लाल किताब
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लाल किताब  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 16721 | आगस्त 2010

प्रश्नः लाल किताब का ज्योतिषीय -आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व क्या है?

इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं हेतु उपयोगी टोटके एवं उपायों का वर्णन फल सहित करें। लाल किताब फलित ज्योतिष एवं सरल-अचूक टोटके व उपाय का ग्रंथ है। इसी को ‘अरुण संहिता’ के नाम से भी जाना जाता है। इस संदर्भ में ऐसी मान्यता है कि ‘लाल किताब’ या ‘अरुण संहिता’ का ज्योतिषीय ज्ञान असुरराज रावण ने प्रत्यक्ष परमात्मा सूर्य देव के सारथी ‘अरुण’ से देव भाषा में सदियों पूर्व प्राप्त किया था। आदिदेव सूर्यनारायण की एक-एक किरण एक-एक नाड़ी है, जिसके कारण मनुष्य के भीतर शक्ति का प्रभाव सदा बना रहता है।

सारथी अरुण को ‘लाल किताब’ का दार्शनिक ज्ञान प्राप्त हुआ परंतु कालांतर में यह दुर्लभ ग्रंथ अरब देश के ‘अद’ नामक शहर में पहुंच गया। वहां इसका अनुवाद अरबी (उर्दू) भाषा में हुआ। ‘लाल किताब’ ‘भृगुसंहिता’ के समान ही उर्दू भाषा में लिखी गई एक ज्योतिषीय रचना है। इसका मूल लेखक कौन हैं? यह भी आज विवाद का विषय है, फिर भी कहा जाता है कि फरवाला गांव (पंजाब) के निवासी ‘पंडित रूपचंद जोशी’ इसके मूल लेखक हैं। सर्वप्रथम 1939 में लाल किताब के सिद्धांतों को उन्होंने एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया, जिसमें लेखक एवं प्रकाशक के स्थान पर पं. गिरधारी लाल शर्मा का नाम छपा था।


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पं. रूपचंद्र जोशी सेना में काम करते थे, इसलिए ‘उर्दू में किताब लिखने से उन्हें अंग्रेज सरकार से उत्पीड़न की आशंका थी। उन्होंने अपने किसी रिश्तेदार के नाम से इस पुस्तक का प्रकाशन कराया। पं. रूपचंद्र जोशी ने लाल किताब कैसे लिखी? इस बारे में कहा जाता है कि सेना में नौकरी के दौरान जब वे हिमाचल प्रदेश में तैनात थे, तो उनकी मुलाकात एक ऐसे सैनिक से हुई जिसके खानदान में पीढ़ी दर पीढ़ी ज्योतिष का कार्य होता था। उसने एक अंग्रेजी अफसर को अपने पुश्तैनी ग्रंथ के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं बतायीं। इनसे प्रभावित होकर अंग्रेज अफसर ने उस जवान से उसके द्वारा बताई गई बातों के सिद्धांतों वाली पुस्तक लाने को कहा तथा उस जवान से उस पुस्तक के सिद्धांतों को नोट करवा लिया।

जब यह रजिस्टर अंग्रेज अफसर को मिला तो रूपचंद्रजी को उसे पढ़ने के लिए बुलवाया गया। उन्होंने उन सिद्धांतों को पढ़कर पृथक-पृथक रजिस्टरों में नकल कर लिया। बाद में रूपचंद्र जोशी ने इस पुस्तक के सिद्धांत एवं रहस्य को पूर्ण रूप से समझकर प्रथम बार 1939 ई. में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। ‘अमृतसर’ के कलकत्ता फोटो हाउस द्वारा प्रकाशित लाल किताब के प्रकाशक के स्थान पर ‘शर्मा गिरधारी लाल लिखा था, यही नाम लेखक के लिये प्रयुक्त किया गया था। लाल किताब के संबंध में कितनी ही किंवदन्तियां हंै।

‘‘लंकापति रावण ने सूर्य देवता के सारथी एवं गरुड़ के छोटे भाई ‘अरुण’ (अपने ललाट पर अर्ध चंद्राकार कमल धारण किये हुए) से अत्यंत श्रद्धा-भक्ति के साथ यह लाल किताब का ज्ञान प्राप्त किया था। रावण की तिलिस्मी दुनिया का अंत होने के पश्चात् यह ग्रंथ किसी प्रकार अरब देश में ‘।।क्श् नामक स्थान पर पहुंच गया जहां इसका उर्दू या अरबी भाषा में अनुवाद हुआ। दूसरी किंवदंती के अनुसार सदियों पहले भारत से अरब देश गए, एक महान ज्योतिर्विद ने वहां की संस्कृति और परिवेश के अनुरूप इसकी रचना की थी जबकि सच्चाई के लिये विविध मत् प्रचलित है।


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फिर भी ‘लाल किताब’ में गुह्य व गहन-टोटका -ज्योतिष एवं उपचार विधि-विधान की अतिन्द्रिय शक्ति छिपी हुई है, जो जातक या मानव मन की गहराई में झांककर विभिन्न गोपनीय रहस्यों को भविष्य कथन के रूप में प्रकट करती है। अतः भविष्य के गर्भ में छिपे रहस्यों को इस विधा द्वारा सहजता से जाना जा सकता है। प्राचीन काल में ज्योतिषियों की भविष्यवाणी की प्रक्रिया पहेलीनुमा व उलझी हुई, भाषा में होती थी। संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं में मंदिर के पुजारी या देवता पीर औलिया फकीर साधक लाल किताब के अनुसार भविष्यवाणियां करते थे, इस भविष्यवाणी के संबंध में इतिहास साक्षी है।

यूनान के सागर तटीय क्षेत्र एथेंस के निकट डेल्फी नामक पर्वतीय अंचल में अपोलो देवता का मंदिर विद्यमान था, जिसके भग्नावशेष आज भी उस समय की कहानी को दोहराते हैं जिसने एक नया इतिहास रचा। ईसा पूर्व की चैथी सदी में ‘डेल्फी की पुजारिनें विशेष दिनों में लाल किताब के अनुसार भविष्यवाणी का कार्य करती थीं, जिन्हें ‘पायथिया’ कहा जाता है। वे हाथ की रेखाओं के आधार पर निर्मित जन्मकुंडलियां देखकर भविष्यवाणी करती थीं।

उन्हीं दिनों रोम के सम्राट ‘नीरो’ के मन में भी डेल्फी के पायथिया से अपना भविष्य जानने की इच्छा हुई, अतः वह काफी प्रयास के बाद लंबी यात्रा करके डेल्फी पहुंचा। नीरो को जब अपोलो के पवित्र मंदिर में प्रवेश करते देखा तो उस मंदिर में मौजूद पायथिया जोर से चीख पड़ी और बोली ‘‘चला जा यहां से, माता के हत्यारे लेकिन ‘73’ से बचकर रहना। मैं कह देती हूं, यह 73 तुझको खत्म कर देगा। कहते हैं कि इस अपमान से नीरो क्रोधित हो उठा। उसने अपने सैनिकों को डेल्फी की सारी पुजारिनों एवं भविष्यवाणी करने वाली पायथियों के हाथ-पांव काटकर उन्हें जमीन में जिंदा दफन करने का आदेश दे दिया उसने अपोलो मंदिर को भी तहस-नहस कर दिया। नीरो ने सोचा था कि उस पुजारिन ने उसकी उम्र 73 वर्ष बताई है।

लेकिन उस पुजारिन के कहने का आशय कुछ और ही था। नीरो की हत्या करके जिसने राजगद्दी हथियाई थी वह था ‘गल्बा’ और उसकी उम्र 73 वर्ष की थी। उसी गल्बा ने 73 वर्ष पूरे होने से पहले ही नीरो की हत्या कर दी थी। ईश्वर और भाग्य के प्रति जीवन भर आस्था रखने वाले रोमन दार्शनिक सिसरो ने अपने संस्मरण में लिखा है कि ‘डेल्फी की खुशहाली रौनक और रूतबा वहां मौजूद भविष्यवक्ताओं की आश्चर्यजनक प्रतिभा के कारण है।


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इस संबंध में एक अंतिम भविष्यवाणी सन् 362 में की गई थी। रोम के एक व्यक्ति ‘हैड्रियन’ ने सोचा कि पायथिया से सम्राट बनने के बजाय कोई दूसरा आशीर्वाद न मिल जाए, इसलिए उसने गुस्से से सब कुछ नष्ट कर डाला। उसकी अभिलाषा थी कि रोम के सम्राट जूलियन को उतारकर वह खुद सम्राट बनकर राज करे। इसी दौरान सम्राट जूलियन ने अपने निजी चिकित्सक को ‘डेल्फी भेजा। वहां एक पुजारिन ने उसको मंदिर का भग्नावशेष दिखाते हुए कहा था, ‘‘रोमन साम्राज्य शीघ्र ही धूल धूसरित होने को है। इस तरह डेल्फी की अंतिम पुजारिन की भविष्यवाणी भी सत्य सिद्ध हुई। अज्ञात भविष्य को जानने की इच्छा मनुष्य में सदा से ही रही है।

भारतीय संस्कृति में भविष्य को जानने के लिए कई विधियों की खोज की गई। जिसमें ज्योतिष विद्या की विभिन्न शाखाओं में ‘लाल किताब’ का अनुपम स्थान है। वर्तमान में लाल किताब ज्योतिषियों में ग्रहों के दुष्प्रभाव निवारण एवं शुभ प्रभाव बढ़ाने के उपायों के लिये सर्वाधिक जानी पहचानी किताब है, क्योंकि लाल किताब में लिखा है कि ‘‘न गिला तदबीर अपनी न ही खुद तहरीर हो। सबसे उत्तम लेख गैबी, माथे की लकीर हो।। लाल किताब के फलों के अध्ययन के लिए लाल किताब के आधार पर कुंडली निर्माण होना बहुत आवश्यक है। तभी लाल किताब के अनुसार व्यक्ति का जीवन भर का हाल ज्ञात कर सकते हैं।

वर्तमान में लाल किताब से कौन अपरिचित है। वह प्राचीन फलित ज्योतिष का ही फारसी का उर्दू भाषा का एक ग्रंथ है। इस ग्रंथ के उपायों में मुख्य रूप से व्यक्ति का चरित्र और व्यवहार को प्रमुखता दी गई है। समय के साथ-साथ लाल किताब के उपायों में लोगों का विश्वास बढ़ा है और आज हम जाने-अनजाने इसके उपायों को जीवन में अपनाते ही हैं।

‘लाल किताब’ की भाषा मिश्रित है, इसमें कहीं उर्दू का तो कहीं शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया गया है, फिर भी प्रायः सभी ज्योतिषी एवं जानकार लोग इसकी सहायता लेते हैं। ‘‘कौन व्यक्ति होगा जो रेल में बैठा हो और गाड़ी यदि गंगा-यमुना नदी के ऊपर से जा रही हो तो उसमें कुछ सिक्का न डाला हो।’’ अगर इतिहास पर खुले दिमाग से नजर डालें तो समझ सकते हैं कि भारत वर्ष लगभग 2500 वर्ष तक गुलामी में रहा भारत आर्यों का देश था और है। इस कारण भारतवर्ष ऋषियों की भूमि थी और आज भी है। अंग्रेजी का शब्द रिसर्चर इसी का पर्याय है। भारतवर्ष इन्हीं ऋषियों के कारण बौद्धिक संपदाओं, वेदों व ज्योतिष ग्रंथों व उत्तम शिक्षा के कारण विश्व में अग्रणी था। भारत जब गुलाम हुआ तो आक्रमणकारियों ने संपदा तो लूटी साथ ही साथ अधिकांश को नष्ट भ्रष्ट कर दिया।


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जिसमें लालकिताब भी एक अंश है। यवन इस ज्योतिषीय अंश को अपने साथ ले गए और इसे फारसी में तथा अपने धर्मानुसार तथा दशा काल के अनुसार परिवर्तित कर लोकप्रिय बनाया। पंडित जी ने इसके मूलरूप फारसी संस्करण को उर्दू में अनुवादित कर व इसमें संशोधन कर लाल किताब का रूप प्रस्तुत किया। इसी कारण लाल किताब के अंदर उर्दू फारसी के साथ-साथ पंजाबी संस्कृत व अंग्रेजी के भी बहुत से शब्द प्रयुक्त हंै। लाल किताब विशुद्ध रूप से वैदिक है

जिसे यवनों ने अपने अनुसार ढाला इस बात को सिद्ध करने के लिये लाल किताब में बहुत सारे प्रमाण उपस्थित हैं जैसे कि हिंदू देवी देवताओं के नाम का आना पीपल, बट वृक्ष जो हिंदू संस्कृति में बहुत पूजनीय है का बार-बार जिक्र होना आदि अनेकानेक उदाहरण हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि लाल किताब का भारतीय आध्यात्म व प्राचीन ग्रंथों से एक जुड़ाव है। उदाहरण के लिए लालकिताब ज्योतिष व पराशर ज्योतिष में कई समानताएं हैं। इसमें भी जन्म पत्रिका का विश्लेषण व गणना उसी रूप से की जाती है जैसे पराशर ज्योतिष में। लेकिन ये पराशर ज्योतिष की तरह अधिक गणितीय व कठिन नहीं है। यह जन सामान्य के लिए एक सरल ज्योतिषीय उपचार प्रदान कराने वाली व सरल उपायों से ग्रहों को खानों में बदलने का सिद्धांत है जबकि पराशर ज्योतिष में भावों की सर्वप्रथम व उसके बाद ग्रहों की सबसे अधिक महत्ता है राशियांे का स्थान इन से कम है।

क्योंकि राशियां केवल ग्रह की शक्ति को जानने के काम आती हैं। अर्थात् यह उच्च का है या नीच का, मित्र है या शत्रु, फल सकारात्मक देगा या नकारात्मक आदि। जबकि लालकिताब में केवल भावों को ही मुख्य स्थान दिया गया है तथा भावों को खानों के नाम से जाना गया है। जबकि राशियों को यहां नगण्य मान दिया गया है। लाल किताब में लग्न कुंडली बना कर उसमें राशियों के स्थान पर खाना संख्या 1 से 12 तक डाल दिए जाते हैं। इस बात को भली प्रकार समझने के लिए एक उदाहरण दिया जा रहा है। इस प्रकार यह मालूम पड़ता है

कि ग्रह किस भाव में है और क्या फलित करेगा। उदाहरण के लिए किसी जातक का लग्न कर्क है और तृतीय भाव में बुध कन्या का है तो उसे उच्च का न मानकर तृतीय भाव में बुध स्थित है इसका फलित करेंगे। अर्थात लाल किताब में राशियों व ग्रहों के पक्के घर (भाव) निश्चित किए गये हैं। लाल किताब में लग्न या अन्य भावों में आने वाली राशियों के स्थान पर उन ग्रहों की उपस्थिति मान ली गई है जो कि उन भावों के कारक हैं


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जैसे पहला घर सूर्य का पक्का घर, दूसरा घर गुरु का, तीसरा घर मंगल का, चैथा घर चंद्रमा का, पांचवां घर गुरु का, छटा घर बुध व केतु का, सातवां घर शुक्र व बुध का पक्का घर, आठवां घर मंगल व शनि का पक्का घर, नौवा घर गुरु का, दसवां घर शनि का, ग्यारहवें घर को गुरु का और बारहवें घर को राहु का पक्का घर माना गया है और ऐसा सिद्धांत प्रतिपादित कर विभिन्न ग्रहों का विविध घरों की स्थिति के अनुसार फलित किया गया है।

लाल किताब में फलादेश कथन के लिये यह मान लिया गया है कि जन्म पत्रिका में लग्न चाहे कोई भी हो उसको मेष, द्वितीय भाव को वृष, तृतीय में मिथुन, चतुर्थ में कर्क, पंचम में सिंह, षष्टम में कन्या, सप्तम में तुला, अष्टम में वृश्चिक, नवम में धनु, दशम में मकर, एकादश में कुंभ एवं द्वादश भाव में मीन राशि माना जाता है। लाल किताब में दशा चाहे वह विंशोत्तरी हो या योगनी आदि का प्रयोग कहीं नहीं है बल्कि ग्रहों को वर्ष संख्या प्रदान की गयी है। अब बात करते हैं

लाल किताब के मूल अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतों की जिनके बिना लाल किताब को समझा नहीं जा सकता। लाल किताब में फलित समझाते समय सामान्य कष्ट की अपेक्षा अधिक कष्ट की चर्चा अधिक की गयी है। जब वर्षफल की कुंडली बनाई जाती है तब जन्मकुंडली में एक साथ बैठे ग्रह वर्षफल कुंडली में उसी रूप में ग्रहण किये जाते हैं, केवल भाव (घर) बदलता है। ग्रहों को बंधन में नहीं रखा गया है।

सूर्य-बुध, सूर्य-शुक्र या राहु-केतु वर्षकुंडली में कहीं भी हो सकते हैं। लाल किताब के अनुसार ब्रह्मांड के रिक्त आकाश में बुध का प्रभाव है। जहां सर्वत्र शनि यानि अंधेरा मान कर उसमें प्रकाश यानि सूर्य की उर्जावान रश्मियांे का प्रादुर्भाव हुआ। प्रकाश व अंधेरे के साथ-साथ हवा (वायु) रूपी गुरु भी है। हम जानते हैं कि वायु को अंधेरे या प्रकाश की कोई आवश्यकता नहीं है यह दोनों स्थानों पर सुगमता से विचरण करती है तथा दोनों स्थानों पर रहती है। ‘लाल किताब’ पद्धति व ‘पराशर पद्धति’ की समानताएं: ‘लाल किताब’ पद्धति व ‘पराशर पद्धति’ में कई समानताएं हैं। ‘लाल किताब’ पद्धति में जन्मपत्री की गणना उसी रूप से की जाती है जैसे पराशर पद्धति में। ‘लाल किताब’ की पद्धति को पाराशरी रूप का सरलीकरण भी कहा जाता है। पाराशरी पद्धति में ग्रहों का विशेष महत्व होता है। उसके पश्चात भावों को तथा राशियों को भी महत्व दिया जाता है।


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ग्रहों का फल अधिकतर उसके भावों पर निर्भर करता है। ग्रहों का फल उसके द्वारा दृष्टि पर भी निर्भर करता है। इसी तथ्य को महत्व देते हुए ‘लाल किताब’ में केवल भावों को माना गया है। ग्रहों की दृष्टि: (पाराशरी पद्धति तथा लाल किताब पद्धति) पराशरी पद्धति के अनुसार एक ग्रह की दृष्टि सातवें भाव पर होती हैं पर मंगल की दृष्टि चैथी तथा अष्टम भाव पर भी होती है। गुरु की दृष्टि पंचम भाव तथा नवम् भाव पर भी होती है

तथा शनि की दृष्टि तृतीय भाव तथा दशम भाव पर भी होती है। ये दृष्टियां 100 प्रतिशत होती है। दूसरी ओर ‘लाल किताब’ में कुछ विशेष दृष्टियां हैं- टकराव, नींव, विश्वासघात, सांझी दीवार और अचानक चोट।

टकराव कुंडली: टकराव कुंडली का अर्थ है कि ग्रह अपने से आठवें खाने के ग्रह को ऐसी टक्कर मारते हैं कि जड़ तक हिला देते हैं।

नींव: नींव से तात्पर्य है ग्रह चाहे मित्र हो या शत्रु परस्पर सहायता देंगे। नींव की सहायता अपने से नौवें भाव में होती है।

विश्वासघात: विश्वासघात का अर्थ है कि ग्रह अपने से दसवें से विश्वासघात करेगा। विश्वासघात ग्रह दुगुनी शक्ति के होते हैं ।

सांझी दीवार: सांझी दीवार से तात्पर्य है कि अलग-अलग भावों में स्थित ग्रह परस्पर एक ही होते हैं। शत्रु ग्रह एक दूसरे से अलग-अलग रहते हैं तथा एक दूसरे से लड़ नहीं सकते। सांझी दीवार साथ वाले खाने (भाव) के साथ होती है।

अचानक चोट: अचानक चोट से तात्पर्य यह है कि ग्रह परस्पर मित्र हों या शत्रु अचानक ऐसी चोट मारेंगे कि चोट खाने वाला ग्रह यह भी नहीं जान सकता कि चोट किसने मारी। अचानक चोट ऐसी होगी कि मानो अनायास हानि हो गई जिसकी कोई आशा नहीं थी।

साथी ग्रह: जब ग्रह निज खाना छोड़कर किसी और ग्रह के भाव मंे स्थित हो तो वह साथी ग्रह कहलाते हैं। जैसे गुरु बारहवें भाव का स्वामी है और गुरु पहले भाव में स्थित है तथा पहले खाने का स्वामी मंगल बारहवें खाने (भाव) में स्थित हो तो गुरु मंगल साथी ग्रह कहे जाएंगे।

धार्मिक ग्रह: राहु-केतु चैथे भाव में या चंद्र के साथ किसी भी खाने में हों और शनि ग्यारहवें खाने में या गुरु के साथ किसी भी खाने में हो तो पापी ग्रह (राहु, केतु, शनि) का कुप्रभाव नहीं होगा। क्योंकि इन स्थितियों में ग्रह धार्मिक हो जाते हैं। वे कुप्रभाव नहीं देते पर वे शुभ फल भी दे ऐसा संभव नहीं।

रतान्ध ग्रह: चैथे भाव में सूर्य और सातवें भाव में शनि ग्रह रतान्ध ग्रह कहलाता है।


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अंधा ग्रह: यदि दसवें भाव में शत्रु ग्रह स्थित हों या नीच ग्रह से प्रभावित हो तो शनि सहित सभी ग्रह चाहे उच्च भावस्थ हों अंधे ग्रह की तरह फल प्रदान करेंगे।

शंकित ग्रह: जब कोई ग्रह अपने खाने, उच्च राशि, स्थाई खाने को छोड़कर किसी अन्य खाने में स्थित हो जाय तब उसे ‘शंकित ग्रह’ कहेंगे।

सोया हुआ ग्रह: जिस घर (खाने) में कोई ग्रह स्थित हो, उसके सामने वाले खाने अर्थात् सातवें खाने में यदि कोई ग्रह न हो तो वह ग्रह सोया हुआ ग्रह कहलाता है। यदि उच्चस्थ ग्रह भी इस प्रकार हो तो भी वह पूर्ण फल नहीं दे सकता।

‘लाल किताब’ के उपायों के प्रकार:

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के उपायों को जब भी बात होती है तो ‘लाल किताब’ का नाम सबसे पहले आता है। लेकिन एक प्रश्न आम तौर पर किया जाता है कि किस उपाय से कोई फायदा हो सकता है?

रात के अंधेरे से बचने के लिए हर कोई एक उपाय करता है । इसके किसी प्रकार के प्रकाश के स्रोत का प्रयोग जैसे विद्युत लैंप, मोमबत्ती अथवा लालटेन। सर्द ऋतु से बचने के लिए हम गर्म कपड़े पहनते हैं। गर्म कपड़े सर्दी से बचने का एक उपाय है, चाहे वह स्वेटर हो, कोट हो, शाल हो अथवा कोई भी गर्म कपड़ा। अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए हर मनुष्य भिन्न-भिन्न उपाय करता है। ‘लाल किताब’ के उपायों को मुख्य रूप से चार किस्मों में बांटा जा सकता है।

पहली किस्म के उपाय आम उपाय हैं जो सभी करते हैं जैसे गाय को अपने भोजन का पहला ग्रास देना, परेशानी से बचने के लिए नारियल नदी में बहाना, बीमारी से बचने के लिए हलवा, कद्दू धर्म स्थान में देना। दूसरी किस्म के उपाय कुंडली में मंदे ग्रह की स्थिति के अनुसार होते हैं। इसके लिए कुंडली का अध्ययन करके कौन सा ग्रह किस खाने में बुरा असर डाल रहा है जैसे राहु खाना नं. 8 में हो तो सिक्का पानी में बहाना चाहिये, मंगल खाना नं. 8 के लिये, किसी विधवा (बेबा) से दुआ लेना, बुध खाना नं. 8 के लिए नाक छेदन से, शनि खाना नं. 6 में हो तो तेल की कुज्जी पानी की तलहटी के नीचे दबाने से, शनि खाना नं. 1 के लिए सुरमा जमीन में दबाने से कुछ लाभ होता है।


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तीसरी किस्म के उपाय में फौरन उपाय - जब किसी मंदे ग्रह का उपाय काम न करे तो कुछ घंटों के अंदर उसका फौरन उपाय किया जाता है। जैसे सूरज के लिए गुड़, मंगल के लिए रेवड़ियां, बुध के लिए तांबे का पैसा, राहु के लिए कोयला दरिया में बहाना लाभदायक होता है। चैथी किस्म के उपाय में पूर्व जन्म के ऋण के उपाय आते हैं- इन उपायों की आवश्यकता कम ही पड़ती है। पितृ ऋण का अर्थ है

कि जातक पर अपने बुजुर्गों के पापों का गुप्त असर पड़ता है। इसका अर्थ है कि कई बार अपने बुजुर्गों के पापांे का असर जातक के जीवन पर भी पड़ता है। जैसे घर में कोई दुर्घटना हो जाए तो उसका असर जातक पर सबसे अधिक पड़ता है। पर उसके दुख से उसके सगे संबंधी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते अर्थात पापों का असर सगे संबंधियों पर भी अवश्य पड़ता है। इसी प्रकार कई पापों का असर कई बार भावी पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ता है। जैसे द्वितीय, पांचवें, नौवें और बारहवें खाने में शुक्र, बुध या राहु है तो पितृ ऋण होता है।

इस कष्ट से पीड़ित व्यक्ति को वृद्धावस्था में कष्ट मिलते हैं। इसी प्रकार धन हानि, आदर सम्मान न मिलना इसी प्रकार के अन्य कष्ट हैं। इनसे मुक्ति पाने के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर मात्रा धन ले कर किसी शुभ कार्य के लिए दान देना चाहिए। कुछ मुख्य पूर्व जन्म के ऋण इस प्रकार हैं- स्वऋण, मातृऋण, बहन ऋण, पितृ ऋण, स्त्री ऋण, ईश्वरीय ऋण, सगे संबंधियों का ऋण, अजन्मे का ऋण।

स्व ऋण: जन्म कुंडली में पांचवंे खाने में पापी ग्रहों का होने से स्वऋण होता है। इसके प्रभाव के कारण जातक चाहे निर्दोष भी हो तो भी दोषी माना जाता है।

इसलिए जातक को शारीरिक कष्ट मिलता है। उसे हर कार्य में संघर्ष करना पड़ता है। जातक कोे मुकदमे में हार मिलती है। स्वऋण से मुक्ति पाने के लिए जातक को अपने सगे संबंधियों से बराबर का धन लेकर उस धन राशि से यज्ञ करना चाहिए।

मातृ ऋण: चैथे खाने में केतु होने से मातृ ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक को धन हानि होती है।जातक रोग ग्रस्त भी हो जाता है। उसे धन कमी के कारण यदा-कदा ऋण भी लेना पड़ता है। जातक को हर काम में असफलता का मुंह देखना पड़ता है। मातृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए जातक को खून के संबंधियों से बराबर चांदी लेकर बहते पानी में बहाना चाहिये।

बहन ऋण: यदि कुंडली के तीसरे या छठे भाव में चंद्रमा हो तो बहन ऋण होता है। ऋण के कारण जातक का जीवन संघर्षमय हो जाता है। जातक के जीवन में आर्थिक परेशानी रहती है। इस ऋण से मुक्ति पाने के लिए जातक को परिवार के सदस्यों से बराबर-बराबर मात्रा में पीले रंग की कौड़ियां लेकर उन्हें जला कर उनकी राख चलते पानी में प्रवाहित करना चाहिए।


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स्त्री ऋण: यदि दूसरे और सातवें खाने में सूर्य, चंद्र या राहु हो तो स्त्री ऋण होता है। इस ऋण के कारण जातक को अनेक दुखों का सामना करना पड़ता है और शुभ कार्यों में विघ्न आ जाता है। इस ऋण से मुक्ति पाने के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर मात्रा में धन लेकर गायों को भोजन करवाना चाहिए।

ईश्वरीय ऋण: यदि छठे खाने में चंद्र या मंगल हो तो ईश्वरीय ऋण होता है इस ऋण के फलस्वरूप जातक का परिवार नष्ट हो जाता है। धन-धान्य की हानि से जातक को जूझना पड़ता है। बंधु-बांधव विश्वासघात करते हैं। इस ऋण से मुक्ति पाने के लिए घर के सदस्यों से बराबर मात्रा में धन लेकर कुत्तों को भोजन करवाएं।

सगे संबंधियों का ऋण: पहले या आठवें खाने में बुध व केतु हो तो सगे-संबंधी का ऋण होता है। जातक को कम सफलता मिलती है। इस ऋण से मुक्ति पाने के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर का धन लेकर किसी शुभ कार्य में दान देना चाहिए।

अजन्मे का ऋण: यदि बारहवें खाने मंे सूर्य, शुक्र या मंगल हो तो अजन्में का ऋण होता है। उसे जेल भी जाना पड़ सकता है जातक शारीरिक चोट से ग्रस्त रहता है। इस ऋण से मुक्ति पाने के लिए जातक को परिवार के सदस्यों से एक एक नारियल लेकर दान दें इसमें अजन्में के ऋण मुक्ति मिल जाती है।

कुछ अन्य उपाय: पूजा द्वारा ग्रहों के उपाय: ‘लाल किताब’ के अनुसार विभिन्न ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाते हैं।

सूर्य - हरिवंश पुराण का पाठ व सूर्य देव की उपासना।

चंद्र: शिव चालीसा व सुंदर कांड का पाठ

बुध: दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ

गुरु: श्री ब्रह्मा जी की उपासना व भागवत पुराण का पाठ

शुक्र: लक्ष्मीजी की उपासना व शराब से सूक्त का पाठ

शनि: श्री भैरव जी की उपासना व शराब से परहेज

राहु: सरस्वती जी की उपासना

केतु: श्री गणेश जी की उपासना दान द्वारा ग्रहों के उपाय:

‘लाल किताब’ के अनुसरार खराब ग्रहों के दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए निम्नलिखित वस्तुओं का दान करना चाहिये।

सूर्य: तांबा, गुड़ व गेहूं चंद्र: चावल, दूध, चांदी या मोती मंगल: मूंगा, मसूर की दाल, खांड सौंफ बुध: हरी घास, साबुत मूंग, पालक गुरु: केसर हल्दी, सोना, चने की दाल शुक्र: दही, खीर, ज्वार से सुगंधित वस्तु शनि: साबुत उड़द, लोहा, तेल या तिल राहु: सिक्का, जौ या सरसों। केतु: केला, तिल का काला कंबल ग्रहों को अलग-अलग खानों में पहुंचाने का तरीका ‘लाल किताब’ के अनुसार किसी भी संबंधित ग्रह की महादशा में जो अंतर्दशा चल रही हो उस ग्रह को अच्छे घर में स्थापित कर देने से मनचाहा फल प्राप्त किया जा सकता है। यदि वह अपने पक्के खाने का नहीं हो तो अवश्य ही फल देगा।


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ग्रहों को अलग-अलग भावों में पहुंचाने की विधि इस प्रकार है- जिस ग्रह को पहले खाने में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को गले में धारण करना चाहिए। जिस ग्रह को दूसरे खाने में पहुंचाना हो। उस ग्रह से संबंधित चीजों को मंदिर, गुरुद्वारे में दान देनी चाहिये। जिस ग्रह को तीसरे खाने में पहुंचाना हो उसकी चीजें नग के रूप में या धातु के रूप में हाथ में धारण की जानी चाहिये। जिस ग्रह को चैथे खाने में पहुंचाना हो उस ग्रह से संबंधी चीजें बहते पानी में बहानी चाहिए।

जिस ग्रह को पांचवें खाने में पहुंचाना हो उसकी चीजें स्कूल में दान करनी चाहिये। जिस ग्रह को छठे खाने में पहुंचाना हो उस ग्रह से संबंधित वस्तुएं कुएं में डालनी चाहिये। जिस ग्रह को सातवें खाने में पहुंचाना हो उस ग्रह से संबंधी चीजें जमीन के नीचे दबानी चाहिये। जिस ग्रह को आठवें खाने में पहुंचाना उसकी चीजें श्मशान में दबानी चाहिये। जिस ग्रह को नौंवे घर में पहुंचाना है उसकी चीजें धारण करनी चाहिये।

जिस ग्रह को दसवें खाने में पहुंचाना हो उसकी चीजों को पिता को खिलानी या पहनानी चाहिये अथवा सरकारी कार्यालय की छाया जहंा पड़ रही हो उसके समीप की जमीन में गाड़नी चाहिये। जिस ग्रह को ग्यारहवें खाने में पहुंचाना हो उसका किसी प्रकार से उपाय नहीं करना चाहिये क्योंकि इस भाव में कोई ग्रह उच्च या नीच का नहीं होता। जिस ग्रह को बारहवें खाने में पहुंचाना हो उसे घर की छत पर रख देना चाहिए।

कुछ ध्यान देने योग्य बातें ‘लाल किताब’ में बताए गए किसी भी उपाय को कम से कम 40 दिन और अधिक से अधिक 43 दिन करें। उपाय के बीच कोई बाधा या नागा नहीं आना चाहिए। यदि 39 वें दिन भी यदि बाधा या नागा आ जाए तो पुनः दोबारा से उपाय करने चाहिये। ‘लाल किताब’ में होरा का महत्व नहीं है पर उपाय सूर्योदय से सूर्यास्त काल के मध्य में ही करें। रात्रि में उपाय न करें। जातक स्वयं उपाय करे तो अच्छा है, पर विशेष परिस्थितियों में जातक का रक्त का संबंध रखने वाले भी कर सकते हंै। 

उपायों से पूर्व उपाय विभिन्न ग्रहों के विभिन्न उपाय करने से पूर्व निम्नलिखित उपाय अवश्य करें। ‘लाल किताब’ के उपाय करने से पूर्व नहाना आवश्यक है। यदि नये वस्त्र धारण न कर सकें तो धुले हुए स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शाकाहारी भोजन करें। अतिथियों की सेवा करें। माता-पिता का आदर करें। किसी को अपशब्द न कहें। ससुराल के सदस्यों का पूर्ण सम्मान करें। शराब तथा मांस का सेवन न करें। घर में टूटे बर्तन न रखें। दिन में संभोग न करें। परस्त्री गमन न करें।


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प्रतिदिन बड़ों का आशीर्वाद लें। विशेष सावधानियां लाल किताब के अनुसार कुछ विशेष सावधानियां रखनी चाहिए जैसे- यदि सूर्य सातवें व आठवें खाने में हो तो सुबह व शाम को दान न करें। चंद्रमा यदि छठे खाने में हो तो दूध या पानी का दान न करें। ऐसे जातक को कुआं तालाब न तो खुदवाने चाहिये और न ही मरम्मत करवानी चाहिए। चंद्रमा यदि बारहवें खाने में हो तो साधु व महात्मा को भोजन न दें और बच्चों को निःशुल्क शिक्षा न दिलवाएं गुरु यदि सातवें खाने में हो तो मंदिर के पुजारी को वस्त्र दान न करें। अथवा किसी अन्य को वस्त्रों का दान नहीं करना चाहिये।

यदि गुरु दसवें खाने में हो तो जातक को मंदिर नहीं बनवाने चाहिये। शुक्र यदि आठवें खाने में हो तो सराय या धर्मशाला न बनवाएं। शुक्र यदि नौंवे खाने में हो तो भिखारी को पैसा दान न करें। शुक्र यदि नौंवे खाने में हो तो अनाथ बच्चे को गोद नहीं लेना चाहिए। यदि शनि पहले खाने में तथा बृहस्पति पांचवें खाने में हो तो जातक को तांबे का दान नहीं करना चाहिये।

शनि यदि आठवें खाने में हो तो जातक को सराय या धर्मशाला नहीं बनवानी चाहिये। जिन जातकों की कुंडली में दूसरा खाना खाली हो और आठवें खाने में शनि जैसा क्रूर ग्रह बैठा हो तो उसे मंदिर के अंदर न जाकर बाहर से ही अपने इष्ट देव को नमस्कार कर देना चाहिये। यदि खाना नं. 2 खाली हो और छठे आठवें या बारहवें खाने में शत्रु ग्रह हों तो जातक को मंदिर नहीं जाना चाहिये।



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