जन-गण-मन के देवता संकटमोचन श्री हनुमान
जन-गण-मन के देवता संकटमोचन श्री हनुमान

जन-गण-मन के देवता संकटमोचन श्री हनुमान  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 6227 | मई 2007

मानव जीवन समस्या एवं संक. टों की सत्यकथा है। वस्तुतः इसमें ऐसा कोई क्षण नहीं और ऐसा कोई स्थान नहीं जब मानव किसी न किसी समस्या या संकट से घिरा न हो। हमारे जीवन में दैहिक, दैविक एवं भौतिक दुखों का सिलसिला लगातार चलता रहता है। इन सभी प्रकार के दुखों या संकटों का समाधान करने के लिए हमारे मंत्रद्रष्टा ऋषियों एवं आस्थावान उपासकों ने संकटमोचन भगवान हनुमान जी की उपासना का प्रतिपादन किया है।

संकटमोचन: गारुड़ी तंत्र, सुदर्शन संहिता एवं अगस्त्यसंहिता आदि कालजयी रचनाओं के अनुसार हनुमान जी प्रकृति से उत्साह एवं साहस के प्रतीक हैं। प्राणी मात्र में उत्साह एवं साहस के जाग्रत होते ही उसका आत्मविश्वास स्वतः स्फूर्त हो जाता है और फिर कठिन से कठिन समस्याओं या संकटों का समाधान हो जाता है। क्योंकि हनुमान जी में उत्साह, साहस एवं आत्मविश्वास नैसर्गिक रूप से विद्यमान हैं। इसीलिए वे संकटमोचन कहलाते हैं।

यह संकट चाहे देवताओं का हो या भक्तजनों का वे सबके संकटों को दूर करते हैं। इसीलिए उनके बारे में प्रसिद्ध है- ‘‘को नहि जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।’’ हनुमदुपनिषद् के अनुसार सांसारिक संकटों से त्रस्त व्यक्ति जब हनुमानजी की अर्चना/उपासना में भक्ति भाव से लग जाता है, तब उन्हीं की कृपा से उसके खोए हुए या सोए हुए उत्साह, साहस और आत्मविश्वास जागकर सक्रिय हो जाते हैं।

इसके बाद कठिन से कठिन संकटों के समाधान में भी देर नहीं लगती। इस प्रकार संकटों से मुक्ति दिलाने के उनके स्वभाव के कारण हमारे देश की जनता का संकटमोचन हनुमान जी में अटूट विश्वास है। आनंद रामायण के अनुसार इनके स्मरण मात्र से ही व्यक्ति में बुद्धि, बल, यश, धैर्य, निर्भयता, आरोग्य, सुदृढ़ता एवं वाक्पटुता आ जाती है,

यथा- ‘‘बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोग्यता।

सदु ाढ्र्य ं वाकस्् फरु त्व ं च हनमु त्स्मरणाद् भवेत।।’’ (आनंद रामायण 13/16)

हनुमान जी का स्वरूप: भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार श्री हनुमान जी दास्य भक्ति के मूर्तमान स्वरूप हैं। इस अवतार में वे मां अंजनी के गर्भ से वायुदेव के पुत्र के रूप में प्रकट हुए हैं। संत शिरोमणि श्री तुलसी दास के शब्दों में उनका स्वरूप इस प्रकार है-

राम दूत अतुलित बलधामा।

अंजनिपुत्र पवनसुत नामा।।

महावीर विक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी।।

विद्यावान गुनी अति चातुर।

रामकाज करिबे कौ आतुर।।

प्रभु चरित सुनिबे कौ रसिया।

रामलखन सीतामन बसिया।।

साधु संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे।।

उनके स्मरण मात्र से भूत, प्रेत एवं पिशाच आदि दरू भाग जात े ह।ंै उनके मंत्र का जप करने से रोग, शोक, दुख एवं दारिद्र्य आदि नष्ट हो जाते हैं और सुख, संपŸिा, शांति एवं भगवत भक्ति आसानी से मिल जाती है। जनदेवता श्री हनुमान: रामभक्त हनुमान जी के स्वरूप, उदाŸागुण और उनके चरित्र से प्रभावित होकर हमारे देश की जनता बड़ी श्रद्धा से उनकी उपासना करती है।

भारत के गांव-गांव में, नगर की गलियों, मुहल्लों एवं बाजारों में, नदियों के घाटों तथा जलाशयों के किनारों पर और बगीचों, अखाड़ों में हनुमान जी के मंदिरों का होना इस बात का साक्ष्य है कि वे जन-गण-मन के देवता हैं। हनुमान जी के जनदेवता होने का सबसे बड़ा प्रमाण है- आस्तिक जनता में सर्वाधिक लोगों का हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण आदि का नियमित पाठ करना।

इनकी नियमित उपासना करने वालों में सभी जातियों, सभी वर्णों एवं सभी सम्प्रदायों के लोगों की बहुत बड़ी संख्या है। इसका कारण लोक मानस का यह विश्वास है- ‘‘और देवता चिŸा न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई।’’ अस्तु।

मेष आदि राशियों के अनुसार स्मरण् ाीय नाम: आनंद रामायण में रामभक्त श्री हनुमान जी के चारित्रिक गुणों के द्योतक इन बारह नामों का वर्णन किया गया है, जिनका स्मरण करने से मेष आदि द्वादश राशि वाले लोगों के सभी भय दूर हो जाते हैं और युद्ध में विजय मिलती है।

विवरण इस प्रकार है:

रामेष्टः फाल्गुनसखः पिंगाक्षोऽमित विक्रमः।।

उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः।

लक्ष्मणप्राणदाताच दशग्रीवस्य दर्पहा।।

एवं द्वादशनामानि मेषादिराशिवान् पढेत।

तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत।।

हनुमद मंत्र: उपसर्ग, भय, रिपु, रोग, शोक, दुख, दरिद्रता एवं सभी प्रकार के संकटों को नष्ट करने वाला तंत्रागमों में प्रतिपादित श्री हनुमान जी का अमोघ मंत्र इस प्रकार है- ¬ हं हुं हनुमते नमः।

विनियोग: अस्य श्री हनुमन्मन्त्रस्य श्री रामचंद्रषिः जगती छन्दः हनुमान् देवता हं बीजं हुं शक्तिः सर्वार्थसिद्धये जपे विनियोगः। ऋष्यादिन्यास: ¬ रामचंद्राय ऋषये नमः, शिरा सि। ¬ जगती छन्द से नमः, मुखे। ¬ हनुमद्देवतायै नमः, हृदि। ¬ हं बीजाय नमः, गुह्ये। ¬ हुं शक्तये नमः, पादयोः। करन्यास अंगन्यास: करन्यास: ¬ हां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ¬ हीं तर्जनीभ्यां नमः। ¬ हूं मध्यमाभ्यां नमः। ¬ हैं अनामिकाभ्यां नमः। ¬ हौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ¬ हः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। षडंगन्यास: ¬ हां हृदयाय नमः। ¬ हीं शिरसे स्वाहा। ¬ हूं शिखायै वषट्। ¬ हैं कवचाय हुम्। ¬ हौं नेत्रत्रयाय वौषट्। ¬ हः अस्त्राय फट्।

पूजन यंत्र: ध्यान:

बालार्कायुततेजसं त्रिभुवनप्रक्षोभकं सुंदरं।

स ु ग ्र ी व ा दिसमस्तवानरगणैः सं सेव्यपादाम्बुजम्।।

नादेनैव समस्तराक्षसगणान संत्रायन्तं प्रभुं।

श्रीमद्रामपदाम्बुजस्मृतिरतं ध्यायामि वातात्मजम्।।

उदीयमान सूर्य की आभा जैसी आभा वाले, तीनों लोकों को क्षोभित करने वाले सुग्रीव आदि समस्त वानर समुदाय से सेव्यमान, अपनी हुंकार से समस्त राक्षसों को भयभीत करने वाले और अपने स्वामी श्री राम जी के चरणों का सदैव ध्यान करने वाले वायुनन्दन का मैं ध्यान करता हूं।

विधि: नित्यनियम से निवृŸा होकर शुद्ध वस्त्र धारण कर पवित्र आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर मार्जन, आचमन और प्राणायाम कर तथा विधिवत विनियोग न्यास एवं ध्यान कर भोजपत्र पर अष्टगंध और अनार की कलम से लिखे यंत्र पर पंचोपचार (गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य) से संकट मोचन हनुमान जी का पूजन कर उक्त मंत्र का सवालाख या 24 हजार जप करना चाहिए।

अनुष्ठान में ध्यान रखने योग्य बातें: साधक को अनुष्ठान में पवित्रता, जप में एकाग्रता, मन में भक्ति भाव दिन में एक बार फलाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

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