शास्त्रानुसार रजोदर्शन के बाद
की सोलह रातों में ही गर्भाधान
संभव है। इनमें सात रातों को सम एवं
छः रातांे को विषम रात्रि कहते हैं।
इनमें प्रथम तीन रातें त्याज्य हैं। अतः
चैथी, छठी, आठवीं, दसवीं, बारहवीं,
चैदहवीं और सोलहवीं सम है। यदि
इन सब रातों में पति-पत्नी सहवास
करें तो गर्भधारण होने पर पुत्र की
प्राप्ति होती है और विषम पांचवी, सातवीं,
नौवीं, ग्यारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं
रात्रि में सहवास से कन्या उत्पन्न
होती है।
स्वर साधना से मनचाही संतान प्राप्त
कर सकते हैं।
हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने मनुष्य
मात्र के कल्याण के लिए जिन ग्रंथों
की रचना की उनमें ‘स्वरोदय-विज्ञान’
भी एक है। स्वर ज्ञान भी योग ही है।
इस ज्ञान पर विज्ञान की शोध की
जरूरत है। स्वर विज्ञान द्वारा हम अपनी
बहुत सी जटिल समस्याओं का समाधान
भी आसानी से कर सकते हैं, बस
जरूरत है तो संयम, धैर्य एवं सही स्वर
ज्ञान की।
स्वर द्वारा संतान प्राप्ति: स्वर साधना
संतान प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ बतलाई गई
है। स्वरोदय ज्ञान के माध्यम से
पति-पत्नी मनचाही संतान प्राप्त कर
सकते हैं। जैसे यदि पुरुष का सूर्य
स्वर (दायां-स्वर) चल रहा हो तथा
स्त्री का चंद्र बायां स्वर चल रहा हो
और उस समय विषयभोग करने से
यदि गर्भ ठहरता है तो अवश्य ही पुत्र
रत्न होगा। इसके विपरीत होने से
कन्या प्राप्त होगी।
Û कई विद्वान ऐसा मानते हैं कि स्त्री के
ऋतुकाल के बाद स्नान करने के पश्चात
चैथे दिन से सोलहवें दिन तक विषय
भोग से अवश्य ही गर्भ की संभावना
होती है। परंतु इन रात्रियों का चयन
बहुत महत्वपूर्ण है। इन्हें ऐसे समझें:
Û ऋतुकाल के बाद - चैथी रात्रि को
विषय भोग करने से अल्पायु एवं दरिद्र
पुत्र होगा। अतः प्रथम तीन रातों की
तरह इस रात्रि में भी दूर रहें।
Û पांचवीं रात्रि में विषय भोग से मध्यम
आयु वाले पुत्र का योग होगा एवं
सातवीं रात्रि में विषय भोग से बांझ
पुत्री होगी।
Û आठवीं रात्रि में सूर्य स्वर चलते समय
ध्यान रखें। उस समय विषय भोग
करने से ऐश्वर्यवान एवं सुशील पुत्र
होगा।
Û नौवीं रात्रि में विषय भोग करने से
ऐश्वर्यवती पुत्री होती है।
Û दसवीं रात्रि में विषय भोग करने से
चालाक एवं निपुण पुत्र होता है।
Û ग्यारहवीं रात्रि में दुश्चरित्र पुत्री होती है।
Û बारहवीं रात्रि में उत्तम पुत्र होता है।
Û तेरहवीं रात्रि में अशुभ संतान या वर्ण
संकर कोख वाली पुत्री होती है।
Û चैदहवीं रात्रि में सर्वगुण संपन्न पुत्र
होता है। पंद्रहवीं रात्रि को विषय भोग
से भाग्यशाली पुत्री एवं सोलहवीं रात्रि
को विषय भोग करने से उत्तम पुत्र
प्राप्त होता है।
Û पति-पत्नी धर्म पालन के समय
स्त्री-पुरुष का चंद्र स्वर चल रहा हो
तो पुत्री तथा पुरुष का सूर्य स्वर और
स्त्री का चंद्र स्वर चल रहा हो तो पुत्र
होता है। अतः स्वरोदय ज्ञान से हम
मनचाही संतान प्राप्त कर सकते हैं।
Û यदि सूर्य स्वर में पृथ्वी तत्व चलता
हो तो सुखी और धनवान पुत्र होगा,
यदि स्त्री-पुरुष दोनों का चंद्र स्वर
(बायां) चल रहा हो तो पुत्री होगी किंतु
दीर्घायु एवं सुखी होगी।
पंचतत्व के अनुसार - पृथ्वी तत्व में
पुत्र, जल तत्व में पुत्री, वायु तत्व में
गर्भ ‘गल’ जाएगा, अग्नि तत्व में गर्भ
गिर जाएगा तथा आकाश तत्व में
नपुंसक’ का जन्म होता है।