक्षद्वीप, मालद्वीप आदि दोनों में पाए जाते हैं। शंख की साधना से हस्तरेखाओं में छिपे विभिन्न दोषों को दूर किया जा सकता है। इस संदर्भ में एक संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है। यदि भाग्य रेखा मोटी हो और भाग्य रेखा में द्वीप हो तो हाथ में शंख पकड़कर उस पर निम्नलिखित लक्ष्मी मंत्र का जप नियमित रूप से करें। मंत्र: ¬ श्रीं ह्रीं श्रीं ंकमले कमलालये प्रसीद-प्रसदी श्री ह्रीं श्रीं सि( लक्ष्मैनमः ।। यदि हाथ में मंगल ग्रह दबा हुआ हो और खंडित हो, या मंगल नीच का तो निम्न मंत्र पढ़कर घर में रोज शंख नाद करें। मंत्र: ¬ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाये नमः यदि चंद्र ग्रह खराब हो, उसका वांछित फल नहीं मिल रहा हो तांे नित्य शंख में दूध डालकर नहाना ंचाहिए व निम्नोक्त मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र: ¬ श्रां श्रीं श्रौंः सह चन्द्रमाये नमः ।। यदि हृदय रेखा टूटी तथा शनि ग्रह दबा हुआ हो और भाग्य रेखा खंडित व जीवन रेखा मोटी हो, तो नित्य शंख के आगे दीया जलाएं, ¬ नमः शिवाय का जप करें तथा शंख को चंदन से तिलक करें। घर के पूजा स्थल में शुभ नक्षत्र में अथवा होली, दीवाली या नवरात्रा के अवसर पर अथवा किसी अन्य शुभ दिन शुभ मुहूर्त में शंख की स्थापना की जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना करने से व्यक्ति को महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस शंख की स्थापना के लिए नर एवंम् मादा युगल शंखों का प्रयोग किया जाना चाहिए। विज्ञान ने भी शंख की उपयोगिता को स्वीकार करते हुए माना है कि शंखनाद से वातावरण में व्याप्त कीटाणु को नष्ट हो जाते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में शंख का औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। शंख की भस्म के सेवन से पेट के विभिन्न रोगों, पीलिया, पथरी आदि से मुक्ति मिलती है। तात्पर्य यह कि हस्तरेखाओं का विश्लेषण कर उनके अनुरूप शंख को विधि विधानपूर्वक अपने घर पर स्थापित करने से घर में सुख शांति बनी रहती है, बच्चों की शिक्षा में उन्नति होती है और उनका स्वास्थ्य अनुकूल रहता है। इसके अतिरिक्त व्यापार में वृद्धि और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है और शत्रुओं का शमन होता है।