नवरात्र रहस्य एवं वंदना मंत्र
नवरात्र रहस्य एवं वंदना मंत्र

नवरात्र रहस्य एवं वंदना मंत्र  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 3980 | अप्रैल 2006

हिन्दुओं के धार्मिक उत्सवों में नवरात्रों का उत्सव अत्यंत श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। घर-घर से उठने वाली हवन सामग्री और धूप-अगरबत्ती से प्रत्येक नगर महक उठता है। नाम से स्पष्ट है नवरात्र नौ दिनों के भगवती जगदंबा की विशेष पूजा आयोजन का नाम है। अधिकांश व्यक्तियों को यही ज्ञात है कि नवरात्र वर्ष में दो ही बार होते हैं। जिन्हें बासंती और शारदीय कहा जाता है। परंतु धर्म शास्त्रों के अनुसार वर्ष में चार नवरात्र होते हैं। चार नवरात्र: भारतीय वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की प्रतिपदा से होता है। इसका अर्थ है कि हमारा नववर्ष चैत्र मास की प्रथम तिथि से प्रारंभ होता है और इसी दिन पहले नवरात्र शुरू होते हैं। द्वितीय नवरात्र चैथे मास अर्थात आषाढ़ में, तृतीय आश्विन में तथा चैथे माघ में होते हैं। आश्विन मास के नवरात्र को सर्वश्रेष्ठ पद दिया गया है। इसे वार्षिकी नवरात्र भी कहते हैं। दूसरे महत्वपूर्ण नवरात्र बसंत ऋतु में चैत्र मास के माने जाते हैं। इन दोनों नवरात्रों से तो सभी गृहस्थ जन परिचित हैं। चारों नवरात्रों का प्रारंभ संबंधित मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को और समाप्ति नवमी को होती है। नव दुर्गा के वंदना मंत्र इस प्रकार हैं।

1. शैल पुत्री: वंदे वान्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्री यशास्विनीम्।।

2. ब्रह्मचारिणी: दधाना करपदमाम्यामक्षमालाकमण्डलु। देवी प्रसीदतु मणि ब्रह्मचारिणी यदुत्तमा।। नवरात्र रहस्य एवं वंदना मंत्र सत्यपाल ठाकुर

3. चंद्रघंटा: पिंडजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्र घण्टेति विश्रुता।।

4. कूष्मांडा: सूरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधानां हस्तपदमयां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।

5. स्कन्दमाता: सिंहासनागता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।।

6. कात्यायनी: चंद्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभ दद्यादेवी दानव घातिनि।।

7. कालरात्रि: एक वेणी जपकिर्णपूरा नग्ना खरास्थित। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी।। वाम पादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रि भयङकरी।।

8. महागौरी: श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधराशुचिः। महागौरी शुभं दयान्महादेव प्रमोददा।।

9. सिद्धिदात्री: सिद्धगन्धर्वयज्ञद्यैर सुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।



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