दिशाओं को ज्ञात करना कापफी सरल है। सूर्य के सामने खड़े हो जाएं, यह पूर्व है अर्थात आप पूर्व दिशा को देख रहे हैं, आपकी पीठ पश्चिम है। बाएं हाथ के तरपफ की दिशा उत्तर है तथा दाएं हाथ की दिशा दक्षिण है। यहां आपको एक संशय यह हो सकता है कि कुछ स्थानों पर हम सूर्य को नहीं देख सकते क्योंकि वहां बादल होते हैं तब दिशा का पता कैसे लगाएं, आप बिल्कुल सही हैं तथा आपका संशय भी ठीक है, ऐसे समय में कम्पास ही सहारा है।
नीचे कम्पास के चित्रा दिए हुए हैं, इस औजार से हम आसानी से किसी भी समय चाहे वह सुबह हो अथवा रात्रि अथवा कोई भी )तु हम आसानी से दिशाओं को ज्ञात कर सकते हैं। कम्पास में 0 से 360 डिग्री तक के माप अंकित होते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि चार दिशाएं होती हैं तथा प्रत्येक दिशा का अपना महत्व होता है। प्रत्येक दिशा के लिए एक स्वामी ग्रह होते हैं तथा चूंकि प्रत्येक ग्रह का अपना रंग होता है, अतः प्रत्येक दिशा के भी अपने शुभ रंग होते हैं।
उत्तर दिशा - हरा
पूर्व दिशा - सफेद
दक्षिण दिशा - लाल
पश्चिम दिशा - नीला
अग्रांकित चित्रा को देखें तथा दिशाओं एवं उनके सहायक दिशाओं को समझें। चित्रा में 45, 90, 135, 180 इत्यादि लिखे हैं जिनका तात्पर्य डिग्री से है। दिशाओं एवं इनके स्वामियों की जांच करें। दो दिशाओं के मिलन बिंदु को ‘जंक्शन’, ‘कोने’ अथवा ‘मिलन बिंदु’ कहते हैं किंतु लोग सामान्यतः इसे कोना ही कहते हैं।
कोना किसी भी दिशा से अध्कि शक्तिशाली होता है। कोना में दो दिशाओं के मिश्रित बल होते हैं। अतः निर्माण के दौरान अच्छे परिणाम के लिए कोने की बेहतर योजना बनानी चाहिए। सभी मकानों में समान रूप से 8 दिशाएं होती हैं किंतु इनके प्रभाव इनके उपयोग तथा प्रबंध्न के कारण अलग-अलग होते हैं। यदि प्रत्येक दिशा का सही उपयोग किया जाता है तथा उसकी व्यवस्था वास्तु नियमों के अनुरुप की जाती है तो ऐसा मकान गृह वासियों की सुरक्षा उसी प्रकार से करता है जैसे एक मां अपने बच्चे का करती है।
यदि दिशाओं के नियमों के विपरीत निर्माण करते हैं तो गृहवासियों का जीवन नरक बन जाता है। आप इसके पीछे छिपे हुए अर्थ को समझने की कोशिश करें, दिशाओं का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि कैसे व्यक्ति उसका उपयोग कर रहा है। उदाहरण के लिए एक उत्तर-पूर्व ;ईशानद्ध कोना लें, यदि एक घर में उत्तर-पूर्व कोना वास्तु के अनुसार सही स्थिति में है तो वहां के लोग सुख, समृ(ि एवं सपफल जीवन का अनुभव करेंगे।
यदि उत्तर-पूर्व कोना बंद है अथवा बाध्ति है तो वहां के निवासी सब कुछ खोने के लिए मजबूर हो जाएंगे अथवा उन्हें लगातार कष्ट होगा। वास्तु के पीछे छिपी सच्चाई को नहीं जानने के कारण अनेक लोग अनावश्यक रूप से परेशानी एवं तनाव को आमंत्रित करते हैं। वास्तु का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव है तथा यह तथ्य सि( है। वास्तु के कुछ नियमों को जानकर व्यक्ति सुख एवं समृ(ि का अनुभव करता है।
वास्तु एक महासमुद्र है। किसी भवन के दिग्विन्यास का महत्व न सिपर्फ ऊर्जा को संरक्षित रखने में है बल्कि इससे घर का डिजाइन भी बेहतर बनता है जो न सिपर्फ आरामदेह जीवन देता है बल्कि अच्छा स्वास्थ्य, समृ(ि एवं ध्न भी गृह स्वामी तथा उसके परिवार के सदस्यों को प्रदान करता है जो भी उस मकान में रहते हैं।
उत्तर दिशा के परिप्रेक्ष्य में ग्रहों एवं घर के डिजाइन तथा विभिन्न दिशाओं के बीच अंतर्संबंध् है। किसी भी प्रकार के भवन एवं उसके निर्माण से हर उद्देश्य सपफल हो जाते हैं यदि स्थानीय निर्माण सामग्रियों का उपयोग कर उचित दिग्विन्यास का ध्यान रखा जाता है। इससे न सिपर्फ भवन का जीवन ही दीर्घायु होता है बल्कि निवासियों की स्थिति में भी कापफी सुधर आता है।
ऐसे कई दृष्टांत हैं जहां अनुचित योजना एवं अनुचित सामग्री का उपयेाग कर निर्मित किए गए भवन में दिग्विन्यास का भी ख्याल नहीं रखा गया जिसके कारण वे शीघ्र ही जीर्ण-शीर्ण हो गए किंतु जो भवन इन सभी बातों का ध्यान रख कर बनाए गए वे आज भी सही हालत में स्थित हैं। उचित दिग्विन्यास का तात्पर्य है आठों दिशाओं का सम्यक ज्ञान। यह बात सबों को पता है कि जहां से सूर्य उदित होता है उसे पूर्व कहते हैं तथा जहां अस्त होता है वह पश्चिम है एवं पूर्व की ओर खड़े होने के बाद हमारे बाएं तरपफ की दिशा उत्तर तथा दाएं तरपफ की दिशा दक्षिण है।
जहां दो दिशाओं के कोने मिलते हैं वे अध्कि महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें दोनों दिशाओं के बलों का मिश्रण होता है। इस प्रकार से आठ दिशाएं हैं उत्तर, उत्तर-पूर्व, पूर्व, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम। प्रत्येक दिशा का अपना अलग महत्व है तथा इसकी अपनी संरचना है। वास्तु के मूलभूत नियम इन आठ दिशाओं पर ही आधरित हैं। पूर्व दिशा के मकान/भूखंड सूर्य पूर्व दिशा में उदित होता है। सूर्य साक्षात ईश्वर हैं।
पूर्व पितृ स्थान है, अतः यहां ज्यादा खुला स्थान होना चाहिए तथा यहां की सतह नीची होनी चाहिए साथ ही किसी भी कारण से इसे बंद नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके दुष्परिणामस्वरूप पुरुष संतति की कमी होगी तथा घर बिना पुरुष संतति के रह जाएगा। यह दिशा चैड़ी होनी चाहिए तथा सभी दिशाओं से इसकी सतह नीची होनी चाहिए। किसी भी प्रकार के निर्माण से इस दिशा को अवरु( नहीं करना चाहिए। पूर्व दिशा का पता कैसे लगाएं पुरुषों के लिए पूर्व दिशा कापफी महत्वपूर्ण है। यह नाम, मान एवं सम्मान देता है।
सपफलता एवं विजय इस दिशा का प्रतीक है। अतः इस दिशा की अवहेलना न करें। इस दिशा को बाध्ति नहीं करना चाहिए। यदि आपके घर में यह दिशा ऊंचा उठा हुआ है तो घर के लोगों को हमेशा समस्याओं का सामना करना पड़ेगा तथा यदि इस दिशा का क्षेत्रापफल पश्चिम दिशा से कम है तो आपके शत्राुओं की शक्ति बढ़ेगी तथा घर के लोगों को हमेशा पराजय का सामना करना पड़ेगा।
यदि यह दिशा पश्चिम की तुलना में ऊंचा है तो कभी भी घर के लोगों को अनुकूल परिणाम प्राप्त नहीं होंगे। अतः सावधानी बरतें क्योंकि एक छोटी सी गलती आपके लिए कापफी नुकसानदायक एवं कष्टकारी साबित हो सकता है। इस चित्रा को देखें, यहां पद चिर् िंसूर्य की ओर बढ़ रहा है, घर का द्वार सूर्य की दिशा में अभिमुख है। अतः इसे पूर्वमुखी मकान कहा जाएगा।
यह एक अच्छा मकान है। इस मकान में उत्तर-पूर्व बाध्ति नहीं होना चाहिए। यदि उत्तर-पूर्व में वृक्ष होते हैं तो सामान्यतः वास्तु विशेषज्ञ उसे हटाने की अनुशंसा करते हैं, किंतु पेड़ों को काटें नहीं। वृक्ष कभी भी मनुष्य को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते। इस दोष को दूर करने का सरल उपाय है, उत्तर-पूर्व में एक गड्ढा खोद दें, इससे सब दोष दूर हो जाएंगे अथवा दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण एवं पश्चिम भागों को थोड़ा ऊंचा उठा दें अथवा दक्षिण-पश्चिम के कक्ष के फ्रलोर को ऊंचा कर दें। इससे सब ठीक हो जाएगा। यहां दो मकान पूर्व मुखी हैं। दोनों मकान आयताकार हैं किंतु मकान-1 की लंबाई सड़क की दिशा में मकान-2 से लंबाई में भिन्न है। यहां मकान-1 पुरुषों के लिए थोड़ा अध्कि अच्छा है।
यहां लोगों को अच्छा नाम एवं यश मिलेगा। यहां ध्यान दें, यद्यपि कि दोनों मकान अच्छे हैं किंतु मकान-1 मकान-2 की तुलना में थोड़ा अध्कि अच्छा है। यदि आपका मकान-2 है तो परेशान मत हों। यहां भी कुछ बुरा नहीं होगा तथा यह भी हर तरह से शुभ मकान ही है। निम्नांकित चित्रा के दोनों मकान को गौर से 10 सेकंड तक देखें, क्या यहां आपको कोई अंतर लग रहा है।
दोनों मकान पूर्वमुखी ही हैं किंतु मकान-2 ने थोड़ा सा सड़क का अतिक्रमण कर लिया है जो कि कानूनन गलत है किंतु वास्तु के दृष्टिकोण से यह अति शुभ है। इस मकान को उत्तर-पूर्व-उत्तर एवं दक्षिण-पूर्व-दक्षिण की ओर से वीथि शूल का लाभ मिल रहा है। दोनों इस मकान के लिए शुभ हैं। पूर्व की दिशा में अतिक्रमण हमेशा शुभ होता है।
किंतु इस बात का ध्यान रखें कि हम सब सम्मानित एवं सभ्य लोग हैं तथा हमें नियम-कानून का अक्षरशः पालन करना चाहिए। सभी ब्रह्मांडीय ऊर्जा एवं सूर्य की किरणें इस दिशा से ही आती हैं। यह दिशा सभी जीवों को जीवनी शक्ति प्रदान करती है। सभी प्रकार के संस्कार इस दिशा में अभिमुख होकर ही संपादित किए जाते हैं। अतः इसे पवित्रा दिशा माना जाता है।
भगवान इंद्र शिक्षा, पद, सुख, साहस, विलासिता में अभिरुचि, उत्तराध्किार, व्यवसाय एवं नौकरी में तरक्की प्रदान करते हैं। जो लोग पूर्वमुखी मकान में निवास करते हैं तथा जिनका मुख्य दरवाजा ठीक पूर्व दिशा की ओर होता है उन्हें सूर्य की ऊर्जा अध्कि मात्रा में प्राप्त होती है। इससे ऊपर में वर्णित समृ(ियां खुद ब खुद प्राप्त हो जाएंगी।
इस दिशा के मकान सरकारी कर्मचारियों तथा सरकार के साथ मिलकर काम करने वाले लोगों के लिए अति उपयुक्त होते हैं। साथ ही जो लोग पूर्वमुखी मकान में निवास करते हैं वे लोग कापफी अच्छे वक्ता हो जाते हैं। ये महिलाओं का कापफी सम्मान करते हैं तथा उनसे इन्हें कापफी सहायता प्राप्त होती है। इन्हें सौंदर्य प्रसाध्न का अध्किाध्कि प्रयोग करने में अभिरुचि होती है। यह दिशा पुरुषों को कापफी शक्ति प्रदान करती है। जो लोग पूर्वमुखी मकान में रहते हैं किंतु जिसका मुख्य द्वार चारदीवारी से लगे उत्तर दिशा में होता है, ये लोग अपनी नौकरी अथवा व्यवसाय में कापफी उन्नति करते हैं तथा अचानक से इनकी स्थिति में सुधर होता है।
इनके पास अध्कि संपत्ति तथा समाज में अच्छा मान-सम्मान होता है। इनके बच्चे कापफी अच्छे होते हैं तथा इन्हें हर भौतिकवादी सुख का आनंद प्राप्त होता है। यह दिशा व्यवसाय, आजीविका, औद्योगिक प्रगति इत्यादि के लिए उत्तरदायी है। किंतु जो लोग इस दिशा की अवहेलना कर मकान का निर्माण करते हैं उन्हें निश्चित रूप से ध्न अथवा मान हानि का सामना करना पड़ेगा। इनका व्यवसाय एवं व्यापार प्रभावित होगा। इन्हें अध्कि चिंता एवं समस्याएं होंगी तथा इनके बच्चों की शिक्षा एवं उनका व्यवसाय भी प्रभावित होगा।
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