वास्तु सीखें
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प्रमोद कुमार सिन्हा
व्यूस : 2364 | मई 2011

प्र0: भवन में बोरिंग या जल की व्यवस्था किस स्थान पर करना सर्वश्रेष्ठ होता है ?

उ0: भवन में बोरिंग या जल की व्यवस्था उत्तर-पूर्व, पूर्व या उत्तर भाग में करना सर्वश्रेष्ठ होता है। इसके अलावा पश्चिम में भी बोरिंग करना लाभप्रद होता है। भवन के उत्तर-पूर्व में गहरा तालाब, गढ्ढा, कुंआ या बहता दरिया हो तो उनके घर में समृद्धि एवं धन-दौलत की वृद्धि होती है तथा उस स्थान पर रहने वाले व्यक्ति प्रसिद्ध, सम्मानित, प्रतिष्ठित और सभी के प्यारे बन जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों का सम्मान राजा, मंत्री एवं रईसों द्वारा होता है। उत्तर-पूर्व, पूर्व या उत्तर दिषा में नल, ट्यूबवैल लगवाना, अंडरग्राउंड टैंक बनवाना बडी़ दौलत को अपने जीवन में भोगने के लिए आकर्षित करता है। गरीबी, कर्ज, महापातकी, बीमारी, धन संबंधी अनेक रूकावटंे खत्म होती है और बिना किसी विलंब के समस्याओं का समाधान होता है। साथ ही प्रत्येक प्रकार के कर्ज, मुकदमे आदि की समस्या का तुरंत समाधान हो जाता है। थोडी सी मेहनत करने पर ज्यादा सफलता मिलती है। यदि घर का उत्तर-पूर्व का स्थल नीचा, खुला, पानी भरा हो तो बडे़-बडे़ सुख उस मकान में रहने वाले भोगते हैं। भवन के उत्तर और पूर्व दिषा में नल या टैंक हो तो लक्ष्मी प्रसन्न होकर सभी कुछ दे देती है। अर्थात् घर में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा एवं सुखों की प्राप्ति होती है।

प्र0 - मूल ईशान पर बोरवेल, कुंआ या भूमिगत टैंक बनाना कैसा होता है।

उ0- मूल ईशान पर बोरवेल, कुॅंआ या भूमिगत टैंक बनाना अनिष्टकारी होता हैं। फलस्वरूप फैसले में विवेकहीनता झलकती है और व्यक्ति पतन की ओर जाता है। चित्रानुसार भूखण्ड के तीन-तीन हिस्से कर लिये गये है। उदाहरण के लिए 60ग60 मीटर अर्थात् कुल 3600 वर्ग मीटर का भूखण्ड लिया गया है। उत्तर-पूर्व की कुल लम्बाई को 20-20 मीटर के तीन बराबर हिस्सों में बाॅंट दिया गया है। ईशान कोण से प्रथम 20 मीटर ईशान क्षेत्र है। दूसरा क्षेत्र मूल पूर्व है। तीसरा अग्नि क्षेत्र है। इसी तरह ईशान से उत्तर की ओर ईशान क्षेत्र मूल, उत्तर और वायव्य क्षेत्र है। तदुपरांत ईशान को दो बराबर भागो में बाॅटा गया है। इस प्रकार 10 10 स्थान मूल ईशान होगा जहाॅं पर बोरवेल, कुॅंआ या भूमिगत टैंक बनाना अनिष्टकारी होता है।

प्र0- घर के मध्य भाग में बोरिंग या कुंए का क्या फल होता है ?

उ0- घर के मध्य भाग में बोरिंग, कुंएं या अंडरग्राउण्ड पानी की व्यवस्था नही रखनी चाहिए। अन्यथा धन, काम-काज, कारोबार सब खत्म हो जाता है। गरीबी और कर्ज साथ देने लगते है। धोखा, छल-कपट, खून-खराबा, मुकदमा आदि का सामना करना पड़ता है। भगवान रूठ जाते हैं तथा भाग्य सो जाता है। परिवार का नाश होता है। कोई भी व्यक्ति उस स्थान पर दीर्घकाल तक नहीं रह सकता, जीवन अस्त-व्यस्त बना रहता है। उक्त सारे नियम न केवल आवासीय मकान के लिए बल्कि व्यवसाय एवं रोजगार वाले मकान, अस्पताल, मंदिर आदि पर भी लागू होते हैं।

प्र0- कुंआ, हैंडपंप या पानी की टंकी आग्नेय कोण में कैसा फल देती है ?

उ0- कुंआ, हैंडपंप या पानी की टंकी आग्नेय कोण में अच्छा फल नही देती है। आग्नेय क्षेत्र में रहने पर संतान को खतरा, धन एवं प्रतिष्ठा में नुकसान आदि की संभावना बनी रहती है। पानी और आग दो विपरीत तत्व हैं जो एक साथ होकर जीवन को पूर्णतः कलह एवं परेशानियों से युक्त बना देते हैं। इस क्षेत्र में जल स्रोत का होना कर्ज में वृद्धि का कारक होता है। स्त्रियां, पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा कष्ट में रहती हैं।

प्र0- कुंआ, हैंडपंप या पानी की टंकी नैर्ऋत्य कोण में कैसा फल देती है ?

उ0- पानी का स्थान नैर्ऋत्य दिशा में हो तो गृहस्वामी एवं उसके परिजनों को असाध्य बीमारियों के कारण आकस्मिक मृत्यु होती है। झगड़े होते रहते हैं और हर कार्य में असफलता मिलती है। इसके अतिरिक्त धन में कमी के साथ-साथ आत्महत्या, दुर्घटना, कलह आदि के कारण परिवारजनों में बिखराव की स्थिति बनती हैं।

प्र0- कुॅंआ, हैंडपंप या पानी की टंकी वायव्य कोण में कैसा फल देती है ?

उ0- कुंआ, हैंडपंप या पानी की टंकी घर में यदि वायव्य दिशा में हो तो गृहस्वामी को शत्रुपीड़ा होती है एवं चोरी का भय बना रहता है। यदि ठीक वायव्य कोण में हो तो गृहस्वामी की स्त्री अकाल मृत्यु की शिकार होती है। इसके अतिरिक्त घर में कलह बना रहता है।

प्र0- छत पर ओवरहेड टैंक किन-किन स्थानों पर रखना चाहिए?

उ0- ओवरहेड टैंक हमेंशा पश्चिम, पश्चिमी नैर्ऋत्य, दक्षिणी नैर्ऋत्य या पश्चिमी वायव्य की ओर रखना चाहिए। इन स्थानों पर पानी का ओवरहेड टैंक धन की स्थिरता एवं आय के नये स्रोत देने में मदद करता है। इसके अलावा कहीं पर भी यह अच्छा फल नहीं देता है।

प्र0- छत पर ओवरहेड टैंक किन-किन स्थानों पर नही रखना चाहिए ?

उ0- छत के ऊपर पानी का टैंक मकान के बीचो-बीच अर्थात् ब्रह्म स्थान पर नहीं रखना चाहिए, अन्यथा जीवन असहाय-सा महसूस होने लगता है। इसे ईशान क्षेत्र में भूल कर भी नहीं रखना चाहिए अन्यथा आर्थिक हानि एवं दुर्घटना का भय बना रहता है। यदि किसी कारण इस क्षेत्र में टैंक बनाना हो तो वायव्य, आग्नेय एवं नैर्ऋत्य क्षेत्र में निर्माण कार्य अपेक्षाकृत ऊंचा करना चाहिए। इससे ईशान क्षेत्र के दुष्परिणाम से काफी हद तक बचा जा सकता है। उत्तर में पानी का टैक कर्ज में वृद्वि करता है, साथ ही आर्थिक रूप से फटेहाल एवं तंगहाल बना देता है।

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