आत्मोन्नति के लिए वर्ष भर करें सूर्य व्रत डाॅ. मनमोहन शर्मा सर्य की आराधना भारत में ही नहीं, बल्कि मेक्सिको, यूनान, ईरान तथा समस्त दक्षिण पूर्व एशिया में की जाती रही है। सूर्य धार्मिक तथा वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से इस चराचर जगत का आधार है। ऋग्वेद में सूर्य को समस्त स्थावर और जंगम जगत की आत्मा माना गया है। छांदोग्य उपनिषद में ‘आदित्यो ब्रह्म इत्यादेश’ तथा वाल्मीकि रामायण में ‘एषः ब्रह्मा च विष्णु च शिवः स्कन्ध प्रजापति’ कहकर सूर्य के महत्व को दर्शाया गया है। विभिन्न पुराणों तथा अन्य धर्म ग्रंथों में सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के विभिन्न व्रतों एवं विधियांे का उल्लेख है। यहां विभिन्न मासों में विभिन्न व्रतों के महत्व एवं संक्षिप्त विधियों का विवरण प्रस्तुत है। चैत्र: चैत्र शुक्ल सप्तमी को घर के एकांत स्थान पर सफाई करके शुद्धता के साथ वेदी पर अष्टदल कमल बनाएं। पूर्व से प्रत्येक दिशा में क्रमशः दो गन्धर्वों, दो ऋतुओं, दो अप्सराओं, दो राक्षस, दो महानाग, दो यातुधान और दो ऋषियों तथा ईशान में सूर्य एवं नवग्रह का अलग-अलग पंचोपचार पूजन करें। सूर्य के किसी भी मंत्र से 108 आहुतियों का हवन करें। अन्य देवों के लिए 8-8 आहुतियां दें। एक ब्राह्मण को भोजन कराएं। इसके बाद वर्षपर्यंत शुक्ल पक्ष की हर सप्तमी को व्रत करते रहें, सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी तथा सूर्य लोक की प्राप्ति होगी। वैशाख: इस मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी को कमल सप्तमी व्रत भी आरंभ किया जाता है। इस दिन स्वर्ण कमल एवं सूर्य की प्रतिमा बनवाकर वेदी पर स्थापित करें। कमल पुष्पों से सूर्य भगवान की पूजा करें। जल का घड़ा, एक गाय तथा कमल ब्राह्मण को दान करें। अगले दिन ब्राह्मण को भोजन कराएं एवं यथाशक्ति दक्षिणा दें। ज्येष्ठ: ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी को कनेर के पेड़ को संपूर्ण स्नान कराएं और फिर गंध, पुष्प, धूप, दीप तथा लाल वस्त्र चढ़ाएं। पेड़ के निकट गेहूं रखकर केले, नारंगी तथा गुड़ भी चढ़ाएं। सूर्य मंत्र से पूजा-प्रार्थना करके पूजन सामग्री ब्राह्मण को दे दें। कठिनाई के समय स्त्रियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। आषाढ़: इस मास शुक्ल सप्तमी को वेदी पर रथ चक्र बनाकर उसमें भगवान विवस्वान् का पंचोपचार पूजन करें। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए सूर्य नारायण की करुण भाव से प्रार्थना करें, कार्य सिद्ध होगा। सावन: इस मास की सप्तमी को हस्त नक्षत्र होना श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन सूर्य नारायण की उनके चित्रभानु रूप में पूजा और जप, दान तथा हवन करें, सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी और सारे पापों से मुक्ति मिलेगी। भाद्रपद: इस मास व्रत सप्तमीयुक्त षष्ठी को किया जाता है जिसका फल अक्षय माना गया है। इस दिन भगवान नारायण का चित्र बना कर उनका पंचोपचार पूजन करें, सभी इच्छाएं पूरी होंगी। आश्विन: इस मास अक्षर सूर्य हस्त नक्षत्र में रहता है। प्रत्येक वर्ष 26-27 सितंबर से 10-11 अक्तूबर तक पड़ने वाले रविवार को सूर्य का व्रत, जप, हवन और दान करना श्रेष्ठ फलदायी होता है। राजनेताओं तथा सरकारी अधिकारियों को यह व्रत, उपवास अवश्य करना चाहिए। कार्तिक: इस मास की शुक्ल सप्तमी तिथि को सूर्य के दिवाकर रूप की पूजा करें। इसमें खीर का भोग लगाना लाभदायक होता है। ब्राह्मण को खीर सहित अन्य भोजन सामग्री दान करें। मार्गशीर्ष: सूर्य इस मास ‘मित्राय नमः’ के जप से प्रसन्न होते हैं। इस मास की शुक्ल द्वादशी से द्वादशादित्य व्रत आरंभ करें और फिर प्रत्येक मास की शुक्ल द्वादशी को उपवास करें। सूर्य का षोडशोपचार पूजन करें, सभी विपत्तियां दूर होंगी। पौष: इस मास शुक्ल सप्तमी को व्रत करके सूर्य के धाता रूप की पूजा करें। इसे मार्तण्ड सप्तमी व्रत कहा जाता है। यह व्रत करने से उत्तम फल प्राप्त होता है। माघ: इस मास शुक्ल पंचमी को एक बार भोजन करें। षष्ठी को उपवास करके सप्तमी को काले तिलों से अष्टदल कमल बनाएं। उसकी पत्तियों पर ईशान से पूर्व की तरफ क्रमशः ¬ भास्कराय नमः, ¬ सूर्याय नमः, ¬ सूर्याय नमः, ¬ यज्ञेशाय नमः, ¬ वसुधाम्ने नमः, ¬ चंडभावने नमः ¬ कृष्णाय नमः, ¬ श्री कृष्णाय नमः मंत्रों से पूजन करें। मदार का पुष्प चढ़ाएं, सारी कामनाएं पूर्ण होंगी। फाल्गुन: इस मास की शुक्ल सप्तमी को ¬ खखोल्काय नमः मंत्रा से सूर्य भगवान की पूजा करें। पंचोपचार पूजन के बाद आक का पत्ता चढ़ाएं तथा यथासंभव दान करें। इस प्रकार, भगवान सूर्य का व्रत किसी भी मास की सप्तमी को आरंभ कर वर्षपर्यंत करें, लाभ होगा। ध्यान रहे, सूर्य व्रत करते हुए नमक का प्रयोग न करें। सिर्फ एक बार मिष्टान्न भोजन करें अथवा सात्विक अन्न लें। रात्रि में जल का प्रयोग न करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।