मानव जीवन पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, यह तो हम सभी जानते हैं। लेकिन अगर हम यह कहें कि ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव अवश्य पड़ता है और वह अकाट्य होता है तो इसमें शायद मत भिन्नता हो सकती है। बहुत से बुद्धिजीवी, विशेषकर वैज्ञानिक, जो खगोल विद्या (एस्ट्रोनाॅमी) को तो सत्य मानते हैं लेकिन उससे उत्पन्न ज्योतिष शास्त्र (एस्ट्रोलाॅजी) की सच्चाई को स्वीकार करने में संकोच प्रकट करते हैं, इससे सहमत नहीं होंगे। ऐसे लोग ज्योतिष शास्त्र को विज्ञान मानने के लिए भी तैयार नहीं होते। लेकिन हम ज्योतिर्विदों के लिए ज्योतिष न केवल एक विज्ञान है, बल्कि उच्च श्रेणी का विज्ञान है। इसकी प्रामाणिकता तथ्यों पर आधारित है। जीवन में जो कुछ घटित होता है, वह बस यों ही नहीं हो जाता है। वह सब पहले से सुनियोजित एवं योजनाबद्ध है जिसकी सूचना हमें ग्रहों द्वारा पहले ही प्राप्त हो जाती है।
उदाहरण के लिए, इस कहावत को ही लें। कहते हैं ‘‘शादी स्वर्ग में तय होती है, धरती पर तो उसकी सिर्फ रस्म अदायगी होती है।’’ अगर यह कहावत सच है तो इसका मतलब यह हुआ कि किसी व्यक्ति के जीवन में जो व्यक्ति जीवन साथी बनकर आता है उसका उस व्यक्ति से संबंध पहले से ही तय होता है। जी हां, चैंकिए नहीं, ऐसा ही होता है। आपका और आपके होने वाले जीवन साथी का संबंध ग्रहों द्वारा पहले ही जोड़ा जा चुका होता है। चाहे आपकी शादी मां बाप द्वारा तय की गई हो या आप स्वयं करें (प्रेम विवाह की स्थिति में), इसमें ग्रहों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। आइए, जानें कैसे? जब विवाह योग्य वर या कन्या की कुंडली किसी ज्योतिषी के पास वर पक्ष या कन्या पक्ष के लोग लेकर आते हैं यह जानने के लिए कि शादी के बाद दोनों का संबंध कैसा रहेगा तो अक्सर ज्योतिषी दोनों के जन्म नक्षत्रों और चरणों को नोट करके मेलापक सारणी देखकर अष्टकूट की सामूहिक संख्या के आधार पर अपना निर्णय सुना देते हैं कि कुल 36 में से 18 या उससे अधिक गुण मिल रहे हैं अतः दोनों का संबंध हो सकता है। जितने अधिक गुण मिलें, संबंध उतना ही अच्छा होगा, ऐसा उनका कहना होता है।
इसके साथ मंगल दोष का विचार कर लेते हैं। लेकिन वर-कन्या की कुंडलियां देखने के पश्चात ज्योतिषी के रूप में उनका पहला कदम क्या होना चाहिए? मेरे विचार से, उन्हें सबसे पहले यह जांच करने की कोशिश करनी चाहिए कि वे दोनों (वर एवं कन्या) ‘एक दूजे के लिए’ बने हैं या नहीं अर्थात् दोनों की शादी हो सकती है या नहीं। यह जानने के लिए, नीचे कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए जा रहे हैं जो ज्योतिषीय अनुभव एवं अनुसंधान पर आधारित हैं तथा 80 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में सही बैठते हैं। Û पति और पत्नी दोनों का लग्न या लग्नेश एक हो सकता है। Û दोनों का चंद्र लग्न या चंद्र लग्नेश एक हो सकता है। Û लग्नेश जिस राशि में बैठा है, वह राशि जीवन साथी का लग्न या चंद्र लग्न हो सकती है। Û जन्मकुंडली के 7वें घर में जो राशि है, वह जीवन साथी का लग्न या चंद्र लग्न हो सकती है।
Û 7 वें घर का मालिक जिस राशि में बैठा है, वह राशि जीवन साथी का लग्न या चंद्र लग्न हो सकती है। Û लग्नेश जिस राशि में बैठा है, उससे 7 वीं राशि जीवन साथी का लग्न या चंद्र लग्न हो सकती है। Û लग्नेश जिस नवांश में है, वह राशि जीवन साथी का लग्न या चंद्र लग्न हो सकती है। Û 7 वें घर का मालिक जिस नवांश में है, वह राशि जीवन साथी का लग्न या चंद्र लग्न हो सकती है। यहां उपर्युक्त नियमों के उदाहरण प्रस्तुत हैं। निम्न जन्मकुंडलियों को ध्यान से देखें। कुंडली नं. 1 एवं 2 में पति और पत्नी दोनों का लग्न मेष है। अतः नियम 1 लागू होता है। कुंडली नं. 3 एवं 4 में पति और पत्नी दोनों का चंद्र लग्न मकर है। अतः नियम 2 लागू होता है। कुंडली नं. 5 में पति की कुंडली में लग्नेश शनि कर्क राशि में स्थित है। अतः पत्नी का लग्न कर्क है। अतः यहां नियम 3 एवं 4 दोनों लागू होते हैं अर्थात पति की कुंडली में 7 वें घर में जो राशि है (कर्क) वह पत्नी का लग्न है।
यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि कुंडली नं.-5 स्वर्गीय संजय गांधी एवं कुंडली-6 उनकी पत्नी श्रीमती मेनका गांधी की है। सर्वविदित है कि दोनों ने प्रेम विवाह किया था। कुंडली नं. 7 में पति की कुंडली में 7 वें घर का मालिक शनि मिथुन राशि में बैठा है जो पत्नी का चंद्र लग्न है। ये कुंडलियां 7 एवं 8 किसी और की नहीं बल्कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की हैं। भारत के राजीव और इटली की सोनिया। दोनों की पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग-अलग। धार्मिक, भौगोलिक तथा सांस्कृतिक विभिन्नता अपनी जगह। तथापि अध्ययन के सिलसिले में लंदन प्रवास के दौरान जब दोनों की आंखंे चार हुईं तो दोनों ऐसे मिले कि फिर जीवन भर अलग न हो सके। इसे क्या कहेंगे आप? मात्र संयोग या फिर नियति का खेल? या ज्योतिष का एक अकाट्य सिद्धांत जो विज्ञान से परे लेकिन उससे बड़े विज्ञान की हकीकत है। कुंडली-7 एवं कुंडली-8 में नियम 5 लागू होता है। कुंडली नं. 9 में पति की कुंडली में लग्नेश गुरु कर्क राशि में बैठा है। उससे 7 वीं राशि मकर है जो कि पत्नी का लग्न है। अतः यहां नियम 6 लागू होता है।
कुंडली नं. 12 पत्नी की कुंडली में लग्नेश बुध नवांश में कर्क राशि में स्थित है जो कि पति का लग्न है। अतः नियम 7 लागू होता है। कुंडली नं. 13 में पति की कुंडली में 7वें घर का मालिक बुध है जो कुंभ नवांश में है और पत्नी की कुंडली में लग्न कुंभ का है। अतः नियम 8 लागू होता है। पत्नी की कुंडली-14 को पुनः ध्यान से देखें। इनकी कुंडली में लग्नेश शनि नवांश में मीन राशि में है जो पति का लग्न एवं चंद्र लग्न है। अतः इस दम्पति की कुंडलियों में नियम 7 और 8 दोनों एक साथ लागू होते हैं। ये भारतीय वायु सेना में कमीशन प्राप्त एक अधिकारी एवं उनकी पत्नी की कुंडलियां हंै। ऊपर वर्णित नियमों की सत्यता की जांच पाठक अपने तथा अपने रिश्तेदारों की कुंडलियों का विश्लेषण कर स्वयं कर सकते हैं। अंत में निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि आपका जीवन साथी न केवल पहले से तय है बल्कि यह भी तय है कि वह देखने में कैसा होगा, किस दिशा से आएगा अर्थात किस दिशा में संबंध होने की संभावना है। वह नौकरी करने वाला होगा या उसका स्वतंत्र व्यवसाय होगा इत्यादि की सही जानकारी भी आपको अपनी कुंडली के द्वारा प्राप्त हो सकती है।
इतना ही नहीं, जीवन के अन्य क्षेत्रों यथा नौकरी, व्यवसाय, नौकरी में पदोन्नति, विदेश यात्रा, आर्थिक समृद्धि, समृद्धि का समय, रोग तथा उनसे निवारण के उपाय इत्यादि से जुड़ी जानकारी भी आपको कुंडली के अध्ययन से प्राप्त हो सकती है। आवश्यकता है तो सिर्फ एक योग्य एवं अनुभवी ज्योतिर्विद से परामर्श लेने की।