सुखी दाम्पत्य के अनिवार्य मेलापक बिंदु डाॅ. बी. एल. शर्मा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिये गृहस्थ आश्रम श्रेष्ठ कहा गया है जो शुभ पाणिग्रहण पर निर्भर है। हमारे महाऋषियों ने भारतवर्ष की धार्मिक आवश्यकता तथा भौगोलिक स्थिति-परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कर कुछ नियमों का प्रतिपादन किया, जिनमें पति-पत्नी के सही चयन से उत्तम पारिवारिक जीवन की कामना निहित है। शास्त्रों ने स्वगोत्र में विवाह वर्जित किया। उसका वैज्ञानिक कारण यह है कि बच्चें स्वस्थ हों। अंतरजातीय विवाह इस कारण अमान्य किये कि उन परिवारों में सांस्कृतिक भिन्नता के कारण पति-पत्नी सुखी नहीं रह सकते हैं और भिन्न संस्कृति से आये परिवारों में आपस में सहानुभूति की कमी देखी गई है। इन्हीं कारणों को ध्यान में रखकर हमारे महर्षियों ने ज्योतिष शास्त्रों में कुछ नियमों का प्रतिपादन किया, जिन्हें कुंडली मिलान और मांगलिक विचार की संज्ञा दी गयी। जन्मकुंडली मिलान में अनेक विचारणीय विषय हैं, परंतु यहां सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं का विश्लेषण किया जा रहा है। दोनों जन्मपत्रिकाओं में यह देखना आवश्यक है कि लड़के-लड़की की आयु कितनी अनुमानित है। आयु का विचार अष्टम स्थान से किया जाता है। इसमें तृतीय, एकादश, द्वितीय, सप्तम स्थान का भी विचार किया जाता है। साधारण तौर पर मारकेश की दशा का विचार किया जाता है, जैसे मीन लग्न या मीन राशि वाले के लिए मारकेश शुक्र की दशा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगी। यदि ऐसा समय निकट भविष्य में हो तो ध्यान दें। सप्तम स्थान विवाह एवं जीवन साथी का होता है, अतः सप्तम स्थान का परीक्षण करके देखें कि सुखी दांपत्य जीवन में विघ्न-बाधा तो नहीं आएगी। यदि किसी लड़के/लड़की की जन्मपत्रिका के विवाह स्थान में मंगल (ऊर्जा) एवं शुक्र (आनंद भोग-विलास) साथ में हो तो ऐसे व्यक्ति की काम वासना से बहुत ही ग्रसित रहने की संभावना बनती है। यदि ऐसा है तो सावधानीपूर्वक उनके रहन-सहन, चरित्र संबंधी जानकारी पूर्व में प्राप्त करें, फिर विवाह संबंध तय करें। योनि के गुण-मिलान सावधानी से करें, क्योंकि इसके अनुसार लड़के-लड़की के वैवाहिक जीवन में आनंद की क्षमता का परीक्षण किया जाता है। गुण-मिलान में सबसे अधिक अंक नाड़ी मिलान के हैं। जो आठ हैं जबकि कुल गुण छत्तीस होते हैं। जिसमें चैबीस प्रतिशत गुण नाड़ी मिलान के हैं। इसका विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। आयुर्वेद व ज्योतिष शास्त्र में नाड़ी विभाजन इस प्रकार बताया गया है। वातनाड़ी पित्तनाड़ी कफ़ नाड़ी अश्विनी भरणी कृतिका आद्र्रा मृगशिरा रोहिणी पुनर्वसु पुष्य अश्लेषा उत्तरा पूर्वा मघा हस्त चित्रा स्वाति ज्येष्ठा अनुराधा विषाखा मूल पू.षाढ़ा उ.षाढ़ा शतभिषा धनिष्ठा श्रवण पू.भाद्र उ.भाद्र रेवती उपर्युक्तानुसार नाड़ी भिन्न हो तभी विवाह के लिए उत्तम मिलान माना जाता है। लड़के-लड़की की राशि मिलान में निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखें। (अ) लड़के की राशि से लड़की की राशि बारहवीं न हो। इसमें विचार-भिन्नता व कलह संभव है। (ब) लड़की की राशि से लड़के की राशि तीसरी, चैथी, पांचवी तथा छठी न हो, यह हानिकारक रहती है या विचार-भिन्नता दर्शाती है। लड़के-लड़की की जन्मपत्रिका में सप्तम स्थान पति-पत्नी का होता है। अतः एक दूसरे की सप्तम राशि उत्तम मानी जाती है। लड़की के विवाह का कारक ग्रह गुरु है और लड़के के विवाह का कारक ग्रह शुक्र माना जाता है। अतः सप्तम स्थान, सप्तमेश या गुरु-शुक्र पीड़ित हों तो वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहेगा। इसका सूक्ष्म परीक्षण है। राशि मिलने के सात अंक होते हैं। ज्योतिष नियमों के अनुसार निम्नलिखित ग्रहयोग वाले वर या कन्या से विवाह करें तो गृहस्थ जीवन सुखी रहेगा। 1. कन्या का सप्तमेश, चतुर्थ भाव में अथवा दशम भाव में गया हो तो वह पतिव्रता स्त्री होगी। 2. वर का सप्तमेश सूर्य अथवा शुक्र हो और वह शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो व्यक्ति की स्त्री पतिव्रता होगी। 3. वर के सप्तम भाव में गुरु हो या सप्तम भाव को गुरु देखता हो तो उसकी स्त्री धर्मशीला और सुशील होगी। 4. वर-कन्या की राशियां एक दूसरे से सप्तम, चतुर्थ-दशम, तृतीय-एकादश हों या दोनों की एक ही राशि हो तो ऐसे पति-पत्नी सुखी जीवन व्यतीत करते हैं। 5. राक्षसगण वाली कन्या देवगण वर के लिये उत्तम नहीं मानी जाती। वर-कन्या का एक ही गण हो तो उत्तम माना जाता है। 8. वर कन्या दोनों की राशि एक होने और नक्षत्र भिन्न होने पर विवाह करें। उसी प्रकार दोनों का एक नक्षत्र होने पर राशियां भिन्न होनी चाहिये तभी विवाह करें। उदाहरण के लिये यदि कन्या का जन्म कृत्तिका के प्रथम चरण में तथा वर का जन्म कृतिका के द्वितीयादि चरण में हो तो दोनों का नक्षत्र एक तथा नाड़ी अन्त्य होगी। परंतु कन्या की राशि वृष होने से नाड़ी दोष नहीं होगा। इसी प्रकार कृत्तिका नक्षत्र के द्वितीयादि चरण में वर-वधु में से किसी एक का जन्म हो तथा दूसरे का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हो तो दोनों की राशि वृष होगी, परंतु दोनों के नक्षत्र भिन्न होंगे। इस कारण विवाह शुभ माना जावेगा। नाड़ी दोष के कारण कई विवाह प्रस्ताव सब प्रकार से योग्य होने पर भी अमान्य कर दिये जाते हैं। इस संबंध में ज्योतिष ग्रंथों में नाड़ी दोष का पूर्ण विवेचन किया गया है। उसके अनुसार-एक नक्षत्र, एक नाड़ी, एक राशि होने पर विवाह प्रस्ताव अमान्य कर दिये जाते हैं। परंतु इसका भी अपवाद है- नाड़ी का निर्धारण नक्षत्र पद के अनुसार करें। आयुर्वेद में नाड़ी वात, पित्त, कफ़ मान्य है: उसी के अनुसार यहां विश्लेषण किया जा रहा है। अन्य नक्षत्रों का भी इसी प्रकार विश्लेषण करें और इस विश्लेषण से यदि दोनों वर-कन्या की नाड़ी भिन्न हो तो विवाह करना ज्योतिष नियमों के अनुसार मान्य होगा। ज्योतिष ग्रंथों में यह भी वर्णन है कि सम वर्ष में कन्या का विवाह और विषम वर्ष में वर का विवाह शुभ माना जाता है। वर-कन्या के कुंडली-मिलान के पश्चात शुभ मुहूर्त में उनका विवाह संपन्न करना चाहिये। यदि वर-कन्या दोनों प्रथम संतान हैं जो ज्येष्ठ मास में विवाह करना वर्जित है। इसी प्रकार गुरु व शुक्र के अस्त काल में भी विवाह वर्जित हैं। मेष, वृष, मिथुन, मकर, कुंभ के सूर्य में विवाह शुभ माना जाता है। विवाह नक्षत्र पर चंद्र, गुरु, शुक्र हो तो वह नक्षत्र विवाह में मान्य नहीं है। इसी प्रकार क्षय मास, अधिकमास और सिंहस्थ गुरु (कुछ अपवाद छोड़कर) विवाह मुहूर्त में मान्य नहीं हैं। वर का सूर्य, राशि से 3/6/10/11 में उत्तम माना जाता है और कन्या की राशि से 2/5/7/8/11वें स्थान पर गुरु विवाह-मुहूर्त में उत्तम माना जाता है। विवाह मुहुर्त में वर का सूर्य और कन्या के गुरु का विचार आवश्यक हैं और दोनों की राशि से 4/8/12 वां चंद्र छोड़कर अन्य राशियों में मुहूर्त उत्तम हैं। विवाह संपन्न कराते समय मार्गशीर्ष माह को छोड़कर अन्य महीनों में गोधूलि लग्न मुहुर्त उपलब्ध नहीं हो तो, मिथुन, कन्या, तुला लग्न के मुहूर्त में विवाह उत्तम माना जाता हैं। यह भी ध्यान रखे कि विवाह लग्न-मुहुर्त में सप्तम में कोई ग्रह नहीं हो और अष्टम में मंगल और छठे स्थान में शुक्र नहीं हो तथा उस दिन चंद्र की युति किसी ग्रह से नहीं हो, और पाप ग्रह लग्न में नहीं हो, गुरु लग्न, केंद्र त्रिकोण में हो तो उत्तम हैं।