किसी व्यक्ति विशेष के गृह वास्तु निरीक्षण स े उसकी आ ैर उसक े परिवार की स्थिति का काफी हद तक अंदाजा लग जाता है। इसका कारण यह है कि जिस प्रकार सृष्टि एवं मानव पंचमहाभूत तत्वों (आकाश, वायु, पृथ्वी, जल एवं अग्नि) से बने हैं, उसी प्रकार वास्तु भी इन्हीं तत्वों क े परस्पर समन्वय पर आधारित है, अर्थात घर में इन पंच तत्वों का संतुलन होना चाहिये।
शारीरिक, मानसिक आ ैर आर्थि क तौर पर सुखी एवं समृद्ध जीवन के लिये घर में सकारात्मक उर्जा प्रवाह में किसी भी प्रकार की रूकावट नहीं होनी चाहिये। रूकावट और संतुलन के अध्ययन के लिये हमें दिशाओं और तत्वों का ध्यान रखना पड़ता है। इस लेख के विषयानुसार हमें गृह वास्तु से जातक के बारे में जानना है।
इसलिये, हम किन दिशाओं में कौन-कौन सी समस्यायें एवं बाधाएं होती हैं उसकी बजाय, समस्याओं के अनुसार वास्तु दोष का वर्णन करने की चेष्टा करते हैं। मुख्य रूप से समस्या शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक ही होती है।
1. शारीरिक
1.1 गृह स्वामी का स्वास्थ्य अगर गृह स्वामी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तो निम्न वास्तु दोष होने की सम्भावना है: मुख्य द्वार वेध है। जैसे, टूटा-फूटा म ुख्य द्वार, स्वर व ेध एव ं द्वार क े अन्य वेध। दक्षिण-पश्चिम (नैर्ऋत्य) दिशा दूषित है जैसे, नैर्ऋत्य कोण का नीचा होना। यह दिशा सदैव ऊँची और मजबूत होनी चाहिये। यह एक गंभीर वास्तु दोष है और गृह स्वामी के लगातार बीमार रहने की आशंका बनी रहती है। ईशान दूषित है। ईशान दूषित होने से गृह स्वामी के स्वास्थ्य में कमी होती है और सन्तान वंश हानि भी हो सकती है। विशेषतः प्रथम पुत्र के लिये हानिकारक होता है।
1.2 परिवार के अन्य सदस्यों का स्वास्थ्य अगर परिवार के अन्य सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तो निम्न वास्तु दोष मिलने की सम्भावना है: आग्नेय वृद्धि है। इस प्रकार के दोष में विशेषतः परिवार की महिलाओं का स्वास्थ्य खराब रहता है। नैर्ऋत्य दूषित है तो पत्नी का स्वास्थ्य खराब रह सकता है। उत्तर दिशा दूषित है तो माता का स्वास्थ्य खराब रह सकता है। दक्षिण दिशा दूषित है तो पिता का स्वास्थ्य खराब हो सकता है।
1.3 बार-बार दुर्घटनाएं अगर न ैर्ऋ त्य दिशा द ूषित ह ै ता े बार-बार द ुर्घ टनाआ े ं की सम्भावना भी बनी रहती है। इस दिशा का स्वामी राहु है जो एक नैसर्गिक अशुभ ग्रह है।
1.4 संतान हानि संतान, पारिवारिक परम्पराओं को आगे बढ़ाती है और उसके स्वस्थ रहने से परिवार में चहक और प्रसन्नता बनी रहती है। अगर ईशान या पूर्व दिशा दूषित है तो संतान हानि की सम्भावना रहती ह ैर्। इ शान द ूषित हा ेन े की स्थिति में प्रथम पुत्र की स्वास्थ्य हानि की सम्भावना अधिक होती है।
2. मानसिक
2.1 स्वभाव अगर गृह स्वामी स्वभाव से चिड़चिड़ा, झगड ़ाल ू, क्रा ेधी, अप्रसन्न आ ैर मानसिक रूप से सदैव परेशान रहने वाला लगे तो निम्न वास्तु दोष होने की सम्भावना है: मुख्य द्वार वेध है। ब्रह्मस्थान दूषित है। जैसे, उस पर किसी प्रकार का निर्माण है, हैंडपंप है, बीम है, शयन कक्ष है, शौचालय है या कोई भारी सामान रखा है।
2.2 कानून से जुड़ी परेशानियां या अचानक अड़चनें आना अगर मुख्य द्वार वेध है तो परिवार कान ून स े सम्ब ंधित समस्याआ े ं म े ं उलझा ही रहता है या बार-बार कार्य पूर्ण होने में अड़चनें आती हंै। पश्चिम दिशा के दूषित होने से भी यह समस्या आती है क्योंकि कालपुरुष कुंडली में सप्तम भाव, पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है। सप्तम भाव साझेदारी का भी कारक है। अर्थात, साझेदारी एवं व्यवसाय संबंधी कानूनी उलझनें पश्चिम दिशा के दूषित होने से आ सकती हैं।
2.3 जिद्दी बच्चे या अध्ययन में कमजोर अगर जातक के घर के बच्चे अध्ययन में कमजोर हैं या जिद्दी हंै, तो निम्न वास्तु दोषों पर ध्यान दें: दक्षिण-पश्चिम (नैर्ऋत्य) दूषित है तो बच्चे जिद्दी होते है। ईशान या पूर्व दूषित होने से बच्चे पढ़ाई में कमजोर रहते हैं।
2.4 वैवाहिक कलह वैवाहिक कलह से जीवन का संपूर्ण संतुलन बिगड़ जाता है। दाम्पत्य के अतिरिक्त परिवार क े सभी सदस्य इससे प्रभावित होते हैं। अगर आग्नेय दिशा दोष पूर्ण है तो इसकी सम्भावना अधिक होती है क्योंकि आग्नेय दिशा के प्रतिनिधि ग्रह शुक्र हैं जो वैवाहिक जीवन से सम्बंधित हर सुख पर प्रभाव डालते हैं।
2.5 पारिवारिक तनाव प्रत्येक परिवार में वैचारिक मतभेद एक सामान्य सी बात ह ै। परन्त ु, अगर यह मतभेद लगातार बना रहे तो मानसिक तनाव का रूप ले लेता है। निम्न वास्तु दोष होने से परिवार में मानसिक तनाव होने की सम्भावना अधिक हो जाती है: मुख्य द्वार वेध या मुख्य द्वार आग्नेय मुखी या नैर्ऋत्य मुखी होना। रसोई घर में वास्तु दोष हो सकता ह ै। ज ैस े, ग ैस का उत्तर-पूर्व या दक्षिण में होना। दूषित वायव्य भी पारिवारिक कलह का कारण हा ेता ह ै
3.4 दिवालियापन के करीब आ जाना अगर गृह स्वामी की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर हो गयी है कि वह दिवालियापन की कगार तक आ चुका है तो निम्न वास्तु दोषों पर ध्यान दें। उत्तर दूषित है क्योंकि उत्तर के देवता कुबेर है। वायव्य, विशेषतः उत्तर-वायव्य दूषित होने से दिवालियापन की स्थिति पैदा हो सकती है। ईशान दूषित है जिसके स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं जो धन के भी कारक हैं। जैसे, वह स्थान ऊँचा है, वहां शौचालय है, वहां सीढ़ियां हैं इत्यादि।
3.5 मान-सम्मान में कमी समाज म े ं अधिकतर मान-सम्मान की कीमत को धन से भी अधिक आ ँका जाता ह ै। अगर, व्यक्ति क े मान-सम्मान में कमी आ गयी है या लगातार आ रही है तो वायव्य दिशा दूषित हो सकता है।
4. निष्कर्ष इस प्रकार हमन े द ेखा कि किसी व्यक्ति विशेष के गृह वास्तु से उसकी आर्थिक, पारिवारिक, समृद्धि, स्वास्थ्य, भा ैतिक स ंरचना, मानसिक स्थिति, कार्य क्षेत्र तथा संतान सुख आदि के बारे में जाना जा सकता है।
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