गणेश जी को सफेद, या हरी दूर्बा अत्यधिक प्रिय है। दूर्बा की फुनगी में तीन, या पांच पत्तियां होनी चाहिएं। गणपति को, तुलसी छोड़ कर, सभी पुष्प प्रिय हैं।
पद्म पुराण, आचाररत्न में लिखा है कि गणेश जी की तुलसी पत्र से तथा दुर्गा की दूर्बा से पूजा न करें। अतः जिस व्यक्ति को धन की कमी हो, घर में कलह हो, बीमारी हर समय घेरे रहती हो, या कोई भी कष्ट हो, तो गणपति को मोदक और दूर्बा चढ़ाने से उसके हर कष्ट दूर हो जाते हैं।
क्योंकि इन्हें सभी देवताओं का सर्वाध्यक्ष पद प्राप्त है, यह प्रथम पूजनीय के रूप में प्रसिद्ध हैं, इसलिए इनकी जो अनदेखी करता है, वह कष्ट से उबर नहीं सकता तथा इनका जो ध्यान लगाता है, उससे कष्ट कोसों दूर रहता है। श्री गणेश जी को अगर नित्य 21 दुर्बाएं चढ़ायी जावें, तो उस व्यक्ति का कल्याण हो जाता है।
गणेश जी को 21 दुर्बाएं चढ़ाने का शास्त्रोक्त विधान निम्न लिखित है:
शुक्ल पक्ष में द्वितीया, तृतीया, षष्ठी, चतुर्थी, त्रयोदशी, पूर्णिमा के दिन, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, पुष्य, अश्विनी,, पुनर्वसु, मृगशिरा, तीनों उत्तरा नक्षत्र हो, या शुक्ल पक्ष में बुधवार के दिन बुध की होरा में, यदि सच्चे मन से श्वेतार्क गणपति, या अन्य गणपति विग्रह, या मात्र सुपारी पर रोली चढ़ा कर 21 दूर्वाएं नित्य चढ़ायी जावें, तो उस व्यक्ति को बुद्धि, धन, यश, नीरोगता प्राप्त होते हैं।
Û ¬ गणाधिपाय नमः दुर्वायुग्मं सवर्पयामि।
Û ¬ उमा पुत्राय नमः दुर्वायुग्मं समर्पयामि।
Û ¬ अघनाशनाय नमः दुर्वायुग्मं समर्पयामि
Û ¬ विनायकाय नमः दुर्वायुग्मं समर्पयामि
Û ¬ ईशपुत्राय नमः दुर्वायुग्मं समर्पयामि
Û ¬ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः दुर्वायुग्मं समर्पयामि
Û ¬ एकदन्ताय नम नमः दुर्वायुग्मं समर्पयामि
Û ¬ इशवक्त्राय नमः दुर्वायुग्मं समर्पयामि
Û ¬ मूषक वाहनाय नमः नमः दुर्वायुग्मं समर्पयामि
Û ¬ कुमारमुखे नमः दुर्वायुग्मं समर्पयामि गणेश जी को उपर्युक्त एक-एक मंत्रों से दो-दो दुर्बाएं अर्पित कर के, निम्नांकित समष्टि मंत्र से 21वीं दूर्बा अर्पित करें: ¬ गणाद्यिपाय नमस्तेऽस्तु उमापुत्राधनाशन। एकदन्तेशवक्त्रोति तथा मूषकवाहन।। विनायकेशपुत्रोति सर्वसिद्धिप्रदायक। कुमारमुखेतित्वामर्पयामि प्रयत्नतः। दूर्वामेकां समर्पयामि।