स्वास्थ्य एवं रोग प्रश्न: कुंडली देखकर यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहेगा, किस समय में जातक को कौन सी बीमारी हो सकती है, इसका पूर्वानुमान कैसे हो, किस बीमारी में कौन-सा ज्योतिषीय उपाय कारगर साबित होगा। प्रस्तावना (स्वास्थ्य/रोग, बीमारी किसी भी जातक का स्वास्थ्य ठीक रहेगा या नहीं, यह मुख्यतः षष्ठ भाव एवं लग्न भाव में स्थित है, यह भी महत्वपूर्ण है। इसका विवेचन आगे किया गया है। जातक के विभिन्न समय में विभिन्न रोग उत्पन्न हो सकते हैं, इसका पुर्वानुमान मुख्यतः जातक का वर्तमान समय कैसा चल रहा है, उस पर निर्भर करता है अर्थात् वर्तमान में किस ग्रह की महादशा-अंतर्दशा-प्रत्यंतर- सूक्ष्म प्रत्यंतर, प्राण-दशा आदि चल रही है, उस पर निर्भर करता है। इसके अलावा, साढ़ेसाती, ढैया प्रभाव, गोचर प्रभाव भी जातक को बीमारियों का समय बताता है। जातक का स्वास्थ्य एवं बीमारियां कुंडली के 12 भाव, 12 राशियां, 9 ग्रह एवं 27 नक्षत्र तय करते हैं। इन 9 ग्रहों में से 7 ग्रह कुंडली के 12 भावों व राशियों तथा 27 नक्षत्र के स्वामियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये 7 ग्रह व 2 छाया ग्रह कुंडली में कैसी स्थिति में विराजमान हैं, इन 9 ग्रहों की विभिन्न दशाओं में जातक को विभिन्न रोग, बीमारियां हो सकती हैं। इनके द्वारा होने वाली बीमारियों/रोगों एवं समय का आगे विवेचन किया गया है, जिससे यह पता चल सकता है कि किस ग्रह के समय में कौनसा रोग हो सकता है तथा कौनसा ज्योतिषीय उपाय रामबाण सिद्ध हो सकता है ताकि जातक स्वास्थ्य लाभ ले सके। इसके अलावा, नक्षत्रों का सूक्ष्म प्रभाव भी इसके समय में रोगी की पहचान करवाता है। कुछ प्रमुख रोग योग यदि षष्ठेश शुभ ग्रह (सौम्य-चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र) हों तथा षष्ठ भाव में यही शुभ ग्रह हों तथा यह षष्ठेश केंद्र में स्थित हों, तो जातक निरोगी रहता है। यदि लग्नेश और षष्ठेश बलवान (उच्च, स्वगृही, मित्र राशि) होकर स्थित हों, तो जातक आजीवन निरोगी रहता है। यदि षष्ठ भाव में केतु या गुरु कारक ग्रह बनकर स्थित हो, तो जातक को रोग रहित करते हैं। यदि षष्ठ भाव का स्वामी बलवान हो और शुभ ग्रह भी बली हो तो जातक रोग रहित रहता है। षष्ठेश के साथ पाप ग्रह अष्टम भाव में अशुभ हो, तो बवासीर से पीड़ित रहता है। यदि लग्नेश के साथ मंगल षष्ठ भाव में हो, तो लिंग (जननांग) में घाव हो जाता है। जातक का स्वास्थ्य (रोग बीमारी) एवं इनका उपाय साधारणतया रोग, बीमारी या स्वास्थ्य का विचार छठे (रोग) भाव से किया जाता है। इसके अलावा इसके स्वामी अर्थात् षष्ठेश कारक मंगल एवं शनि, चंद्रमा, लग्न व लग्नेश की स्थिति, छठे से छठा अर्थात् एकादश भाव, इसके स्वामी छठे से कर्म भाव अर्थात् तृतीय भाव, तृतीयेश; लग्न (शरीर) का व्यय अर्थात् द्वादश भाव व द्वादशेश तथा उपरोक्त सभी पर दृष्टि तथा युक्ति द्वारा प्रभाव डालने वाले शुभ, सौम्य ग्रहों/मित्र ग्रहों तथा पाप, अशुभ, शत्रु ग्रहों पर निर्भर करता है। अच्छे स्वास्थ्य तथा कभी बीमारी या रोग न हों, इसके लिए चंद्रमा बली (उच्च, स्वगृही व मित्र राशि का) होकर शुभ भावों (कंेद्र या त्रिकोण) में स्थित हों तथा इस पर पाप-प्रभाव (राहु, केतु, शनि, मंगल, सूर्य) युति या दृष्टि द्वारा न हो। यदि चंद्रमा पर प्रभाव हो तो केवल शुभ, सौम्य ग्रहों जैसे- गुरु, शुक्र, बुध का हो और वह भी उच्च, स्वगृही या मित्र राशिगत बली हो जैसे- उच्च चंद्रमा के साथ शुक्र स्वगृही (वृष राशि में), स्वगृही चंद्र के साथ उच्च बृहस्पति (गजकेसरी योग कर्क में), मित्र राशि गुरु की राशि धनु, मीन में चंद्र$बृहस्पति स्वगृही, तुला राशि में चंद्र$शुक्र, मीन राशि में शुक्र (उच्च)$ चंद्र (मित्र), बुध की राशियों मिथुन, कन्या में बुध (स्वगृही)$चंद्र भी ठीक रहता है आदि अच्छे स्वास्थ्य की निशानी हैं। चूंकि चंद्र जीव के मन, मस्तिष्क का कारक है। अतः इसकी बली स्थिति तथा पूर्णिमा का जन्म अच्छा स्वास्थ्य देता है। चंद्र को बली बनाने के लिए पूर्णिमा का व्रत, सोमवार का व्रत, शिवजी, चंद्र देव व कृष्णावतार की पूजा करनी चाहिए। लग्नानुसार मोती धारण करें। चंद्र मंत्रों का जप करें। चंद्र अशुभ हो तो इसका दान श्रेष्ठ रहता है। पीपल पूजा भी शुभ रहती है, विशेष कर सोमवार को। इसके विपरीत चंद्र नीच राशि (वृश्चिक), अमावस्या जन्म, केमद्रुम योग, चंद्र पर राहु प्रभाव द्वारा ग्रहण योग, पितृदोष, कालसर्प योग या (सूर्य, चंद्र युति) चंद्र पर पाप एवं शत्रु, अशुभ प्रभाव बीमारी या रोग देकर जातक को अस्वस्थ रखते हैं। ऐसी स्थिति में उपरोक्त उपाय करके स्वास्थ्य लाभ लें। अशुभ चंद्रमा जैसे- बलहीन नीच राशि या शत्रुराशिगत लग्न, पंचम, षष्ठ, अष्टम (आयु), दशम (कर्म) एवं द्वादश भाव में होने पर जातक का स्वास्थ्य खराब कर बीमारी या रोग देते हैं। इसके अलावा लग्नेश, षष्ठेश भी बली (उच्च, स्वगृही, मित्रराशि) होकर शुभ भावों (केंद्र, त्रिकोण) में स्थित हों तथा पाप प्रभाव से मुक्त हों। प्रायः त्रिक भाव (6, 8, 12) को अशुभ माना जाता है, लेकिन इन भावों में स्वगृही ग्रह अच्छा फल देकर जातक को बीमारी/रोग से मुक्त रखते हैं, क्योंकि इन त्रिक भावों अर्थात् 6, 8, 12 में स्वगृही ग्रहों में क्रमशः हर्ष, सरल एवं विमल नामक शुभ एवं बली योगों की रचना होती है। इन त्रिक भावों में उच्च एवं मित्रराशिगत ग्रह भी अच्छा परिणाम देकर मनुष्य को रोग नहीं होने देते हैं। नक्षत्र का रोग, बीमारी पर प्रभाव: इनके अलावा नक्षत्र भी अपना सूक्ष्म प्रभाव देते हैं। कुल 27 नक्षत्र होते हैं तथा प्रत्येक के चार चरण होते हैं। इस प्रकार कुल 27 नक्षत्र, इन्हीं 9 ग्रहों के अधीन हैं तथा प्रत्येक ग्रह के अधीन 3 नक्षत्र आते हैं। जातक के जन्म के समय चंद्रमा जिस ‘‘नक्षत्र’’ में गोचर कर रहा हो, तात्पर्य उसी नक्षत्र से है। इसी नक्षत्र स्वामी ग्रह के आधार पर विशोŸारी (महा) दशा पद्धति की गणना आरंभ होती है। मनुष्य शरीर के 27 अंगों के स्वामी माने गये हैं। इन नक्षत्रों के स्वामी यही 9 ग्रह हैं जब जातक के पाप, कष्ट एवं शत्रुदायक ग्रह किसी भी अंग विशेष पर आते हैं, तब वह अंग रोगी, पीड़ित, बीमार अर्थात् अस्वस्थ हो जाता है। यह किसी भी कुंडली में पहचान का तरीका है। इसके विपरीत जब शुभ ग्रह उन नक्षत्रों पर आते हैं तो वह अंग स्वस्थ एवं पुष्ट अर्थात् बीमारीरहित हो जाता है। यहां निम्न सारणी-1 में इन 27 नक्षत्रों, अंगों एवं रोग, बीमारी का पारस्परिक संबंध दर्शाया गया है। सारणी-1 क्र. नक्षत्र-स्वामी राशि-स्वामी शरीर के अंग रोग/बीमारी (अस्वस्थता) नक्षत्र की प्रकृति (गुण, तत्व) 1 अश्विनी-केतु (1-4) मेष-मंगल सिर, मस्तिष्क, पैरों का ऊपरी भाग सिर में चोट, घाव, मूर्छा, मिर्गी, अनिद्रा, पक्षाघात (लकवा) तम 2 भरणी-शुक्र (1-4) मेष-मंगल नेत्र, दृष्टि, सिर, पैरों का निचला (तलवों) का भाग नेत्र रोग, दृष्टि रोग, चर्म रोग, ज्वर, मस्तिष्क रोग रज 3 कृतिका-सूर्य (1) मेष-मंगल सिर, दृष्टि, नेत्र मलेरिया, चेचक, दुर्घटना, खसरा रज 4 रोहिणी-चंद्र (1-4) वृष-शुक्र गर्दन, सिर का पिछला भाग चोट, मुहांसे, नेत्रों में सूजन, टानसिल आदि गले के रोग रज 5 मृगशिरा-मंगल (1-2) वृष-शुक्र मुंह, जीभ, चेहरा, गर्दन, माथा शीत ज्वर, गले में सूजन, कफ, ठण्ड, पैरों में दर्द रज 6 मृगशिरा-मंगल (1-2) वृष-शुक्र चेहरा, गाल, ठोड़ी, तालू, भौंह मुहांसे, सूजन (गले में), जुकाम, (खांसी, कब्ज) त्म 7 मृगशिरा-मंगल (3-4) मिथुन-बुध कान, गला, स्वर, तंत्र, पसली कंधे घाव, हृदय रोग, खुजली, साइटका, रक्त दोष तम 8 आद्र्रा-राहु (1-4) मिथुन-बुध गला, कान, कंधे, भुजा, आंख श्वास रोग, अस्थमा, गले में खराबी (रोग) तम 9 पुनर्वसु-गुरु (1-3) मिथुन-बुध कंधा, कान, गला, फेफड़े, नाक फेफड़ों में दर्द, क्षयरोग, निमोनिया, नजला/जुकाम सत 10 पुनर्वसु-गुरु (4) कर्क-चंद्र फेफड़े, छाती, आमाशय बेरी-बेरी रोग, सूज, पीलिया, निमोनिया, क्षयरोग सत 11 पुष्य-शनि (4) कर्क-चंद्र आमाशय, पसलियां, फेफडे़, चेहरा कैंसर, एग्जिमा, पथरी, पायरिया, पीलिया, क्षयरोग तम 12 आश्लेषा-बुध (4) कर्क-चंद्र फेफड़े, भोजन नली, यकृत, कान अपच, उदर विकार, श्वास विकार, पीलिया सत 13 मघा-केतु (4) सिंह-चंद्र हृदय, पीठ, पीलिया, महाधमनी, होठ हृदयाघात, पीठ दर्द, किडनी में पथरी तम 14 पूर्वाफाल्गुनी-शुक्र (4) सिंह-सूर्य हृदय, मेरुरज्जू, दायां हाथ हृदय रोग, रक्तचाप, एनीमिया (खून की कमी) रज 15 उŸाराफाल्गुनी-शुक्र (1) सिंह-सूर्य मेरुरज्जू, बायां हाथ खसरा, प्लेग, मानसिक रोग, रक्तचाप रज 16 उŸाराफाल्गुनी-सूर्य (2-4) कन्या-बुध आंते-यकृत आमाशय के रोग, गले व गर्दन में सूजन, यकृत विकार रज 17 हस्त-चंद्र (4) कन्या-बुध आंते, ग्रंथियां, अंगुलियां मंदाग्नि, पेट दर्द, श्वास रोग रज 18 चित्रा-मंगल (1-2) कन्या-बुध उदर, गर्भाशय, कोख, गला पेट में घाव, तीव्र दर्द, टांगों में दर्द तम 19 चित्रा-मंगल (3-4) तुला-शुक्र यकृत किडनी, पथरी तम 20 स्वाति-राहु (4) तुला-शुक्र चमड़ी, गुर्दा, मूत्राशय, हर्निया, वक्ष स्थल चर्मरोग, श्वेत दाग, गुर्दे के रोग, किडनी (गुर्दा फेल), मूत्र रोग, बहुमूत्र, तम 21 विशाखा-गुरु (1-3) तुला-शुक्र पेट का निचला भाग, गुर्दे, हृदय मधुमेह, चक्कर आना, इन्सुलिन की कमी सत 22 विशाखा-गुरु (4) वृश्चिक-मंगल गर्भाशय, मूत्राशय प्रोस्टेट वृद्धि, पथरी, नकसीर सत 23 अनुराधा-शनि (4) वृश्चिक-मंगल प्रजनन अंग, मलाशय, मूत्राशय, उदर मासिक धर्म रुकावट, बन्ध्यत्व, कब्ज तम 24 ज्येष्ठा-बुध (4) वृश्चिक-मंगल गर्भाशय, बड़ी आंत, आमाशय श्वेत प्रदर, बवासीर, ट्यूमर, कंधों में दर्द सत 25 मूल-केतु (4) धनु-गुरु जांघे, अस्थियां, कोख कमर दर्द, गठिया, श्वास रोग तम 26 पूर्वाषाढ़ा-शुक्र (4) धनु-गुरु जांघे, कूल्हे, पीठ रक्त खराबी, फेफड़ों में कैंसर, मधुमेह, गठिया रज 27 उŸाराषाढ़ा-सूर्य (1) धनु-गुरु धमनी, जांघे, उरु- अस्थि, रीढ़ की हड्डी उदर रोग (दर्द), साइटिका, नेत्र रोग रज 28 उŸाराषाढ़ा-सूर्य (2-4) मकर-शनि घुटने की हड्डी, चर्म (चमड़ी) एग्जिमा, चर्म रोग, हृदय रोग, कुष्ठ रोग रज 29 श्रवण-चंद्र (4) मकर-शनि घुटने, चर्म (त्वचा), कमर चर्म रोग, फोड़े, क्षय रोग, अपच रज 30 धनिष्ठा-मंगल (1-2) मकर-शनि पैर, घुटने की हड्डी, गुदा पैरों में चोट, लंगड़ापन, सूखी खांसी तम 31 धनिष्ठा-मंगल (3-4) कुंभ-शनि टखने, पिंडली, भुजाएं टांग मंे फ्रैक्चर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप तम 32 शतभिषा-राहु (4) कुंभ-शनि पिंडली, मांसपेशियां, दाहिनी जांघ लंगड़ाना, गठिया, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तम 33 पू. भा.-गुरु (1-3) कुंभ-शनि टखने, बांयी जांघ न्यून रक्तचाप, टखनों में सूजन सत 34 पू.भा.-गुरु (4) मीन-गुरु पैर, अंगूठा हर्निया, पीलिया, लीवर वृद्धि सत 35 उ.भा.-शनि (4) मीन-गुरु पैर, पिंडली पैर में फ्रैक्चर, उदरवाद, गठिया तम 36 रेवती-बुध (4) मीन-गुरु पैर, पंजा, घुटना पैरों , घुटनों में ऐंठन, दर्द, आंतों में छाले, बहरापन सत सारणी-1 में शरीर के अंग के काॅलम (स्तंभ) में रेखांकित (अंडर लाईन) वाले अंग नक्षत्र के मुख्य अग से संबंधित हैं तथा बाकी के बिना रेखांकित अंग सहायक अंग से संबंधित हैं। बुध एवं गुरु स्वामित्व वाले नक्षत्र सतोगुणी नक्षत्र; चंद्र, शुक्र व सूर्य स्वामित्व वाले नक्षत्र रजोगुणी तथा मंगल, केतु, राहु व शनि स्वामित्व वाले नक्षत्र तमोगुणी नक्षत्र हैं। नक्षत्र बताये रोग की अवधि ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों में से प्रत्येक नक्षत्र से रोग ठीक होने की अवधि (समय) का संकेत मिलता है, इसे निम्न सारणी-2 में दर्शाया गया है। सारणी-2 क्र. नक्षत्र नाम स्वामी रोग अवधि (समय) 1 अश्विनी (केतु) एक दिन 2 रोहिणी (चंद्र) उ.फा. (सूर्य) तीन दिन 3 मृगशिरा (मंगल), पूर्वाषाढा (शुक्र) पांच दिन 4 पुनर्वसु (गुरु), पुष्य (शनि), उ.भा. (शनि) सात दिन 5 कृतिका (सूर्य), आश्लेषा (कुंभ) नौ दिन 6 अनुराधा (शनि), शतभिषा (राहु), रेवती (कुंभ) दस दिन 7 हस्त (चंद्र), ज्येष्ठा (कुंभ), चित्रा व धनिष्ठा (मंगल) पंद्रह दिन 8 विशाखा (सूर्य), उŸाराषाढ़ा (सूर्य) बीस दिन 9 पू.फा. (शु.), श्रवण (चंद्र), स्वाति (राहु) दो माह (60 दिन) 10 मूल (राहु), भरणी (शुक्र), मघा (गुरु) स्थाई रोग दवा लगातार 11 आद्र्रा (राहु), भरणी) (शुक्र), मघा (केतु) स्थाई प्राणघातक नक्षत्रांे द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न रोगों का उपाय: 27 नक्षत्रों के स्वामी ग्रह के देवता व उससे संबंधित वनस्पति (जड़ी, बूटी) का विवरण निम्न सारणी-3 में दिया जा रहा है, देवता की पूजा तथा वनस्पति से स्नान कराने पर रोगों में जातक को आश्चर्यजनक लाभ होकर दोष का निवारण आसानी से हो सकता है- सारणी-3 क्र. नक्षत्र देवता वनस्पति (जड़ी-बूटी) 1 अश्विनी अश्विनी कुमार चिड़चिटा मूल 2 भरणी यम अगस्त मूल 3 कृतिका अग्नि कापिस मूल 4 रोहिणी चंद्र अपामार्ग 5 मृगशिरा ब्रह्मा जयंती मूल 6 आद्र्रा शिव पीपल मूल 7 पुनर्वसु अदिति बृहस्पति अर्क मूल 8 पुष्य बृहस्पति कुषा मूल 9 आश्लेषा वासुकि परोल मूल 10 मघा अर्यमा भृंगराज मूल 11 पू.फा. भगवती नीली कटेली 12 उ.फा. अर्यमा श्वेत अर्क 13 हस्त सविता/सूर्य जांवित्री मूल 14 चित्रा विश्वकर्मा अश्वगंध 15 स्वाति वायु जावित्री मूल 16 विशाखा इंद्र पाटेलीली मूल 17 अनुराधा अधिमित्र गुलाब 18 ज्येष्ठा इंद्र चिड़चिटा मूला 19 मूल राक्षस मदार 20 पूर्वाषाढ़ा वरुण कपास मूल 21 उŸाराषाढ़ा विश्वदेवा कपास मूल 22 श्रवण विष्णु अपामार्ग 23 धनिष्ठा वासव पीपल 24 शतभिषा जल कमल 25 पू.भा. अर्जेवपाड भृंगराज मूल 26 उ.भा. अहिर्बुद्धन्य बड़ मूल 27 रेवती पूषा अश्वत्थ मूल काल पुरुष की द्वादश राशि, भाव एवं इनसे संबंधित शरीर के अंग एवं रोग/बीमारी: इसे सारणी-4 में दर्शाया गया है- सारणी-4 क्र. भाव राशि तत्व शरीर के अंग रोग/बीमारी 1 प्रथम मेष (अग्नि) सिर (मस्तिष्क), मेरुदण्ड सिर दर्द, मस्तिष्क रोग, पिŸा रोग, अपस्मार, नेत्र रोग, उन्माद, निद्रा, मानसिक तनाव, मेद रोग 2 द्वितीय वृष (पृथ्वी) मुख (मुंह), चेहरा आंख, कान, नाम, गला, स्वर, वाणी, दांत, सौंदर्य आदि के रोग, सूजन 3 तृतीय मिथुन (वायु) भुजा, कंधे, श्वास नली, सीना, स्तन श्वास तकलीफ, कफ, कंधों, हाथों, बाहों के रोग, एलर्जी, दमा, फेफड़े और श्वास संबंधी रोग, खांसी 4 चतुर्थ कर्क (जल) हृदय, छाती, वक्ष स्थल (स्त्री) दांया भाग उदर, छाती, हृदय रोग जैसे- हृदयघात, जलोदर, गुर्दे के रोग, कैंसर, वात रोग, पिŸा रोग, रक्त संचार संबंधी रोग 5 पंचम सिंह (अग्नि) पेट, पीठ, (अंदरुनी भाग) दांया भाग, आमाशय बहुमूत्र, मूत्र पिंड, गर्भाशय, पाचन तंत्र, वस्ति, अस्थि व फेफड़ों, मेरुदण्ड, पीठ, आमाशय के रोग 6 षष्ठ भाव$राशि महत्वपणर््ू ा कन्या (पृथ्वी) जन्मकुंडली का 6 भाव बीमारी/ रोग का है, अतः इसके लिए कन्या राशि मुख्य अध्ययन की है। गुर्दे, एड़ियां, दांया पांव उदर के ऊपर के बाहरी भाग, हड्डी, मांस, कफ आंतों व गुर्दे (किडनी) के रोग, अल्सर, घाव, ऐंठन, गठिया, गुदा मार्ग के रोग, दस्त 7 सप्तम तुला (वायु) नाभि, कमर, गुप्तांग, जननेंद्रिय, मूत्राशय जननेंद्रिय, गुप्तांग, मूत्राशय में रोग, पथरी, कमर दर्द, रीढ की हड्डी के रोग, मधुमेह, श्वास क्रिया में कमी 8 अष्टम वृश्चिक (जल) लिंग (इंद्रिय), स्त्री गुप्तांग, (योनि), गुदा, बांया पांव, अण्डकोष, कष्ट भाव गुप्त रोग (स्त्री, पुरुष), दुर्घटना, गुदा रोग व बवासीर, मस्से, कैंसर, हर्निया, रक्त दोष, रक्त संचार में कमी, वात 9 नवम धनु (अग्नि) जंघायें, नितंब, कूल्हे, पेट, पीठ-बांया भाग इन अंगों में कमी दुर्बलता, मानसिक रोग, पक्षाघात, चोट, घाव, गठिया, रक्त विकार, कफ, पाचन क्रिया/शक्ति रोग 10 दशम मकर (पृथ्वी) घुटने, हृदय, छाती, का बांया भाग जोड़ों में दर्द, चर्मरोग, गठिया, हृदय, छाती के बांये भाग में रोग, आत्मविश्वास में कमी, गलत कर्म, पिŸा रोग 11 एकादश कुंभ (वायु) पिण्डलियां, बांया कंधा, भुजाएं, नसें पिण्डलियों के रोग, स्नायु दुर्बलता, हृदय रोग, पागलपन, रक्त विकार, बांये कंधे, भुजाओं में रोग, नसों, श्वास क्रिया के रोग, वात रोग 12 द्वादश मीन (जल) चरण, पैर का निचला भाग, एडी, पांव अंगुलियां, बांया कान, आंख इन अंगों से संबंधित रोग, दर्द, लकवा, मोच, अनिद्रा रोग, कफ ग्रहों का प्रभाव क्षेत्र (अंग) एवं उनके द्वारा होने वाली बीमारियां (रोग): सारणी-5 क्र. ग्रह व रोग प्रभाव क्षेत्र (अंग) रोग/बीमारी 1 सूर्य (6 माह) हड्डी, हृदय, नेत्र (दांयी) दांत, सिर, पेट, पिŸा अधिकता से बुखार, आमाशय, रीढ की हड्डी, मेरुदण्ड, आत्मा नेत्र रोग, जैसे- मोतिया, अंधापन, नजर दोष आदि सिर दर्द, अतिसार, अपेंडिक्स, विषम ज्वर, हैजा, अजीर्ण, पिŸा रोग, रक्त प्रवाह में बाधा, जलने के घाव, गिरना, घाव 2 चंद्र (पौनघंटा) गले से हृदय तक, अंडकोष, गर्भाशय स्तन, रक्त, कफ, मस्तिष्क, मन, नेत्र, महिला (मासिक धर्म), शरीर में तरल पदार्थ, हार्मोन्स, छाती, नेत्र (बांया), फेफड़े नेत्र व मस्तिष्क रोग, मानसिक रोग, रक्त विकार, पीलिया, मूत्रकच्छ, जुकाम, गुप्त रोग, मासिक धर्म, परेशानी, दिमागी परेशानी, पागलपन, अनिद्रा 3 मंगल (2 दिन) पेट से पीठ तक का भाग, पशु कर्म, क्रोध, घृणा, रक्त, मासिक धर्म, सिर, मज्जा, अस्थि रक्तस्राव, मासिक धर्म में गड़बड़ी, आपरेशन संक्रामण रोग, शस्त्राघात, ब्रण कैंसर गर्भपात, दुर्घटना, पिŸाज, जानवरों द्वारा काटना, जलना, उच्च रक्तचाप 4 बुध (दो माह) गले से कंधे तक, हाथ, पांव, चमड़ी, मुख, वाणी, स्नायु क्रिया (त्वचा), दिमाग का आगे का हिस्सा, नाक, गला, फेफड़े एनीमिया, नाड़ी कंपन, गूंगापन, हकलाहट, वाणी दोष, दमा, कुष्ठ, त्वचा रोग, शूल, स्नायु रोग, बुद्धि, विवेक का नाश, सास की तकलीफ, नपुंसकता, दुस्वप्न 5 बृहस्पति (1 माह) कमर से जांघ तक, चर्बी, हृदय, गुर्दे (किडनी), जिगर, कान, लीवर, पिŸा की थैली, तिल्ली, आमाशय का कुछ हिस्सा, यकृत कफ, संतति क्षय, शोध, मिर्गी, मधुमेह, किडनी खराब, मोटापा 6 शुक्र (15 दिन) गुप्तांग, वीर्य, प्रजनन, ताकत, काम (सैक्स), मासिक धर्म, त्वचा, नेत्र, चेहरा, दृष्टि, मूत्राशय, किडनी (गुर्दे) आंते, ग्रंथियां, हार्मोन्स यौन रोग, मूत्राशय रोग, प्रमेह, गुप्त रोग, माहवारी, बाल झड़ना, सुंदरता में कमी, चर्म रोग, नेत्र रोग, मूत्र रोग-जलन, बहुमूत्र, मूत्राशय (पथरी), अपेंडिक्स 7 शनि (एक वर्ष) आंतें, नसें, नाखून, बाल, मंडता मासपेशियां, हड्डी, वात, कमर के नीचे का भाग, घुटने, पैर लसिका तंत्र भूलना, एकाकीपन, निराशा, कैंसर, टी.बी. अल्सर, लकवा, अस्थमा, वायु रोग, अंग हानि, कमर, घुटने, जोड़ों के दर्द, गंजापन, हड्डी टूटना, आयु/मृत्यु, नाखून खराब होना, नसें, स्नायु रोग, दुर्बलता, थकान, सूखापन, अंगवक्ता 8 राहु (एक वर्ष) डर, सर्पदंश, जहर फैलना, क्राॅनिक रोग, पांव, शारीरिक क्षमता, अस्थि, पितृदोष, स्थूलता, त्वचा, चोट आंखों के नीचे घेरे (काले), दवा से संक्रमण, लकवा, नसेड़ी, स्थूलता, विष प्रयोग, शोक, दुर्घटना, मोटापा, स्मृति नाश, वायु रोग 9 केतु (2 दिन) खुजली, शरीर के जोड़, नसें, भय, कण्डू, त्वचा, हकलाहट, आंत्र स्वप्नदोष, वात रोग, शिथिलता, नस रोग, मशीन से दुर्घटना, कारावास, कण्डू रोग, पहचानने में परेशानी, परजीवी ज्योतिषानुसार कंैसर जैसे भयानक रोग के लिए सभी पाप क्रूर ग्रह और राशियों में जल तत्व राशियां उŸारदायी हैं। नौ ग्रह भी विभिन्न अंगों का कैंसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जैसे- सूर्य के दूषित होने पर मस्तिष्क या आंत्र का, चंद्र से रक्त व वक्षस्थल का, मंगल से ब्लड कैंसर, जननांग व गर्भाशय का, बुध से नाक, मुंह, नाभि का, गुरु से जीभ, कान, यकृत का, शुक्र से जननांग, गुप्तांग, इंद्रिय, कंठ का, शनि से दांत, पैर व हाथ का कैंसर होता है। छाया व पाप ग्रह-राहु, केतु इन सभी को अशुभत्व दृष्टि से प्रभावित करते हंै। उपरोक्त ग्रहों, राशियों एवं भावों का जब षष्ठ (मुख्य रोग भाव) या त्रिक भाव (6, 8, 12) तथा 3 भाव से संबंध हो तो इन भावों से संबंधित अंग में कैंसर रोग हो जाता है। उपाय (कैंसर एवं अन्य सभी रोगियों में): महामृत्यंुजय मंत्र एवं गायत्री मंत्र का प्रतिदिन प्रातः जप कम से कम 1 माला, तथा अनुष्ठान करें तो संकल्प लेकर सवा लाख मंत्रों, का जाप करंे। गायत्री मंत्र जप में तुलसी या चंदन की माला तथा महामृत्युंजय मंत्र जप में रुदाक्ष माला का उपयोग करें। पूरी पूजा में कम से कम एक दीपक जलता रहे। रोगी स्वस्थ होकर संजीवनी शक्ति को प्राप्त करता है। शिव एवं गायत्री पंचाक्षरी मंत्रों का जप भी लाभदायक रहता है। शिव- ‘‘ऊँ नमः शिवाय’’, ‘‘ऊँ जूं सः’’ तथा गायत्री- ‘‘ऊँ भूर्भूवस्व’’। नौ ग्रह शांति यंत्र: इसमें भोजपत्र पर अनार की कलम तथा केसर की स्याही से पुष्य नक्षत्र के दिन प्रातः शुभ समय में निर्माण कर पूजा कर धारण करें। इसमें नव ग्रह अनुकूल होकर रोगी स्वस्थ होता है। ‘‘नवग्रह यंत्र’’ 57 300 57 701 300000 506 300000 400 300000 अकाल मृत्यु रोधक यंत्र: इसे भोजपत्र पर अनार की कलम तथा अष्टगंध स्याही से पुष्य नक्षत्र में प्रातः शुभ समय में निर्माण कर धारण करें। इससे अकाल मृत्यु का भय दूर होकर रोगी आत्म विश्वास के साथ स्वस्थे जीवन जीता है। ‘‘अकाल मृत्यु रोधक यंत्र’’ त्र ज् ऋ म् म् त्र ज् म् त्र त्र म् ज् ज् त्र त्र म् ग्रहों द्व ारा श् ारीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न रोगों/बीमारियों का उपाय (देवता पूजा एवं वनस्पति जड़ी/ बूटी द्वारा ) व देवी-देवता की पूजा एवं जड़ी-बूटी द्वारा स्नान से लाभ होता है। उपाय: हनुमान बाहुक या रामचरित मानस के सुंदरकांड का पाठ करने से रोग से जल्दी मुक्ति मिलकर रोगी रोग मुक्त होकर स्वस्थ जीवन जीता है। भूत-प्रेत, ऊपरी बाधा, डायन साया, तंत्र-मारक प्रयोग में हनुमानजी, दूर्गाजी एवं पीपल, वट वृक्ष की पूजा लाभदायक रहती है। चूंकि ये रोग वायु के कारण होते हैं अतः शनि एवं राहु ग्रह के उपाय (जैसे- क्रमशः क्रमानुसार व लग्नानुसार नीलम व गोमेद धारण, मंत्र, यंत्र, दान, व्रत कर सकते हैं।) शनि व राहु देव पूजा भी लाभदायक रहकर रोगी स्वस्थ रहता है। गणेश जी का स्मरण कर मंत्र- ‘‘औषध जास्रवी तोय। वेद्यो नारायणो हरिः।।’’ का मन ही मन जप कर दवा ली जाये तो, रोगी स्वस्थ जल्दी ही होता है। स्वास्थ्य का सीधा संबंध नींद से है, अतः सोते समय सिर दक्षिण या पूर्व में रखें। इससे नींद अच्छी आयेगी जिससे व्यक्ति रोगी नहीं होगा। स्वास्थ्य का संबंध मुख्यतः खान-पान से है, अतः खाते समय पूर्व या उŸार दिशा में ही अपना मुंह करें तथा खाना वहीं खाना चाहिए जहां बनाया जाता है अर्थात् रसोई कक्ष में ही खाना चाहिए। इससे वायु में राहु के कारण बैक्टीरिया धुंए, ताप के कारण मर जाते हैं, पाचन क्रिया सही रहती है, जिससे मनुष्य रोग से मुक्त होकर स्वस्थ जीवन जीता है। यदि मनुष्य उŸाम मुहूर्त में दवाई ले तो जल्दी स्वस्थ हो जाता है। वास्तु द्वारा स्वास्थ्य लाभ अर्थात् वास्तु द्वारा रोगों को दूर करना: वास्तु का रोगों/बीमारियों से अभिन्न संबंध है। वास्तु दोष के कारण घर में ऊर्जा (सकारात्मक एवं नकारात्मक) मंे असंतुलन उत्पन्न हो जाता है, जिससे स्वास्थ्य खराब हो जाता है तथा रोग व बीमारियां पैदा हो जाती हंै। अतः निम्न उपाय व सावधानी रखकर स्वास्थ्य लाभ ले सकते हैं ताकि रोगी न हों। भूत-प्रेत, ऊपरी बाधाएं, भटकती आत्माएं, बुरी आत्माओं का साया, तंत्र बाधाएं आदि नकारात्मक प्रभाव ऊपरी मंजिलों पर रहने वाले व्यक्तियों पर होता है क्योंकि ये सारे बुरे प्रभाव नीचे शोरगुल वाले वातावरण में नहीं होते, उन्हें एकांत चाहिए, अतः जो व्यक्ति ऊपरी मंजिलों पर रहते हैं, वे इसके लपेटे में जल्दी आते हैं। अतः उन्हें सावधान रहना चाहिए। अकेले कदापि न रहें। ऊपरी मंजिलों पर यथासंभव नहीं रहें। यदि रहना ही पड़े, तो घोड़े की नाल दरवाजे के ऊपर मध्य में ऐसी जगह लगानी चाहिए ताकि बुरी आत्माएं आदि प्रवेश नहीं करें। कक्ष की बालकनी या बाहर में कांटेदार पौधे जैसे- कैकट्स, गुलाल आदि लगाएं। इससे ही बुरी आत्माएं प्रवेश नहीं करती हैं। घर के आस-पास पेड़-वृक्ष भी नहीं होने चाहिए क्योंकि बुरी आत्माएं आदि पेड़ पर ही वास करती हैं, जिसके लगने पर स्वास्थ्य खराब कर व्यक्ति को रोगी बना देती है। इसके अलावा, ऊपरी इमारतों पर फूलदार पौधे व बेलें, गमलों में लगा सकते हैं। यह भी स्वस्थ रहने का एक उपाय है। घर का मुख्य द्वार दक्षिण में न हो तथा घर के आंगन से पानी दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम की ओर से बाहर नहीं कटना चाहिए, इस दिशा का कोण भी बढ़ा हुआ नहीं होना चाहिए। दक्षिण-पश्चिम में पानी के साधन जमीन के नीचे नहीं होने चाहिए, यह मार्ग-प्रहार नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, घर के आगे का प्लास्टर उखड़ा नहीं होना चाहिए, सामने दीवार के टूट-फूट नहीं होनी चाहिए, इससे स्वास्थ्य उŸाम रहेगा। इनके अलावा स्वस्थ रहने के लिए निम्न वास्तु दोषों को दूर करें या बनाएं। - पूजा स्थल व अध्ययन कक्ष एवं कैश, बैंक बैलेंस आदि ईशान कोण (उŸार-पूर्व) या उŸार या पूर्व में बनाएं। - पानी से संबंधित स्रोत जैसे- नल, पाइप लाईन, टंकी, स्वीमिंग पुल, फिश एक्वेरियम, पोंड, कंुआ, पानी का स्थल आदि उŸार दिशा में बनाएं। - अग्नि से संबंधित स्रोत जैसे: रसोई, गैस, चूल्हा, स्टोव, चिमनी, इलेक्ट्रिकल उपकरण आदि आग्नेय (पूर्व-दक्षिण) में ही रखें या बनाएं। - स्टोर रूम या भारी सामान घर में नैत्य या दक्षिण या पश्चिम में बनाएं। - घर में नौकर को स्थान न दें। यदि देना ही पड़े तथा इसके साथ किरायेदार, मेहमानों को भी रखना पड़े तो नैत्य व ईशान को छोड़कर उन्हें अन्य स्थानों पर रखें। नहीं तो इनके कारण से कब्जा करना आदि घटनाएं होने पर मानसिक तनाव रोगों को जन्म देता है। अतः स्वस्थ रहने के लिए इसमें सावधानी जरूरी है।