मेदिनीय ज्योतिष पर आधारित सन् 2011 का भविष्यफल
मेदिनीय ज्योतिष पर आधारित सन् 2011 का भविष्यफल

मेदिनीय ज्योतिष पर आधारित सन् 2011 का भविष्यफल  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 5855 | दिसम्बर 2010

मेदिनीय ज्योतिष पर आधारित सन् 2011 का भविष्यफल प्रश्नः मेदिनीय ज्योतिष के आधार पर सन् 2011 में भारत और विश्व का सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक भविष्य क्या होगा? मेज्योतिष के आधार पर सन् 2011 में भारत और विश्व का सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक भविष्य जानने के लिए हमें मुखय रूप से इस वर्ष के संवत्सर, आकाशीय कौंसिल, संवत स्तंभ, मेघ, नाग, आर्द्रा प्रवेश कुंडली, वर्ष में घटित होने वाले सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण, जगत कुंडली, स्वतंत्र भारत की कुंडली, गोचर वश ग्रहों का अध्ययन करना होगा। संवत्सर गणना के अनुसार इस वर्ष का संवत्सर क्रोधी होगा।

'क्रोधी' नामक संवत्सर का फल इस प्रकार होगा- क्रोधी नामक संवत्सर में जन-समाज, क्रोध एवं लोभ से अभिभूत रहेंगे। किसी प्राकृतिक आपदा से जनमानस त्रस्त होगा। अन्न की उपज मध्यम होगी तथा वर्षा भी मध्यम होगी। इसी प्रकार 'मेघ महोदय' के विचारों के अनुसार क्रोधी संवत्सर का फल भी इसी प्रकार होगा। विश्व एवं शासक वर्ग में सर्वत्र अव्यवस्था एवं कहीं घोर युद्धमय विषम वातावरण बनेगा। देश, जाति एवं कुटुंब में भी क्रोधपूर्ण व्यवहार से वातावरण क्षुब्ध होगा। इस संवत में जनता लोभ, क्रोध, रोग और स्वार्थ से पीड़ित रहेगी। इस संवत्सर का स्वामी ग्रह शनि है जिसका फल इस प्रकार है।

अनाज महंगे होंगे। व्यापार अस्थिर रहेगा। भयंकर रोगों का भय बना रहेगा। वर्षा कम होगी। इस प्रकार चैत्र और वैशाख में बाढ़ इत्यादि से अनिष्ट होगा। ज्येष्ठ में महंगाई होगी। श्रावण मास में दुर्भिक्ष, भाद्रपद में वर्षा कम होगी तथा महंगाई में वृद्धि होगीे। आश्विन मास में वर्षा हो सकती है। आकाशीय कौंसिल विश्व की सभी घटनाओं को गति रूप देने के लिए एक आकाशीय कौंसिल सर्वक्रियाकलापों व शुभाशुभ का संचालन करती है। इस आकाशीय कौंसिल में ग्रहों की शुभाशुभ प्रकृति के अनुकूल संसार में जो उलट फेर एवं अघटित घटनाएं घटित होती हैं। आकाशीय कौंसिल ब्रह्मांड के सभी नैतिक व दैविक परिवर्तनों का संचालन करती है।

संवत 2068 की आकाशीय कौंसिल इस प्रकार है- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ग्रह परिषद में तीन पद बालग्रह बुध को, तीन पद शनि ग्रह को दो पद वर्ष के राजा चंद्रमा को प्राप्त हुए हैं। वर्ष के मंत्री का पद गुरु को प्राप्त हुआ है। विक्रमी संवत्सर 2068 के राजा चंद्र का फल इस प्रकार है राजा चंद्र का फल इस वर्ष मांगलिक एवं शुभ कार्य अधिक होंगे। वर्षा अधिक और फसलें उत्तम होंगी। जनता में परस्पर सद्भाव तथा स्नेह बढ़ेगा। शासक वर्ग की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। जनता के स्वास्थ्य, रोग निवारण, तथा शांति के लिए विशेष योजनात्मक पग उठाए जाएंगे। अनाज के भाव पहले मंदे होंगे।

चावल की पैदावार अच्छी होगी। वर्ष के मंदी में अन्न संग्रह करने पर भाद्रपद से एक मास में लाभ होगा। तिल, तिलहन, रसदार पदार्थ चैत्र-वैशाख में खरीद करें तो आश्विन कार्तिक में लाभ होगा। मंत्री गुरु का फल : संवत्सर का मंत्री गुरु हो तो फल इस प्रकार होगा। अनेक विध - धान्य की उपज प्रचुर मात्रा में होगी और वर्षा भी अधिक होगी। शासक वर्ग जनता का पूरा ध्यान रखेगा। न्यायपूर्ण शैली से जनता का पालन पोषण करती रहेगी। यदि वर्ष का मंत्री गुरु हो तो वर्षा पर्याप्त मात्रा में होगी तथा वर्षा सुसमय पर होगी। दूध आदि पौष्टिक तत्व अधिक मात्रा में होंगे धार्मिक अनुष्ठान यज्ञादि अधिक होंगे तथा सभी लोग आनन्द मंगलमय उत्सवों को मनाएंगे।

मेवा, फल व अन्न मंदे रहेंगे। धान्योत्पति अच्छी होगी। उक्त विवरण से यह मालूम होता है कि राज्य अधिकारी प्रजा के हितों का पूर्ण ध्यान रखेंगे तथा अपना कार्य न्यायपूर्वक करेंगे तथा प्रजा का पालन करेंगे। सर्वत्र शांति का वातावरण होगा। शहर और जंगल में एक समान सुख मिलेगा। सस्येश शनि का फल : सस्येश का अर्थ है चौमासी फसलों का स्वामी। सस्येश शनि का फल इस प्रकार होगा। जनता राज्यभय किंवा राजनैतिक गतिविधि से त्रस्त रहेगी। जनता किसी रोग से पीड़ित होगी। जौ, गेहूं एवम् अन्य अनाजों की फसलों को हानि होगी। जनता में वाद-विवाद चलता रहेगा तथा जनता अपने ही वाद विवादों में उलझी रहेगी। सस्येश यदि शनि हो तो गेहूं, चावल, जौ आदि खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचे। इस कारण महंगाई बढ़ जाएगी। शासकों का व्यवहार कठोर होगा। जनता व्यर्थ के विवादों में उलझी रहेगी।


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अन्न की उत्पत्ति में कई प्रकार की बाधाएं आएंगी। नया तेजी का वातावरण बन जाएगा। लोग राज्य भय से पीड़ित रहेंगे। गेहूं आदि की खेती खराब होगी। मनुष्य छोटे वाद विवाद में उलझे रहेंगे। वर्ष के धान्येश शुक्र का फल : धान्येश का अर्थ है शीत कालीन फसलों का स्वामी। धान्येश शुक्र का फल इस प्रकार है। धान्याधिप यदि शुक्र हो तो शरत् - सस्य अर्थात शीत कालीन धान्य पकने से पहले ही रोगादि से अकालिक वर्षा आदि प्राकृतिक प्रकोप से नष्ट हो जाते हैं। इसके परिणाम स्वरूप अनाज महंगे हो जाएंगे और गाय आदि दुधारू पशुओं से दूध कम प्राप्त होगा।

धान्येश शुक्र होने के कारण शीतकालीन फसलें मूंग, मोठ, बाजरा आदि की फसल अच्छी नहीं होगी। वर्षा अनियमित तथा कम होगी जिससे दुधारू पशु दूध कम मात्रा में देंगे। इस प्रकार अनाज, पशुचारा व सब्जियों में महंगाई रहेगी। दूध, घी, मक्खन आदि के दामों में वृद्धि होने की पूर्ण संभावना है। वर्ष के मेघेश बुध का फल : मेघेश का अर्थ है वर्षा तथा मौसम विभाग का स्वामी। मेघेश बुध का फल इस प्रकार होगा। बुध मेघेश हो तो वर्षा बहुत होगी। गेहूं आदि की फसल अच्छी होगी, रसादि अर्थात् दूध, गुड़, गन्ना भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होंगे। ब्राह्मण लोग अथवा धार्मिक लोग यज्ञ आदि हवन तथा अन्य धार्मिक क्रिया कलापों में व्यस्त रहेंगे।

पृथ्वी अनेक विध-सुख-संपदा से युक्त रहेगी। यदि बुध मेघेश हो तो वर्षा पर्याप्त मात्रा में हो, गेहूं, जौ, धान्य आदि फसलों में वृद्धि हो। ब्राह्मण तथा धर्मपरायण लोग अपने-अपने धार्मिक कृत्यों में प्रवृत रहें अर्थात चारों ओर धर्मिक वातावरण का निर्माण होगा। सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं की वृद्धि होगी। ब्राह्मण लोग भजन आदि करने में व्यस्त रहेंगे। गेहूं और जौ की मात्रा में वृद्धि होने पर इन वस्तुओं के दामों में अधिक वृद्धि नहीं होगी। रसेश चंद्र का फल : रसेश का अर्थ है गुड़ - खांड आदि रसकस का स्वामी।

चंद्र रसेश का फल इस प्रकार है- चंद्रमा रसेश हो तो मनुष्य नयी-नयी प्रगति के आयाम स्थापित करता है। किंवा धर्म का उपयोग करता है। वर्षा बहुत होती है। पृथ्वी धन-धान्य एवं रस, दुग्धादि से युक्त रहेगी। वर्षा पर्याप्त मात्रा में होगी। गुड़, खांड आदि रसकस में कमी रहेगी। युवा वर्ग भोग विलास की नई-नई प्रक्रियाओं में आसक्त रहेगा। वर्षा अधिक होने पर पृथ्वी रसवती धन-धान्यवती होगी। रस-कस व अन्न की उत्पत्ति अच्छी होगी तथा खाद्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होंगे जनता का ध्यान भोग-विलास में अधिक बढ़ेगा। नीरसेश शनि का फल : नीरसेश का अर्थ है धातु एवं व्यापार का स्वामी। नीरसेश शनि का फल इस प्रकार है

- शनि नीरसेश होने के कारण लोहा आदि धातु किंवा लौह निर्मित मशीनरी शस्त्र, काले रंग की वस्तुएं एवं कपड़े आदि में विशेष रूप से महंगाई होगी। हार्डवेयर का सामान महंगा हो जाएगा। काली उड़द भी महंगी होने के पूर्ण आसार हैं। इस प्रकार बाजार भावों में बहुत अधिक वृद्धि हो। इसका पूरे बाजार पर असर पड़ेगा, क्योंकि जितने भी यातायात के साधान होते हैं उनमें लोहे का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है। लोहे के महंगे होने के कारण हर प्रकार के वाहन के मूल्य में भी वृद्धि होगी जिससे अन्य वस्तुओं के भावों पर भी पूर्ण असर पड़ेगा। धनेश शनि का फल : धनेश का अर्थ है धन खजाने का स्वामी। धनेश शनि का फल इस प्रकार है।

शनि धनेश होने के कारण जनता आर्थिक संकट का सामना करेगी, शासक वर्ग रोगों से पीड़ित रहेंगे। व्यापारी और किसान वर्ग को भी आर्थिक परेशानी उठानी पड़ेगीे। बुद्धिजीवी वर्ग मानसिक दृष्टि से परेशान रहेगा। शासक वर्ग चिन्तित एवं अस्वस्थ हो। व्यापारी वर्ग तथा कृषक वर्ग के लोगों में अधिक विपन्नता का वातावरण बना रहेगा। विद्वत वर्ग भी अनेक संतापों से युक्त रहेंगे। राजा लोग रोगी रहेंगे लोगों के पास धन नहीं रहेगा। व्यापार करने वाले निर्धन होंगे और पंडित लोग पराई पीड़ा से दुखी होंगे। व्यापारी लोग घबरायेंगे। व्यापार की स्थिति उलझन भरी होगी तथा लाभ कम रहेगा। दुर्गेश बुध का फल : दुर्गेश बुध है जिसका फल इस प्रकार से है।

दुर्गेश का अर्थ है सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा का स्वामी। बुध दुर्गेश होने के कारण नागरिकों में कोई सुखी और कोई दुखी रहेगा। नागरिकों को कभी सुख तथा कभी दुख मिलेगा। धनी निर्भीक रहेंगे, क्योंकि सफर में चोरी की घटनाओं का भय नहीं रहेगा। बुध यदि दुर्गेश हो तो जनता में सुख-दुख बना रहेगा। जल व थल सेनाओं की वृद्धि होगी। यात्रा में लोग सुरक्षित अनुभव करेंगे। चोरी-ठगी की घटनाएं कम होंगी। शासक कूट नीति का प्रयोग करेंगे। शहर के लोगों को सब सुख मिलेंगे और धनवानों को रास्ते में कोई भय नहीं रहेगा। व्यापारियों को लाभ मध्यम हो और धनी मुसाफिरों को रास्ते का कोई भय नहीं होगा। संवत के वर्ष राजादि के फलों पर हम इस संवत के चार स्तंभों पर विचार करते हैं।


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जन मानस की खुशहाली तथा देश की उन्नति भी इन्हीं पर आश्रित है। संपूर्ण विश्व की सत्ता जल, वायु, अन्न और तृण पर ही निर्भर है। संवत का फल भी इन चार स्तंभों पर निर्भर करता है। प्रत्येक संवत में चार स्तंभ होते हैं, जल स्तंभ, तृण स्तभं, वायु स्तंभ और अन्न स्तंभ। स्तंभ जितने अधिक हों उतना ही अच्छा होता है जितने कम हों तो मध्यम तथा कोई स्तंभ न हो तो समय खराब रहता है। जल स्तंभ : इस स्तंभ से वर्षा आदि का अनुमान लगाया जाता है। जल स्तंभ 81 प्रतिशत होने के कारण यह जल के लिए अच्छे संकेत हैं। वर्षा अधिक होने के आसार दर्शाता है।

इसलिए कृषक वर्ग में नया उत्साह बनेगा। ग्वार, चावल, जीरा, मक्का, गेहूं, बाजरा आदि की फसलों के व्यापार से लाभ होगा। जड़ी-बूटियों की पैदावार भी अधिक होगी। जल अधिक होने से विद्युत उत्पादन की क्षमता में भी वृद्धि होगी। इस प्रकार हम आशा कर सकते हैं कि जल के स्तर में सुधार आएगा तथा यह चारों ओर प्रगति का वातावरण पैदा करेगा। तृण स्तंभ : वैशाख शुक्ल प्रतिपदा को भरणी नक्षत्र हो तो तृण स्तंभ होता है। इस वर्ष की गणनाओं से यह जान पड़ता है कि वैशाख शुक्ल प्रतिपदा को भरणी नक्षत्र केवल 62 प्रतिशत के लगभग है। तृण स्तंभ का संबंध उस वर्ष की घास और जड़ी-बूटियों से होता है। इस वर्ष तृण 62 प्रतिशत होने के कारण सब्जियां प्राप्त होती रहेंगी। पशुओं को चारा भी उपलब्ध होगा जिसके कारण दूध की उत्पत्ति भी ठीक रहेगी। तृण स्तंभ की सुदृढ़ता की स्थिति वर्ष के लिए एक शुभ भविष्य की ओर संकेत करते हैं। भारतीय जड़ी बूटियों की मांग भी सारे विश्व में है।

इस बार जनता का ध्यान जड़ी-बूटियों के ज्ञान को विकसित करने में भी लगेगा। जनता का विश्वास आयुर्वेद की ओर भी आकृष्ट होगा। जड़ी-बूटियों का निर्यात भी इस वर्ष संभव होगा। वायु स्तंभ : ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को मृगशिरा नक्षत्र हो तो वायु स्तंभ होता है। विभिन्न गणनाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि इस वर्ष वायु स्तंभ 49 प्रतिशत है। जिस प्रकार जल का मानव के जीवन में महत्व है उसी प्रकार वायु भी प्रकृति की एक देन है। वायु के बिना हमारा जीवन एक क्षण भी संभव नहीं। वायु स्तंभ वायु के विषय में जानकारी देता है। वायु स्तंभ की 49 प्रतिशत यह संकेत देती है कि इस वर्ष वायु का वेग कम होगा। वायु की मात्रा कम हो जाएगी।

अर्थात प्रदूषण में वृद्धि होगी। इस कारण कई प्रकार की बीमारियां मानव को घेर लेंगी। वायु प्रकोप भी बढ़ सकता है तथा जंगलों में अग्नि कांड से हानि हो सकती है। वायु स्तंभ इस वर्ष मानव जाति के लिए एक चिंता का विषय है। इस वर्ष अग्नि प्रकोप में वृद्धि होगी तथा जंगलों में अग्नि कांड से हानि होगी जिससे जंगल का जीवन प्रभावित होगा तथा प्रकृति के वातावरण में असंतुलन पैदा हो जाएगा। अन्न स्तंभ : आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को पुनर्वसु नक्षत्र हो तो अन्न स्तंभ होता है। गणनाओं से ज्ञात होता है कि इस वर्ष अन्न स्तंभ 63 प्रतिशत है। अन्न स्तंभ से उस वर्ष अनाज की पैदावार पर प्रभाव पड़ता है।

अन्न का संबंध जल, वायु से भी होता है। जल की पर्याप्त मात्रा वायु की उपलब्धता तथा तृण स्तंभ का साथ अन्न स्तंभ की सुदृढ़ता की ओर संकेत करता है। अन्न स्तंभ की प्रतिशतता से हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि अन्न की प्राप्ति मानव जीवन के लिए चिंता का विषय नहीं होगा। संवत् के चारों स्तंभों में यह एक शुभ संकेत है। यदि हम इस वर्ष के स्तंभ चतुष्टय पर अपना ध्यान केंद्रित करें तो हमें ज्ञात होगा कि यह वर्ष जल, वायु, तृण तथा अन्न स्तंभों से खुशहाली लाने वाला है। जल अच्छा बरसेगा। वायु वेग से फसलों की हानि की संभावना कम है। तृण और अन्न स्तंभ सुदृण होने पर कृषक वर्ग को लाभ प्राप्त होगा तथा कृषक वर्ग संतुष्ट रहेगा।

एक कृषि प्रधान देश है। कृषक वर्ग की खुशहाली से ही हमारे समाज की संतुष्टता तथा समृद्धि का संबंध है। कृषक वर्ग भारत वर्ष की रीढ़ की हड्डी है। यदि कृषि प्रभावित होती है तो हमारे सारे कार्य प्रभावित होते हैं। खाने के लिए अन्न नहीं होगा तो शेष प्राप्तियों का कोई लाभ नहीं होगा। भूख मिटाने के लिए अन्न एक आवश्यक अंग है। गेहूं, चना, ज्वार, बाजरा की पैदावार अच्छी होने के संकेत हैं। हम कह सकते हैं कि कृषि की पैदावार ठीक प्रकार से होने के कारण महंगाई की वृद्धि में कमी आएगी। व्यापारी वर्ग भी लाभ की स्थिति में होगा। चारों स्तंभों के सुदृढ़ होने से यह संवत नई उपलब्धियां लाने वाला होगा। नये-नये आयाम देश को प्रगति की राह पर ले जाएंगे। देश नई योजनाओं से प्रगति करेगा। आर्षमान विचार : जिस प्रकार चार स्तंभ देश की जलवायु तथा वन संपदा के बारे में सूचना देते हैं


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उसी प्रकार आर्षमान के चार दुर्ग संवत की रक्षा के सूचक हैं। प्रथम आर्ष गत वर्ष के पौष मास की अमावस्या को मूल नक्षत्र के संपर्क से माना जाता है। इस बार प्रथम आर्ष 51 प्रतिशत है। प्रथम आर्ष से हमें ज्ञात होता है कि सीमा प्रांतों पर जल-वायु-तथा सेना की मारक क्षमता बराबर रहेगी अर्थात् विदेशी शक्तियां हम पर हावी हो सकती हैं। हमें अपनी मारक क्षमता में विकास करना होगा। द्वितीय आर्ष वैशाख की अक्षय तृतीया को रोहिणी नक्षत्र के ंसंपर्क से माना जाता है। विभिन्न गणनाओं के आधार पर यह ज्ञात होता है कि इस वर्ष द्वितीय आर्ष लगभग 68 प्रतिशत के लगभग है।

जलवायु अनुकूल होने के संकेत हैं। प्राकृतिक आपदाओं से प्रकृति रक्षात्मक रहेगी। जलवायु अनुकूल रहेगी। अन्न, फल-फूल, वनस्पति तथा जड़ी-बूटियां पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होंगी। तृतीय आर्ष : श्रावण मास की पूर्णमासी को श्रवण नक्षत्र के संपर्क से मानी जाती है। ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तृतीय आर्ष 74 प्रतिशत होता है। यह आर्ष धर्म तथा धार्मिक क्रियाकलापों की ओर संकेत करता है। धार्मिक क्रियाओं की ओर समाज की रुचि बढ़ेगी। राजनैतिक विचारधारा में परिवर्तन आएगा। राजनेताओं को सद्बुद्धि प्राप्त होगी। राजनीति जो पतन की ओर जा रही है। एक नव विचार धारा से प्रभावित होगी। देश में आर्थिक प्रगति भी होगी। देश का यश बढ़ेगा। रक्षण क्षमता पर हमें अधिक बल देना होगा। चतुर्थ आर्ष-कार्तिक पूर्णिमा को कृतिका नक्षत्र से चतुर्थ आर्ष की गणना की जाती है। इस वर्ष चतुर्थ आर्ष का अभाव है। यह एक अशुभता का संकेत है।

हमें अपनी रक्षण क्षमता का विकास करना होगा। हमें सीमा पार की गतिविधियों से सदा सावधान रहना होगा। कार्तिक मास के समय हमें सीमा पार की गतिविधियों पर पूर्ण नजर रखनी होगी। पड़ोसी देशों की कूटनीतियों से हमें पूर्ण हानि के संकेत हैं। यह सीमा पर एक विनाश का संकेत है। सीमा पार की खलबली हमारे सारे राष्ट्र के लिए एक अशुभता का संकेत देती है। रोहिणी वास एवं फल विचार रोहिणी निवास चक्र में मेष संक्रांति के दिन जो नक्षत्र हो उससे आरंभ करके दो-दो नक्षत्र समुद्रों में दो-दो नक्षत्र तटों पर एक पर्वत पर और दो-दो नक्षत्र संधियों में अभिजित नक्षत्र सहित अट्ठाईस नक्षत्रों को स्थापित किया जाता है। इस वर्ष मेष संक्रांति के दिन मघा नक्षत्र पड़ता है। मघा नक्षत्र से आरंभ करके अभिजित समेत रोहिणी चक्र के नियम से 2-2-1-2 सभी नक्षत्रों को स्थापित करने पर रोहिणी नक्षत्र का वास समुद्र में आता है। रोहिणी का वास यदि समुद्र में हो तो इस प्रकार फल होंगे। समुद्र में रोहिणी का वास होने से इस वर्ष वर्षा अधिक होगी। अनाज एवं फसलें समृद्ध रहेंगी। न्यून वर्षा वाले प्रान्तों में भी वर्षा भरपूर होगी।

बाजरा अधिक होगा। रोहिणी नक्षत्र का वास इस वर्ष समुद्र में होने के कारण संवत्सर का वास माली के घर है। इस कारण फल फूल आदि की पैदावार अच्छी होगी इस प्रकार पर्वतीय क्षेत्र में समृद्धि एवं कृषिजीवी वर्ग भी सुसमृद्ध रहेगा। अंत में हम कह सकते हैं कि रोहिणी का निवास समुद्र में होने से इस वर्ष वर्षा अधिक होगी तथा फसलें पर्याप्त मात्रा में होंगी। संवत् 2068 विक्रमी में आषाढ़ कृष्ण सप्तमी बुधवार तद्नुसार 22 जून सन् 2011 को सूर्य देव 16-06 मिनट पर आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। अनेक समय पर वर्षा का अवरोध रहेगा। कहीं फसलें सूखने का भय है। लेकिन नवमस्थ सूर्य एवं जल राशिस्थ चंद्र पंचम भाव में होने से सर्वत्र फसलें लहलहाएगी।

आर्द्रा प्रवेश कुंडली के अनुसार नवमस्थ सूर्य एवं जलराशिस्थ चंद्रमा पंचम भावस्थ होने से सर्वत्र फसलें लहलहाएंगी। मेघेश बुध त्रिकोण भाव में स्वराशि में स्थित है तथा वर्ष के राजा चंद्रमा से पंचम भाव में स्थित है तथा मेघेश पर सस्येश की पूर्ण दृष्टि है। जिस कारण फसल चाहे देर से हों पर होंगी पूर्ण। जल स्तंभ भी 81 प्रतिशत के लगभग है जो अधिक वर्षा का संकेत देता है। जो वर्षेश चंद्रमा का सहायक सिद्ध होगा। मेघ : वर्ष में नवमेघ होते हैं- जो इस प्रकार है। आवर्त, सवंर्त, पुष्कर, द्रोण, काल, नील, वरुण, वायु, वेग। वर्ष के शक संवत् को आठ से गुणा करके प्राप्त गुणनफल को नौ से भाग देने पर जो शेष प्राप्त हो वह वर्ष का मेघ कहलाता है। इस वर्ष का शक संवत 1933 है। जिसमें आठ जोड़ने पर प्राप्त संखया को नौ से भाग देने पर दो शेष बचता है इस कारण इस वर्ष का मेघ संवर्त है जिसका फल इस प्रकार है।

वर्षा पर्याप्त हो। पूर्व दिशा में वायु चले । वासना जन्य अनैतिक घटनाएं अधिक हो। धर्म-कर्म में रूचि कम रहे। शासक वर्ग स्वकार्य में संलग्न रहे। संवत् 2068 विक्रमी का शुभारंभ : संवत् 2068 विक्रमी का शुभारंभ 20 घंटे 02 मिनट पर होगा। 3 अप्रैल 2011 ई. 20 घंटे 02 मिनट पर वर्ष का आरंभ होगा। इस समय की कुंडली इस प्रकार है। लग्नेश शुक्र पंचम भाव में है शुक्र मित्रक्षेत्री है। राजनैतिक घटनाक्रम ठीक ढंग से चलाने की नीति में शनि मंगल का समसप्तक योग भारी बाधा उपस्थित करेगा। भारत को उग्रवाद का पग-पग पर सामना करना पड़ेगा। तुला लग्न में संवत की गतिविधियां इस प्रकार है- गुमध्य देश किंव केंद्र में पूर्वी भाग में कहीं उपद्रव कहीं विग्रह, कहीं शासन तंत्र में परिवर्तन के कारण बनेंगे। कई देशों को युद्ध अग्नि का सामना करना पड़ेगा। इस कारण अशांति का वातावरण विश्व को चिंता युक्त बना देगा।


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जगत लग्न कुंडली : नव वर्ष में मेष संक्रांति अर्थात जिस समय सूर्य मेष राशि में प्रवेश करे उस समय को लग्न बना कर जो कुंडली बनती है उसे जगत कुंडली कहते हैं। वर्ष 2068 विक्रमी में मेष संक्रांति 14 अप्रैल, 2011 को 13 घंटे 0 मिनट पर आरंभ होगा। उक्त समय के अनुसार जगत-लग्नकुंडली इस प्रकार है। जगत कुंडली में लग्नेश चंद्र द्वितीय भाव में स्थित है जिस पर शुक्र सुखेश तथा आय स्रोतों के स्वामी की शत्रु दृष्टि है जो विश्व के नेताओं के लिए एक कठिनाई की घड़ी है। जो आतंकवाद से जन-जीवन के लिए पीड़ादायक सिद्ध होगा। कई प्रकार के प्राकृतिक प्रकोपों का विश्व के अनेक देशों को सामना करना पड़ेगा। 15 नवंबर 2011 से शनि तुला राशि में गोचर करेगा जो मुस्लिम राष्ट्रों के लिए अशुभ समाचार देने वाला है

और इन देशों में संकट की स्थिति उत्पन्न होगी। विश्व को कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। संवत् का राजा चंद्रमा स्त्री ग्रह है जो स्त्रियों के वर्चस्व को बढ़ावा देगा। इसी प्रकार दुर्गेश बाल ग्रह बुध है। जिस पर शनि की दृष्टि है जो आंतरिक शांति भंग करेगा। जो भारत-पाक सीमाओं पर परेशानी का कारण होगा। चीन-पाक सेनाओं का जमावड़ा भारत के लिए एक नई परेशानी लेकर आएगा माओवाद तथा आतंकवाद का सामना भी समय-समय पर करना पड़ेगा। वर्ष के आरंभ में मंगल बुध तथा गुरु मीन राशि में स्थित है तथा कन्या राशिस्थ शनि की दृष्टि समसप्तक योग बना रही है। इस समय गुरु अतिचारी है तथा शनि वक्री है जो उत्तर भारत में युद्ध रूपी स्थिति उत्पन्न कर देगी। यह स्थिति पड़ोसी देशों के लिए भी भयंकर रूप धारण कर लेगी। बहुत सारे राष्ट्रों में उग्रवाद एक समस्या बन कर आएगी। जिससे धन-जन हानि के संकेत हैं।

चारों ओर अशांति का वातावरण छाया रहेगा। 3 मई को मंगल मेष राशि में प्रवेश करेगा। इस प्रकार शनि मंगल का षडाष्टक योग का निर्माण होगा और यह षडाष्टक योग 11 जून 2011 तक चलेगा। यह समय देश के लिए चारों ओर से घोर प्राकृतिक, राजनैतिक संकट देने वाला होगा। आंतरिक उग्रवाद भारत के लिए एक बार अपना सर उठाएगा। 12 जून को मंगल वृष राशि में गोचर करेगा तथा सूर्य, शुक्र और केतु के साथ मेल करेगा जो विश्व शांति के लिए एक चुनौती भरा समय होगा। उग्रवाद देश तथा विदेश से भारत में कहर बरसाएगा। विश्व में अशांति व्याप्त होगी। 25 जुलाई, 2011 से मंगल मिथुन राशि में आकर शनि के साथ दशम चतुर्थ संबंध बना लेगा।

यह योग 8 सितंबर 2011 तक प्रभावी रहेगा। यह विश्व के नेताओं के लिए विशेष कठिन परिस्थितियां उत्पन्न करेगा। कहीं भारी प्राकृतिक आपदाओं जेसे भूकंप, समुद्र तटवर्ती देशों में तूफान, सुनामी से हानि, अग्निकांड से देश को सामना करना पड़ेगा। 30 अगस्त से गुरु मेष राशि वक्री होकर 24 दिसंबर तक वक्री रहेगा। इस समय गुरु शुक्र-शनि के साथ षडाष्टक योग भी बना रहा है किसी राष्ट्र में सत्ता परिवर्तन, किसी नेता का निधन। भूकंप, चक्रवात, सुनामी, यानदुर्घटना से भारी हानि संभव है। 15 नवंबर 2011 से शनि तुला राशि में गोचर करेंगे जो मेषस्थ गुरु को नीच दृष्टि से देखेंगे जो पड़ोसी राज्यों में कई प्रकार की नीच गतिविधियां लाएगा।

पड़ोसी देश को कई प्रकार की उग्रवाद तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। इस समय विस्फोट विभीषिका पनपेगी। जनवरी 2012 से देश-विदेश के नेता उग्रवाद पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे। कई प्रकार की राजनैतिक हलचल होगी तथा उग्रवाद के दलनार्थ नई योजनाओं का उद्गम होगा। राष्ट्रों में एक दूसरे से तालमेल भी बढ़ेगा। नई योजनाएं एवं संधियों से विश्व वातावरण शान्तिमय बनेगा।


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