लंबे अर्से से क्षेत्र में शोध कार्य कुछेक श्रेष्ठों के कुंडली विश्लेषण पर विशेष ध्यान दिया गया, प्रायः देखा गया है कि कुछ ही क्षणों में श्रष्ठ कुंडली का विश्लेषण कर देते हैं, अंशों पर ध्यान नहीं दिया जाता विशेष स्थान पर सवाल कर दिया कि अंश आखिर क्यों विचारणीय है। खैर सर्वमान्य है कि आदिकाल में भविष्य कथन का मुख्य आधार नक्षत्र रहे हैं। ऐसे कई कथन इतिहास में विद्यमान है जहां नक्षत्रों के आधार पर भविष्य में होने वाली घटनाओं को उजागर किया गया था। एक राशि में सवा दो नक्षत्रों की व्यवस्था सर्वमान्य है। दशांतर दशा, शुभाशुभ योगों व गंडमूल इत्यादि का मुख्य आधार नक्षत्र भ्रमण/नक्षत्र ही हैं। यदि कुंडली को ध्यान से देखा जाए तो अंशों के आधार पर किसी ग्रह द्वारा राशि के अतिरिक्त ग्रह किस नक्षत्र में स्थित है यही स्पष्ट होता है।
विशेषकर कम्प्यूटर द्वारा निर्मित कुंडली में यह विवरण स्पष्ट दिया जाता है। यथा प्रस्तुत कुंडली जो कालसर्प योग से ग्रसित है। अंशों की महत्ता व अंशों के आधार पर ग्रह द्वारा अधिष्ठित नक्षत्र व शुभाशुभ योगों के प्रभाव में वृद्धि न्यूनता, अकारक ग्रहों के अकारक तत्व का स्थानांतरण व यह विश्लेषण करने के लिए पाठकों के हितार्थ निरीक्षण प्रकाशित की जाती है कि यदि अंशों के आधार पर यदि ग्रह किसी अन्य शुभाशुभ ग्रह के नक्षत्र में होता तो कैसे फल बदलने की संभावनाएं हो सकती थी। निरयण ग्रह स्पष्ट ग्रह राशि अंश दिशा नक्षत्र चरण नक्षत्र स्वामी लग्न मिथुन 26ः58ः09 पुनर्वसु 3 गुरु सूर्य कुंभ 08ः03ः12 शतभिषा 1 राहु चंद्र कुंभ 14ः58ः40 शतभिषा 3 राहु मंगल मीन 19ः34ः31 मार्गी रेवती 1 बुध बुध कुंभ 08ः56ः28 मार्गी शतभिषा 1 राहु गुरु मकर 09ः28ः53 मार्गी उ.षा. 4 सूर्य शुक्र मीन 20ः50ः58 मार्गी रेवती 2 बुध शनि वृश्चिक 04ः18ः50 मार्गी अनुराधा 1 शनि राहु मेष 28ः12ः15 वक्री कृत्तिका 1 सूर्य केतु तुला 28ः12ः15 वक्री विशाखा 3 गुरु जातिका का जन्म लग्न मिथुन है अतः बुध का प्रभाव जातिका पर पड़ेगा, नक्षत्रेश गुरु है (पुनर्वसु) परंतु आगे यह आकलन करना आवश्यक हो जाएगा। बुध व गुरु (लग्न का नक्षत्रेश) क्या किसी प्रभाव में (शुभाशुभ) है।
लनानुसार गुरु अकारक ग्रह की श्रेणी में आता है यथा महर्षि पराशर ने प्रत्येक लग्न के लिए कुछ ग्रहों को क्रमशः कारक अकारक की श्रेणी में रखा है। इसी के आधार पर मिथुन लग्न के लिए बुध, शुक्र व शनि कारक, सूर्य, मंगल, गुरु अकारक व चंद्र तटस्थ ग्रह है। प्रस्तुत कुंडली में कालसर्प योग विषाक्त कालसर्प योग राहु की एकादश भाव में व केतु की पंचम भाव में स्थिति के कारण निर्मित हो रहा है। जातिका की पढ़ाई छूट चुकी है, पिता के सुख से जातिका विहीन है यद्यपि पिता जीवित है परंतु श्रेष्ठ कुल से संबंधित होने के बावजूद कुप्रवृत्तियों का शिकार है, जातिका की स्वयं की कुंडली में दशम भाव में शुक्र-मंगल की युति है व गुरु नीच राशि में स्थित है (मर्यादा की दृष्टि से कुछ तथ्यों पर विचार उत्तम नहीं)। जातिका हृदय रोग से पीड़ीत है। शरीर पूर्ण विकसित नहीं है (जन्म 20/02/1985 समय 14ः55) जातिका देखने में कोई 12-15 साल की बालिका लगती है। राहु मेष राशि में स्थित है अकारक ग्रह (लग्नानुसार) सूर्य के नक्षत्र कृत्तिका में स्थित है, मेष राशि सूर्य की उच्च राशि व मंगल की राशि है। शनि पंचम भाव में स्वनक्षत्री (अनुराधा) व उच्च का है (निरयण भाव चलित में) कुंडली में अष्टमेश की स्थिति षष्ठ भाव में है परंपरागत ज्योतिषानुसार विपरीत राजयोग कारक होकर अष्टमस्थ गुरु पर दृष्टि डाल रहा है।
नवम भाव में बुधादित्य योग, अमावस्या का जन्म (परंपरागत ज्योतिषानुसार कन्या भाग्यशाली) केंद्र में कारक ग्रह (लग्नानुसार) शुक्र उच्च राशिस्थ है। परंतु इतने शुभ योग होने के उपरांत भी कन्या कष्ट में क्यों, कालसर्प योग का प्रभाव क्षीण क्यों नहीं हुआ। जातिका में चारित्रिक दोष क्यों है। यदि सूक्ष्मता से अंशों के आधार पर, नक्षत्रों के आधार पर, नक्षत्र ज्योतिष के कुछ नियमों के आधार पर कुंडली का विश्लेषण किया जाए तो शनि ही कुछ शुभता लिए है वर्तमान में चल रही शनि दशा विशिष्ट उपायों के उपरांत कुछ राहत प्रदान कर सकती है। सूर्य राहु में नक्षत्र परिवर्तन निरयण भाव चलित में शनि का उच्च राशिस्थ होकर एकादश स्थित राहु पर दृष्टिपात करना, राहु के माध्यम से सूर्य के दुःप्रभावों में कुछ कमी लाई जा सकती है। निरयण भाव चलित में केतु-शनि की युति केतु के दुःप्रभावों को क्षीण करने में सक्षम है।
स्वयं लग्नेश-सुखेश बुध राहु के नक्षत्र में स्थित है नवम भावस्थ तीनों ग्रह लग्नेश, तृतीय द्वितीयेश राहु के नक्षत्र में है, तीनों ही ग्रह अकारक साबित हो रहे हैं, दो अकारक ग्रहों की युति के प्रभाववश बुध लग्नेश-सुखेश, अकारकत्व प्राप्त कर रहा है। फलस्वरूप दशम भावस्थ शुक्र उच्च राशि बुध प्रतिनिधि, बुध के नक्षत्र रेवति में स्थिति के फलस्वरूप श्रेष्ठ फल प्रदान करने से असक्षम है और यही मंगल अपना अकारक क्षीण करने में असक्षम है। प्रभाववश तृतीयेश की अशुभ स्थिति व तृतीय के स्थिर कारक मंगल की अशुभता के कारण जातिका के भाई से मधुर संबंध नहीं है क्योंकि जातिका का भाई जातिका पर नियंत्रण करने की कोशिश करता है।
वर्गोत्तम नवांश है जिस के प्रभाववश जातिका किसी भी चिंता से मुक्त है, रोग के कारण व जातिका की दादी के कारण (जातिका को दादी का सहयोग पूर्णतः प्राप्त है) गुरु योगकारक भाग्येश शनि से दृष्ट है, निरयण भाव चलित में गुरु स्वराशिस्थ (केंद्राधिपति दोष) उच्च राशिस्थ योगकारक शनि से दृष्ट नवांश में द्वितीय पंचम सप्तम नवम एकादश का कारक यही गुरु दशम भाव में स्वराशिस्थ है चंद्र वर्गोत्तम नवांश में है माता के कारक व धनेश की स्थिति सुदृढ़ है परंतु शायद यही सहयोग जातिका को निरंकुश, घुमक्कड़ प्रवृत्ति का बना रहा है। पिता प्रायः घर में नहीं होते भाई का अंकुश लगाने का प्रयास व्यर्थ/निरर्थक साबित हो रहा है। यदि यही स्थिति रही और जातिका ने श्रेष्ठों द्वारा बताए नियमों, ज्योतिष उपायों की अवहेलना की तो चाहे वर्तमान में योगकार/भाग्येश शनि की दशांतर दशा चल रही है जातिका सुखपूर्वक रह रही है परंतु आगे की जिंदगी वैवाहिक व समाजिक प्रभावित हो सकती है।
ईश्वर न करे जातक को आगे विकट स्थितियों का सामना करना पड़े। वर्तमान दशांतर दशा तिथि 1.12.2007 से 4.12.2010 तक शनि-शनि इसी प्रकरण में ‘तारिणी तरंग’ ने अध्ययन किया है कि शुभाशुभ फल केवल दशांतर दशा नाथ के हाथ नहीं, प्रत्यंतर दशाानाथ भी ग्रह प्रदत फलों को पूर्ण या आंशिक रूप से प्रभावित करता है अतः प्रत्यंतर दशा का विवरण व ग्रहों की गोचरीय स्थिति अंतिम फल का निर्णय कर सकती है अथवा प्रभावित कर सकती है। प्रत्यंतर दशा शनि-शनि-शनि = 1.12.2007 से 22.5.2008 तक शनि-शनि-बुध= 22.5.2008 से 26.10.2008 तक शनि-शनि-केतु=26.10.2008 से 29.12.2008 तक शनि-शनि-शुक्र= 29.12.2008 से 30.6.2009 तक शनि-शनि-सूर्य = 30.6.2009 से 24.8.2009 तक इसी प्रकार अंतरदशा के साथ-साथ प्रत्यंतर दशा का साधन कर गोचरीय स्थिति में उसकी शुभता अशुभता, अधिष्ठित नक्षत्र, नक्षत्रेश इत्यादि ज्योतिष तथ्यों का नियमों के आधार पर फलादेश करना श्रेष्ठ ज्योतिष शास्त्री का कर्तव्य है।
इसी आधार पर इसी प्रकरण में यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि शेष दशा काल शुभ हो सकता है क्योंकि लग्न व निरयण भाव चलित व नवांश कुंडली के विश्लेषण के आधार पर शनि (योगकारक) चलित भाव में उच्च राशिस्थ दशांतर-प्रत्यंतर शुभ फलदायक रहेगा। बुध प्रत्यंतर भी शुभता की ओर अग्रसर रह सकता है इसी प्रकार 30.6.2009 शुक्र प्रत्यंतर जातिका के लिए राहतप्रद रहेगा। कई बिगड़े कार्य संवरेगे, गाड़ी पटरी पर आ सकती है परंतु यदि जातिका ने कहीं भी चूक की, श्रेष्ठों बुर्जुगों के मशवरे पर संदेह किया, स्वयं पर वांछित नियंत्रण रखने का प्रयास न किया तो हो सकता है 30.6.2009 से 24.8.2009 तक का शंकित समय काल कुछ विकट समस्याओं को निमंत्रण दें। विशेष: संस्था जातिका को मार्गदर्शन प्रदान कर चुकी है।
आवश्यक उपाय ज्योतिष, वैदिक पूर्ण कर दिए गए हैं। जातिका के रिश्ते (विवाह) की बात चल रही है, पुनः पढ़ाई जातिका प्रारंभ कर रही है। जातिका के स्वभाव में कुछ फर्क पारिवारिक सदस्यों ने महसूस किया है। नीलम व पन्ना रत्न जातिका को धारण करवाया जा चुका है।