भूत-प्रेत का निवास स्थान एवं उससे बचाव
भूत-प्रेत का निवास स्थान एवं उससे बचाव

भूत-प्रेत का निवास स्थान एवं उससे बचाव  

के. के. निगम
व्यूस : 7615 | सितम्बर 2012

भूत-प्रेत का निवास स्थान एवं उससे बचाव लग्न भाव, आयु भाव अथवा मारक भाव पर यदि पाप प्रभाव होता है तो जातक का स्वास्थ्य प्राय निर्बल रहता है अथवा उसे दीर्घायु की प्राप्ति नहीं होती है। साथ ही चंद्रमा, लग्नेश तथा अष्टमेश का अस्त होना, पीड़ित होना अथवा निर्बल होना भी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि जातक अस्वस्थ रहेगा या उसकी कुंडली में अल्पायु योग है। ठीक इसी प्रकार चंद्रमा लग्न, लग्नेश, अष्टमेश पर पाप प्रभाव इन ग्रहों की पाप ग्रहों के साथ युति अथवा कुंडली में कहीं-कहीं पर चंद्र की राहु-केतु के साथ युति यह दर्शाती है कि जातक पर भूत-प्रेत का प्रकोप हो सकता है।

मुख्यतः चंद्र केतु की युति यदि लग्न में हो तथा पंचमेश और नवमेश भी राहु के साथ सप्तम भाव में है तो यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि जातक ऊपरी हवा इत्यादि से ग्रस्त होगा। फलतः उसके शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, स्वास्थ्य तथा आयु पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा। उपर्युक्त ग्रह योगों से प्रभावित कुंडली वाले जातक प्रायः मानसिक अवसाद से ग्रस्त रहते हैं। उन्हें नीद भी ठीक से नहीं आती है। एक अनजाना भय प्रति क्षण सताता रहता है तथा कभी-कभी तो वे आत्महत्या करने की स्थिति तक पहुंच जाते हैं। जो ग्रह भाव तथा भावेश बालारिष्ट का कारण होते हैं, लगभग उन्हीं ग्रहों पर पाप प्रभाव भावेशों का पीड़ित, अस्त अथवा निर्बल होना इस बात का भी स्पष्ट संकेत करता है कि जातक की कुंडली में भूत-प्रेत बाधा योग भी है। अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि बालारिष्ट तथा भूत-प्रेत बाधा का पारस्परिक संबंध अवश्य होता है।


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भूत-प्रेतों का निवास नीचे दिए गये कुछ वृक्षों एवं स्थानों पर माना गया है। इन वृक्षों के नीचे एवं स्थानों पर किसी प्रकार की तेज खुशबू का प्रयोग एवं गंदगी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो भूतप्रेत का असर हो जाने की संभावना रहती है। पीपल वृक्ष: शास्त्रों में इस वृक्ष पर देवताओं एवं भूत-प्रेत दोनों का निवास माना गया है। इसी कारण हर प्रकार के कष्ट एवं दुःख को दूर करने हेतु इसकी पूजा-अर्चना करने का विधान है। मौलसिरी: इस वृक्ष पर भी भूतप्रेतों का निवास माना गया है। उडुम्बर: इस वृक्ष पर भी भूतप्रेत का निवास होता है। कीकर वृक्ष: इस वृक्ष पर भी भूतप्रेत रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने इस वृक्ष में रोज पानी डालकर इस वृक्ष पर रहने वाले प्रेत को प्रसन्न कर उसकी मदद से हनुमान जी के दर्शन प्राप्त कर प्रभु श्रीराम से मिलने का सूत्र पाया था। यह भूत प्राणियों को लाभ पहुंचाने वाली श्रेणी का था। श्मशान या कब्रिस्तान: इन स्थानों पर भी भूतप्रेत निवास करते हैं।

भूतप्रेत से सावधानी: जल में भूतप्रेतों का निवास होता है, इसलिए किसी भी स्त्री-पुरुष को नदी, तालाब में चाहे वह कितने ही निर्जन स्थान में क्यों न हों, निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए क्योंकि भूतप्रेत गंदगी से रुष्ट होकर मनुष्यों को नुकसान पहुंचाते हैं। कुंए में भी किसी प्रकार की गंदगी नहीं डालनी चाहिए क्योंकि कंुए में भी विशेष प्रकार के जिन्न रहते हैं जो कि रुष्ट होने पर व्यक्ति को बहुत कष्ट देते हैं। श्मशान या कब्रिस्तान में भी कभी कुछ नहीं खाना चाहिए और न ही वहां पर कोई मिठाई या सफेद व्यंजन या शक्कर का बूरा लेकर जाना चाहिए क्योंकि इनसे भी भूत-प्रेत बहुत जल्दी आकर्षित होते हैं। ऐसे स्थानों में रात में कोई तीव्र खुशबू लेकर भी नहीं जाना चाहिए तथा मलमूत्र त्याग भी नहीं करना चाहिए।

किसी भी अनजान व्यक्ति से या विशेष रूप से दी गई इलायची, सेव, केला, लौंग आदि नहीं खानी चाहिए क्यांेकि यह भूतप्रेत से प्रभावित करने के विशेष साधन माने गये हैं। भूत-प्रेत से बचाव: यदि अनुभव हो कि भूत-प्रेत का असर है तो घर में नियमित रूप से सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा सूर्य देव को जल चढ़ाएं। यदि किसी मनुष्य पर भूतप्रेत का असर अनुभव हो, तो उसकी चारपाई के नीचे नीम की सूखी पŸाी जलाएं। मंगल या शनिवार को एक समूचा नीबू लेकर भूत-प्रेत ग्रसित व्यक्ति के सिर से पैर तक 7 बार उतारकर घर से बाहर आकर उसके चार टुकड़ें कर चारों दिशाओं में फेंक दें। यह ध्यान रहे कि जिस चाकू से नीबू काटा है उसे भी फेंक देना चाहिए।


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