जन्मकुंडली द्वारा विद्या प्राप्ति
जन्मकुंडली द्वारा विद्या प्राप्ति

जन्मकुंडली द्वारा विद्या प्राप्ति  

व्यूस : 8188 | फ़रवरी 2008
जन्मकुंडली द्वारा विद्या प्राप्ति प्रश्न: कुंडली से कैसे जानें विद्या का स्तर एवं क्षेत्र? विद्या प्राप्ति के लिए क्या-क्या ज्योतिषीय व वास्तु उपयोग किये जा सकते हैं? विद्या प्राप्ति हेतु मां सरस्वती की पूजा आराधना क्यों की जाती है? विस्तार सहित पूजन विधि एवं मंत्रों का वर्णन करें। स भी को शिक्षा का समान अवसर मिलने के बावजूद केवल कुछ लोगों की ही विद्या क्यों पूरी हो पाती है। अधिकांश लोगों की विद्या अपूर्ण क्यों रहती है? और कुछ लोगों को विद्या से पूर्णतया वंचित क्यों रहना पड़ जाता है? इन सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार शिक्षा का विचार तृतीय एवं पंचम भाव से किया जाता है। जातक परिजात के अनुसार चतुर्थ एवं पंचम भाव से शिक्षा का विचार किया जाता है। फलदीपिका में लग्नेश, पंचम भाव एवं पंचमेश के साथ-साथ चंद्र, बृहस्पति एवं बुध को शिक्षा का कारक बताया गया है। भावात् भावं सिद्धांत के अनुसार पंचम से पंचम होने के कारण नवम् भाव से भी शिक्षा पर विचार किया जाता है। नवम् का शनि विज्ञान एवं दर्शन की शिक्षा प्राप्त कराता है। शिक्षा की स्थिति का पता लगाने के लिए दशम एवं एकादश भावों का विश्लेषण भी किया जाता है। द्वितीय भाव से बाल्यकाल में विद्या ग्रहण करने की योग्यता का बोध होता है। पंचम भाव शिक्षा का मुख्य भाव होता है। पंचम भाव और पंचमेश के साथ ग्रहों का दृष्टि या युति सम्बध शिक्षा को सर्वाधिक प्रभावित करता है। त्रिक स्थानों में स्थित पंचमेश या गुरु शिक्षा में रुकावट डालता हैं। यहां यदि कोई भी ग्रह स्वगृही, या उच्च का होकर बैठा है तो वह उच्च शिक्षा प्रदान करता है। यह स्नातक और स्नातकोŸार तक की शिक्षा आसानी से दिला देता है। दशम भावस्थ सूर्य, मंगल और राहु राजनीतिशास्त्र व तकनीकी ज्ञान, सूर्य चंद्र और शनि धार्मिक ग्रथों का और, बुध व बृहस्पति वाणिज्य व व्यापार का ज्ञान प्रदान करते हैं। चंद्रमा व शुक्र सौंदर्य प्रसाधन, वाद्य व गान विद्या प्रदान करते हैं। एकादश भाव में स्थित चंद्र और गुरु एवं पंचम भावस्थ शुक्र अनेक शास्त्रों का ज्ञान प्रदान करते हैं। ऊपर वर्णित ग्रह स्थितियों के अतिरिक्त पंचम भाव के कारक गुरु का बल भी अवश्य देखना चाहिए। गुरु जितना ही बलशाली होगा जातक उतना ही विद्वान होगा। विद्या प्राप्ति के लिए ज्योतिषीय योग चार या उनसे अधिक ग्रहों के फलकथन के विषय में वराह-मिहिर कहते हैं, ‘‘ऐसे जातक विद्या प्राप्ति एवं प्राप्त विद्या के उपयोग के लिए संन्यासी होते हैं और योगकारक ग्रहों के बलाबल के भेद से भिन्न प्रकार के होते हैं अर्थात ये एक विशिष्ट प्रकार के जातक होते हैं जो तप बल द्वारा विद्या प्राप्त कर लोक कल्याणकारी कार्य हेतु ही विद्या दान भी देते हैं। इसी विषय में आचार्य कल्याण, बर्मा, सारावली में कहते हैं कि ‘‘इस प्रकार के योगों में तपस्वियों का जन्म होता है। ऐसे जातक संन्यासी होते हैं। किसी-किसी जातक की कुंडली में एक विशिष्ट योग भी होता है जिसे और, बुध व बृहस्पति वाणिज्य व व्यापार का ज्ञान प्रदान करते हैं। चंद्रमा व शुक्र सौंदर्य प्रसाधन, वाद्य व गान विद्या प्रदान करते हैं। एकादश भाव में स्थित चंद्र और गुरु एवं पंचम भावस्थ शुक्र अनेक शास्त्रों का ज्ञान प्रदान करते हैं। ऊपर वर्णित ग्रह स्थितियों के अतिरिक्त पंचम भाव के कारक गुरु का बल भी अवश्य देखना चाहिए। गुरु जितना ही बलशाली होगा जातक उतना ही विद्वान होगा। विद्या प्राप्ति के लिए ज्योतिषीय योग चार या उनसे अधिक ग्रहों के फलकथन के विषय में वराह-मिहिर कहते हैं, ‘‘ऐसे जातक विद्या प्राप्ति एवं प्राप्त विद्या के उपयोग के लिए संन्यासी होते हैं और योगकारक ग्रहों के बलाबल के भेद से भिन्न प्रकार के होते हैं अर्थात ये एक विशिष्ट प्रकार के जातक होते हैं जो तप बल द्वारा विद्या प्राप्त कर लोक कल्याणकारी कार्य हेतु ही विद्या दान भी देते हैं। इसी विषय में आचार्य कल्याण, बर्मा, सारावली में कहते हैं कि ‘‘इस प्रकार के योगों में तपस्वियों का जन्म होता है। ऐसे जातक संन्यासी होते हैं। किसी-किसी जातक की कुंडली में एक विशिष्ट योग भी होता है जिसे स्मरण शक्ति यदि पंचम स्थान में शनि व राहु हों और शुभ ग्रह की पंचम स्थान पर दृष्टि न हो तो स्मरण शक्ति दुर्बल होती है। पंचमेश अथवा पंचम स्थान शुभ दृष्ट या शुभ युक्त हो या बृहस्पति पंचम स्थान के स्वामी के केंद्र या त्रिकोण में हो, तो स्मरण शक्ति प्रबल होती है। शिक्षा का क्षेत्र बुध एवं गुरु की युति दशम भाव में हो, तो जातक लेखक होता है। बुध और शुक्र की युति हो, तो जातक कवि या संगीतज्ञ होता है। गजकेसरी योग यदि पंचम या नवम् में हो, तो जातक ज्योतिष या हस्त रेखा का जानकार होता है। मंगल व शुक्र की युति हो, तो जातक मल्लविद्या का जानकार होता है। चिकित्सक बनने के योग सूर्य और मंगल की दशम भाव में युति हो। मंगल, चंद्र एवं शनि का संबंध दशम भाव से हो। सूर्य व मंगल का दृष्टि संबंध हो, बृहस्पति द्वितीय तथा शनि द्वितीय और दशम भावों पर दृष्टि डाले। मंगल, सूर्य एवं राहु की युति अष्टम् भाव में हो तथा शनि का संबंध दशम भाव से हो। द्वादशेश दशम भाव में सूर्य के साथ हो। अध्यापन के योग बुध व गुरु का संबंध हो और दोनों बलवान हों। बुध का संबंध द्वितीय, पंचम या नवम् भाव से हो। तृतीय भाव में बलवान गुरु हो। बुध दशम या सप्तम भाव में हो। गुरु और बुध का एकादश भाव से संबंध हो। इंजीनियर बनने के योग मंगल व राहु का योग हो। बुध, सूर्य व मंगल का संबंध हो। मंगल व शुक्र का युति एवं दृष्टि संबंध पंचम व दशम भाव से हो। सूर्य एवं मंगल की युति दशम् या एकादश भाव में हो। शुक्र व शनि की युति हो। स सूर्य और चंद्र की युति पर शनि की दृष्टि हो। वकील बनने के योग बुध लग्न या व्यय भाव में हो। दशम भाव शनि से प्रभावित हो। फिल्म क्षेत्र में जाने के योग तुला राशि, लग्न एवं शुक्र बलवान हों, तो जातक की फिल्म क्षेत्र में जाने के प्र्रबल संभावना रहती है। ऊपर वर्णित विवरणों व विभिन्न जातकों की कुंडलियों के विश्लेषण व शोध के आधार पर उनके जीवन से जुड़े विभिन्न प्रश्नों के उत्तर प्राप्त दिए जा सकते हैं। विद्या प्राप्ति हेतु वास्तु उपयोग विद्या प्राप्ति के लिए अध्ययन कक्ष वास्तु के अनुरूप बनाना चाहिए। विद्यार्थियों के लिए पढ़ाई का कमरा घर के उत्तर-पूर्व (ईशान क्षेत्र) में होना चाहिए। पढ़ाई करते समय मुंह पूर्व दिशा में रहना चाहिए। यदि ईशान क्षेत्र में अध्ययन कक्ष संभव न हो तो भी विद्याध्ययन पूरब या उत्तर की ओर मुंह करके ही करना चाहिए। विद्यार्थियों के अध्ययन कक्ष में गुलाबी, आसमानी, हल्का हरा अथवा श्वेत रंग शुभ माना जाता है। सफेद रंग निर्मलता का प्रतीक है। विद्यादायी सरस्वती का परिधान शुक्ल, श्वेत या सफेद ही है। यदि विद्यार्थी अपनी लेखनी भी सफेद वर्ण की प्रयोग में लाएं तो लेखन कार्य आसानी से पूर्ण हो जाता है। हल्का नीला रंग शांतिदायक होता है। हल्का हरा रंग मन भावन होता है। यह बुध ग्रह का रंग है। हल्का गुलाबी रंग अर्थात कमल की पुंखड़ियों जैसा सफेदी लिए हुए गुलाबी रंग हृदय की प्रफुल्लता बढ़ाने वाला होता है। विद्या प्राप्ति के निमित्त इन्हीं रंगों के अनुरूप प्रायः कापियों के पन्ने सफेद, लकीरें नीली और हाशिए की लकीरें गुलाबी सी हुआ करती हैं। विद्यार्थियों का अध्ययन कक्ष शोरगुल वाले वातावरण से सदैव मुक्त रहना चाहिए। विद्यार्थी जहां बैठकर पढ़ें उनके पृष्ठ भाग में खिड़की या द्वार न हो अर्थात पीठ के पीछे दीवार होनी चाहिए। बैठक या कुर्सी के दायें भाग में पुस्तकें, कापियां आदि रखने के लिए रैक या अलमारी होनी चाहिए। पूर्व दिशा वाले पढ़ाई के कक्ष में अलमारी र्नैत्य कोण में रखनी चाहिए। अलमारी या तो दरवाजे वाली हो अथवा हल्के हरे, नीले, पीले अथवा सुनहले परदों से ढकी रहे। अध्ययन कक्ष में ताजे फूलों का गुलदस्ता रखने से पुष्पों की हल्की भीनी सुगंध एकाग्रता बढ़ाती है। इसके विपरीत चीनी वास्तु शास्त्र फेंग शुई कृत्रिम पुष्पों को सजाकर रखने की अनुशंसा करता है। वहीं दूसरी ओर ग्लोब, एजुकेशन टाॅवर अथवा स्फटिक की बनी आठ छोटी-छोटी गेंदों अर्थात क्रिस्टल बाॅल्स को लाल फीते में बांधकर पढ़ाई के कमरे की उत्तर-पूर्व दिशा में लटकाने की सलाह देता है। ऐसी मान्यता है कि ग्लोब को टेबिल या अध्ययन कक्ष के ईशान कोण में स्थापित करने से छात्र के ग्लोबल कैरियर बनने में मदद मिल सकती है। फेंग शुई के अनुसार विद्याभिलाषी जातक को ऐसे ग्लोब या स्फटिक के बने ग्लोब को दिन में लगभग तीन बार घुमाना चाहिए। माना जाता है कि यदि कोई विद्याभिलाषी जातक शिक्षा अवधि के दौरान ग्लोब को उपयोग में लाता है और दुनिया के प्रतीक रूप ग्लोब को घुमाता है तो भविष्य में उसके विद्यावान बन जाने पर दुनिया भी उसे लक्ष्मीवान बनाने के लिए देश-विदेश में घुमाएगी। एजुकेशन टाॅवर उच्च शिक्षा प्राप्ति का प्रतीक है। आठ स्फटिक की गेंदों में से सात गेंदें सात समुद्र अथवा सात महाद्वीपों की प्रतीक हैं और विद्याभिलाषी जातक रूपी गेंद आठवीं होती है। इन्हें उत्तर-पूर्व के ज्ञान क्षेत्र में लगाने का आशय यह है कि जातक शीर्षस्थ विद्वान बनकर सात समुद्र पार जाए और सातों महाद्वीपों में अपनी विद्या, विनय और विवेक का परचम फहराकर अपने देश का नाम रोशन करने में कामयाब हो सके। विद्या-बुद्धि प्राप्ति हेतु सामान्य वास्तु नियम स घर में नवरत्नों का पेड़ लगाने से विद्या-बुद्धि संबंधी सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। स घर की उत्तर दिशा में धातु का बना हुआ कछुआ रखने से विद्या, बुद्धि एवं आयु में वृद्धि होती है। स घर में प्रातः एवं सायंकाल गोधूलि वेला में शुभ मंत्रों का सस्वर उच्चारण करने या सुनने से विद्या, बुद्धि और धन-धान्य संबंधी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। स घर के उत्तर-पश्चिम में धातु के सिक्कों से भरा कांच का कटोरा रखने से छात्र की बुद्धि तीव्र होती है और वह उच्च कोटि का विद्वान होता है। स सूखे फूल घर में नहीं रखने चाहिए, इससे बुद्धि कमजोर होती है, भ्रम की स्थिति आती है और याद किया हुआ सबक भूलने की संभावना रहती है। स पश्चिम दिशा में छः छड़ों वाली पवन घंटियां (विंड चाइम) लगाने से बुद्धि विकसित होती है। स घर में प्रतिदिन प्रातः और सायंकाल शंख तथा घंटियां बजानी चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा बाहर होती है तथा घर के सभी सदस्यों की विद्या और बुद्धि का विकास होता है। इससे घर का वातावरण पूर्णतः शांत रहता है। दस महाविद्याएं शाक्त तंत्रों के अनुसार दस महाविद्याएं क्रमशः इस प्रकार हैं। 1. काली 2. तारा 3. षोडशी (त्रिपुर संुदरी) 4. भुवनेश्वरी (श्रीविद्या/ललिता) 5. छिन्नमस्ता 6. भैरवी (त्रिपुर भैरवी) 7. धूमावती 8. बगला (बगलामुखी) 9. मातंगी और 10. कमला (लक्ष्मी) । इनमें से काली के शिव हैं महाकाल, तारा के शिव अक्षोभ्य, षोडशी के पंचवक्त्र, भुवनेश्वरी के त्रयंबक, छिन्नमस्ता के कबंध, भैरवी के दक्षिणामूर्ति, बगलामुखी के एक मुख महारुद्र, मातंगी के मतंग और कमला के सदाशिव श्री विष्णु हैं। धूमावती विधवा रूपा हैं इसलिए उनके शिव नहीं हैं। साधना काल: नवरात्र के नौ दिन आद्या शक्ति की उपासना के लिए परम प्रशस्त हैं। नवरात्र एक वर्ष में चार बार आती है। इनमें से चैत्र के नवरात्र को वासंतिक, आश्विन के नवरात्रि को शारदीय तथा आषाढ़ एवं पौष मास के नवरात्रों को गुप्त नवरात्र कहते हैं। आश्विन शुक्ला प्रतिपदा से नवमी तक के शारदीय नवरात्र का समय शक्ति उपासना का महापर्व होता है। इसमें सभी गृहस्थ दुर्गा की उपासना करते हैं, जबकि शाक्तमत में दीक्षित साधक अपनी लौकिक एवं पारलौकिक कामना की पूर्ति के लिए दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। सरस्वती पूजन: मां सरस्वती के पूजन के लिए गुरु से प्राप्त प्राण प्रतिष्ठत सरस्वती यंत्र प्रयोग में लाया जाता है। सदगुरु प्रदत्त यंत्र का सर्वप्रथम आवरण पूजन संपन्न किया जाता है। सरस्वती के पूजन के लिए हाथी दांत की बनी सरस्वती की मूर्ति श्रेष्ठ मानी जाती है। सर्वप्रथम आम की पटिया पर श्वेत वस्त्र बिछाकर सरस्वती विग्रह को स्थापित किया जाता है। फिर लघु प्राण प्रतिष्ठा मंत्र पढ़कर विग्रह को पुष्प के द्वारा संस्पर्शित किया जाता है। फिर नीचे लिखे क्रमानुसार मंत्रों का श्रद्धापूर्वक उच्चारण करते हुए पूजन सामग्री विग्रह पर अर्पित की जाती है और अंत में क्षमा प्रार्थना के साथ आरती संपन्न की जाती है। 1. गणेश ध्यानम् 2. स्वस्ति वाचन 3. पवित्रीकरण 4. रक्षा विधान 5. संकल्प 6. सरस्वती ध्यानम् 7. आवाहनम् 8. आसनम् 9. पाद्यम 10 अघ्र्यम् 11 आचमनम् 12. स्नानम् 13. वस्त्रम् 14. मधुपर्कमर्् 15. आभूषणम् 16. श्वेत चंदनम् 17. रक्तचंदनम् 18. सिंदूरम 19 कुंकुमम् 20. सुगंधित इत्र 21. अक्षतम् 22. पुष्पम् 23. पुष्पमालायाम् 24. दूर्वा 25. अबीर-गुलाल 26. धूपम् 27. दीपम् 28. नैवेद्यं 29. ऋतुफलम् 30. आचमनीयम् 31. ताम्बूलम, 32. दक्षिणाम् 33. नीराजनम् 34. प्रदक्षिणा 35. नमस्कारम् 36. पुष्पांजलिम् 37. प्रार्थनाम्। इस प्रकार ऊपर वर्णित विधि से पूजन संपन्न कर भगवती सरस्वती देवी के सम्मुख अपना माथा टेक कर प्रणाम करें। पूजन के अगले दिन यंत्र एवं प्रतिमा को छोड़कर शेष पूजन सामग्री किसी नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें। दुर्लभ विद्याराज्ञी साधना जब साधक दस महाविद्याओं की साधनाओं की ओर उन्मुख होता है तब उसे सर्वप्रथम विद्याराज्ञी सरस्वती साधना संपन्न कर लेनी चाहिए। इस साधना से साधक अपनी विद्या में पारंगत होता है। इस साधना के प्रभाव से गूढ़ व अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर साधक को स्वतः मिलते रहते हैं। सर्वप्रथम सद्गुरु प्रदत्त महासरस्वती यंत्र का आवरण पूजन संपन्न कर नीले हकीक की माला से ‘‘ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौं क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं ब्लूं स्त्रीं नीलतारे सरस्वती द्रां द्रीं क्लीं क्लूं सः ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौंः सौः ह्रीं स्वाहा’’ मंत्र का 1100 जप पूर्णिमा के दिन से प्रारंभ कर सात दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए। जप के पूर्व से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निर्धारित मंत्रों से विनियोग, ऋषयादिन्यास, करन्यास, हृदयादि षट् अंग न्यास और ध्यान करना चाहिए। विद्या प्राप्ति यंत्र की साधना यह साधना अत्यंत ही लघु पर उत्तम फलदायक है। कांसे की एक थाली में शुक्ल पक्ष के प्रत्येक दिन केसर से यह यंत्र बनाकर साधना करनी चाहिए। यंत्र बनाते समय ‘‘ऐं हैं ह्रीं किणि-किणि विच्चै’’ का मानस जप करते हुए थाली में खीर डालकर बालक को खिला दें। इससे बालक में विद्या के प्रति उत्साह बढ़ जाता है और उसके ज्ञान में वृद्धि होने लगती है। स्मृति यंत्र साधना विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति को नियंत्रित एवं सुव्यवस्थित करने के लिए यह लघु प्रयोग किया जाता है। सोमवार को अखंडित भोजपत्र पर चंदन से इस यंत्र का निर्माण कर उस पर 11 लौंग रखकर इसके समक्ष ‘‘¬ ऐं स्मृत्यै नमः’’ का 501 बार जप करें। फिर यंत्र को मोड़कर उसके अंदर लौंगों को रखें। परीक्षा देने जाते समय व परीक्षा कक्ष में यंत्र के अंदर रखी लौंग को चबाते रहें, स्मृति-हीनता की स्थिति नहीं बनेगी। पढ़ा हुआ सब कुछ याद रहेगा। परीक्षा के बाद यंत्र को जल में प्रवाहित कर दें। भ्रम निवारक यंत्र प्रयोग भ्रम एक बहुत बड़ा दोष है। इसके चलते शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों को सफलता नहीं मिल पाती। इसके निवारण हेतु एकादशी के दिन प्रातः काल भोजपत्र पर श्वेत चंदन और अष्टगंध मिश्रित स्याही और अनार या मोर पंख की कलम से भ्रम निवारक यंत्र ‘‘¬ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं महासरस्वत्यै स्वाहा’’ मंत्र का मानस जप करते हुए करें। फिर यंत्र को पूजन कक्ष में स्थापित कर ‘‘¬ ऐं वीणावादिनी पुस्तक धारिणी भगवती सरस्वती मम भ्रम निवारय निवारय उच्चाटय उच्चाटय, काट्य काटय कुरु-कुरु स्वाहा’’ का स्फटिक माला से 1100 बार जप 7 दिन तक करें। इस साधना से भ्रम दोष से बचाव होता है। साधना पूर्ण होने पर यंत्र को जल में विसर्जित कर दें। गुरु कृपा प्राप्ति यंत्र की साधना इस यंत्र का निर्माण नवरात्र में किसी भी समय भोजपत्र पर मोर पंख और अष्टगंध, चंदन तथा कुमकुम की स्याही से करें। यंत्र निर्माण करते समय ‘‘¬ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः’’ या ‘‘¬ नमः शिवाय’’ का जप करते रहें। फिर यंत्र स्थापित कर स्फटिक माला से 2100 बार ‘‘¬ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ज्ञान मूर्तये, विज्ञान मूर्तये परं ब्रह्म स्वरूपाय परम तत्व धारिणे मम ममास्ये प्रकाशं कुरु-कुरु स्वाहा’’ मंत्र का जप करें। इस साधना का प्रभाव एक वर्ष तक रहता है। साधना के बाद् यंत्र को जल में विसर्जित कर दें। परीक्षा भय निवारण यंत्र परीक्षा के भय से ग्रस्त विद्यार्थियों के लिए यह यंत्र संजीवनी का कार्य करता है। शनिवार को भोजपत्र पर यह यंत्र कलम से बना लें। यंत्र के पीछे विद्यार्थी अपना नाम लिख लें। नाम लिखते समय ‘‘¬ ब्राह्मी स्वाहा’’ का मानस जप करते रहें। फिर 108 बार ‘‘¬ ऐं ह्रीं श्रीं वीणा पुस्तक धारिणीम् मम भय निवारय निवारय अभयं देहि-देहि स्वाहा’ मंत्र का जप कर यंत्र को अपने पास रखकर परीक्षा देने जाएं। ऐसा करने से सब कुछ अनुकूल होगा। मानसिक व्यथा निवारण यंत्र की साधना शनिवार को केसर की स्याही बनाकर शनिवार के दिन अनार की कलम से भोजपत्र के ऊपर इस यंत्र का निर्माण करते हुए, ‘‘¬ प्रज्ञाय नमः’’ का मानसिक जप करते रहें फिर स्फटिक माला से 501 बार ‘‘व्लूं वें वद-वदत्रीं हुं फट्’’ का जप करें। इससे मानसिक कष्ट दूर होता है तथा मन में बुरे विचार नहीं आते। मंत्र जप के पश्चात् यंत्र को नदी में विसर्जित कर दें। दुष्ट बुद्धि नाशक यंत्र की साधना कुछ बालकों में कुबुद्धि की प्रवृत्ति बाल्यावस्था से ही देखी जाती है। वे माता-पिता की नहीं सुनते और विपरीत आचरण करते हैं और हर बात में विरोध या विद्रोह प्रकट करते हैं। उन्हें सन्मार्ग पर लाने के लिए घंटाकर्म तंत्र में वर्णित यह प्रयोग किया जाता है। बहुत से साधक इसका लाभ उठा चुके हैं। इस यंत्र का निर्माण रविवार को 12 बजे भोजपत्र पर बिल्वपत्र की कलम और अष्टगंध की स्याही से करें। फिर यंत्र के पीछे बालक का नाम लिख दें। यंत्र बनाते समय ‘‘¬ गं गौं गैं महागणेशाय बु(ि प्रदायिने दुष्ट बुद्धि नाशिने मम सर्वोपद्रव नाशय नाशय स्वाहा’’ का 2100 बार जप रुद्राक्ष की माला से सात दिन के भीतर कर लें। प्रत्येक दिन जप करते समय शुद्ध घी का बूंदी का लड्डू यंत्र के ऊपर रखें अैर उसे बालक को खिला दें। प्रयोग को गोपनीय रखें। यह प्रयोग दुष्ट बुद्धि से ग्रस्त किसी भी स्त्री या पुरुष को सन्मार्ग पर ला सकता है। जप पूर्ण होने के पश्चात् यंत्र को पानी में विसर्जित कर दें। विघ्ननिवारण यंत्र की साधना शिक्षा के मार्ग में आने वाले विघ्न के निवारणार्थ इस यंत्र का 54 61 2 8 7 3 58 57 60 55 9 1 4 6 56 49 निर्माण मंगलवार को प्रातः काल भोजपत्र पर शुद्ध घी और सिंदूर मिश्रित स्याही तथा बिल्वपत्र की कलम से, पूर्वाभिमुख हो पीतांबर ओढ़कर, ‘‘¬ ऐं ¬’’ का मानस जप करते हुए करें। फिर यंत्र स्थापित कर उसके सम्मुख रुद्राक्ष माला से ‘‘¬ ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परम रक्षिणी मम सर्व विघ्न बाधा निवारय निवाराय स्वाहा’’ का एक माला जप कर परीक्षा काल तक अपने सिरहाने रखकर सोएं, विघ्न स्वतः दूर हो जाएंगे। सर्वप्रथम सोमवार को किसी भी पवित्र ग्रंथ पर ऊपर वर्णित यंत्र का निर्माण सिंदूर व शुद्ध घी के मिश्रण से मोर पंख की सहायता से करें। यंत्र निर्माण करते समय सरस्वती गायत्री मंत्र ‘‘¬ वाग्देव्यै च विùहे कामराजाय धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्’’ का मानस जप करते रहें। फिर ग्रंथ को सामने रखकर ‘¬ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तचक्र गुरु रहस्यमय् उत्कीलनं कुरु-कुरु स्वाहा।’’ का एक माला जप करें। इससे गुरु कृपा से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ऊपर वर्णित साधना विधानों के अतिरिक्त विधि विधानपूर्वक यथाशक्ति सरस्वती खड्गमाला स्तोत्र, सिद्ध सरस्वती स्तोत्र और सरस्वती कवच, का नियमित रूप से पाठ करने से भी मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं और भक्त और साधक को वरदान देती हैं।



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