फलित ज्योतिष में सूर्य का महत्व
फलित ज्योतिष में सूर्य का महत्व

फलित ज्योतिष में सूर्य का महत्व  

व्यूस : 6974 | जनवरी 2009
फलित ज्योतिष में सूर्य का महत्व आचार्य किशोर फलित ज्योतिष में ग्रहों के कारकत्व का निर्णय लेते समय सौर्य जगत में उसका स्थान, गति, स्थिति, आकार एवं पृथ्वी में जीव और वनस्पति के ऊपर उसके प्रभाव को देखना होगा। शास्त्र एवं पुराणों में ग्रहों के वास्तविक आधार को विचार में लिया जाता है। सौर्य जगत में सूर्य केंद्र में स्थित है उसके चारों ओर पृथ्वी के साथ-साथ अन्य ग्रह निर्दिष्ट कक्ष में भ्रमण करते हैं। सूर्य एक उज्ज्वल एवं ज्वलंत पिंड हैं उसकी अलौकिक शक्ति द्वारा जीव एवं सृष्टि की वृद्धि होती है। सूर्य के अलौकिक प्रभाव के बिना पृथ्वी अंधकारमय है। सूर्य के आलोक के कारण मेघ एवं वृष्टीपात होता है वृष्टिपात की वजह से पृथ्वी पर जीवन है। स्वर्ग लोक में सूर्य एक देवता है। शनि उनके पुत्र हैं।द्य फलित ज्योतिष में सूर्य को पितृ कारक कहा जाता है, क्योंकि सूर्य समस्त उत्पत्ति का कारण है। सांसारिक जीवन में सत्य सूर्य के अधिकार में है। जैसे- परिवार में सूर्य कर्ता है, व्यक्ति विशेष में पिता है। भाइयों में श्रेष्ठ भ्राता है। स्त्री में पहली स्त्री है। परिवार में सबसे अधिक प्रभावकारी है। राज्य में राजा है। ग्राम में गण-मुखिया, दल में दल का नेता, ग्रहों में सबसे प्रमुख हैं। विद्या में आध्यात्मिक विद्या, धातुओं में पारद, पशुओं में सिंह जैसा, शरीर के अंगों में मस्तक, जीवों में अग्नि एवं तेज है। राजा एवं उच्च पद या नेतृत्व करने वाले व्यक्ति में समस्त गुण का कारक सूर्य है, इसलिए उसके जैसा व्यक्ति किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करता। किसी के आदेश का पालन नही करता। दोषी को दंड देता है और निर्दोष को दोषमुक्त। ऐसे लोग शासन करने में उपयुक्त रहते हैं। अपने महत्व एवं मर्यादा को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं। दूसरों से अपनी प्रशंसा सुनने में आनंदित होते हैं। अपनी निंदा सुनना उनके लिए असहनीय होता है। जिसका सूर्य बलवान है, वह उन्नति, वृद्धि, निर्माण करने वाला होता है। साथ-साथ निर्देश देने वाला, पालन करने वाला, दानी और क्षमा करने वाला भी होता है। वह सदैव गौरव, सम्मान, यश को प्राथमिकता देने वाला होता है। वह घमंडी और अपने आडंबर को दिखाते हैं। इन गुणों के कारण सूर्य सर्वोपरि है। शिशुकाल से पूर्ण व्यस्क होने तक शरीर में जो परिवर्तन आते हैं, उनका कारण सूर्य है। अंगों में मुखय अंग हृदय का कारक है। हृदय से शरीर में रक्त का संचार होता है। इसके अलावा सूर्य आंखों की दृष्टि का भी कारक है। विशेषकर दाहिनी आंख। सूर्य आत्मा है और वह ज्योर्तिमय है। सूर्य राजा है, गुरु मंत्री, मंगल सेनापति, चंद्रमा रानि का स्वरूप है। राशि चक्र में सिंह राशि सबसे तेजोमयी राशि है। उसमें मघा नक्षत्र विद्यमान है। सूर्य का कारकत्व सिंह राशि में देखने को मिलता है। इसलिए सिंह राशि सूर्य की अपनी राशि है। जन्मकुंडली का विचार करते समय सूर्य का विचार पहले करना चाहिए। सूर्य के बल के मुताबिक जीवन में शक्ति होती है। जिस कुंडली में सूर्य कमजोर रहता है। वह जातक शारीरिक रूप से कमजोर होता है, इसलिए दूसरे ग्रह भी पूर्ण फल नहीं दे पाते। कहावत है- यदि सूर्य परम नीच स्थान तुला राशि में 100 तक रहते हैं तो बहुत सारे राज योग भंग हो जाते हैं। सूर्य की स्थिति के कारण अन्य ग्रहों का प्रभाव जातक पर कितना होता है, यह सूर्य की उन ग्रहों से दूरी से पता चलता है। दूसरे ग्रह सूर्य से जितनी दूरी पर रहते हैं, उतना अच्छा फल देते है। सूर्य किस राशि में है। वह उसका नीच, उच्च, स्वग्रही, मित्र या शत्रु ग्रही तो नहीं यह तथ्य फलित ज्योतिष में महत्वपूर्ण है। दूसरे ग्रहों से कैसा संबंध है, ग्रह परिवर्तन, दृष्टि संबंध, युति या दूसरे ग्रहों से अंशों के अंतर से फल के बारे में पता चलता है। देखा गया है कि नैसर्गिक पाप का शुभ संपर्क भी बुरा फल देता है। कभी-कभी नैसर्गिक शुभ ग्रह का अशुभ संपर्क शुभ फलदायक होता है। सूर्य केंद्र में होने से उस कुंडली में उसके कारकत्व के मुताबिक अपना प्रभाव देते हैं। सूर्य लग्न में उसकी आकृति, शारीरिक गठन, वर्ण रंग, रूप चाल-चलन को प्रभावित करता है। सूर्य के लग्न के अलावा दूसरे केंद्र में होने से उसके प्रभाव में अंतर आ जाएगा। यदि लग्न में कोई दूसरा ग्रह है और सूर्य चतुर्थ या दशम में हो तो थोड़ा-बहुत प्रभाव देने में सक्षम होगा। चतुर्थ केंद्र का सूर्य से दशम भाव का सूर्य अधिक बलवान रहेगा। चतुर्थ स्थान से घर, वाहन, माता-पिता के बारे में पता चलता है। सप्तम भावस्थ सूर्य पत्नी, कुटुंब, विदेश यात्रा कराएगा। दशम भावस्थ सूर्य उच्चाकांक्षी बनाता है। समाज में उच्च आसन एवं महत्वपूर्ण कार्यों में सफलता दिलाता है। अग्नि तथा मेष राशि में सूर्य अग्नि तत्व राशि मेष के लग्न में सूर्य होने पर जातक को सूर्य के गुण पूर्ण रूप से मिलते हैं, क्योंकि सूर्य स्वयं अग्नि तत्व ग्रह है और मेष राशि का स्वामी मंगल भी अग्नि तत्व का है। इन दोनों के सपंर्क के कारण जातक को अत्यधिक बल मिलता है। जातक घमंडी हो जाता है, साहसी हो जाता है। वह क्रूर स्वभाव का परंतु संस्कारी और न्याय प्रिय होता है। यदि सूर्य का संबंध वृहस्पति से होता है तो जातक संयम, दयालु, ज्ञानी, विश्वासी और अपनी मर्यादा में रहने वाला होता है। यदि सूर्य के साथ बुध का संपर्क होता है तो जातक बुद्धिमान, चंचल प्रवृत्ति, कुशल, कलाप्रिय होता है। सूर्य के साथ शुक्र का संपर्क होने पर जातक को साहित्यक ज्ञान के साथ-साथ सांसारिक सुखों का योग मिलता है। जातक विलासी, भोगी, स्त्री प्रिय, सौंदर्य प्रिय होता है। सूर्य के साथ शनि का संपर्क होने पर मनुष्य स्वार्थी, पर निंदा करने वाला, परिश्रमी, मिथ्यावादी और दुखी होता है। सूर्य के साथ राहु की युति जातक को आलसी, पथ भ्रष्ट, इंद्रियों पर संयम नहीं, डरपोक और स्वभाविक मानसिक प्रवृत्ति वाला बनाती है। उसी तरह सूर्य के साथ केतु की युति हो तो सूर्य के गुणों का ह्रास होता है। जातक मूर्ख, अस्थिर, विचित्र प्रवृत्ति, अन्यायी, अविवेकी, अपने दुखों के प्रति उदासीन, हानिकारक एवं शकी होता है। सूर्य चंद्र की युति मनुष्य को सरलता, कोमलता नहीं देता, क्योंकि चंद्रमा सूर्य के कारकत्व को बढ़ाता है। मनुष्य में सूर्य के गुण अधिक रहते हैं। यदि सूर्य और चंद्रमा परस्पर एक दूसरे पर दृष्टि डालते हैं तो मन और स्वास्थ्य उत्तम रहता है। इसी प्रकार अन्य ग्रहों की अवस्था, स्थिति, बल के आधार पर हर एक राशि का फल मिलता है। मेरे अनुभव में देखने को मिला है कि सूर्य का मेष राशि में लग्न में होना बहुत कम जातकों में मिलता है, क्योंकि जिन शिशु जातकों में लगनस्थ सूर्य मेष राशि का होता है उसमें काफी कुछ हानिकारक होता है यह स्थिति बाल रोग अवश्य देता है। बाल्यावस्था में सूर्य के प्रकोप को सहन करना सहज नहीं है। कहा जाता है कि राम भक्त हनुमान का मेष संक्रांति के दिन सूर्य उदय के समय जन्म हुआ, इसलिए हनुमान जी बहुत पराक्रमी थे। लेकिन दुस्साहस के कारण उन्होंने सूर्य को लाल रंग का फल समझ कर सूर्य को ग्रास बनाने की कोशिश भी की फलस्वरूप उन्हें इंद्र का प्रहार भी झेलना पड़ा। तात्पर्य यह है कि जिस कुंडली में लग्नस्थ सूर्य मेष राशि का हो बाल्यावस्था में उन पर विपत्ति जरूर आती है। यदि किसी प्राकृतिक शुभ ग्रह या बृहस्पति की युति या दृष्टि हो तभी उनके प्रभाव से जातक अपने ऊपर संयम रख सकता है। आयुकारक ग्रह शनि या बृहस्पति की स्थिति का प्रभाव यदि जातक पर पड़ता है तभी उसका जीवन सार्थक होता है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर जी की कुंडली का विश्लेषण देखें। उनका जन्म 17.4.1927 की सुबह 6.15 वाराणसी में हुआ था। इस कुंडली में कई राजयोग हैं। मेष राशि में सूर्य उच्च का लग्न में है और मेष राशि विषम राशि है। चंद्रमा तुला राशि में, तुला राशि भी विषम राशि है। जन्म सुबह सूर्य उदय के समय हुआ, इसलिए महाभाग्य योग मिला। सूर्य-चंद्र मेष लग्न के लिए कारक है और एक दूसरे के आमने सामने हैं। चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि भी है। पूर्णिमा का जन्म होने से चंद्रमा को अधिक बल मिला है, इसलिए यह भी राजयोग है। यदि चंद्र लग्न देखें तो चंद्र से पंचम भाव में स्थित गुरु चंद्र को देख रहे हैं। जन्म लग्न से द्वितीय भाव में स्वग्रही शुक्र पर शनि की दृष्टि और चंद्र लग्न से शनि चतुर्थ पंचम भाव का स्वामी होने के कारण योगकारक भी है। इसलिए शनि की दशा में उनके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आए फिर भी लग्न से अष्टम भाव में शनि होने के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा, क्योंकि इंदिरा जी के शासन काल में आपात काल के दौरान शनि की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा व मंगल की अंतर्दशा में जेल जाना पड़ा, परंतु शनि-राहु की दशा जैसे ही आई, जनता दल की उत्पत्ति हुई और चंद्रशेखर पार्टी के सर्वेसर्वा बने। तब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे। शनि-गुरु की दशा तक उन्हें शुभ फल मिलता रहा। बुध की महादशा आते ही उनसे अपनी पार्टी के लोग बिछुड़ गए और वह धीरे-धीरे कमजोर होते गए। बुध की महादशा में एक समय ऐसा भी आया कि राजीव गांधी के विरोधी दल में उनका नाम फिर से उठने लगा। 1990 के बाद राजीव गांधी के देहांत तक कुछ महीनों के लिए फिर से प्रधानमंत्री बने, परंतु राजीव गांधी का स्वर्गवास होने के बाद उन्हें बदनामी मिली। उसके पश्चात् धीरे-धीरे अकेले पड़ गए, फिर भी हमेशा लोकसभा में जीतते रहे और लोक सभा में हमेशा अपना दबाव बनाए रखते थे। यद्यपि वे फिर से प्रधानमंत्री नहीं बन पाए, क्योंकि बुध इस लग्न के लिए तृतीय एवं षष्ठेश होकर द्वादशेश भाव में नीच का है, परंतु नीच भंग नहीं हो रहा है। इनकी नवांश कुंडली बलवान थी, इसलिए इज्जत बनी रही, क्योंकि नवांश कुंडली में सूर्य उच्च का वर्गोत्तम, चंद्रमा वर्गोत्तम, शनि वर्गोत्तम है। लग्न कुंडली में राहु-केतु उच्च के हैं। पराक्रम भाव में मंगल उच्च के राहु के साथ होकर बलवान है और गुरु की दृष्टि में है। मेष लग्न में सूर्य बलवान होकर 3011' में केतु के नक्षत्र पर है और केतु भाग्य स्थान में उच्च का है, इसलिए जातक को लग्नस्थ सूर्य का पूर्ण फल मिला, क्योंकि केतु की दृष्टि भी सूर्य पर है। परम उच्च अंशों में सूर्य ने जातक को स्वतंत्र विचारधारा, उच्च आकांक्षा और धैर्य के साथ साहसी बनाकर मेष राशि के सूर्य का प्रभाव दिखाया है, परंतु दूसरे ग्रहों के प्रभाव ने चंद्रशेखर को सरल, उदार, मेल-मिलाप वाला और जनता का प्रिय नेता बनाया। यदि सूर्य मेष राशि में उच्च का लग्न में है तो जातक अपनी प्रशंसा सुनना पसंद करता है इस कुंडली में सूर्य के दोनों तरफ प्राकृतिक शुभ ग्रह शुक्र बुध शुभकर्तरी योग बनाकर सूर्य को शुभ फल देने को तत्पर हैं। मेष लग्न के लिए सूर्य पंचमेश त्रिकोण का स्वामी होकर लग्न में चंद्रमा की दृष्टि में है और पूर्ण चंद्र की दृष्टि सूर्य को अधिक प्रभावित करती है। लग्न से दशम भाव का स्वामी शनि अष्टम भाव में होकर कोर्ट-कचहरी करवाता है। इसने जातक को जेल भी भिजवाया, फिर भी गोचर में जब शनि कर्क राशि में थे, तब दशम भाव पर दृष्टि डालकर भारत का सर्वोच्च पद दिलवाया। उस समय शनि की महादशा भी चल रही थी। वैसे अष्टम के शनि ने जीवन में बहुतेरे उतार-चढ़ाव भी दिए। शुक्र की महादशा आते ही उनका स्वर्गवास हो गया। इस प्रकार जिस जातक का मेष लग्न हो और सूर्य लग्न में हो तो सूर्य के प्रभाव से जातक निम्न स्तर से जीवन की ऊंचाई तक पहुंचता है। इसी तरह सिंह और धनु लग्न भी अग्नि तत्व राशियां हैं। मेष राशि में सूर्य उच्च का होकर लग्न में हो तो सूर्य के कारण जातक पित प्रकृति, क्रोधी, धमंडी, चंचल प्रवृत्ति के साथ-साथ उच्च आकांक्षा और परिवर्तन प्रिय होता है। सूर्य सिंह राशि में लग्नस्थ होने और स्वगृही होने के कारण मेष लग्न में सूर्य से कुछ अलग फल देता है, क्योंकि सिंह राशि स्थिर राशि है। जातक मेष राशि जैसा चंचल न होकर सिंह राशि की गति जैसा गंभीर वुद्धि वाला होता है। जातक मेष लग्न वालों जैसा तुरंत क्रोधित होकर तुरंत ठंडा नहीं हेते अपितु मन में कई दिनों तक क्रोध रहता है। हर कार्य को सोच समझ कर करते हैं। मेष लग्न वालों से सिंह लग्न वालों का स्वास्थ्य अधिक अच्छा रहता है। स्वार्थी होते हुए भी बेईमान नहीं होते और बाकी ग्रहों के प्रभाव को देखकर विचार किया जा सकता है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी का जन्म सिंह लग्न में हुआ था। उनका जन्म 20-8-1944 को मुंबई में 8.17 सुबह के समय हुआ था। भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का जन्म सिंह लग्न में हुआ था, परंतु अग्नि तत्व राशि होते हुए भी मेष राशि जैसे गुण उनमें नहीं थे, क्योंकि सिंह लग्न स्थिर लग्न होता है। लग्न में सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र, गुरु पांच ग्रह हैं जिनसे उन्हें भी महाभाग्य योग मिला । राजीव गांधी श्रीमती इंदिरा गांधी की दूसरी संतान थे, राजीव गांधी के छोटे भाई भारत की बागडोर नहीं संभाल पाए परंतु राजीव गांधी का भाग्य अत्यधिक बलवान था इस कारण वह भारत के प्रधानमंत्री भी बने और नाम भी कमाया। लग्न में सूर्य, चंद्र, सिंह राशि में होने के कारण लग्न अत्यधिक बलवान है। वह तीव्र बुद्धि एवं गंभीर व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व के कारण उनकी पार्टी का हर व्यक्ति उन्हें सम्मान देता था। कुंडली में लग्न में पांच ग्रह होने कारण निश्चित रूप से राजयोग मिल जाते हैं। सभी ग्रहों से अधिक बलवान सूर्य अपने ही घर में बैठे हैं। भाग्येश मंगल भाग्य स्थान को देख रहा है। नवांश कुंडली में उच्च के मंगल और उच्च के गुरु हैं। इसलिए राहु-गुरु की दशा में 13 अगस्त 1984 से 7 जनवरी 1987 के मध्य प्रधानमंत्री बने। तात्पर्य यह है कि जिस कुंडली में सूर्य बलवान होता है, उस जातक को ऊंचाई तक पहुंचा देता है। सूर्य अग्नि तत्व राशि में लग्न में है। उसके साथ दशमेश शुक्र, पंचमेश गुरु लग्न में विद्यमान है, परंतु यहां राजयोग भंग भी हुआ है, क्योंकि एकादश भाव का स्वामी बुध और द्वादश भाव का स्वामी लग्न में साथ बैठे हैं। इसलिए वह अधिक समय तक प्रधानमंत्री पद पर नहीं रह पाए और द्वादश भाव में स्थित राहु एवं एकादशेश बुध की अंतर्दशा में एक जानलेवा हमले में मारे गए। इसी तरह धनु लग्न वालों का सूर्य लग्न में जातक को ज्ञानी, बुद्धिमान एवं धार्मिक बनाता है क्योंकि भाग्य एवं धर्म का स्वामी लग्न में बैठा है और मेष से धनु नवम राशि होती है इसलिए वह जातक निश्चित रूप से भाग्यवान होता है। कम कोशिश करने से समाज में उच्च स्थान तक पहुंच जाता है। नीचे विवेकानंद जी की कुंडली दी जा रही है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 सुबह 6.33 पर हुआ था।अग्नि तत्व गुण के साथ-साथ तुला राशि एकादश भाव में वृहस्पति होने के कारण उन्हें राम कृष्ण परमहंस जैसे गुरु मिले। पंचम भाव में मंगल स्वराशि का अपनी मूल त्रिकोण राशि में गुरु की दृष्टि के कारण उन्हें असीम आध्यात्मिक ज्ञान का लाभ मिला। द्वितीय भाव में बुध और शुक्र प्राकृतिक शुभ ग्रह मंगल से दशम और गुरु से चतुर्थ केंद्र में बैठे हैं। शुक्र बुध वाणी स्थान में होने के कारण द्वितीय दशम भाव में संबंध होने से उन्हें विश्व में खयाति प्राप्त हुई। भारत प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी का जन्म 26 सितंबर 1932 को झेलम पाकिस्तान में हुआ। लग्न धन, अग्नि तत्व राशि का स्वामी गुरु अपने ही घर को देखते हैं। सबको विदित है कि उनका स्वभाव तेज नहीं है, वाणी श्री मनमोहन सिंह जी की कुंडली क्रूर नहीं है। उनका भाग्य इतना प्रबल रहा कि वे भारत के प्रधानमंत्री बने। तात्पर्य यह है कि अग्नि तत्व राशि लगन में यदि सूर्य होता तो इज्जत भी मिली। अग्नि तत्व लग्न में सूर्य का प्रभाव नहीं है इसका अंतर उनके स्वभाव से पता चलता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक बार भी नहीं जीते। इनका भाग्य इतना प्रबल है कि उन्हें बुलाकर प्रधानमंत्री का पद दिया गया।



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