अक्षया जन्म पत्रीयं ब्रह्मणा निर्मिता स्वयं। ग्रहारेखाप्रदा यस्यां यावज्जीवं व्यवस्थिता।। मनुष्य का हाथ तो ऐसी जन्मपत्री है, जिसे स्वयं ब्रह्मा ने निर्मित किया है, जो कभी नष्ट नहीं होती है। इस जन्मपत्री में त्रुटि भी नहीं पायी जाती है। स्वयं ब्रह्मा ने इस जन्मपत्री में रेखाएं बनायी हैं एवं ग्रह स्पष्ट किये हैं। यह आजीवन सुरक्षित एवं साथ रहती है। कहा जाता है कि पूर्व काल में शंकर जी के आशीर्वाद से उनके ज्येष्ठ पुत्र स्वामी कार्तिकेय ने, जनमानस की भलाई के लिए, हस्त रेखा शास्त्र की रचना की। जब यह शास्त्र पूरा होने को आया, तो गणेश जी ने, आवेश में आ कर, यह पुस्तक समुद्र में फेंक दी। शंकर जी ने समुद्र से आग्रह किया कि वह हस्त लिपि वापस करे। समुद्र ने उन प्रतिलिपियों को शंकर जी को वापस दिया और शंकर जी ने तबसे उसको सामुद्रिक शास्त्र के नाम से प्रचलित किया।
इस शास्त्र में हस्त रेखा शास्त्र के अतिरिक्त संपूर्ण शरीर द्वारा भविष्य कथन के बारे में बताया गया है। सामुद्रिक शास्त्र को लोग हस्त रेखा शास्त्र के नाम से अधिक जानते हैं। ज्योतिष एवं हस्त रेखा विज्ञान के 18 प्रवर्तक हुए हैं, जो निम्न हैं- सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पुलिश, च्यवन, यवन, भृगु एवं शौनक। भारतीय सामुद्रिक शास्त्र के बारे में यूरोप के अनेक हस्त रेखा विद्वानों ने भी चर्चा की है, जैसे-लु काॅटन, क्राॅम्टन, हचिंगसन, सेंटजरमेन, वेन्हम, सेफेरियल, सेंटहिल आदि। आचार प्रदीप में हाथ के महत्व को इस प्रकार भी प्रतिपादित किया गया है। कराग्रे वसते लक्ष्मीः कर मध्ये सरस्वती। करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।। हाथों के अग्र भाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती तथा मूल में ब्रह्मा विराजते हैं। अतः इनका प्रातःकाल दर्शन करने मात्र से मनुष्य का कल्याण होता है। मस्तिष्क में जो शुभ-अशुभ विचार उठते हैं उनका प्रभाव हमारे हाथों पर तत्काल पड़ता है और हथेलियों में बारीक रेखाएं उभर आती हैं। हाथ या नाखूनों का रंग ही बीमारी का संकेत देता है। हस्त रेखाएं केवल भविष्य का ज्ञान प्राप्त करने में ही नहीं, बल्कि अपराध और अपराधियों से संबद्ध जानकारी प्राप्त करने में भी सहायक होती हैं विश्व के सभी वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि किन्हीं दो व्यक्तियों के फिंगर प्रिंट्स समान नहीं हो सकते।
यदि किसी का हाथ जल भी जाए तो उसके बाद पुनः जो त्वचा उत्पन्न होती है उसमें रेखाओं एवं उनके निशानों में परिवर्तन नहीं होता। इसका कारण हमारे शरीर के अंदर एक विशेष प्रकार के गुणसूत्रों (क्रोमोजोम्स) का होना है या यूं कहें कि हमारे हाथ की रेखाएं हमारे शरीर में मौजूद गुणसूत्रों (क्रोमोजोम्स) के समायोजन को दर्शाती हैं। मनुष्य का हाथ विलक्षण कार्यकारी एवं कार्यपालक उपकरण है। हाथ की सुंदर बनावट, उसकी कठोरता, या उसका कोमलपन यह संकेत देते हंै कि जातक मानसिक रूप से कैसा कार्य करने में सक्षम है। मनुष्य का भविष्य, व्यवहार, आयु, भाग्य, कीर्ति, व्यावहारिकता, ज्ञान, शादी, संतान आदि सभी के रुझान के बारे में हस्त रेखाएं पूर्ण रुप से जानकारी देती हैं। हस्त रेखाओं से केवल मनुष्य के व्यवहार के बारे में ही नहीं, अपितु घटना के काल की जानकारी भी रेखाओं की लंबाई से मिल जाती है। हाथ पर सभी ग्रहों के स्थान हैं, जैसे गुरु का स्थान प्रथम उंगली के नीचे, शनि का स्थान मध्यमा के नीचे, सूर्य का स्थान अनामिका के नीचे एवं बुध का स्थान कनिष्ठिका के नीचे एवं अन्य ग्रहों के स्थान हथेली के अन्य भागों पर। हस्त रेखाओं एवं पर्वतों द्वारा यह जाना जा सकता है कि कौन सा ग्रह शक्तिहीन है, या कौन सा ग्रह शक्तिशाली है।
साथ ही लगभग उम्र जान कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कौन सा ग्रह किस राशि एवं भाव में होना चाहिए, जिससे वह हाथ के अनुरूप शक्तिहीन, या शक्तिशाली हो। इस प्रकार हाथ द्वारा जन्मपत्री का निर्माण किया जा सकता है। इसी प्रकार जन्मपत्री द्वारा भी, ग्रहों की शक्ति का अनुमान लगा कर, यह बताया जा सकता है कि हाथ में कौन से चिह्न कहां पर पाये जाने चाहिएं, या कौन सा पर्वत उठा होगा, या दबा होगा आदि। आचार्यों ने हस्त रेखा द्वारा जन्मपत्री गणना की कई विधियां बतायीं हैं। लेकिन पूर्ण रूप से पत्री बना लेने के लिए अत्यंत अभ्यास की आवश्यकता है। यह आवश्यक नहीं कि हाथ देख कर जन्मपत्री का निर्माण पूर्ण रूप से किया जा सके। एक प्रश्न यह उठता है कि हस्त रेखा विज्ञान अधिक सटीक है, या ज्योतिष विज्ञान। इसमें कोई संदेह नहीं कि ज्योतिष सभी विद्याओं में उत्तम है। हस्त रेखा विज्ञान में किसी रेखा का सही-सही उद्गम निकाल कर, उसकी लंबाई, या कार्यकाल निकालना बहुत कठिन है, जबकि ज्योतिष में पूर्ण गणित के माध्यम से सटीक गणना संभव है। लेकिन जन्म विवरण उपलब्ध न होने पर हस्त रेखा विज्ञान से उत्तम भविष्य जानने की अन्य कोई विधि नहीं है।