न घर का न घाट का
न घर का न घाट का

न घर का न घाट का  

आभा बंसल
व्यूस : 4443 | नवेम्बर 2006

चेतन आज स्वयं को अकेला महसूस कर रहा था। कोई नहीं था उसके पास, जिससे वह अपने दिल की बात कह कर अपना गम हल्का कर सकता। बीते दिनों को याद करने के लिए उसने अपनी एलबम को उठा लिया और खो गया अतीत की यादों में... चेतन का जन्म जर्मनी में हुआ था। वहीं उसका लालन पालन भी हुआ। चूंकि उसके माता पिता दोनों ही काम करते थे, उसका बचपन बिना किसी अच्छी परवरिश के ही बीता। बचपन से ही उसे इधर-उधर घूमना, मस्ती करना अच्छा लगता। शारीरिक रूप से अत्यंत रूपवान होने के कारण उसे आस-पास की लड़कियां घेरे रहतीं। सारी कोशिशों के बावजूद वह ग्रैजुएशन की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाया। इस बात पर अक्सर उसके माता-पिता से उसकी झड़प हो जाया करती।

एक दिन अचानक उसके पिता के दोस्त भारत से जर्मनी उनके घर आए। उन्हें चेतन बहुत पसंद आया और उन्होंने उसके माता-पिता के समक्ष अपनी इकलौती बेटी की शादी का प्रस्ताव रख दिया। परंतु साथ ही यह शर्त भी रखी कि चेतन को भारत में घर जमाई बनकर ही रहना होगा और उनके व्यापार में उनकी मदद करनी होगी। चेतन के माता-पिता ने, जो उसकी बेपरवाह जिंदगी से तंग आ चुके थे, फौरन हां कर दी और शीघ्र ही चेतन का विवाह वैशाली से हो गया। वैशाली साधारण नैन नक्श की लड़की थी। अत्यंत लाड़ प्यार में उसका लालन पालन हुआ था। पिता की संपत्ति का दंभ उसके चेहरे एवं व्यवहार से साफ छलकता था। चेतन के आकर्षक व्यक्तित्व को वैशाली के दिल ने तो जीत लिया पर चेतन का दिल उसे स्वीकार नहीं कर सका।


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विवाह के पश्चात चेतन अपनी ससुराल में ही रहकर अपने ससुर के व्यापार में उनके हाथ बंटाने लगा। लेकिन पता नहीं क्यों वहां रहते हुए भी उसे वहां पर न तो अपने घर जैसा लगता न ही काम में उसे अपनापन लगता। वह अपने आप को उनका एक मुलाजिम जैसा ही समझता। इसलिए शायद हमारे हिंदू शास्त्रों में घर जमाई की तुलना श्वान से की गई है। चेतन के कार्यालय में केतकी नामक एक महिला उसके साथ काम करती थी और चूंकि चेतन जर्मनी में पला बढ़ा था इसलिए उसने चेतन को भारत में व्यापार करने के तौर तरीके बताए। केतकी तलाकशुदा थी एवं उम्र में चेतन से बड़ी थी।

व्यापार में स्वभाव कैसा होना चाहिए, ग्राहकों से कैसे बात करनी चाहिए आदि बातों के साथ-साथ व्यवसाय की अनेक बारीकियों को बड़े सहज एवं सरल तरीके से बता कर उसने चेतन की बहुत मदद की। केतकी के साथ समय बिताना चेतन को बहुत अच्छा लगता और उसकी एक दिन की भी अनुपस्थिति जैसे उसके लिए असहनीय हो जाती। दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे कार्यालय में चर्चा का विषय बन गई और बात घर तक जा पहंुची। वैशाली ने घर पर तूफान खड़ा कर दिया। उसने चेतन को खूब खरी खोटी सुनाई और केतकी को नौकरी से निकाल दिया।

चेतन का अंतर्मन मर्माहत हो उठा और वह घर छोड़ कर चला गया। अपने पिता की दौलत के घमंड में चूर वैशाली ने उसे मनाने की जरूरत ही महसूस नहीं की। उधर केतकी ने चेतन को संभाला और उसे अत्यंत लाड़ एवं दुलार से तनाव से बाहर निकाला। चेतन ने कुछ दिन पश्चात वैशाली को तलाक का नोटिस भेज दिया। वैशाली एवं उसके माता-पिता ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की, परंतु वह किसी तरह नहीं माना।

उनके दिए पैसे के आॅफर को भी ठुकरा दिया और कुछ माह में ही तलाक ले लिया। तलाक के पश्चात चेतन ने केतकी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। कुछ दिन तक सब ठीक चला। अभी तक चेतन को पैसे के महत्व का ज्ञान नहीं था। बड़े घर का दामाद होने के कारण सभी सहूलियतें एवं ऐशो आराम के सभी साधन सदैव उपलब्ध रहते थे। लेकिन उन्हीं साधनों की उपलब्धि अब दुष्कर प्रतीत होने लगी। केतकी और चेतन दोनों ने मिल कर अपनी कंपनी बनाई, पर नए व्यवसाय में पैसा आने में वक्त तो लगता ही है।


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साधनों की कमी के कारण अपनी शाही आदतों को पूरा करने में असमर्थ चेतन की केतकी के साथ आए दिन नोंक झोंक होने लगी। केतकी चाह कर भी चेतन को खुश नहीं रख पाती। वह पूरी कोशिश करती कि उसका दूसरा वैवाहिक जीवन सुख चैन से बीते, पर चेतन की ख्वाहिशों एवं शाही आदतों के आगे वह बेबस हो जाती। और एक दिन जब उनका झगड़ा सीमाएं पार कर गया, तो दोनों ने अलग-अलग रहने का फैसला कर लिया। केतकी ने अपनी ओर से उसे बुलाने में कोई कसर न छोड़ी पर चेतन के पत्थर दिल पर कुछ असर नहीं हुआ और एक दिन केतकी ने अपनी मानसिक भावनाओं के आवेग में आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठा लिया।

इसे भाग्य का खेल कहें या कुछ और, दो विवाह होने पर भी चेतन दोनों पत्नियों से कोई सुख नहीं उठा पाया। दूसरी तरफ सुखमय जीवन की इच्छा से दूसरा विवाह करने वाली केतकी भी सुख के लिए तड़पती रह गई। आइए, करें इन तीनों की भाग्य का ज्योतिषीय विश्लेषण। चेतन: चेतन की जन्मकुंडली व नवांश कंुडली में सांसारिक सुख संसाधनों का कारक ग्रह शुक्र लग्न भाव में स्थित है, जिसके फलस्वरूप उसका व्यक्तित्व सुंदर व आकर्षक बना और भौतिक सुखों के प्रति उसकी लालसा एवं महत्वाकांक्षा अत्यंत तीव्र रही। चेतन की कुंडली में जन्म से ही कई राजयोग स्थित हैं

जैसे चंद्र और शनि का परिवर्तन योग, शुक्र और मंगल का परिवर्तन योग, प्राकृतिक शुभ ग्रह शुक्र की लग्न भाव से एवं गुरु की कलत्र भाव से एक दूसरे पर दृष्टि और भाग्येश चंद्र पर गुरु की दृष्टि। इन सभी योगों के कारण चेतन को ससुराल पक्ष से अपने व्यवसाय तथा उच्च कोटि के सुख संसाधनों की प्राप्ति हुई। फिर भी नवांश कंुडली में सप्तमेश बुध लग्न कुंडली में अस्त है, इसलिए वैवाहिक जीवन में तलाक, अशांति, बाधा आदि घटित हुए। सन् 2006 में गुरु लग्न से द्वादश भाव में गोचरस्थ है। साथ ही गुरु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा भी चल रही है। इसलिए तलाक की नौबत आई। इसके अतिरिक्त सप्तमेश शुक्र लग्न में मंगल की राशि में है और अस्त है। बृहस्पति ग्रह भी शुक्र की राशि में सप्तम स्थान में वक्र स्थिति में है तथा उस पर व्यय स्थान में स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टि है।

बारहवें भाव में चार ग्रह स्थित हैं और शुक्र तथा मंगल के बीच राशि परिवर्तन योग है। इन सारे ग्रह योगों के कारण दोनों के दो विवाह हुए, किंतु उसकी उच्च भौतिक लालसाओं के कारण वैवाहिक जीवन में सुख एवं स्थायित्व का सर्वथा अभाव रहा। वैशाली: वैशाली की जन्मपत्री में लग्नेश और दशमेश गुरु केंद्र स्थान में वक्र होकर बलवान अवस्था में है, इसलिए एक धनाढ्य परिवार में उसका जन्म हुआ।


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गुरु और बुध का परिवर्तन योग एवं आपस में एक दूसरे पर दृष्टि के कारण गुरु की महादशा में एक आकर्षक व्यक्ति से वैशाली का विवाह हुआ, परंतु सप्तम भाव के राहु ने, जो अधिक बलवान है, दाम्पत्य जीवन को बिगाड़ा। मन के कारक चंद्र पर शनि की पूर्ण दृष्टि होने के कारण वह मानसिक रूप से अशांत रही। चंद्र लग्न से भी सप्तम भाव में शनि की स्थिति दाम्पत्य जीवन में सुख की कमी दर्शाती है।

उसके माता पिता को भी सूर्य एवं चंद्र की क्रमशः नौवें और बारहवें में स्थिति के कारण काफी कष्ट हुआ। वर्तमान समय में गुरु की महादशा और शुक्र की अंतर्दशा, जो जुलाई 2005 से चल रही है, में तलाक हुआ क्योंकि शुक्र अकारक और अस्त होकर गुरु स छठे भाव में स्थित है और चंूकि दोनों एक दूसरे के शत्रु हैं, इसलिए इस अवधि में तलाक हुआ। केतकी: केतकी की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल शत्रु राशि में स्थित है।

अष्टम में नीच के सूर्य की एवं बारहवें भाव में राहु की स्थिति तथा कुटंुब स्थान में नीच राशि में शनि एवं चंद्र की युति के कारण विष योग बनने से उसके प्रथम विवाह में तलाक हुआ। सप्तम एवं नवम भाव में बुध और मंगल के परिवर्तन योग ने दूसरा विवाह कराया, परंतु राहु की महादशा में बारहवें भाव के राहु ने फिर से पति से विच्छेद कराया और पति का सुख नहीं मिला और अंततः उसने आत्महत्या कर ली।

अष्टम भाव में सूर्य, शुक्र और गुरु पर पापी ग्रहों की शनि एवं राहु की दृष्टि के कारण और अगस्त 2004 से 2007 तक राहु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा के अंतर्गत उसने आत्महत्या की, क्योंकि शुक्र अस्त भी है। नोट: यह कथा सत्य है लेकिन पात्रों के नाम काल्पनिक हैं।



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