वैसे तो अंक ज्योतिष और हस्तरेखा ज्योतिष की दो एक दम अलग विधाएं हैं लेकिन दोनों के संगम बिंदु भी हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं। कैसे, आइए, जानें इस लेख से। अंक ज्योतिष से यह बताया जा सकता है कि आने वाला समय लाभदायक है या कष्टदायक तथा कौन-कौन से वर्ष महत्वपूर्ण रहेंगे। भविष्य फल कथन में हस्त-रेखा विज्ञान तथा अंक ज्योतिष एक दूसरे के लिये सहायक हो सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति हमें अपना हाथ दिखाये और उसे अपना जन्म दिनांक भी ज्ञात हो तो दोनों की सहायता से विशेष नतीजे पर पहुंचा जा सकता है।
हस्त रेखा विशेषज्ञ ‘कीरो’ ने अपनी पुस्तक ‘लैंग्वेज आॅफ हैंड’ के पृष्ठ 184 व 188 पर लिखा है कि आयु के किस वर्ष में विशेष घटना होगी। यह निश्चय करने के लिये वह (कीरो) आयु को 7-7 वर्ष के भागों में बांटते थे। प्रति सातवें वर्ष में, जीवन में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है। ‘कीरो’ ने लिखा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करने से भी पता चला कि सात-सात वर्ष का समय विेशेष परिवर्तन उत्पन्न करने वाला होता है।
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कीरो के मतानुसार अनादिकाल से पृथ्वी के समस्त देशों में ‘सात’ की संख्या का बहुत महत्व रहा है। कीरो के मतानुसार जन्म से शुरू करके पहले सात वर्ष के बाद, दूसरे सात वर्ष के समय को छोड़कर तीसरे, 5 वे, 7वे व 9 वे भाग में समानता होती है। इसी प्रकार जीवन के चैथे, छठे, 8वे, 10वे व 12वां भाग एक समान होते हैं। उदाहरण के लिये यदि एक बालक अपने 7वें वर्ष में बीमार व कमजोर रहा है
तो वह अपने जीवन के 21 वें वर्ष में भी बीमार और कमजोर रहेगा। इसके विपरीत यदि कोई बालक बचपन में बीमार था लेकिन सातवें वर्ष से उसका स्वास्थ्य अच्छा रहने लगा है और यदि वह आपके पास बीस वर्ष की आयु में अपना हाथ दिखाकर पूछता है कि उसका स्वास्थ्य कब ठीक होगा? तो आप कह सकते हैं कि 21 वें वर्ष से आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। उपरोक्त चित्र में जीवन व भाग्य रेखा को सात-सात वर्ष के खंड में बांटा गया है। कीरो के मतानुसार यह दर्शाता है
कि युवावस्था के जीवन को दो प्रधान भागो में बांटना चाहे तो पहला खंड 21 वर्ष की अवस्था से 35 वर्ष की अवस्था तक रहेगा। जहां भाग्य रेखा शीर्ष रेखा को काटती है वहां से दूसरा खंड प्रारंभ होकर 56 वर्ष पर समाप्त होता है। भाग्य रेखा व जीवन रेखा को सात-सात वर्ष के खंडो में बांट कर यह बताया गया है
कि किस समय भाग्य की स्थिति कैसी रहेगी। हाथ की रेखाओं में कौन सी रेखा से कौन सा वर्ष समझना चाहिये, इसका ‘अंक ज्योतिष’ से कैसे तालमेल बिठाया जा सकता है, अब इसकी चर्चा करेंगे। उदाहरण के लिये एक मनुष्य आप के पास आता है। उस व्यक्ति के हाथ के निरीक्षण के उपरांत आप इस नतीजे पर पहुंचे कि आयु के 39 वें व 41 वें वर्ष के पास जीवन रेखा पर अशुभ चिन्ह है
और भाग्य रेखा भी लगभग इसी अवस्था पर कमजोर हो रही है। इस व्यक्ति की वर्तमान आयु 37 वर्ष है और वह 26वें वर्ष में अधिक बीमार रहा था और वर्ष भर उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहा किंतु 28वें वर्ष से उसका स्वास्थ्य अच्छा रहने लगा था। आप विचार करके अगर 26 में 14 वर्ष जोड़ेगे तो कह सकते हैं कि वह व्यक्ति 40 वें वर्ष में अधिक बीमार रहेगा। तदुपरांत 54 वें वर्ष में भी बीमारी के असर रहेंगे।
जब हस्त रेखा से हम किसी निर्णय पर पहुंचे और हमें यह निश्चय करना हो कि किस वर्ष में यह घटना होगी तो उसके लिये हम अंक ज्योतिष का सहारा लेकर समय को सुनिश्चित कर सकते हैं। प्रथम महायुद्ध के समय लार्ड किचनर भारत के प्रधान सेनापति थे। इनकी हस्त रेखा से कीरो ने बताया कि 66 वर्ष की आयु में वह समुद्र में डूब कर मरेंगे। हथेली देखकर यह पता चलता था कि 66 वर्ष की आयु में यात्रा रेखा द्वारा भाग्य रेखा और अभ्युदय रेखा खंडित हो रही थी।
लार्ड किचनर के जीवन की मुख्य घटनायें सन् 1896, 1897, 1898, 1914, 1915 व 1916 में घटित हुई। इनसे कीरो ने निष्कर्ष निकाला कि जिन वर्षों का जोड़ 6, 7 या 8 होता है वे वर्ष लार्ड किचनर के जीवन में विशेष महत्व के थे। इस कारण 66 वर्ष की अवस्था सन् 1916 में पूरी होने व आयु के वर्ष में 6 का अंक दो बार आने से उनके जीवन में विशेष घटना घटी। कीरो की इस भविष्यवाणी का आधार अंक ज्योतिष था। उदाहरण के लिये एक स्त्री का जन्म दिनांक 20-8-1973 है। इसके अनुसार उसका मूलांक 2$0 = 2 अंक हुआ व भाग्यांक 2$0$8$1$9$7$3 = 30 = 3$0 = 3 अंक हुआ।
बहुत से जातकों पर भाग्यांक के बजाय मूलांक का विशेष प्रभाव होता है। इस स्त्री की हस्त रेखा देखकर उससे पूछा गया कि आप का विवाह किस अवस्था में हुआ तो उसने उत्तर दिया 22वें वर्ष में। 22 वें वर्ष में 2 अंक दो बार आ रहा है। उसे बताया गया कि 29 वर्ष में उसे पुत्र प्राप्त हुआ होगा। यह भविष्य कथन अक्षरशः सत्य निकला। इसका थोड़ा-थोड़ा इशारा हस्तरेखा में भी था। परंतु 29 वर्ष की जगह 28वां या 30वां वर्ष भी कहा जा सकता था। जीवन रेखा या भाग्य रेखा पर आयु का वर्ष निश्चित करना केवल दृष्टि के अंदाज पर निर्भर रहता है।
परंतु अंक विद्या के प्रभाव से जिस जातक का जन्म 20 अगस्त को हुआ है तो उसके लिये 20 वां, 29वां 38वां वर्ष महत्वपूर्ण होगा। न कि 28वां या 30वां वर्ष। इस प्रकार अंक ज्योतिष व हस्तरेखा विज्ञान के ताल-मेल से फलादेश का वर्ष निश्चित करना आसान हो जाता है।