रत्नों को धारण करके हम अपनी कार्यक्षमता, गतिविधि, क्रिया-प्रतिक्रिया, सोच में निश्चित रूप से परिवर्तन कर सकते हैं। प्राचीन ग्रंथों में माणिक्य, मोती, मूंगा आदि नवरत्नों के धारण करने के लाभ व इनको धारण करने की विधि की विस्तारपूर्वक चर्चा पाई जाती है, इसी के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र में विभिन्न धातुओं के साथ रत्नों को पहनने की चर्चा की गई है।
आधुनिक विज्ञान ने भी यह माना है कि विभिन्न धातुओं के साथ रत्न पहनने से इनके गुणों में अत्यधिक बढ़ोत्तरी हो जाती है जो कि शरीर के लिये लाभदायक उत्प्रेरक का कार्य करती है। रत्नों की उपयोगिता हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी वर्णित है, तभी तो पुराने समय के राजा-महाराजा, रानी-महारानी, साधारण प्रजा अपने लिये लाभदायक रत्न धारण किये हुये परिलक्षित होते हैं। राजा लोग युद्ध पर जाते समय विशेष प्रकार के रत्न धातुओं में जड़वाकर जाते थे और विजय प्राप्त करते थे। व्यापारी वर्ग व्यापार प्रारंभ करने से पूर्व विशेष रत्न जड़ित यंत्र आदि की स्थापना व्यापार स्थल पर कर व्यापार प्रारंभ करते थे।
रत्न पहनना तभी कारगर होता है जब इनको निर्धारित प्रक्रिया, मुहूर्त आदि के अनुसार धारण किया जाय, रत्नों के धारण करने के महत्व का वर्णन गीता रामायण आदि में भी आया है। यदि रत्न पूर्ण शास्त्रोक्त विधि तथा ज्योतिष विज्ञान में बताये गये नियमांे एवं निर्देशों के साथ पहना जाता है तो शुभ फल एवं यदि नियमों एवं निर्देशों का पालन न करते हुये धारण किया गया होगा तो अशुभ फल प्राप्त होगा। ऐसा अनुभव किया गया है कि रत्न तीन से सात दिन में अपना प्रभाव दिखाने लगते हैं।
आज तक हुये अनुसंधानों एवं प्रमाणों से सिद्ध हुआ है कि कुछ विशिष्ट रत्नों को धारण करने से रोगों का भी शमन होता है। कुछ विशिष्ट रोगांे में रत्न धारण करने का विधान इस प्रकार है: एड्स जन्मांग में जब शुक्र और मंगल की युति वृष या वृश्चिक राशि में हो और इनपर शनि या राहु की दृष्टि हो या लग्न में मंगल या शनि स्थित हो और चंद्रमा की दृष्टि हो तो एड्स रोग होने की संभावना रहती है।
इस रोग से बचाव हेतु फिरोजा, मूनस्टोन पुखराज, नीलम आदि पहना जाता है। गठिया मिथुन, तुला तथा कुंभ राशि के लोग इस रोग से अधिक परेशान होते हैं। इसी के साथ-साथ गुरु लग्न में तथा शनि सातवें भाव में होंगे तो गठिया रोग होने की संभावना बनती है। वृष, सिंह, कन्या, मकर, मीन राशियों में यदि शनि राहु की युति और इन पर मंगल की सीधी दृष्टि होगी तो निश्चित ही गठिया होने की संभावना बनी रहेगी। बलहीन सूर्य भी इस रोग का कारण हो सकता है।
इस रोग से बचाव हेतु सोने या तांबे में गोमेद तथा पुखराज धारण कराया जाता है। हृदय रोग जन्मांग में सूर्य या चंद्र पर राहु, मंगल, शनि की दृष्टि हो तो 40-45 वर्ष की आयु में हृदय रोग होने की संभावना कही जाती है।
राहु मंगल का संबंध अशुभ सूर्य से होने पर भी हृदय रोग हो सकता है। कर्क या मकर राशि में पाप ग्रह स्थित हो तो हृदय रोग हो सकता है। इस रोग से बचाव हेतु मूंगा व पुखराज धारण करवाया जाता है। यदि किन्हीं कारणों से लाभ प्राप्त नहीं होता है तो पन्ना, मोती धारण कराया जाता है।
एनीमिया जन्मांग में जब सूर्य और शनि पीड़ित हो तो पेट की खराबी से यह रोग होता है। यदि त्रिकोण भाव ग्रहरहित हो तो भी यह रोग हो सकता है। गुरु सिंह राशि में मंगल से षष्ठ, अष्टम या द्वादश होने पर भी यह रोग हो सकता है। इस रोग से छुटकारे हेतु मूंगा तथा पुखराज पहनाया जाता है।
ब्लड कैंसर मंगल पर शनि तथा राहु-केतु की दृष्टि होने पर यह रोग हो सकता है। नीच सूर्य भी इसका कारक होता है। इस रोग से बचाव हेतु मूंगा, माणिक्य, लहसुनिया, गोमेद धारण कराया जाता है। सफेद दाग वृष राशि में चंद्र, मंगल, शनि का संबंध इस रोग का कारक होता है। चंद्रमा लग्न में, मंगल द्वितीय में, सूर्य सप्तम में तथा शनि द्वादश भाव में हो तो सफेद दाग हो सकते हैं। चंद्रमा तथा शुक्र का योग किसी भी जलराशि में होने पर भी रोगकारक होता है। बुध शत्रु राशि में अस्त हो, शुक्र नीच राशि में वक्री हो तो भी यह रोग हो सकता है। इस रोग से बचाव हेतु हीरा, फिरोजा, मोती धारण करवाया जाता है। गंजापन सूर्य लग्न, तुला या मेष राशि में स्थित होकर शनि पर दृष्टिपात करता हो तो यह रोग हो सकता है।
गंजेपन से बचाव हेतु माणिक्य और पुखराज संयुक्त करके पहनाया जाता है। कैंसर चंद्रमा किसी भी राशि का होकर छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो और इस पर तीन पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो निश्चित ही इस रोग का कारक माना गया है। छठे भाव में स्थिर राशि का मंगल भी इसका कारक हो सकता है। गुरु और शनि कर्क या मकर राशि में हांे, केतु, मंगल या चंद्रमा या राहु या शनि कहीं भी एक साथ बैठे हों तो यह रोग हो सकता है। इस कठिन रोग को समाप्त करने हेतु बीच की अंगुली में सोने या तांबे में माणिक्य या अनामिका में नीलम धारण करवाया जाता है।
यदि कैंसर का आॅप्रेशन हो चुका हो तो उसके बाद होने वाले कष्ट से छुटकारा हेतु पुखराज और मूंगा धारण कराया जाता है। उपरोक्त कथन एवं विवेचन से सिद्ध होता है कि आज के युग में भी रत्न धारण करने का प्रामाणिक आधार है। समाज के प्रत्येक मनुष्य यह मानते हैं कि रत्न धारण करने से उनकी भाग्य उन्नति, रोग से छुटकारा, मानसिक शांति, गृह क्लेश से मुक्ति, रोजगार आदि में रत्न धारण करने से लाभ हुआ है।