नाडि शब्द नाडि मंडल से संबंधित है, जिसका अर्थ है कि आकाशीय विषुवत् सेवा। नाडी कूटं तं संग्र्राह्यं, कूटानां तु शिरोमणिम्। ब्रह्मणा कन्यका कण्ठ सूत्रत्वेन विनिर्मितम्।। (अर्थात् जिस प्रकार विवाहित कन्या के लिए मंगल सूत्र आवश्यक है, उसी प्रकार नाडी विचार विवाह योग्य कन्या के लिए सर्वोपरि है। नाडी दोष सर्व शिरोमणि महादोष है। नाडी कितनी: सब जानते हैं कि नाडी संख्या तीन हैं, आदि, मध्य और अन्त्य। लेकिन नाडियों की संख्या 3, 4 या 5 भी मानी जाती है। दक्षिण भारत में आज भी पंच नाडि (रज्जु) का विचार किया जाता है। नाड़ी चक्र या रज्जु चक्र सदा सर्वाकार ही बनते हैं। प्राचीन लेखों में कुरु, जांगल (आज का हरियाणा), पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजपुताना आदि स्थानों पर चार नाडी का विचार होता है। मध्य भारत में भी चार नाडियां मानी जाती थीं, यथा- जांगलेषु चतुर्माला पांचाले पंचमालिका। त्रिमाला सर्व देशेषु विवाहे मुनिसंमतम्।। (बृद्ध गर्ग) अतः तीन नाडियों वाला मत सर्वत्र प्रचलित है।
आदि मध्यान्तानुसार रज्जु चक्र (त्रिनाडी चक्र) आदि नाडि: अश्विनी, आद्र्रा, पुनर्वसु, उ.फा., हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पू.भा.। मध्य नाडि: भरणी, मृगशिरा पुष्य, पू.फा. चित्रा, अनुराधा, पू.भा., धनिष्ठा, उ.भा.। अन्त्य नाडि: कृत्तिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उ.भा., श्रवण, रेवती। एक सीध में पड़ने वाले नक्षत्रों पर वर-कन्या का विवाह न करें (वराहमिहिर) नाडी दोषस्तु विप्राणाम् नाडीदोषस्तु विप्राणां वर्णदोषस्तु भूजुजाम्। गणदोषस्तु वैश्येषु योनिदोषश्च पादजे।। आया है कि नाडी दोष केवल विप्रों (ब्राह्मणों) को ही देखना चाहिए, अन्य को नहीं। अरे! विस्मय है, विष तो विष है, जो भी खाएगा, मरेगा। अतः नाडी दोष सबको देखना चाहिए। नाडी दोष या रज्जु विचार दक्षिण भारत में सबके लिए गौण है। वहां राशि, राशीश, वश्य, महन्द्रि व योनि ये 5 चीजें प्रमुख बतायी हैं, यथा - इत्युक्तेश्वानुकूल्येषु पंच मुख्यानि तान्यपि। राशि राशीश माहेन्द्र योनि वश्यानि पुंस्त्रियोः।। (प्रश्नमार्ग) अतः ऐसी स्थिति में नाडी यदि विचारणीय है तो सबके लिए है, न कि किसी जाति या वर्ण विशेष के लिए। नाडी-दोष का कुफल: यदि वर व कन्या का जन्म नक्षत्र एक ही नाडी में पडे़ तो यह नाडी दोष दाम्पत्य सुख का नाशक है। ऐसा विवाह सदैव व अशुभ होता है। ‘दाम्पत्योरेक नाड्या परिणयनमसत्।’ (रामदैवज्ञ) वराहमिहिर ने आदि नाडी में दोनों के नक्षत्र होने से वियोग, मध्य नाडी में दोनों की मृत्यु एवं अन्त्य नाडी में अत्यंत दुःख व वैधव्य कहा है। अधैक नाडी कुरुते वियोगं, मध्याख्य नाड्यामुभयोर्विनाशम्। अन्ते च वैधव्यमतीव दुःखं तस्माच्च तिस्रः परिवर्जनीयाः।। (वराहमिहिर) लेकिन वशिष्ठ जी ने इसका फल भिन्न बताया है। मध्य नाडी में वैधव्य एवं शेष नाडियों में कन्या की मृत्यु होती है। एक से तीन वर्षों के अंदर कुफल हो जाता है।
नाडी दोष सदैव जन्म नक्षत्र से ही देखना चाहिए। ‘ज्योतिषसार’ में आया है कि यदि दोनों की अग्र (आदि) नाडी हो तो भर्ता के लिए बुरा है, मध्यनाडी दोनों के लिए अशुभ और अंत नाडी कन्या को मृत्युदायक होती है। यथा- अग्रनाडी व्यधेद्यर्ता मध्य नाडी व्यधेद्वयम्। पृष्ठनाडी व्यधेत्कन्या म्रियते नात्र संशय।।’ (ज्योतिषसार) वशिष्ठ संहिता में आया है कि - ‘नाडी विवेये यदि स्याद्विवाहः करोति वेधव्ययुतां च कन्याम्। स एव माहेन्द्र दिनादि युक्तो राशीश योनि सहितो न दोषः।। एक नाडी होने पर दोष है या नहीं राशीश मैत्री या नवांशेश मैत्री होने से गण, योनि, वैर आदि दोषों का शमन तो हो जाता है लेकिन नाडी दोष इस स्थिति में भी बना रहता है। Û यदि दोनों का नक्षत्र एक हो और राशियां भिन्न हों, जैसे कृत्तिका के प्रथम चरण एवं शेष तीनों चरणों में नक्षत्रैक्य होने पर भी राशि भेद है। Û
एक राशि के भिन्न नक्षत्रों में जन्म होने पर नाडी दोष नहीं रहता। जैसे स्वाति व विशाखा में एक राशि होने पर भी नक्षत्र भेद रहता है। Û दोनों का नक्षत्र एक होने पर चरण अलग-अलग हों तो नाडी दोष नहीं होता है। यथा - नक्षत्रैक्ये पाद भेदे शुभंस्यात्।’ ये परिहार री लल्लाचार्य, गर्ग व केशव आदि आचार्यों ने तथा अनेक मान्य ग्रंथों ने स्वीकार किए हैं यथा - नक्षत्रमेकं यदि भिन्न राश्यो रमिन्नराश्योर्यदि मिन्नमृक्षम्। प्रीतिस्तदानीं निबिडानृनार्योः चेत्कृतिका रोहिणीवन्नाडी।। (आचार्य केशव विवाह वृन्दावन) अतः जो बात नाडी दोष जैसे महादोष को शमन करती हो वह गणादि दोष को अवश्य शांत करेगी। यही बात भी लल्लाचार्य ने कहा है कि: प्रीति वित्त सुखदः करग्रहम् त्वेक राशिषु च भिन्नमं यदि। वारुणाजपदभं भ्वेद्यदा, नाडी दोष गण जो न विद्यते।। रामदैवज्ञ के अनुसार यदि वर-कन्या दोनों की एक राशि हो किंतु नक्षत्र भिन्न हो, अथवा एक नक्षत्र हो किंतु राशि दो हों तो नाडी व गण का दोष नहीं होता है। यदि दोनों का एक ही नक्षत्र हो किंतु चरण भिन्न हो तो भी विवाह शुभ होता है, यथा- राश्यैक्ये चेùिन्नमृक्षंद्वयोः स्यान्नक्षत्रैक्ये राशियुग्मं तथैव। नाडी दोषो नो गणानां च दोषो नक्षत्रैक्ये पादभेदे शुभं स्यात्।। (राम दैवज्ञ) विशेष परिहार यद्यपि वर कन्या का जन्म नक्षत्र एक होने पर यदि चरण भेद है तो नाडी दोष नहीं होता है, यह एक सामान्य नियम है। लेकिन एक अपवाद भी है, यथा- रोहिण्यार्दा मृगेन्द्राग्नी पुष्य श्रवण पौष्णयम्।
उत्तरा प्रौष्ठपाच्चैव नक्षत्रैक्येऽपि शोभनम्।। (भृगु) अर्थात् रोहिणी आद्र्रा मृगशिरा, पुष्य, विशाखा, श्रवण, उत्तराभाद्रपद व रेवती इन आठ नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र में चरण भेद न होते हुए भी वर-कन्या दोनों का जन्म हो तो नाडी दोष नहीं रहता है। लेकिन अधिकांश ग्रंथ इसे नहीं मानते हैं। आचार्य केशव के अनुसार पराशर जो एक राशि, नक्षत्र में चरण भेद से विवाह शुभ मानते हैं। लेकिन ‘वशिष्ठ शिष्य’ एक चरण भी नाडी भेद नहीं मानते हैं। एकांश कत्वेऽपि बसिष्ठ शिष्यो नैकत्र पिडे किल नाडिवेधः।। (विवाह वृंदावन) ‘विवाह कुतूहल’ में बताया है कि, निसर्ग शुभ ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र) यदि दोनों की राशियों के स्वामी है और नाडी दोष बनता है, तब भी वह नहीं माना जाएगा। ”शुक्रे जीवे तथा सौम्ये एक राशीश्वरो यदि। नाडी दोषो न वक्तव्यः सर्वथायत्नतो बुधैः। (विवाह कुतूहल) (अर्थात् मिथुन, कन्या, धनु, मीन, वृष व तुला, इन राशियों में से कोई एक राशि वर कन्या की एक साथ हो तो नाडी दोष नहीं लगेगा। ज्योतिर्निबंध में कहा गया है कि विशाखा, आद्र्रा, श्रवण, रोहिणी, पुष्य, भरणी, पू.भाद्रपद और मघा में से किसी एक ही नक्षत्र में दोनों का जन्म हो तो नाडी दोष नहीं होता है। यदि स्त्री पुरुष की तारा भी एक हो तो फिर क्या कहने। विशाखिकाद्र्रा श्रवण प्रजेश, तिष्यान्ततत्पूर्व मघाप्रशस्तो। स्त्रीपुंसतोरैक्य परिग्रहे तु, शेषाविवज्र्या इति संगिरन्ते।। (ज्योतिनिबन्धोक्त) ‘ज्योतिर्निबन्ध’ में पुनः लिखा गया है कि भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आद्र्रा, पुष्य, मघा, विशाखा, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, पू.भाद्र., उ. भाद्र. व रेवती। इन 14 नक्षत्रों में से किसी एक में ही दोनों का जन्म होने पर नाडी दोष नहीं होता है।
यदि इनमें से एक, दो नक्षत्र छोड़ भी दें तो यह प्रायः बहुमत प्राप्त हैं। इन्हीं नक्षत्रों को ध्यान में रखकर ही कहा गया है कि एक नक्षत्र जातानां नाडी दोषो न विद्यते। अतः एव सर्वत्र इस वाक्य का प्रयोग त्रुटिपूर्ण होगा। अजैकयान्मित्र वसुद्विदैव, प्रभन्जनाग्न्यर्क भुजंगभानि। मुकुन्द जीवान्तक भानि नूनम् शुभानि योषिन्नर जन्मभैक्ये।। (ज्योतिर्निबन्धोक्त) और देखिए: रोहिण्यार्दा मृगेन्द्राणां पुष्य श्रवण रेवती। अहिर्बुध्न्यक्र्षमेतेषां नाडीदोषो न विद्यते।। अत्रि ऋषि के अनुसार आया है कि राशीश परस्पर मित्र हों, या एक ही हों, या नवांशेश परस्पर मित्र हों या एक ही हों तो गणादि दुष्ट होने पर भी विवाह शुभ है। वह पुत्र-पौत्र कारक व वृद्धिकारक होता है। ‘देवलमुनि’ ने भी इसी को कहा है कि: ‘अभिदुखधियौ सृजतः शुभं राशिनवांशकयोरिति देवलः।’ यदि वर कन्या दोनों की एक राशि हो तो भी वशिष्ठ जी कहते हैं कि राशीश एकता ठीक है यथा - ‘एकाधिपत्ये त्वथ मित्र भावे स्त्री पंसराश्योर्नरज्जुदोषे। षट्काष्टकादिष्णवपि शर्मदस्यादुद्वाहकमाचरतो तयोश्च।। (वशिष्ठ संहिता) अतः परिहार द्रष्टव्य है कि Û दोनों की राशि एक और नक्षत्र भिन्न हों। Û दोनों का नक्षत्र एक और राशियां भिन्न हों। Û दोनों का नक्षत्र एक और चरण भिन्न हों। Û दोनों की राशि मैत्री ना हो किंतु नवांशेश मैत्री हो तो गण, नाडी व वर्ण दोषादि अन्य दोष नहीं रहते हैं। गर्ग ऋषि के अनुसार उपरोक्त सब ठीक होते हुए भी कुछ वर्जनीय बताया है कि कृत्तिका, रोहिणी, धनिष्ठा, शतभिषा, पुष्य व आश्लेषा ये नक्षत्र एक ही राशि के जोड़े हैं। फिर भी नाडी परिहार होने पर भी व इन जोड़ोें में राशि एकाधिपत्य होते हुए भी विवाह नहीं करना चाहिए। यह अशुभ नाडी कूट है।
अतः वर कन्या का जन्म यदि इन जोड़ों में हो तो यत्नपूर्वक विवाह छोड़ देना चाहिए। ध्यान रहे कि ‘किसी नक्षत्र के प्रथम पाद व चतुर्थ पाद में, दूसरे व तृतीय पाद में परस्पर वैर होता है। ऐसा होना भी पाद वेध कहलाता है। आद्यांशेन चतुर्थांश चतुर्थांशयेनयादियम्। द्वितीयेन तृतीयंतु तृतीयेन द्वितीयकम्।। ययो भाशं व्यधश्चैव जायते वरकन्ययोः। ततो भृत्युर्न सन्देहः शेषांशास्वल्पदोषदाः।। (नरपतिजचर्या) एक नाडी दोष की शुभता: एक नाडी दोष जो विवाह में परम अशुभ माना जाता है वह मालिक व नौकर, मालिक व गांव जहां रहना है कि एक नाडी होने पर अच्छे संबंध बनवाता है। अफसर व कर्मचारी का पटाव कराता है। एक नाडी वाला पड़ौसी आपका अच्छा सहयोगी सिद्ध हो सकता है, यथा- ग्रामे वा नगरेवापि राजसेवकयोस्तथा। एक ऋक्षे भवेत्प्रीतिः विंवाहे दुःखमादिशेत्।। उपाय: अधिक आयु होने पर मीलान की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि रजस्वला कन्या के विवाह में मीलान नहीं देखा जाता है। फिर भी उपाय हैं, यथा: Û एक नाड़ी दोष में स्वर्णदान करने से दोष शांत हो जाता है - अथौक नाडी युजिगो स्वर्णादि दत्त्वोद्वहेत। (उद्वाहतत्व) Û गाय, स्वर्ण, वस्त्रादि देने से सब दोष शांत हो जाते हैं, यथा - गावोऽन्नंवसनंहेमं सर्वदोषापहारकम्। Û मृत्युंजय व स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक दान दक्षिणा करने से दोष शांत हो जाता है। (पियूषधारा) ‘बृहस्पति संहिता’ में भी ऐसा ही आया है, यथा - दोषापनुपत्तये नाड्या मृत्युंजय जपादिकम्। विधाय ब्राह्मणाश्चैव तर्पयेत्कांचनादिन।। (बृहस्पति) त