गुर्दों के रोग
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गुर्दों के रोग  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 52865 | दिसम्बर 2006

गुर्दों के रोग गुर्दे शरीर के अन्य अंगों की तरह ही संवेदनशील होते हैं। इनके बिगड़ जाने से संपूणर्् ा शारीरिक संरचना प्रभावित होती है। इसलिए इनका खास ध्यान रखे जाने की जरूरत होती है। कई छोटी-छोटी बातों को अपनाकर गुर्दों के रोग से बचाव किया जा सकता है।

इस आलेख में इन्हीं उपायों का विशद उल्लेख किया गया है... सार में जैसे-जैसे प्रगति हा¬ेती जा रही है वैसे-वैसे हर देश में गुर्दा रोग से पीड़ित लोगों की संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है। अकेले अमेरिका में, जहां के आंकड़े उपलब्ध हैं, 2 करोड़ से भी ज्यादा लोग गुर्दे के स्थाई रोगों (ब्ीतवदपब ज्ञपकदमल क्पेमंेमे) से पीड़ित हैं।

वहीं हमारे देश में कितने लोग इस रोग से पीड़ित होंगे इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। हमारे गुर्दे राजमा जैसी बनावट लिए ;ठमंद ेींचमकद्ध मनुष्य की मुट्ठी के बराबर माप के होते हंै। इनका काम रक्त को साफ रखना और रासायनिक संतुलन कायम रखना है। साथ ही इनसे हारमोन भी निकलते हैं। लगभग 110 लीटर रक्त प्रतिदिन गुर्दों से होकर गुजरता है।

ये गुर्दे इस रक्त का शोधन कर और उसमें से बेकार पदार्थ (ॅंेजम चतवकनबजे), यूरिया, क्रियेटिनिन, जहरीले पदार्थ (ज्वगपदे), पोटैशियम ;च्वजंेेपनउद्ध और आवश्यकता से अधिक पानी को बाहर कर देते हैं। इन सभी के मिलने से बनता है प्रतिदिन 1.2 लीटर तक पेशाब। जिन बेकार पदार्थों (ॅंेजम च्तवकनबजे) की रक्त द्वारा जांच की जाती है, वे हैं क्रियेटिनिन (ब्तमंजपदपदम) और यूरिया (ठसववक न्तमं छपजतवहमदए ठन्छ)। जब गुर्दे अधिक पानी को बाहर नहीं निकाल पाते, तो रक्त में पानी ज्यादा हो जाता है।

नतीजतन रक्तचाप बढ़ जाता है तथा हृदय को अधिकतम परिश्रम करना पड़ता है। फलतः पैरांे में सूजन आ जाती है। रक्त में प्रयुक्त रसायनों जैसे लवण (म्समबजतवसलजमते), अम्ल (।बपके) तथा क्षार (ठंेमे) का संतुलन गुर्दे ही बनाकर रखते हैं। गुर्दे में बना पेशाब (न्तपदम) छोटी-छोटी नलियों, जिन्हें यूरेटर (न्तमजमत) कहते हैं, के रास्ते मसाने (न्तपदंतल ठसंक¬कमत) में इकट्ठा होता है। यह जब पूरा भर जाता है, तब मसाने की मासपेशियों के सिकुड़ने से मूत्रमार्ग (न्तमजीतं) से होकर पेशाब शरीर से बाहर आता है। यूरेटर, मसाना एवं मूत्र मार्ग को यू रिनरी टैªक्ट (न्तपदंतल ज्तंबज) कहते हैं।

गुर्दे से तीन आवश्यक हारमोन रेनिन (त्मदपद), ऐरिथ्रोपोयटिन (म्तलजीतव.चवपमजपद) तथा कैल्सिट्रियाॅल (ब्ंस¬बपजतपवस) भी निकलते हैं। जब भी रक्तचाप कम हो जाता है, तब रेनिन का स्राव होता है। इससे रक्त नलियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे रक्तचाप सामान्य हो जाता है। ऐरिथ्रोपोयटिन रक्त मज्जा (ठवदम डंततवू) को प्रेरित ;ैजपउनसंजमद्ध करता है, यह रक्त बनाने के लिए अति आवश्यक है। कैल्स्ट्रियाॅल हड्डियों में कैल्सियम तथा रासायनिक संतुलन बनाए रखता है। गुर्दे में छोटी अवधि के रोग, जिनमें स्थायी खराबी गुर्दे में नहीं रहती, जैसे गुर्दे या पेशाब नली में संक्रमण होना, गुर्दे में पथरी का बनना, दस्त हो जाने के फलस्वरूप शरीर में पानी की कमी होना (क्मीलकतंजपवद), चोट लगना आदि हो सकते हैं।

साथ ही कुछ दवाओं के सेवन से भी गुर्दे की कार्यप्रणाली पर अस्थायी प्रभाव पड़ता है। एक्यूट रीनल फेल्यर ;।बनजम त्मदंस थ्ंपसनतमद्ध में गुर्दे की कार्यप्रणाली पर अचानक दबाव पड़ जाता है। समय रहते इलाज करा लेने से अधिकतर लोग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। बहुत कम ही स्थायी गुर्दे की खराबी का शिकार होते हैं। परंतु गुर्दे के अधिकांश रोगों का कारण स्थायी बीमारियां हैं। ये रोग तब होना शुरू हो जाते हैं, जब गुर्दे लगातार 3 महीने तक शरीर से अवांछनीय पदार्थों को पेशाब के रास्ते बाहर करने में असर्मथ रहते हैं।

मुख्य कारण: गुर्दे के रोग होने के दो मुख्य कारण हैं - अनियंत्रित मधुमेह और अनियमित रक्तचाप। अन्य कारण: ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (ळसवउमतनसव¬दमचीतपजपे) पाॅलीसिस्टिक गुर्दा (च्वसलबपेजपब ज्ञपकदमल) गुर्दे में पथरी गुर्दे में संक्रमण ;च्लमसवदमचीतपजपेद्ध गुर्दे में दर्द निवारक दवाओं से होने वाली खराबी (।दंसहमेपब छमचीतवचंजील)।

गुर्दे में खराबी के शुरू में कोई लक्षण नजर नहीं आते या महसूस नहीं होते, और जब होने शुरू होते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, क्योंकि तब गुर्दे अपनी क्षमता के मात्र 10 प्रतिशत ही काम करने लायक रह जाते हैं। ऐसे में दो ही विकल्प बचे रहते हैं- डायलिसिस ;क्पंसलेपेद्ध या फिर गुर्दे का प्रत्यारोपण (ज्ञपकदमल ज्तंदेचसंदज)।

गुर्दों के स्थायी रोग में शरीर में पानी, तथा बेकार एवं दूषित पदार्थों की मात्रा का बढ़ना शुरू हो जाता है और एजोटिमिया (।्रवजमउपं) एवं यूरेमिया शुरू के लक्षण: थकान रहना, अकारण वजन कम होना, मितली/ उल्टी आना, शरीर बीमार या कमजोर जैसा महसूस होना, सिर दर्द, नींद न आना, हिचकी बार बार आना, पूरे बदन में सूखी खुजली होना, पैरों में सूजन (डबल रोटी जैसे हो जाना) आदि। बाद के लक्षण: पेशाब कम या ज्यादा होना, रात में बार बार पेशाब आना, मामूली दबाव से त्वचा में नील पड़ना, खून की उल्टी या काली टट्टी आना, बेसुध, गफलत या बेहोशी की हालत होना, मांसपेशियों का फड़फडाना, पैरों में बायटे आना, हाथ पैरों का सुन्न पड़ जाना, भूख खत्म होना, व्यवहार आक्रामक होना, शरीर से अजीब महक आना आदि। गुर्दों के रोग का पता कैसे चलता हैः

अगर आपको मधुमेह या अनियमित रक्तचाप या फिर दोनों ही रोग हैं, और ये नियमित नहीं हंै, तो आपके चिकित्सक कुछ रक्त तथा अन्य जांचें कराकर इस बात का पता लगाते हैं। पेशाब जांच: पेशाब जांच में प्रोटीन का आना शुरू हो जाता है। पेशाब में सूक्ष्म चर्बी (डपबतवंसइनउपदनतपं) गुर्दों में स्थायी रोग होने के 6 माह या 10 वर्ष पहले से ही आनी शुरू हो जाती है। अगर इस अवस्था में जांच कर पता लगा लिया जाए और बचाव के उपाय किए जाएं, तो गुर्दों के स्थायी रोग से बचा जा सकता है। रक्त में क्रियेटिनिन (ैमतनउ ब्तमंजप¬दपदम) की मात्रा बढ़ने लगती है। रक्त यूरिया नाइट्रोजन की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ती रहती है। अल्ट्रासाउंड में गुर्दे सिकुडे़ हुए तथा सामान्य से छोटे नजर आते हैं।

दर्द निवारक दवाएं तथा गुर्दों पर उनका असर: दर्द कम करने वाली एनैलजेसिक दवाओं जैसे ऐस्पिरिन, ऐस्प्रो, पेरा.सिटामाॅल, आइबूप्रोफेन, नेप्रोक्सेन आदि के इस्तेमाल का प्रभाव भी गुर्दों पर पड़ता है। यद्यपि इन दवाओं के निर्धारित मात्रा एवं सीमित समय तक इस्तेमाल से खास हानि नहीं होती, परंतु कुछ लोगों में तो केवल दो या तीन खुराकें ही खासी परेशानी का सबब बन जाती हैं - खासकर बूढ़े लोगों, गुर्दे के रोगियों और शराब का अत्यधिक सेवन करने वालों में। इन लोगों में गुर्दे काम करना अचानक ही बंद कर देते हैं। इसका कारण होता है गुर्दों का अतिशय निष्क्रिय हो जाना।

बनजम त्मदंस थ्ंपसनतम का मुख्य लक्षण है पेशाब का अचानक बनना और बंद होना (0सपहनतपं)। इन रोगियों को फौरन डायलिसिस कर गुर्दों को स्थायी रूप से खराब होने से बचाया जाता है। इसके अतिरिक्त उक्त दवाओं को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाता है। गुर्दों की एक और बीमारी होती है, जिसे एनैलजेसिक नेफरोपैथी ;।दंसहमेपब दमचीतवचंजीलद्ध कहते हैं। यह बीमारी दवाओं के निरंतर सेवन के फलस्वरूप होती है। इनसे गुर्दों में धीरे-धीरे स्थायी खराबी आ जाती है और इलाज के लिए या तो डायलिसिस या फिर गुर्दा प्रत्यारोपण ;ज्ञपकदमल जतंउतचसंजपवदद्ध तक करना पड़ सकता है।

गुर्दों की कार्यप्रणाली के लिए चार अति आवश्यक जांच: रक्तचाप का माप ;ठण्च्ण् उमंेनतम¬उमदजद्ध पेशाब में एलब्युमिन की जांच ;डप¬बतवंसइनउपदनतपं ंदक च्तवजमपदनतपंद्ध क्रियेटिनिन का स्तर ;ैमतनउ ब्तमंजपदपदमद्ध रक्त यूरिया नाइट्रोजन ;ठसववक नतमं छपजतवहमदद्ध रक्तचाप: रक्तचाप की नियमित जांच और इसका किसी भी उम्र में 130/80 के स्तर या इससे नीचे रहना गुर्दों की सामान्य कार्यप्रणाली के लिए अति आवश्यक है। अगर रक्तचाप इससे ज्यादा रहता है तो प्रतिदिन व्यायाम, प्राणायाम आदि करने चाहिए, केवल शाकाहारी भोजन करना चाहिए और अधिक से अधिक मात्रा में हरी सब्जियांे, सलाद, फलों, मेवांे इत्यादि का सेवन करना चाहिए। यदि फिर भी रक्तचाप सामान्य न हो पाए, तो दवाएं नियत मात्रा में नियमित रूप से अवश्य लेते रहें।

माइक्रो एल्ब्युमिनुरिया: गुर्दे सामान्यतः केवल अवांछित पदार्थों को रक्त से बाहर करते हैं, प्रोटीन को नहीं। परंतु मधुमेह तथा अधिक बेकाबू रक्तचाप के रोगियों के गुर्दों से एलब्युमिन नामक प्रोटीन जब अति सूक्ष्म मात्रा से पेशाब में आने लगता है, तो इसे माइक्रोएल्बुमिनुरिया कहते हैं। गुर्दे रोग का शुरुआती संकेत माइक्रोएल्ब्युमिनुरिया: माइक्रोएल्ब्युमिनुरिया का हो जाना यह सबक देता है कि भाई अभी भी समय है, संभल जाओ, किसी योग्य चिकित्सक की शरण में जाओ, और अपने शरीर में पल रहे मधुमेह, रक्तचाप जैसे रोगों के बारे में पूर्ण जानकारी पाकर उनसे मुकाबला कर उन्हें दूर भगाओ या काबू में रखो ताकि गुर्दों का रोग न हो।

रक्त के क्रियेटिनिन का स्तर ;ैम¬तनउ ब्तमंजपदपदमद्ध: इसका सामान्य स्तर 0.6 से 1.2 मि. ग्रा. या 100 मि. लि. रहता है। यदि पुरुषों में यह स्तर 1.7 मि. ग्रा.और महिलाओं में 1.4 मि. ग्राम या इससे अधिक हो, तो समझें कि गुर्दे अपनी 50 प्रतिशत क्षमता से ही कार्य कर रहे हैं। रक्त में यूरिया ;ठसववक न्तमं छपजतव¬हमदद्ध रू शरीर की हर कोशिका प्रोटीन इस्तेमाल में लाती है।

इस प्रक्रिया में अंत में जो बेकार पदार्थ बनता है, उसे यूरिया कहा जाता है। क्योंकि इसमें नाइट्रो जन रहती है, इसलिए इस े रक्त यूरिया नाइट्रोजन ;ठन्छद्ध कहते हैं। गुर्दे इसी को रक्त से निकालकर पेशाब में भेज देते हैं। इसका स्तर सामान्यतः 7-20 मि. ग्रा.रहता है। गुर्दों के रोगी के शरीर में पानी की कमी ;कमीलकतंजपवदद्ध या फिर हार्ट फेल ;भ्मंतज थ्ंपसनतमद्ध होने की स्थिति में यह बढ़ जाता है। कुछ अन्य जांचें, जो कभी-कभी की जाती हैं, इस प्रकार हैं।

अल्ट्रासाउंड, सी टी स्कैन या एम.आर. आई.: इनकी जरूरत गुर्दों के पेचीदा रोग, कैंसर या फिर पेशाब के रास्ते में अवरोध का पता लगाने में पड़ती है। बायोप्सी ;त्मदंस ठपवचेलद्ध: जांच में गुर्दे का सूक्ष्म टुकड़ा लेकर उसे सूक्ष्मदर्शी में देखा जाता है। इस जांच से ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस ;ळसवउमतन.सवदमचीतपजेद्ध जैसे रोग के निदान मंे सहायता मिलती है। गुर्दों के रोग से कैसे बचें: जैसा कि ऊपर बताया गया है, गुर्दों के रोग के लक्षण गुर्दे में 50 प्रतिशत तक खराबी के बाद ही महसूस होते हैं। अतः यह जानना जरूरी है कि मनुष्य क्या-क्या कर सकता है कि गुर्दों के रोग से पूर्णतः बचा रहे। इस संसार में जैसे-जैसे मशीनी प्रगति होती जा रही है वैसे-वैसे खाने-पीने की वस्तुओं का शोधन बढ़ता जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार शहरों में लोग खाने पीने के लिए अधिक से अधिक शोधित खाद्य पदार्थ इस्तेमाल में ला रहे हैं।

फलतः महामारी का रूप ले रही लाइफ स्टाइल बीमारियां ;स्ण्ैण्क्ए स्पमि ैजलसम क्पेमंेमेद्ध उत्पन्न होती हैं। मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, गुर्दों के रोग, मोटापा आदि ऐसी ही बीमारियां हैं। स्ण्ैण् क्ण् ही नहीं, अन्य रोगों से भी मनुष्य बच सकता है, बशर्ते वह प्रकृति से सबक ले और प्रकृति जो भी सूर्य की भट्ठी में पकाकर देती है उसे प्रेमपूर्वक स्वीकार करे। बाजार में मिलने वाले अप्राकृतिक तथा शोधित पदार्थों से न केवल स्वयं ही बचें अपितु अपने बच्चों, मित्रों तथा समाज को भी बचाएं।

तो क्या हो नियम: सुबह सूर्योदय होने से पहले उठें। प्राणायाम और व्यायाम करें। प्रति¬दिन 30 मिनट तक तेज-तेज चलें। प्रतिदिन 8-10 गिलास शीतल जल अवश्य पीएं। भोजन में अंकुरित अनाज, अंकुरित दालें, अंकुरित मेथी, मूंगफली आदि लें। प्रतिदिन कम से कम एक बार पŸोदार साग या हरी सब्जी अवश्य खाएं।

कम से कम 300-450 ग्राम तक सलाद का सेवन नित्य करें। दो से तीन तरह के फल अवश्य लें। नित्य 30-40 ग्राम तक सूखे फल या मेवे खाएं। 5 ग्राम तक अलसी के बीज ;थ्संग ेममकद्ध भूनकर लें। 30 मि. लि. तक गेहूं की घास का रस पीएं। यदि मीठा खाना हो, तो शकरकंदी ;ैूममज च्वजंजवद्ध , किशमिश, खजूर, छुहारा, सभी प्रकार के मीठे फल इत्यादि या इनसे बने हुए पदार्थ खाएं। सप्ताह में 24 घंटे का उपवास करें। हमेशा खुश रहें। मधुमेह के रोगी हर 15 से 30 दिनों पर अपने रक्त में शुगर की जांच करते रहें और जो भी दवा चिकित्सक ने निर्धारित की हो, उसे अवश्य खाएं।

रक्तचाप के रोगी भी रक्तचाप की दवा निरंतर खाते रहंे - खासकर रात की खुराक को कभी भी न भूलें। जिन्हें गुर्दों का रोग हो गया हो वे भी निर्धारित दवाएं खाते रहें। रक्त में अधिक चर्बी के रोगी तथा हृदय के रोगी भी अपनी दवाएं खाते रहें। मधुमेह और रक्तचाप के रोगी हर वर्ष पेशाब में माइक्रोएल्ब्युमिनुरिया ;डपबतवंसइनउपदनतपंद्ध की जांच कराते रहें ताकि समय रहते गुर्दों के रोग की शुरुआत का पता चल जाए। स्त्रियां, पुरुष, बच्चे, बूढ़े सब 15 दिन में एक दिन शरीर से दूषित पदार्थों को बाहर निकालने के लिए डिटोक्स ;क्मजवगद्ध करें। इस दिन केवल फल व सलाद खाएं और केवल हरी सब्जियों का सूप पीएं। किसी भी प्रकार के अन्न या दाल का सेवन न करें।

क्या न करें: मांस, मछली या किसी भी प्रकार का मांसाहारी भोजन न करें। अंडा न खाएं। मदिरा पान न करें। धूम्रपान न करें। अप्राकृतिक पेय पदार्थ न पीएं। मैदा और मैदे से बनी वस्तुएं बरगर, ;ठनतहंतद्ध नूडल्स, ;छववकसमेद्ध भठूरे, पिज्जा ;च्प्र्रंद्ध इत्यादि न खाएं। बिस्कुट, चिप्स तथा अन्य शोधित पदार्थों का सेवन न करें। चीनी के सेवन से बचें। दर्द निवारक दवाएं कम से कम खाएं। गुस्सा न करें। गुर्दों का रोग हो गया हो, तो घर बैठे न रहें, किसी योग्य चिकित्सक से इस रोग का इलाज कराएं।

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