किस्मत
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किस्मत  

व्यूस : 7861 | आगस्त 2012
किस्मत पं. उमेश शर्मा भाव नं0 9 के ग्रह किस्मत के आधारी ग्रह होते हैं तथा इस भाव में भाव नं0 3 एवं भाव नं0 5 में स्थित ग्रहों का प्रभाव भी आ मिलता है। सन्तान के जन्मदिन से भाव नं0 5 में स्थित ग्रह भाव नं0 9 में अपना प्रभाव डालना आरम्भ कर देते हैं जिसके कारण पिता-पुत्र की इक्कठी किस्मत का प्रभाव भी प्रभावी हो जाता है। भाव नं0 3 में स्थित ग्रह जातक के जन्म से ही भाव नं0 9 पर प्रभाव डालते है। सन्तान के जन्मदिन से पहले भाव नं0 5 में स्थित ग्रहों का प्रभाव भाव नं0 9 की अन्य कारक वस्तुओं पर जैसे धर्म-कर्म और कुंडली वाले के अपने बुजुर्गों के संबंध पर असर करता है। सन्तान के जन्मदिन से भाव नं0 5 में स्थित ग्रह कुंडली वाले के बुजुर्गों के बजाय स्वयं कुडली वाले की अपनी किस्मत (जो पिता बनता है) पर प्रभाव डालता है। इसी तरह ही भाव नं0 3 में स्थित ग्रह भाई के जन्म के दिन के बाद का प्रभाव जातक के स्वयं अपने ऊपर होता है और भाई के जन्म से पहले यह प्रभाव जातक के बुजुर्गों के साथ के संबंधों पर करता है। लेकिन अगर जातक के अपने जन्म से पहले ही बड़ा भाई मौजूद हो तो बड़े भाई की किस्मत का प्रभाव भी जातक पर देखा जायेगा। भाव नं0 3 के इसी शक्ति के प्रभाव के कारण से भाव नं0 8 (जिसका कारक ग्रह मंगल अशुभ,मौत) ने उल्टा देखा क्योंकि मंगल शुभ व अशुभ दोनो भाई ही हैं। अगर कुंडली वाले का छोटा भाई हो और आयु के 35वें वर्ष से पहले सन्तान भी हो जाये तो संतान के जन्म के बाद से 5वें भाव में स्थित ग्रहों का प्रभाव भाव नं0 3 में स्थित ग्रहों से ज्यादा प्रभावी होगा। भाव नं0 3 और 5 दोनों ही खाली हों तो किस्मत का आधार सिर्फ भाव नं0 9 के ग्रह ही माने जायेगें। अगर भाव नं0 9 भी खाली हो तो यह शर्त भी खत्म हुई। भाव नं0 5 के ग्रहों का असर कुंडली वाले पर उसके बुढ़ापें में होता है और भाव नं0 3 का बचपन से, या यूं कहें कि भाव नं0 3 में स्थित ग्रहों का प्रभाव जातक की आयु के 35वें वर्ष से पहले एवं 5वें भाव में स्थित ग्रहों का प्रभाव 35 वर्ष की आयु के बाद होता है, परन्तु हर हाल में 5वें भाव में स्थित ग्रह तीसरे भाव में स्थित ग्रहों से ज्यादा प्रभावी होते हैं। व्याख्याः- सब की किस्मत लक्ष्मी के नाम से मशहूर है जो बृहस्पति का दूसरा नाम है। किस्मत एक ऐसी चीज़ है जो सांसारिक कामों में न हाथ की मदद ढंूढे और न ही उसमें आंख को काम करना पड़े। हर काम का नतीजा अपने आप नेक हो जाये। 1. किस्मत का शुरु भाव नं0 9 से होगा। 2. कुंडली के बाद के भावों में स्थित ग्रहों को जगाने के दिन से किस्मत का उदय होगा। 3. बन्द मुट्ठी के अंदर के खाने अर्थात 1-4-7-10 भाव में स्थित ग्रह चाहे अच्छे हों या मन्दे,किस्मत की नींव के पत्थर होगें। 4. किस्मत के ग्रह के जागने का समय किस्मत के प्रभाव के शुरु होने का समय होगा। किस्मत के ग्रह कई एक हों तो वे सब पूरे सहायक होगें। सबसे अच्छा किस्मत का ग्रह बृहस्पति होता है। किस्मत का ग्रहः- किस्मत का ग्रह/ग्रहों में से सबसे उत्तम वह ग्रह होगा जो अपने लिए निश्चित उच्च राशि में स्थित हो और हर तरह से कायम हो। उसके बाद पक्के घर का ग्रह ,घर का मालिक ग्रह एवं दोस्त ग्रहों का बना हुआ दोस्त ग्रह क्रमशः किस्मत का मालिक ग्रह माना जायेगा। किस्मत के ग्रह की तलाशः- 1. अपनी उच्च राशि में स्थित (जैसे-प्रथम भाव में सूर्य, चतुर्थ भाव में बृहस्पति आदि) तथा पूर्ण रुप से कायम ग्रह, या 2. 9 ग्रहों में से जो सबसे उत्तम हो, या 3. केन्द्र अर्थात 1-4-7-10 वें भाव में स्थित ग्रहों में से जो उत्तम हो,या 4. उच्च फल देने वालो में जो सबसे उत्तम हो,या 5. घर के मालिक (मेष-मंगल, वृषभ-शुक्र आदि) ग्रहों में सबसे अधिक ताकतवर ग्रह को क्रमशः किस्मत का ग्रह मानेगें। विशेषः- ग्रह चल कर जो आवे दूजे, ग्रह किस्मत बन जाता है। ख़ाली पड़ा जब घर 10 कुंडली, सोया वो कहलाता है।। जो भी ग्रह जन्म कुंडली में खाना नं. 2 में आता है वह किस्मत का ग्रह हो जाता है मगर खाना नं. 10 में किसी के ग्रह न होने पर वह निष्फल होता है। कुण्डली में बन्द मुट्ठी के खाना साथ लाया माल-- 1, 7, 4, 10 बाल्देनी हाल अर्थात बचपन-- 9, 11, 12 औलाद, बुढ़ापा-- 2, 3, 5, 6 बीमारी दुःख -- 8 100 प्रतिशत-- 1, 7, 4, 10 साथ लाए खजाने- मुट्ठी का अन्दर 50 प्रतिशत-- 3, 11, 5, 9 दूसरों से पाए- मुट्ठी का बाहर 25 प्रतिशत-- 2, 6, 12 रिश्तेदारों से पाए- मुट्ठी का बाहर कुण्डली के खानो की गिनती क्रम, चाल और स्थान स्थायी तौर पर निश्चित कर दिए गए हैं। बारह राशियों के लिए बारह ही खाने नियत है। इन बारह खानों में 9 ग्रह आएंगे। बाकी चार खानों (खाना नं. 7 में दो इकट्ठें) में वृहस्पति की हवा का असर गिना गया है क्योंकि हर खाली जगह में हवा जरूर होगी।



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