अर्थशास्त्र के प्रथम सिद्धांतों में वणिकवाद आता है। पूर्व मंे वणिकवादियों का नारा था सोना और अधिक सोना। वणिकवादी स्वर्ण व्यापार एवं स्वर्ण लाभ को ही अपना ध्येय एवं सिद्धांत मानते थे। यह घटना आज से 500 वर्ष पूर्व की है पर आज इसकी सत्यता को पूरा करने में पाश्चात्य देश लगे हुए हैं। इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ रहा है। भारत एक विकासशील देश है, इसकी उन्नति में अभी काफी समय लग सकता है पर सोने-चांदी में अचानक आई तेजी भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगी, क्योंकि नोट छापने के पीछे रिजर्व बैंक सुरक्षित निधि के लिए स्वर्ण सुरक्षित कोष में रखता है।
यदि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने और चांदी की छीना-झपटी इसी प्रकार चलती रही तो भारतीय अर्थ व्यवस्था का क्या हाल होगा, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। ज्योतिष के आधार पर इस वर्ष का राजा गुरु है और उसकी धातु स्वर्ण है तथा महामंत्री का दायित्व शुक्र निभा रहा है जिसकी धातु चांदी है। यह ज्योतिष के सिद्धांतों पर आज तक खरा उतरा है कि जो राजा रहा है
उसकी धातु उस वर्ष नवीन ऊंचाइयों को छूती रही है। गत दस वर्षों को देखें तो शनि ने चार बार राजा और तीन बार मंत्री बनकर लोहे के दामों को आसमान तक पहुंचा दिया था। संवत् का आरंभ इस वर्ष गुरुवार को गुरु के राजा बनने पर हुआ जब गुरु की अवस्था वक्री (तेजी से पीछे की ओर दौड़ती हुई) चल रही थी। ज्योतिष सिद्धांत के आधार पर जब भी कोई ग्रह वक्री होता है तो वह अपना प्रभाव तेजी से ही देता है। इस कारण सोने के मूल्य में अप्रत्याशित तेजी बनी रही। गुरु 27 जुलाई से पुनः मार्गी (सीधा चलना) होगा तब तक यह तेजी बनी रह सकती है।
गुरु, जो स्वयं स्वर्ण का मालिक है, 7 नवंबर 2006 को अस्त तथा 3 दिसंबर को पुनः उदित होगा। इस बीच में स्वर्ण मूल्यों में कमी आ सकती है। वहीं शुक्र, जिसकी धातु चांदी है, 4 अक्तूबर को पूर्व दिशा में अस्त और 30 नवंबर को पश्चिम में उदित होगा। इस बीच इसके मूल्य में गिरावट आ सकती है। अंत में उल्लेखनीय है कि इस वर्ष का राजा गुरु और महामंत्री शुक्र अपना प्रभाव अपनी-अपनी धातुओं के साथ अवश्य दिखाएंगे।