मारकेश निर्णय मारकेश ग्रह का निर्णय करने से पूर्व योगों के द्वारा अल्पायु, मध्यायु या दीर्घायु है, यह निश्चित कर लेना चाहिए। क्योंकि योगों द्वारा निर्णीत आयु का समय ही मृत्यु का संभावना-काल है और इसी संभावना काल में पूर्ववर्णित मारक ग्रहों की दशा में मनुष्य की मृत्यु होती है। इसलिए संभावना-काल में जिस मारक ग्रह की दशा आती है वह मारकेश कहलाता है।
इस ग्रंथ में आयु निर्णय के लिए ग्रहों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-
1. मारक लक्षण
2. मारक एवं
3. मारकेश।
जो ग्रह कभी-कभी मृत्युदायक होता है उसे मारक लक्षण कहते हैं। जिन ग्रहों में से कोई एक परिस्थितिवश मारकेश बन जाता है वह मारक ग्रह कहलाता है और योगों के द्वारा निर्णीत आयु के संभ्¬ाावना काल में जिस मारक ग्रह की दशा-अंतर्दशा में जातक की मृत्यु हो सकती है वह मारकेश कहलाता है। बृहद्पाराशर होराशास्त्र के अनुसार आयु के तीन प्रमुख योग होते हैं-
1. अल्पायु,
2. मध्यमायु एवं
3. दीर्घायु।
13 वर्ष से 32 वर्ष तक अल्पायु, 33 से 64 वर्ष तक मध्यमायु तथा 65 से 100 वर्ष तक दीर्घायु मानी जाती है। सौ वर्ष से अधिक की आयु को उत्तमायु भी कह सकते हैं।
2 महर्षि पराशर का मत है कि बीस वर्ष तक आयु विचार नहीं करना चाहिए
3 क्योंकि इस समय में कुछ बालक पिता के, कुछ बालक माता के और कुछ अपने अनुचित कर्मों के प्रभाववश मर जाते हैं।
4 अपने अनुचित कर्मों का विचार करने के लिए अरिष्ट योगों का प्रतिपादन किया गया है।
यद्यपि माता-पिता के अनुचित कर्मों का विचार भी अरिष्ट योगों द्वारा किया जा सकता है किंतु यह विचार बहुधा आनुमानिक होता है, पूर्ण प्रामाणिक नहीं। अतः बीस वर्ष की उम्र तक आयु का विचार नहीं करना चाहिए। बीस वर्ष की आयु हो जाने के बाद आयु का विचार किया जाता है जो इस प्रकार है-
सर्वप्रथम अल्पायु, मध्यायु या दीर्घायु योगों के द्वारा जातक की आयु अल्प, मध्य या दीर्घ होगी, यह निर्धारित कर लेना चाहिए। अल्पायु योग होने पर 21 वर्ष से 32 वर्ष की आयु के कालखंड में, मध्यमायु योग होने पर 33 वर्ष से 64 वर्ष के कालखंड में और दीर्घायु योग होने पर 65 से 100 वर्ष की आयु के कालखंड में कभी भी मृत्यु हो सकती है।
इन कालखंडों में जातक की मृत्यु कब और किस मारक ग्रह की दशा में होगी? इसका निर्णय इस प्रकार किया जाता है। योगों के द्वारा निर्णीत मृत्यु के कालखंड में यदि
1. द्वितीयेश
2. सप्तमेश
3. द्वितीय स्थान में स्थित पापी
4. सप्तम स्थान में स्थित पापी
5. द्वितीयेश से युक्त पापी या
सप्तमेश से युक्त पापी ग्रह की दशा आती हो तो उसकी दशा में और उक्त ग्रहों में से प्राथमिकता क्रम से आने वाले ग्रह की अंतर्दशा में मनुष्य की मृत्यु होती है।
यदि निर्णीत कालखंड में उक्त ग्रहों की दशा न मिलती हो तो
(1) व्ययेश
(2) व्ययेश से संबंधित पापी या
(3) व्ययेश से संबंधित शुभ ग्रह की दशा में मारक ग्रह की अंतर्दशा में मनुष्यों की मृत्यु होती है।
यदि कदाचित निर्णीत कालखंड में इनकी दशा भी न मिलती हो तो अष्टमेश या केवल पापी ग्रह की दशा में पापग्रहों से युत/दृष्ट मारक ग्रह की अंतर्दशा में मनुष्य की मृत्यु निधर्¬ारित की जाती है।
मारकेश निर्णय के महत्वपूर्ण सूत्र मारकेश निर्णय के लिए मारक ग्रहों का प्राथमिकता क्रम इस प्रकार होता है:
1. द्वितीय स्थान में स्थित द्वि तीयेश।
2. सप्तम स्थान में स्थित सौम्य ग्रह सप्तमेश।
3. सप्तम स्थान में स्थित क्रूर ग्रह सप्तमेश।
4. त्रिषडाय या अष्टम में द्वितीयेश।
5. द्वादश में स्थित द्वितीयेश एवं द्वितीय में स्थित द्वादशेश।
6. त्रिषडाय या अष्टम में स्थित 5. द्वितीयेश से युक्त पापी या
सप्तमेश से युक्त पापी ग्रह की दशा आती हो तो उसकी दशा में और उक्त ग्रहों में से प्राथमिकता क्रम से आने वाले ग्रह की अंतर्दशा में मनुष्य की मृत्यु होती है।5 यदि निर्णीत कालखंड में उक्त ग्रहों की दशा न मिलती हो तो
(1) व्ययेश
(2) व्ययेश से संबंधित पापी या
(3) व्ययेश से संबंधित शुभ ग्रह की दशा में मारक ग्रह की अंतर्दशा में मनुष्यों की मृत्यु होती है।
यदि कदाचित निर्णीत कालखंड में इनकी दशा भी न मिलती हो तो अष्टमेश या केवल पापी ग्रह की दशा में पापग्रहों से युत/दृष्ट मारक ग्रह की अंतर्दशा में मनुष्य की मृत्यु निधर्¬ारित की जाती है।
मारकेश निर्णय के महत्वपूर्ण सूत्र मारकेश निर्णय के लिए मारक ग्रहों का प्राथमिकता क्रम इस प्रकार होता है:
1. द्वितीय स्थान में स्थित द्वि तीयेश।
2. सप्तम स्थान में स्थित सौम्य ग्रह सप्तमेश।
3. सप्तम स्थान में स्थित क्रूर ग्रह सप्तमेश।
4. त्रिषडाय या अष्टम में द्वितीयेश।
5. द्वादश में स्थित द्वितीयेश एवं द्वितीय में स्थित द्वादशेश।
6. त्रिषडाय या अष्टम में स्थित केतु का मारक से संबंध हो और उस पर पापी ग्रह की दृष्टि हो।
7. वृष राशि का राहु शुक्र के साथ या दृष्ट हो तो वह पापी होने पर भी नहीं मारता।
8. मीन राशि में राहु सदैव अरिष्टप्रद होता है। यदि वह द्वितीय, षष्ठ, सप्तम या अष्टम में हो तो मारक होता है।
मारकेश की दशा में मृत्युदायक अंतर्दशा: सामान्यतया मारकेश ग्रह का निश्चय कर उसकी दशा में मृत्यु होती है- यह सिद्धांत पक्ष है और मारकेश की दशा में उसके संबंधी या सधर्मी पापी ग्रह की भुक्ति में मृत्यु होती है- यह इस शास्त्र का विशेष नियम है क्योंकि मारकेश संबंध होने पर भी शुभ ग्रह की भुक्ति में नहीं मारता जबकि संबंध न होने पर पापी ग्रह की भक्ति में मृत्यु देता है।10 लघुपाराशरी में ग्रहों के चार संबंध माने गये हैं- इन संबंधों में मारक प्रसंग में वरीयता क्रम इस प्रकार होता है-
1. दृष्टि संबंध
2. एकान्तर दृष्टि संबंध
3. युति संबंध एवं
4. स्थान संबंध।
जिन दो ग्रहों में गुण-धर्म समान हों, वे सधर्मी कहलाते हैं। इस दृष्टि से समस्त मारक ग्रह परस्पर एक-दूसरे के सधर्मी होते हैं। फिर भी उनमें विशेष सधर्मिता इस प्रकार होती है:
1. द्वितीयेश, सप्तमेश एवं द्वादशेश = परस्पर सधर्मी।
2. त्रिषडायाधीश एवं अष्टमेश = परस्पर सधर्मी।
3. शनि, मंगल, राहु एवं केतु पापी होने पर = परस्पर सधर्मी।
बुध एवं शुक्र बहुधा परस्पर सधर्मी। मारकेश ग्रह अपने संबंधित सधर्मी की अंतर्दशा में निश्चित रूप से मृत्यु देता है। यदि उसका कोई संबंधित सधर्मी ग्रह न हो तो वह अपने संबंधी या सधर्मी ग्रह की अंतर्दशा में मृत्यु देता है। शनि एवं शुक्र ये दोनों तथा बुध एवं शुक्र ये दोनों परस्पर संबंधी होते हैं।
यदि ये मारक या पापी होकर परस्पर संबंध करें तो एक की दशा में दूसरे की अंतर्दशा आने पर मृत्यु होती है। मारक शनि से संबंधित चंद्रमा यदि राहु से ग्रसित हो तो शनि की दशा एवं राहु की अंतर्दशा में मृत्यु होती है। यदि मारक शनि के साथ राहु स्थित हो तो शनि की दशा में राहु की अंतर्दशा में मृत्यु होती है। मारक शनि अपनी दशा में अपने संबंधी की अंतर्दशा में नहीं मारता अपितु वह अपने सधर्मी शुक्र की अंतर्दशा में मारता है।
मारक राहु अपनी दशा में केतु के अंतर में नहीं मारता अपितु अपने संबंधी पापी ग्रह या मंगल या शनि की अंतर्दशा में मारता है। सूर्य अष्टमेश होने पर मारक नहीं हा¬ेता। साथ ही वह षष्ठस्थ होने पर भी मारक नहीं होता िक ं त ु अन्य मारक स्थानों का स्वामी होने पर या अष्टम एवं द्वादश स्थान में स्थित होने पर मारक हो जाता है।
इसी प्रकार चंद्रमा अष्टमेश होने पर मारकेश नहीं होता किंतु वह अन्य मारक स्थान का स्वामी होने पर या षष्ठ, अष्टम एवं व्यय स्थान में पापी ग्रह के साथ स्थित होने पर मारक हो जाता है। मारक सूर्य या चंद्रमा बहुधा अपनी दशा में मारक फल नहीं देते। किंतु अन्य मारक ग्रहों से संबंध होने पर उनकी दशा एवं अपनी अंतर्दशा में मृत्युदायक होते हैं।
इस विषय में महर्षि पराशर का मत है कि मारक ग्रहों, मारक स्थान में स्थित पापी ग्रह, मारक से युत, अष्टमस्थ ग्रह और मारक के संबंधी पापी ग्रह में से एक की दशा और दूसरे की अंतर्दशा में मृत्यु होती है। इस सूत्र का भली भांति विचार कर मृत्युकाल निश्चित किया जा सकता है।
संदर्भ:
1. देखिए-परिशिष्ट संख्या
2. ‘‘त्रिविधाश्चायुषो योगाः स्वल्पायुर्मध्योत्तमाः। द्वात्रिंशदध्् पूर्वमल्पायुर्मध्यमायुस्ततः परम्।। चतुष्पष्टयाः पुरस्तात् तु ततो दीर्घमुदाह्नतम्। उतमायुः शतादूध्र्व ज्ञातव्यं द्विजसत्तम।। ’’ -वृहत्पाराशर होराशास्त्र अ. 45 श्लोक- 10-11
3. तत्रैव श्लोक. 12 4. तत्रैव श्लोक 13-14
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