वात्सल्य और ममता की मूर्ति मां का नाम सुनते ही मन में हिलोरे स्वतः ही उठने लगती है। मेरी मां भी सहज मातृभाव से परिपूर्ण थी। उनके बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की थी। उन्होंने अपने जीवन में मेरे लिए मां, बहन, सखी, मार्गदर्शक और एक शिक्षिका की अनूठी भूमिका निभाई। अब प्रभु से यही प्रार्थना है कि इस रिश्ते की मधुर यादों को जीवन भर संजो कर रख सकूं और वही प्यार और दुलार अपने बच्चों को लौटा सकूं। 3 मई 2012 सुबह 5 बजे अचानक फोन की घंटी बजी।
मैं किसी अनहोनी खबर की आशंका से कांप उठी और जिसकी आशंका थी वही खबर मिली। मेरी जन्मदात्री मां का साया मेरे सिर से उठ गया था। सुनकर एकदम दिल चीत्कार कर उठा। इतनी जल्दी तो उन्हें नहीं जाना था। अभी रात को ही तो मैं उन्हें खाना खिला कर उनकी अनुमति लेकर आई थी। नहीं पता था कि यह आखिरी अलविदा थी और अब उनसे कभी बतिया नहीं सकूंगी। कितना शौक था उन्हें बात करने का।
रात को भी लगातार बात करना चाह रहीं थी और मैं उन्हें बार-बार चुप करा रही थी ताकि उनकी एनर्जी बची रहे। यही सोच-सोच कर दिल अफसोस कर रहा है कि काश, मैंने उनकी सभी बाते शांति से सुनी होतीं और जो वे चाहती थीं वह सब किया होता। इस जान का क्या भरोसा, अभी है और अगले क्षण नहीं। पिछले छह महीनो से वे काफी कष्ट में थी और इस बार जो ज्यादा बीमार हुई तो ईश्वर ने भी उनके अच्छे कृत्यों को देखते हुए उन्हें कष्टों से मुक्ति दे दी।
हाल ही में वे अपने नाती के विवाह पर सभी रिश्तेदारों से मिली थी, सबके हाल चाल पूछे थे और डाॅक्टर से विशेष आग्रह करके तथा अनुमति लेकर विवाह में सम्मिलित हुई थीं। यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति ही थी कि उन्होंने अपना आशीर्वाद अपने नाती और उसकी वधू को विवाह मंडप में जाकर दिया। यह मेरे पुत्र और पुत्र-वधू की खुशकिस्मती है
कि उन्हें उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ। मेरी आंखों के आगे मां का जीवन चल-चित्र की तरह घूमने लगा। सभी रिश्तेदार उनके घर आकर उनके बारे में अपनी आपबीती सुनाने लगे और उनको याद कर दुखी होने लगे। उनका व्यक्तित्व और व्यवहार था ही इतना सरल कि किसी को प्रभावित किये बिना नही रह सकती थीं।
उनका जन्म 12 जून 1931 को मेरठ शहर में हुआ था। वे छह बहनें व दो भाई थे। उनके पिता मेरठ के एक जाने-माने वकील थे। मां शुरू से ही पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। उन्होंने हिंदी में प्रभाकर पास किया था। सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, रसोई व घर के हर काम में अत्यंत दक्ष थीं। मेरे पिताजी की भी छह बहनें थीं और वे अकेले भाई थे। उनके विवाह के पश्चात ही चार बहनों का विवाह हुआ जिसे मां ने पूरी जिम्मेदारी और प्रेम से किया।
बचपन में हमारे घर गाय रहा करती थी। सुबह से लेकर शाम तक चूल्हे या अंगीठी पर अपने हाथ से रसोई का सारा काम, गाय का सारा काम, गोबर के उपले बनाना, दूध से घी बनाना, बाबा जी व अम्मा जी की दिनचर्या का ध्यान तथा सभी मेहमानों को देखना, ये सभी काम वे इतनी खूबी के साथ करती थीं कि समय का पता ही नहीं चलता था।
सुबह चार बजे उठ कर रात दस बजे तक बिना आराम किये लगातार काम करना उनकी एक आदत बन गयी थी। दिन में सभी के लिए स्वेटर बनाने व कपड़े सिलने का समय भी वे निकाल लेती थीं। उनके हाथ के बनाये हुए स्वेटर-शाल आज भी मैंने सहेज कर रखे हुए हैं। मेरी बुआओं के बच्चे भी अपनी मामी जी की कुशलता और व्यवहारिकता के कायल हैं। उन्होंने भी उनके बनाये स्वेटर व मशीन से सिले कपड़े पहने हैं।
मां ने अपनी ससुराल के हर व्यक्ति की मदद जरूरत पड़ने पर पूरे जतन से की। वे हमेशा सभी की खोज-खबर लेती रहती थीं। उनकी याददाश्त इतनी तेज थी कि पूरे परिवार के बच्चों के जन्मदिन की तिथि उन्हें कंठस्थ रहती थी। बिना डायरी देखे वे किसी की भी जन्मतिथि बता देती थीं। परिवार का प्रत्येक व्यक्ति क्या काम कर रहा है और उनके बच्चे क्या पढ़ाई कर रहे हैं, इसकी भी पूरी खबर रखती थीं।
बचपन में मां ने हमें खूब पढ़ाया। मेरी हिंदी, संस्कृत, गणित सभी का पूरा ध्यान रखतीं। वे हमारी लिखाई पर बहुत जोर देती थीं। उनकी पूरी कोशिश रहती थी कि बच्चे हमेशा क्लास में प्रथम आएं। मेरा एक ही भाई है। अपने दोनों बच्चों को मां ने आठवीं कक्षा तक स्वयं पढ़ाया जबकि आज मैं देखती हूं कि माता-पिता अपने बच्चों को तीसरी, चैथी क्लास से ही टयूशन लगा देते हैं। वे अत्यंत मेधावी, सच्ची, निडर, साहसी व कर्म प्रधान महिला थीं।
उन्होंने अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं किया और न ही कभी बेइमानी का साथ दिया। बचपन से हमें भी यही सिखाया। एक बार हिसाब करते हुए एक दुकानदार ने ज्यादा पैसे वापिस कर दिये तो उसे फौरन पैसे वापिस भिजवाए। यह वाकया हमेशा मेरे जे़हन में रहा और मैने खुद भी इस पर अमल करने की कोशिश की। मेरी पढ़ाई तथा नौकरी के बारे में उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया। वे यही चाहती थीं कि हम दिनोंदिन खूब तरक्की करें। मेरे पिता लगभग 25 वर्ष पहले रिटायर हो गये थे।
वे सरकारी सेवा में थे लेकिन 10-15 वर्ष पहले उनकी याददाश्त चली गयी थी और वे केवल घर में ही सिमट कर रह गये थे। उनकी सारी जिम्मेदारी भी मां ने अत्यंत सहजता से अपने ऊपर ले ली। मकान के सारे किरायेदारों से बात करना, किराया वसूलना, मकान की मरम्मत करवाना, नये किरायेदार रखना सभी काम वे इस उम्र में भी इतनी सरलता से कर लेती थीं कि मुझे आश्चर्य होता है। व्यक्ति जब साथ होता है तो हम उसकी अच्छाइयों और कुशलताओं को समझ नहीं पाते। जाने के बाद ही उनके अहम् वजूद का अहसास होता है।
आज मेरे पिता खुद को उनके बिना नितांत असहाय महसूस कर रहे हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि पत्नी सिर्फ पत्नी ही नहीं होती। वह समय के अनुसार बहन, बेटी व मां सभी कुछ होती है। यही उनके साथ हुआ। मेरी मां मेरे पिता की सेवा मां की तरह ही कर रही थीं। उनकी एक-एक बात का ध्यान बच्चे की तरह रखती थीं। अब मुझे सिर्फ इसी बात की चिंता है कि पिताजी का समय सही बीते और वे अपने घर में बाकी जीवन सुख-शांति से बिताएं। मां ने अपने जीवन काल में सभी के लिए किया।
धार्मिक कार्यों को भी पूरे मनोयोग से किया। दान, धर्म, व्रत, पूजा सभी उनकी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा थीं पर अपनी पुत्र-वधू से उनके विचार नहीं मिले। यह स्वाभाविक ही है कि व्यक्ति जीवनपर्यंत जैसा करता है खुद के लिए भी वैसी ही अपेक्षा रखता है लेकिन जब वह आंशिक रूप से भी नहीं मिलता तो बहुत निराश हो जाता है। यही मेरी मां के साथ हुआ। सब कुछ होते हुए भी पुत्र का विछोह उन्हें बहुत सालता रहा और अंतिम समय में भी पुत्र के दर्शन की लालसा लिए वे इस दुनिया से विदा हो गईं।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति मिले और वे परलोक से भी हमें अपना आशीर्वाद देती रहें और हमारा मार्ग दर्शन करती रहें। आइये, करें इनकी कुंडली का विवेचन इनकी कुंडली में लग्नेश मंगल दशम स्थान में अपनी मित्र राशि में स्थित होकर ‘कुलदीपक योग’ का सृजन कर रहा है जो बहुत सुंदर प्रवाही योग है।
इस योग के कारण इनके अंदर साहस, ईमानदारी, कर्मण्यता, सेवा भाव, अध्ययनशीलता जैसे गुणों की प्रमुखता रही तथा जीवन में अनाचार व अकर्मण्यता से हमेशा कोसों दूर रहीं। लग्नेश का कर्म स्थान में स्थित होना इस बात की ओर भी संकेत दे रहा है कि यह अपने संपूर्ण जीवन में प्रत्येक कार्य को बड़ी लगन, परिश्रम तथा ईमानदारी से करती रहीं।
सुख स्थान का स्वामी शनि कुटुंब स्थान में स्थित होने से इनके ऊपर हमेशा पारिवारिक दायित्व का भार रहा, परंतु शनि पर बृहस्पति ग्रह की दृष्टि होने से ये उन दायित्वों को भली-भांति, सहजता पूर्वक निभा पाईं। पंचम भाव में राहु की स्थिति से एवं पंचमेश तथा पुत्रकारक बृहस्पति के अष्टम भाव में होने से इन्हें अपने पुत्र की ओर से सुख, सहयोग प्राप्त नहीं हुआ।
दूसरी ओर पुत्रकारक बृहस्पति से सातवें भाव में वक्र शनि होने के कारण इनका अपनी पुत्र-वधु के साथ भी वैचारिक मतभेद बना रहा। सप्तम भाव में स्वगृही शुक्र तथा दशमेश सूर्य के योग के कारण इन्होंने अपने पति की पूर्ण समर्पित भाव से सेवा की। अष्टमेश बुध सप्तम भाव में होने से पति की याददाश्त जैसी बीमारी का भी संकेत है।
चलित कुंडली में बृहस्पति ग्रह धर्म भाव में उच्च राशि में होने से इनके जीवन में पूजा, पाठ, दान, धर्म परोपकार आदि शुभ कार्यों के प्रति सच्ची प्रवृŸिा बनी रही। वर्तमान समय में इनकी शनि की महादशा में बुध की अंतर्दशा चल रही थी। कुंडली में बुध और शनि की स्थिति पर विचार करें तो शनि इस लग्न के अशुभ अकारक ग्रह हैं तथा वह मारक भाव में स्थित है। दूसरी ओर अंतर्दशा वाला ग्रह बुध भी अष्टमेश होकर मारक भाव में स्थित है।
इन ग्रहों की महादशा तथा अंतर्दशा प्रारंभ होने के साथ ही इनका स्वास्थ्य अधिक खराब रहनेे लग गया था। वर्तमान समय में, जब इनका देहावसान हुआ, उस समय में गोचर में (अर्थात चंद्र राशि के अनुसार) अधिकांश ग्रह जैसे शनि, बृहस्पति, मंगल, बुध, सूर्य प्रतिकूल अवस्था में थे।
इस घटना-क्रम में शनि में बुध तथा शनि की प्रत्यंतर दशा इनके लिए मारक सिद्ध हुई। इनका देहावसान बैशाख,शुक्ल पक्ष की द्वादशी को प्रातः 4 बजे ब्रह्म-मुहूर्त में हुआ। ऐसे समय में मृत्यु होने से जीवात्मा सद्गति प्राप्त करती है।