श्री गणेश पत्र-पुष्प एवं हरी दूब से प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा बहुत आसान है। किसी भी देवता का पूजन यदि शास्त्रोचित विधि से किया जाए तो फल शीघ्र प्राप्त होते हैं, इस आलेख में इसी का उल्लेख किया जा रहा है.....
श्रीगणेश भगवान भाद्र मास की चतुर्थी तिथि और ग्रह नक्षत्रों के मंगलमय योग में आदि देव शिव के यहां विराट रूप में पार्वती जी के सम्मुख अवतरित हुए। तब माता पार्वती बोलीं- ‘प्रभु! अपने पुत्र रूप का दर्शन कराएं।’ तब भगवान श्री गणेश जी अपना शिशु रूप लेकर शिशु क्रीड़ा करने लगे, तभी से गणेश जन्मोत्सव भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाने लगा। गणेश जी का जन्म दोपहर को हुआ। अतः मध्याह्न में ही गणेश पूजन करना चाहिए।
इस दिन रविवार या मंगलवार होने से यह तिथि विशेष फलदायी हो जाती है। भगवान श्री गणेश का ‘‘सौम्य रूप’’ मूर्तिपूजन से सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं। इस दिन व्रत रखकर मोदक, पुष्प, सिंदूर, जनेऊ एवं 21 दूर्वा लेकर भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए। विधिवत पूजन में उनके मस्तक पर सिंदूर लगाना चाहिए।
¬ गणाधिपताय नमः,
¬ विध् ननाशाय नमः,
¬ ईशपुत्राय नमः,
¬ सर्वासिद्धिप्रदाय नमः,
¬ एकदंताय नमः,
¬ कुमार गुरवे नमः,
¬ मूषक वाहनाय नमः
¬ उमा पुत्राय नमः,
¬ विनायकाय नमः
¬ इषवक्त्राय नमः
और अंत में सभी नामों का एक साथ क्रम में उच्चारण करके बची हुई एक दूर्वा भी चढ़ा दें। इसी तरह 21 लड्डू भी चढ़ाएं। इनमें से पांच प्रतिमा के पास छोड़ दें, पांच ब्राह्मणों को और शेष प्रसाद के रूप में परिवार में वितरित कर दें।
इस प्रकार पूजन करने से भगवान श्री गणेश की कृपा से सभी विघ्न बाधाएं दूर होकर कार्य सिद्ध होते हैं। कहा जाता है कि गणपति सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरे, तीन लोक तैंतीस देवता द्वार खड़े। अरज करे, उठ प्रभात की आरती गावे जाके सिर यश छत्र फिरे। अतः मंगल मूर्ति श्री गणेश का स्मरण सतत् करते रहना चाहिए।
पूजन संबंधी जानने योग्य कुछ बातें एक घर में कम से कम पांच देवी देवताओं की पूजा होनी ही चाहिए- गणेश, शिव, विष्णु, सूर्य, दुर्गा। किसी भी देव या देवी के पूजन के प्रति संकल्प, एकाग्रता, श्रद्धा होना बहुत ही आवश्यक है। घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य, दो दुर्गा मूर्तियों, दो गोमती चक्र और दो शालिग्राम की पूजा करने से अशांति की प्राप्ति होती है।
शालिग्राम जी की प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती। दुर्गा की एक, सूर्य की सात, गणेश की तीन, विष्णु की चार और शिव की आधी ही परिक्रमा करनी चाहिए। तुलसी के बिना ईश्वर की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंगल, शुक्र, रवि, अमावस्या, पूर्णिमा, द्वादशी और रात्रि और काल में संध्या तुलसी दल नहीं तोड़ना चाहिए।
तुलसी तोड़ते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक है। प्रतिदिन पंचदेव पूजा अवश्य करनी चाहिए। यदि मंत्र अभ्यस्त न आता हो तो बिना मंत्र के ही जल, चंदन, फूल आदि चढ़ाकर पूजा करनी चाहिए। फूल चढ़ाते समय ध्यान रखें कि उसका मुख ऊपर की ओर हो।
सदैव दायें हाथ की अनामिका एवं अंगूठे की सहायता से फूल अर्पित करने चाहिए। चढ़े हुए फूल को अंगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारना चाहिए। फूल की कलियों को चढ़ाना मना है, किंतु यह नियम कमल के फूल पर लागू नहीं है। शिव जी को विल्व पत्र, विष्णु को तुलसी, गणेश जी को हरी दूर्वा, दुर्गा को अनेक प्रकार के पुष्प और सूर्य को लाल कनेर के पुष्प प्रिय हंै।
शिवजी को सदाबहार पुष्प, विष्णु को धतूरा और देवी को आक या मदार पुष्प नहीं चढ़ाए जाते। विष्णु को चावल, गणेश जी को तुलसी, देवी को दूर्वा, सूर्य को विल्व पत्र नहीं चढ़ना चाहिए। लाल से सफेद और सफेद से नीला कमल भगवान को अत्यधिक प्रिय है। देवताओं को पूजन में अनामिका से गंध लगाना चाहिए। पूजन तीन प्रकार के होते हैं- पंचोपचार - गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य दशोपचार - पाद्य, अघ्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य षोड्शोपचार- पाद्य, अघ्र्य, आचमन, स्नान, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, स्तवन पाठ, तर्पण, नमस्कार।
घृत का दीपक दायीं और तेल का दीपक बायीं ओर रखना चाहिए। पुष्प हाथ में और चंदन ताम्र पत्र में रखें। जल, पात्र, घंटा, धूपदानी आदि बायीं ओर रखना चाहिए। शंख को जल में डुबाना और शंख को पृथ्वी पर रखना वर्जित है। शंख में चंदन और फूल छोड़ना चाहिए।
भगवान के आगे जल का चैकोर घेरा बनाकर नैवेद्य रखें और देवी के दायीं ओर नैवेद्य रखना चाहिए। सभी देवताओं को सात, पांच, तीन बार प्रणाम करना चाहिए। एक दीपक से दूसरा दीपक नहीं जलाना चाहिए। पूजन में किसी सामग्री की कमी होने पर उसके स्थान पर अक्षत, फूल चढ़ा दें।
शास्त्रों में पूजा को हजार गुना फलदायी बनाने के लिए एक उपाय बतलाया गया है, वह है ‘‘मानस पूजा’’। यह पूजा करके वाह्य वस्तुओं से पूजन करें। घर में पूर्व की ओर मुख करके दीपक रखने से वह आयु देता है, उत्तर की ओर धन, पश्चिम की ओर दुख और दक्षिण की ओर मुख करके रखने से हानि देता है।
पुत्रवान व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने घर पर उत्तर मुख बैठ कर भोजन न करे। स्वस्तिक चिह्न शुभत्व का प्रतीक है। यह समृद्धि, शांति, वैभव और ध् ान लक्ष्मी का प्रतीक है। इसकी चार भुजाएं चारों दिशाओं की ओर होती है। इसमें चार गुण हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सुख-समृद्धि।
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