शंख का महत्व और उपयोगिता पं. सुनील जोशी जुन्नरकर शंखनाद हिंदू धर्म संस्कृतिं में शंखनाद का विशेष महत्व है। प्राचीन भारत में शंख घोष कर युद्धारंभ की घोषणा की जाती थी। शंख भगवान विष्णु का प्रमुख आयुध है। शंख की ध्वनि आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न होती है। शंखनाद से हमारे आस-पास मौजूद आसुरी एवं तामसिक शक्तियां, रोगों के कीटाणु और हानिकारक जीव जंतु दूर हो जाते हैं। इसलिए पूजा अनुष्ठानों में वातावरण की शुद्धि के लिए शंख बजाया जाता है। शंख की उत्पŸिा शंख एक समुद्री कीड़े का रक्षा कवच होता है। जब उस समुद्री कीड़े का विकास हो जाता है तो वह अपने इस आवरण को त्याग कर इसमें से बाहर निकल जाता है। शंख विभिन्न प्रकार के होते हैं जैसे- मणि पुष्प, गणेश, विष्णु, गोमुखी, पौंड्र, मोती, टाइगर, दक्षिणावर्ती, वामावर्ती आदि। इनमें दक्षिणावर्ती शंख अत्यंत दुर्लभ है। शंखों के आकार-प्रकार के अनुरूप उन्हें मुख्यतः तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है - मध्यावर्ती, वामावर्ती और दक्षिणावर्ती। इनका संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है। मध्यावर्ती शंख: मध्यावर्ती का मुख बीच से खुला होता है। मोती शंख मध्यावर्ती होता है। वामावर्ती शंख: यह बाएं हाथ से पकड़कर बजाया जा सकता है। इसका मुंह बाईंं ओर खुला होता है, इसलिए इसे पं. सुनील जोशी जुन्नरकर वामावर्त शंख कहते हैं। दक्षिणावर्ती शंख: दक्षिणावर्ती शंख का मुंह दाईं ओर खुला होता है। इस शंख को यदि उल्टा खड़ा करके देखा जाए तो इसके शीर्ष बिंदु से घड़ी की दिशा में एक लहरदार आकृति बनती दिखाई देगी। अनेक दक्षिणावर्ती शंखों के मुंह बंद रहते हैं। इसकी पूजा की जाती है। दक्षिणावर्ती शंख का महत्व और उपयोगिता ¬ शंखादौ चंद्रदैवत्यं कुक्षौ वरुणदेवता। पृष्ठे प्रजापति विद्यादग्रे गंगा सरस्वती।। त्वं सागरोत्पन्नो विधृतःकरे। नमित सर्वदैवेश्च पांचजन्य नमोऽस्तुते।। दक्षिणावर्ती शंख के शीर्ष में चंद्र देवता, मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा, यमुना तथा सरस्वती नदियों का वास होता है। शंख में लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए जिस घर में शंख की स्थापना होती है, उसमें लक्ष्मी स्थायी रूप से वास करती हैं। पुलस्त्य संहिता के अनुसार, स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति का एक मात्र उपाय दक्षिणावर्ती शंख कल्प (प्रयोग) ही है। इस प्रयोग से ऋण, दरिद्रता तथा रोग आदि मिट जाते हैं और साधक के घर में हर प्रकार से संपन्नता आने लगती है। दक्षिणावर्ती शंख को अपने घर अथवा व्यवसाय स्थल में विधिवत् प्राण प्रतिष्ठित करके स्थापित कर नित्य प्रातः उसके दर्शन और निम्नलिखत मंत्र से उसे नमस्कार करें, चित्त शांत होगा, दरिद्रता दूर होगी और लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। ¬ हृीं श्रीं क्लीं ब्लूं दक्षिणमुखाय, शंखानिधये समुद्रप्रभावय नमः। दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर किसी स्त्री, पुरुष या बच्चे के ऊपर छिड़कने से रोग, नजर दोष, ग्रहों के कुप्रभाव, जादू-टोना आदि से उसकी रक्षा होती है। दक्षिणावर्ती शंख में गाय का दूध भरकर भगवान शिव को अर्पित करने या उससे उनका अभिषेक करने से वह शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं तथा भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं। दक्षिणावर्ती शंख की पूजा विधि ग्रहण काल, होली, दीपावली आदि के अवसर पर अथवा अन्य किसी शुभ मुहूर्त में दक्षिणावर्ती शंख की निम्न विधि से पूजा करके स्थापना करें। फिर नियमित रूप से धूप, दीप देकर नमस्कार मंत्र से प्रार्थना करें, सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। फिर एक चैकी पर लाल वस्त्र बिछाकर हल्दी से रंगे हुए चावलों से आसन पर अष्टदल कमल बनाएं। फिर शंख को पंचामृत और गंगाजल से स्नान करा कर साफ कपड़े से पोंछ लें और उस पर दूध, रोली और केसर के मिश्रण से एकाक्षरी मंत्र ‘श्रीं’ लिखंे। अब तांबे अथवा चांदी के पात्र मंे रख कर उसे आसन पर श्रद्धापूर्वक स्थापित करें। ¬ हृीं श्रीं क्लीं श्रीधर करस्थाय पयोनिधि जाताय। दक्षिणावृŸिा शंखाय हृीं श्रीं क्लीं श्रीकराय पूज्याय नमः।। ध्यान मंत्र: निम्नलिखित मंत्र से शंख का ध्यान करें। सर्वाभरणभूषिताय, प्रशस्यांगोपांगसंयुक्ताय। कल्पवृक्षाधः स्थिताय, कामधेनु चिंतामणि नवनिधरुपाय।। चतुर्दशरत्न परिवृत्ताय, महासिद्धि सहिताय। लक्ष्मी देवतायुताय, कृष्ण देवताकर ललिताय।। श्रीशंख महानिधये नमः। पूजन: ऊपर वर्णित मंत्र से शंख का ध्यान, आवाहन करने के बाद रोली, चंदन, श्वेत पुष्प, धूप, दीप, इत्र, कर्पूर आदि से उसकी पूजा करें। फिर उसमें गाय का कच्चा दूध भर दें। स्तुति मंत्र: शंख की निम्नलिखित मंत्र से हाथ जोड़कर स्तुति करें। हृीं श्रीं क्लीं ब्लूं श्री दक्षिणावर्तशंखाय। भगवते विश्वरूपाय सर्वयोगीश्वराय। सर्व द्धि समृद्धि वांछितार्थ सिद्धिदाय नमः।। शंख बीजमंत्र अथवा शंख गायत्री मंत्र का यथाशक्ति जप करें। जप करते समय बीच-बीच में मंत्र के अंत में स्वाहा शब्द का उच्चारण करते हुए शंख के दूध में नागकेसर की आहुति देते रहें। शंख गायत्री मंत्र: पांचजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि, तन्नो शंख प्रचोदयात्।। अंत में महालक्ष्मी के निम्नलिखित मंत्र का एक माला जप करें। ¬ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं एंे महालक्ष्मी मम् वांछितार्थसिद्धं कुरु कुरु स्वाहा।। दूसरे दिन शंख के दूध और नागकेसर को केले के वृक्ष में डाल दंे अथवा किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर दें। अब शंख की नियमित रूप से धूप दिखाकर आराधना करें।