भारत, विश्व का भविष्य सन् 2014 ईविश्व हेतु 2014 वर्ष का श्रीगणेश दिन बुधवार से मध्यम, कष्ट कारक है। भारत के लिए शुभ संकेत है, 8 जनवरी को शुक्रास्त पश्चिम में तथा 13 जनवरी को शुक्रोदय पूर्व में होना विश्व के लिए अनिष्ट कारक है। उत्तरी प्रान्तों में अन्न संकट, दक्षिणी भारत में आपसी संघर्ष, गुजरात में सुभिक्ष तथा फल की पैदावार अच्छी होगी। सत्ता में परिवर्तन सम्भव है। उत्तर दिशा में दुर्भिक्ष (अकाल), दक्षिण में युद्ध तथा पश्चिमी देशों में सुभिक्ष का योग है।
पूर्वी प्रान्तों में सुख शान्ति, पश्चिमी भागों में उपद्रव, अन्न का भारी संकट, वर्षा में कमी, महंगाई में वृद्धि, गुजरात में उत्पात, राजस्थान में अन्न संकट, कपास, घी, धान्य महंगे तथा पृथ्वी पर युद्ध होने की सम्भावना है। पश्चिमी देशों में अग्निकाण्ड, दंगे-फसाद, हड़ताल व आपसी विद्रोह होंगे। युद्ध सुनिश्चित है। आन्तरिक कलह, बम विस्फोट संसार भर में होंगे। सन् 2014 ई. में 30 मार्च तक ‘पराभव’ नामक संवत्सर तथा 31 मार्च 2014 से संवत् 2071 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ‘प्लवंग’ नामक संवत्सर का प्रवेश होगा। वर्ष पर्यन्त संकल्पादि में ‘‘प्लवंग’’ संवत्सर का ही प्रयोग होगा। पराभव नामक संवत्सर के स्वामी ‘केतु’ का प्रभाव भारत के भविष्य पर प्रभावी होगा।
राजाओं, सेनापतियों तथा दण्डाधिकारियों से प्रजा पीड़ित तथा भयभीत रहेगी। पश्चिम में अन्न का भाव सम तथा सिन्धु देश से अन्न का आगमन होगा। विक्रमी संवत् 2071 में भूमण्डल पर शासित दश अधिकारी में वर्तमान वर्ष के राजा चन्द्र व मंत्री चन्द्र हैं। राजा चन्द्र के नेतृत्व में भारत में शुभ व मंगल कार्य होंगे, उत्तम वर्षा तथा प्रचुर अन्न उत्पादन तथा नए राजाओं का अभ्युदय होगा। जनता की व्याधि एवं दुःख का नाश होगा। चन्द्र के मंत्री काल में पृथ्वी फसलों से परिपूर्ण रहेगी। उत्तर पश्चिम में सुख शांति रहेगी। फलेश रवि दक्षिण-पश्चिम के निवासियों के बीच फल, पुष्प तथा वृक्षों के लिए आपस में झगड़ा-लड़ाई करायेंगे।
जनपदों में दुष्कर्म, बलात्कार आतंक तथा शासकों के क्रूर व्यवहार से जन-समूह व्याकुल रहेगा। उत्तर के देशों में चित्र, कलाकृति, वस्त्र, शंख, चंदन तथा दक्षिणी प्रदेशों में काले पदार्थ तेज होंगे। सूर्य सिद्धान्त के मत से ‘‘प्लवंग’’ नामक संवत्सर के स्वामी समस्त जगत् की सृष्टि तथा प्रलय करने वाले ब्रह्माजी हैं। इस संवत्सर में सभी भूसी वाले अन्न नष्ट हो जायेंगे। धान्य, जौ आदि अन्न तेज होंगे। ग्रीष्म ऋतु में वर्षा होगी। पृथ्वी के सभी देश पीड़ा पायेंगे। महंगी, राजपीड़ा, अल्प वृष्टि, भूकम्पादि उत्पात, रोगों की वृद्धि तथा रस पदार्थ में महंगी कष्टदायक है।