इच्छित संतान प्राप्ति कैसे
इच्छित संतान प्राप्ति कैसे

इच्छित संतान प्राप्ति कैसे  

सुखदेव शर्मा
व्यूस : 5552 | जनवरी 2012

हमारी भारतीय संस्कृति में मानव को चरम लक्ष्य पूर्णता तथा आनंदरूपता को माना गया है। हमारी संस्कृति सोलह संस्कार में गर्भाधान संस्कार प्रथम है। यही संस्कार मानव प्राथमिक पवित्रता शुद्ध भावना दर्शाता है। भारतीय ऋषियों ने धर्म की दृष्टि से प्रतिपादित किया है। इसमें पितृ ऋण मुक्ति, इच्छित संतान उत्पति करना है। ये वेदों में इसका पूर्ण वर्णन मिलता है।

नारद पुराण के अनुसार - यादृशेन भावेन योनौ शुक्रं समुत्सृजेत। तादृशेन हि भावेन संतान समवेदिति।। अर्थात जिस भाव से योनि में वीर्य डाला जाता है उसी भाव से युक्त संतान होती है। इसलिए मनुष्य को गर्भाधान करते समय जैसे सुपुत्र की इच्छा हो, वैसे शुभ भाव से युक्त होना चाहिए। पुराणों में तो इसको अनेक उदाहरण मिलते हैं।

शुभ काल में गर्भाधान - मनु . /4/128 अमावस्याष्टमी च पौर्णमासी चतुर्दशीया ब्रह्मचारी भवेनित्यमप्यृतो स्यात कोकिणः।। अमावस्या, अष्टमी, पौर्णमासी, चतुर्दशी इन चार तिथियों में ऋतुकाल होने पर दोनों को ब्रह्मचारी रहना चाहिए। इस निषिद्ध तिथियों में सूर्य-चंद्र ग्रहण काल में और संध्याकाल में गर्भाधान करने से अशुभ संतान उत्पन्न होती है। संध्याकाल में गर्भाधान के कारण ही रावण, कुंभकर्ण, हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष आदि दुष्टों की उत्पत्ति हुई। पुराणों में कहा गया है।

गर्भकाल में माता की भावना ही प्रमुख होती है। जब गर्भ में संतान होती है। जैसी सात्विक, राजस, तामस भावना से भावित रहती है। जैसा अच्छा-बुरा देखती, सुनती, पढ़ती, खाती पिती है। उन सबका गर्भ में स्थित संतान पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए गर्भवती स्त्री को राजस-तामस भावों से बचकर सात्विक भावना करनी चाहिए।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


गंदे, सिनेमा, टेलीविजन, पोस्टर न देखकर सात्विक विचार देव दर्शन, संत दर्शन आदि ही करना चाहिए। गंदे गीत सुनना, गाना छोड़ आध्यात्मिक भजन कीर्तन को सुनना, गाना चाहिए। गंदे उपन्यास पढ़ना, सुनना, सुनाना छोड़कर रामायण, भागवत आदि सात्विक ग्रंथ ही पढ़ना, सुनना, सुनाना चाहिए। राजस, तामस, मांस मदिरा, अंडा, प्याज, लहसुन, अति तीक्ष्ण मिर्च मसाला छोड़कर सात्विक दूध, घी, दाल, रोटी आदि ही खाना चाहिए। गर्भकालीन भावना का संतान पर प्रभाव पड़ता है।

इसका प्रमाण प्रहलाद का चरित्र है एवं ध्रुव का वर्णन पुराणों में आया है। जन्मांतर शिक्षा ही जीवन साथ रहती है। गर्भकाल में माता भावना शीर्षक में जिन सात्विक बातों के सेवन तथा राजस-तामस बातों के लोग का विधान किया गया है। उनका सेवन और त्याग संतानों से भी कराना चाहिए।

तभी गर्भकाल में की गई माता की भावनाओं को प्रकट होने में सहायता होगी। नहीं तो राजस, तामस का सेवन कराने से वे सात्विक भावना रूप बीज नष्ट हो जायेंगे।

यह नहीं समझना चाहिए ये अभी छोटे बच्चे हैं, कुछ समझते ही नहीं। अतः जो देखते, सुनते, गाते हैं। उनका इन पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। यद्यपि यह सत्य है कि 3, 4, 5 वर्ष के बच्चे गंदे चित्रों तथा गंदे गीतों का भाव बिल्कुल नहीं समझते, फिर भी इसका प्रभाव तो पड़ता है।

बच्चों का हृदय गीली मिट्टी के समान होता है, उसे जैसे सांचे में डाला जायेगा वैसा बन जायेगा। पुत्र प्राप्ति संतान हेतु उसी नक्षत्र व सूर्य, मंगल, गुरु दशा का होना आवश्यक है। स्त्री(पुत्री) संतान हेतु नक्षत्र के साथ ही चंद्र, शुक्र, बुध दशाएं होती है। स्त्री कारक भावना प्रबल होती है।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


वही पुरुष कारक भावना प्रबल होने पर पुत्र की प्राप्ति होती है। रात्रि समय 2 बजे, 4 बजे मध्यम अच्छा माना गया है। गर्भाधान 12 बजे समय गर्भाधान आलसी एवं मंद बुद्धि समय माना गया है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.