कुछ समय पहले पंडित जी जयपुर में एक व्यापारी से मिले। उन्होेंने बताया कि वह अपनी एक प्रापर्टी की वजह से परेषान है जिसे उन्होंने बैंक वालों से नीलामी में खरीदा था। जबसे इसे खरीदा है कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि वो इसे न तो ठीक कर पाते हैं और न ही इसमें षिफ्ट कर पा रहे हैं।
खरीदने के बाद उन्हें पता चला कि इस घर के मालिक की पत्नी बहुत बीमार रहती थी और कुछ दिन पहले उसकी मृत्यु हो गई। उसका व्यापार भी बंद हो गया था और वह दीवालिया हो गया था। इसी संदर्भ में उन्होंने पंडित जी से इसका वास्तु परीक्षण करने को कहा।
परीक्षण करने पर पाए गए वास्तु दोष:
1. उत्तर-पष्चिम का कोना बंद था जो कि लड़ाई-झगड़े, मुकदमेबाजी एवं मानसिक तनाव का कारण होता है। दोस्त भी दुष्मन बन जाते हैं।
2. उत्तर-पूर्व में सीढियां थी जो कि विकास में बाधक व आर्थिक परेषानियों का कारण होती है।
3. दक्षिण-दक्षिण पूर्व का कोना कटा हुआ था जो कि घर की महिलाओं के लिए अति दुखदायी होता है एवं घर में शारीरिक व मानसिक समस्याएं बनाये रखता है।
4. दक्षिण-पष्चिम में शौचालय घर के मालिक के स्वास्थ्य की हानि व अनावष्यक खर्चों का कारण होता है।
5. उत्तर-पूर्व में जमीन के ऊपर पानी की बड़ी सी टंकी रखी हुई थी जो कि बच्चों के विकास में अवरोधक व तनाव का कारण होती है।
सुझाव :
1. उत्तर-पष्चिम में बने शौचालय व स्नान घर को तोड़कर पष्चिम के बरामदे में बनाने को कहा गया तथा इस कोने को खुला रखने को कहा।
2. पूर्व में बनी सीढ़ियों को उत्तर-पष्चिम में (बिना ऊपर छत बनाए) बनाने को कहा गया।
3. दक्षिण, दक्षिण-पूर्व के कोने को अंदर की तरफ से तीन फुट की दीवार बनाकर सीधा करने को कहा गया। बढ़े हुए हिस्से को अच्छे से भरने को कहा गया जिससे स्लैब बन जाएगी जिसे सामान इत्यादि रखने के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं।
4. दक्षिण-पष्चिम में बने शौचालय को बंद करने को कहा गया और दक्षिण, दक्षिण-पष्चिम के कवर्ड बरामदे को स्टोर की तरह इस्तेमाल करने की सलाह दी गई ताकि यह कोना भारी हो सके।
5. उत्तर-पूर्व में भूमिगत पानी की टंकी बनाने की सलाह दी गई जिससे घर में सुख समृद्धि बनी रहे। पंडित जी ने उन्हें आष्वासन दिया कि सभी सुझावों को कार्यान्वित करने के बाद उन्हें अवष्य लाभ होगा और वह अपने इस घर में सुखपूर्वक रह पायेंगे।
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