सामान्यतः जन्मपत्री में स्थित ग्रह (मंगल) के आधार पर ही मंगली योग का विश्लेषण किया जाता है। परंतु जैसे योग जन्मपत्री में होते हैं प्रायः वैसे ही योग हस्तरेखाओं में भी पाये जाते हैं, इसी से कह सकते हैं कि जन्मपत्री व हस्तरेखा एक दूसरे के पूरक हैं। यदि जातक मंगली हो तो विद्वानों द्वारा यह सलाह दी जाती है कि मंगली व्यक्ति का विवाह मंगली से ही करें। हथेली में मंगल के निम्न 3 भाग होते हैं:
1). उच्च मंगल (अघ्र्य, ऊपर या निगेटिव मार्स)।
2). मंगल का मैदान (प्ले आॅफ मार्स)।
3). निम्न मंगल। प्रथम मंगल को उच्च मंगल कहते हैं।
यह बुध पर्वत के नीचे तथा चंद्र पर्वत के ऊपर हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा की समाप्ति पर बीच में स्थित होता है। द्वितीय मंगल को निम्न मंगल कहते हैं। यह तर्जनी अंगुली के नीचे जीवन रेखा के आरंभिक स्थल के नीचे व शुक्र पर्वत के ऊपर स्थित होता है। तीसरा स्थान मंगल का मैदान होता है जो उच्च व निम्न मंगल के बीच या शुक्र एवं चंद्र पर्वत के बीच त्रिकोण क्षेत्र होता है। यह हथेली के मध्य भाग में होता है। विवाह रेखा, कनिष्ठिका अंगुली एवं बुध पर्वत के पास में प्रायः एक या दो -तीन रेखायें पाई जाती हैं। एक रेखा का होना शुभ रहता है, किंतु दोनों हाथों में दो या अधिक रेखायें विद्यमान हों और हृदय रेखा भी टूटी हो या विकृत हो, बृहस्पति का पर्वत दबा हो या अपने स्थान से खिसक कर शनि के पर्वत से मिल गया हो, बृहस्पति की अंगुली विकृत हो, शुक्र पर्वत दबा हो तथा अंगूठा बेडौल, सख्त, मांसल हाथ हो, पीछे की ओर न झुकते हांे आदि लक्षण जातक के हाथों में हो तो वह जातक ‘‘मांगलिक दोष’’ से युक्त होता है। अविवाहित जातकों के भी ये ही लक्षण होते हैं। मंगली की शादी मंगली से न करने पर वैवाहिक जीवन असामान्य होता है। इस तरह हस्तरेखा से मांगलिक दोष की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
हस्तरेखा द्वारा वर-वधू का मिलान निम्न बातों पर निर्भर करता है।
1. संवाद (बातचीत)
2. बाह्य व्यक्तित्व,
3. आत्मिक मिलन,
4. यौन मेलापक,
5. समानुभूति भाव । इसके अलावा, जीवन में सुख-समृद्धि के पक्ष, विपरीत परिस्थितियों में धैर्य, परस्पर प्रेम भाव आदि का भी विचार किया जाता है। नियम-
मिलान में अंगूठे का महत्व: मुख्य बिंदु
1. अंगूठे का तीसरा पोर (निचला), जीवन रेखा द्वारा नीचे विशेष आकार दिया जाता है। शुक्र पर्वत को उत्कृष्ट बनाने में विशेष भूमिका निभाता है। इस पर्वत का उभरा होना गृहस्थ जीवन में सफलता का सूचक है।
2. सुदृढ़ अंगूठे से संतुलित दांपत्य जीवन का संकेत मिलता है।
3. अंगूठा सीधा, सुडौल तथा लंबा हो और उसके पोरों की लंबाई भी स्पष्ट हो।
यह अनुपात 2ः3 का हो तो श्रेष्ठ रहता है तो वह व्यक्ति बुद्धि मान होता है और अपने निर्णय पर अडिग रहता है। वह समय के महत्व सामान्यतः जन्मपत्री में स्थित ग्रह (मंगल) के आधार पर ही मंगली योग का विश्लेषण किया जाता है। परंतु जैसे योग जन्मपत्री में होते हैं प्रायः वैसे ही योग हस्तरेखाओं में भी पाये जाते हैं, इसी से कह सकते हैं कि जन्मपत्री व हस्तरेखा एक दूसरे के पूरक हैं। यदि जातक मंगली हो तो विद्वानों द्वारा यह सलाह दी जाती है कि मंगली व्यक्ति का विवाह मंगली से ही करें। हथेली में मंगल के निम्न 3 भाग होते हैं:
1). उच्च मंगल (अघ्र्य, ऊपर या निगेटिव मार्स)।
2). मंगल का मैदान (प्ले आॅफ मार्स)।
3). निम्न मंगल। प्रथम मंगल को उच्च मंगल कहते हैं।
यह बुध पर्वत के नीचे तथा चंद्र पर्वत के ऊपर हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा की समाप्ति पर बीच में स्थित होता है। द्वितीय मंगल को निम्न मंगल कहते हैं। यह तर्जनी अंगुली के नीचे जीवन रेखा के आरंभिक स्थल के नीचे व शुक्र पर्वत के ऊपर स्थित होता है। तीसरा स्थान मंगल का मैदान होता है जो उच्च व निम्न मंगल के बीच या शुक्र एवं चंद्र पर्वत के बीच त्रिकोण क्षेत्र होता है। यह हथेली के मध्य भाग में होता है। विवाह रेखा, कनिष्ठिका अंगुली एवं बुध पर्वत के पास में प्रायः एक या दो -तीन रेखायें पाई जाती हैं। एक रेखा का होना शुभ रहता है, किंतु दोनों हाथों में दो या अधिक रेखायें विद्यमान हों और हृदय रेखा भी टूटी हो या विकृत हो, बृहस्पति का पर्वत दबा हो या अपने स्थान से खिसक कर शनि के पर्वत से मिल गया हो, बृहस्पति की अंगुली विकृत हो, शुक्र पर्वत दबा हो तथा अंगूठा बेडौल, सख्त, मांसल हाथ हो, पीछे की ओर न झुकते हांे आदि लक्षण जातक के हाथों में हो तो वह जातक ‘‘मांगलिक दोष’’ से युक्त होता है।
अविवाहित जातकों के भी ये ही लक्षण होते हैं। मंगली की शादी मंगली से न करने पर वैवाहिक जीवन असामान्य होता है। इस तरह हस्तरेखा से मांगलिक दोष की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। हस्तरेखा द्वारा वर-वधू का मिलान निम्न बातों पर निर्भर करता है।
1. संवाद (बातचीत)
2. बाह्य व्यक्तित्व,
3. आत्मिक मिलन,
4. यौन मेलापक,
5. समानुभूति भाव । इसके अलावा, जीवन में सुख-समृद्धि के पक्ष, विपरीत परिस्थितियों में धैर्य, परस्पर प्रेम भाव आदि का भी विचार किया जाता है। नियम- मिलान में अंगूठे का महत्व:
मुख्य बिंदु
1. अंगूठे का तीसरा पोर (निचला), जीवन रेखा द्वारा नीचे विशेष आकार दिया जाता है। शुक्र पर्वत को उत्कृष्ट बनाने में विशेष भूमिका निभाता है। इस पर्वत का उभरा होना गृहस्थ जीवन में सफलता का सूचक है।
2. सुदृढ़ अंगूठे से संतुलित दांपत्य जीवन का संकेत मिलता है।
3. अंगूठा सीधा, सुडौल तथा लंबा हो और उसके पोरों की लंबाई भी स्पष्ट हो। यह अनुपात 2ः3 का हो तो श्रेष्ठ रहता है तो वह व्यक्ति बुद्धि मान होता है और अपने निर्णय पर अडिग रहता है। वह समय के महत्व को समझता है और उसका सदैव सदुपयोग करता है। सामाजिक बंधन ऐसे व्यक्ति के विचारों को प्रमाणित नहीं करते हैं। वह सफल व ईमानदार होता है।
4. यदि वधू का अंगूठा सुंदर होने के साथ लचीला भी हो तो यह लक्षण कन्या को नई परिस्थितियों में ढाल लेने में सक्षम बनाती हैं।
5. यदि अंगूठा छोटा और उसका पहला पोर मोटा या मांसल हो तो वह जिद्दी एवं गंदे स्वभाव का होता है, ऐसे व्यक्ति से सतर्क रहना चाहिए।
मिलान में विवाह रेखा का महत्व
1. यदि विवाह रेखा गहरी हो और लालिमा लिये हो और मस्तिष्क रेखा पर (शनि पर्वत के नीचे की ओर) काला बिंदु हो तो यह जीवनसाथी के लिए प्राण घातक होती है।
2. यदि बायें हाथ में विवाह रेखा, हृदय रेखा को काटती हुई झुककर शुक्र पर्वत पर पहुंचती हो तो तलाक की संभावना होती है। यदि दोनों हाथों में यह स्थिति हो तो तलाक निश्चित होता है।
3. यदि विवाह रेखा से एक शाखा नीचे की तरफ आकर सूर्य रेखा को काटे तो जीवनसाथी का स्वास्थ्य खराब करती है। यदि ऊपर की ओर सूर्य पर्वत पर जाये तो यह शुभ संकेत है।
4. यदि मंगल क्षेत्र से कोई रेखा निकलकर विवाह रेखा को स्पर्श करे तो विवाह में व्यवधान उपस्थित होता है।
5. यदि शुक्र या चंद्र पर्वत से कुछ रेखाएं निकलकर विवाह रेखा से मिले तो व्यक्ति कामुक, भोगी, व्यसनी और प्रेमी होता है।
मिलान से जीवन रेखा का महत्व ः यदि जीवन रेखा का उद्गम दो स्थान से हो और फिर वह एक होकर चले तो पति-पत्नी में तलाक होता है। उपरोक्त विवेचन के अलावा हस्तरेखा द्वारा मिलान निम्न बातों पर भी निर्भर करता है जिससे दांपत्य जीवन मधुर एवं सुखमय हो-
1. उत्तम आयु योग: यदि वर-वधू दोनों की आयु लंबी है तभी दांपत्य जीवन सफल हो सकता है अन्यथा नहीं। इसके लिये दोनों के हाथों में निम्न गुण/दोष देखने चाहिए।
गुण 1. पूर्ण गोलाई लिये हुये एक अच्छी एवं लंबी जीवन रेखा।
2. पूर्ण मणिबंध रेखाएं।
3. पूर्ण एवं उत्तम हृदय व मस्तिष्क रेखा
4. पूर्ण उत्तम एवं विकसित मंगल एवं बुध रेखा।
दोष 1. जीवन रेखा का कम उम्र में टूटना आदि।
2. विवाह रेखा का टूटना ।
3. बुध-रेखा का कम आयु में जीवन रेखा से मिलना।
4. जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा का आरंभ में जुड़ना व जीवन रेखा का टूटना ।
2. उत्तम स्वास्थ्य योग यदि वर-वधू दोनों ही स्वस्थ हैं तथा बीमारी से मुक्त हैं तभी अपने जीवन के कार्य संपन्न कर सकते हैं। इसके लिए दोनों के हाथों में निम्न गुण/ दोष देखने चाहिए:
गुण 1. स्वस्थ नाखून।
2. जीवन रेखा से ऊपर की ओर निकलती रेखाएं।
3. उत्तम भाग्य रेखा
4. उत्तम पूर्ण विकसित मंगल रेखा।
5. या तो बुध रेखा का न होना या हो तो उत्तम व पूर्ण विकसित।
6. जीवन रेखा एवं मस्तिष्क रेखा का आरंभ में उत्तम विकसित होना।
7. उत्तम विकसित हृदय, मस्तिष्क एवं जीवन रेखा।
दोष 1. कमजोर नाखून
2. जीवन रेखा से नीचे की ओर जाती रेखायें।
3. टूटी भाग्य रेखा
4. टूटी मंगल रेखा
5. टूटी हुई बुध रेखा
6. कमजोर मस्तिष्क एवं हृदय रेखा।
7. आरंभ में जंजीरदार मस्तिष्क एवं हृदय रेखा।
3. तलाक योग न हो तलाक, कुछ समय के लिए अलग रहना, अलगाव आदि दांपत्य जीवन में दुःखद स्थिति है। उदाहरण: भगवान श्रीराम को सीता का वियोग व लक्ष्मण को भाई श्रीराम की सेवा हेतु वन गमन समय वियोग भोगना पड़ा था। इसके गुण/दोष निम्न हैं-
1. विवाह रेखा का आरंभ में/अंत में द्विमुखी होना कुछ समय के लिए अलग करता है।
2. विवाह रेखा को काटती रेखा तलाक का योग बनाती है।
3. शुक्र पर्वत पर जाला या काटती हुई रेखायंे जातक में शारीरिक कमी के कारण अलग (नियंत्रण) करती है।
4. योगों का विश्लेषण ‘‘मिलान में विवाह रेखा का महत्व’’ में किया गया है।
4 उत्तम शारीरिक अनुकूलता इसके अंतर्गत यौन-संबंध आते हैं जो दांपत्य जीवन में मधुरता, खुशी लाते हंै। इसके गुण दोष निम्न हंै- गुण
1. गहरी, पतली व गुलाबी विवाह रेखा।
2. पूर्ण विकसित उभार लिये मंगल पर्वत।
3. उत्तम विकसित एवं पूर्ण उभार लिये शुक्र व चंद्र पर्वत।
4. पूर्ण विकसित अंगूठे का तीसरा पर्व
5. पूर्ण विकसित हृदय एवं मस्तिष्क रेखा।
दोष 1. मस्तिष्क एवं जीवन रेखा में अत्यधिक दूरी।
2. मंगल प्रधान व्यक्तित्व और दो पूर्ण मंगल पर्वत
3. अत्यधिक विकसित शुक्र व मंगल पर्वत
4. हथेली का निचला हिस्सा अत्यधिक विकसित होना।
5. हृदय रेखा पर काले चिह्न
6. बुध रेखा या यकृत रेखा का समाप्ति पर द्विशाखित होना नपुंसकता देता है। यह शारीरिक कमजोरी को दर्शाता है, जिससे दांपत्य जीवन में तलाक की नौबत तक लाती है। स्वभाव (प्रकृति) एवं चरित्र अनुकूलता इसके गुण/दोष निम्न हैं:
गुण 1. उत्तम विकसित हृदय रेखा, जीवन रेखा व विवाह रेखा।
2. जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा के बीच सामान्य दूरी।
3. शुक्र वलय का केवल आरंभ व अंत में बनना।
4. उत्तम विकसित शुक्र व बृहस्पति पर्वत।
5. हृदय रेखा का बृहस्पति पर्वत पर समाप्त होना।
दोष 1. दोषपूर्ण विवाह रेखा।
2. असामान्य जीवन रेखा।
3. जंजीरदार हृदय रेखा।
4. शुक्र, बृहस्पति व चंद्र पर्वतों का अंदर धंसा होना।
5. छोटी व हल्की हृदय रेखा।
6. मंगल पर्वत का अत्यधिक विकसित होना व इस पर्वत पर दोषपूर्ण चिह्न।
7. खंडित भाग्य रेखा।
8. शुक्र वलय का बीच में बनना।
6. उत्तम संतान योग संतान के बगैर परिवार पूर्ण नहीं होता है तथा वायु संतान को नौ महीने तक गर्भ से रखती है अतः वायु के हाथों में संतान योग बहुत ही शुभ होने चाहिये। इसके गुण/ दोष निम्न है: गुण
1. उत्तम विकसित शुक्र पर्वत, गुरु पर्वत।
2. उत्तम विकसित अंगूठे का तीसरा पोर।
3. विवाह रेखा के ऊपर बनने वाली रेखाएं स्पष्ट, लंबी व साफ-सुथरी हों।
4. अंगूठे के आधार पर परिवार मुद्रिका।
5. उत्तम विकसित बुध की अंगुली
6. उत्तम विकसित हृदय रेखा।
दोष 1. शुक्र व गुरु पर्वत का अंदर धंसा होना।
2. विवाह रेखा के ऊपर क्राॅस (ग्द्ध होना।
3. छोटी हृदय रेखा।
7. उत्तम आर्थिक व व्यवसायिक स्थिति धन के अभाव में दांपत्य जीवन में कलह पैदा हो जाता है। अतः अर्थ को नकारा नहीं जा सकता है। इसके गुण/दोष निम्न हंै: गुण
1. उत्तम विकसित भाग्य एवं सूर्य रेखा।
2. उत्तम विकसित सूर्य व बृहस्पति पर्वत।
3. बृहस्पति पर्वत पर समाप्त होती भाग्य रेखा।
4. विस्तृत हथेली।
5. हथेली व रेखाओं पर शुभ चिह्न जैसे- त्रिशूल, चक्र आदि।
6. उत्तम विकसित मस्तिष्क व जीवन रेखा।
7. हथेली के मध्य में मस्तिष्क एवं जीवन रेखा से बंद, गहरा त्रिभुज। दोष
1. टूटी भाग्य रेखा
2. सूर्य व बृहस्पति पर्वत का अंदर धंसा होना।
3. कमजोर भाग्य, सूर्य रेखा, जीवन रेखा।
4. भाग्य रेखा से निकलती निचली रेखाएं।
5. भाग्य रेखा पर अनावश्यक नकारात्मक चिह्न।
6. हथेली के मध्य से त्रिभुज का बंद न होना।
7. संकरी हथेली। हस्तरेखा द्वारा मिलान तालिका वर
वधू 1. अंगूठा सीधा और सुडौल हो और उसके पोर समान हों।
1. अंगूठा लचीला होने के साथ सुंदर भी हो और उसका दूसरा पोर लंबा हो।
2. तर्जनी अंगुली लंबी हो।
2. तर्जनी व अनामिका अंगुली समान हो।
3. मंगल रेखा स्पष्ट व दोष रहित हो।
3. मंगल रेखा स्पष्ट व दोष रहित हो।
4. विवाह रेखा स्पष्ट, सुंदर, सीधी, पतली व दोष रहित हो।
4. विवाह रेखा स्पष्ट, सुंदर, पतली, सीधी व दोष रहित हो।
5. हाथ भारी हो और अंगुलियां सुदृढ़ गांठ से युक्त हों।
5. हाथ मुलायम व नरम हो।
6. गुरु पर्वत पर (ग) या तारा (’)का चिह्न हो
6. गुरु पर्वत पूर्णतया विकसित होने के साथ उस पर क्राॅस या तारा का चिह्न हो।
7. शुक्र क्षेत्र पूर्ण रूप से विकसित हो।
7. शुक्र पर्वत पूर्ण विकसित हो।
8. हृदय रेखा, गुरु व शनि पर्वत के बीच से आरंभ हो
8. मस्तिष्क रेखा मंगल को स्पर्श करती हो और लंबी हो।
9. बुध पर्वत विकसित हो और कनिष्ठिका अंगुली सीधी हो और अनामिका के तीसरे पोर से छोटी व नुकीली न हो।
9. यदि भाग्य रेखा चंद्र क्षेत्र से आरंभ हो तो शुभ होती है।