संबंधों का मामला भी कर्मआधारित है जो जन्मों-जन्मों से चला आता है। तभी तो एक उच्चाधिकारी की पत्नी सुमन अपनी बेटी के साथ जीवन की ऐसी बेवसी और संकटों का सामना कर रही हैं जिसका कोई प्रत्यक्ष कारण कम दिखाई देता है। इस लेख में ऐसे ज्योतिषीय योगों का विवेचन किया गया है जो मां बेटी की बेबसी और संकट पूर्ण जीवन यात्रा का परत-दर-परत विश्लेषण करते हैं। प्रत्येक विवाहित स्त्री का सपना होता है कि उसकी संतान पूर्ण स्वस्थ हो और उसका घर-आंगन बच्चों की किलकारियांे से गूूंजता रहे। लेकिन संतान होने के बाद भी जब मात-पिता को संतान का दुःख अपनी आंखों से देखना पड़ता है और उन्हें दुख झेलते देखते हैं
तो वे बहुत बेबस और हताश हो जाते हैं और यही सोचते हैं कि भगवान, आपने हमारे साथ ऐसा क्यों किया, यह शायद हमारे प्रारब्ध का दोष था जो कि हमारी संतान भुगत रही है। ऐसा ही कुछ सुमन की बच्ची प्रिया के साथ हुआ। सुमन का विवाह एक उच्च अधिकारी से हुआ था। उनका सरकार में बड़ा रुतबा था और बहुत मान-सम्मान था। सुमन अपनी जिंदगी से बहुत खुश थी। अक्सर वह अपने पति के साथ विदेश के दौरों पर रहती। विवाह के कुछ समय पश्चात् ही उसने प्रिया को जन्म दिया। प्रिया बहुत ही सुंदर थी।
जब वह आठ माह की थी तो उसे बुखार आ गया। डाॅक्टर ने उसे स्ट्रेप्टोमाइसीन की अधिक दवाई दे दी जिसके कारण उसकी सुनने व बोलने की शक्ति जाती रही। शुरू में तो उन्हें पता नहीं चला कि उसे क्या हुआ है लेकिन लगातार जांच होने से पता चला कि दवाई अधिक मात्रा में देने के कारण नन्ही प्रिया को बहुत आघात पहुंचा है और वह हमेशा के लिए मूक और बधिर हो गई है। विदेश के बड़े से बड़े अस्पतालों में उसे इलाज के लिए ले जाया गया लेकिन सारी कोशिशें वेनतीजा रहीं। बल्कि दवाओं के लगातार असर से 1996 से उसको मिरगी के दौरे भी पड़ने लगे और कुछ दिन बाद वह अस्थमा की भी शिकार हो गई।
2001 में सुमन के पति भी उन दोनों को अकेला छोड़कर इस दुनिया से कूच कर गये। अपनी इकलौती बेटी के दुख सहने की क्षमता शायद अब खत्म हो गई थी। सुमन प्रिया के साथ बिल्कुल अकेली रह गई उन्हें घर के साथ-साथ प्रिया को भी पूरा वक्त देना पड़ता है उन्होंने उसे मंेटली रिटार्डेड चिल्ड्रेन के स्कूल में भी डालने की कोशिश की, पर वहां भी कामयाबी नहीं मिली। प्रिया को ड्राइंग का शौक था पर कोई उसे इस विषय को उसकी तरह से सिखाने वाला नहीं मिला।
आज प्रिया लगभग 37 वर्ष की हो चुकी है और बिल्कुल एकाकी जीवन बिता रही है अपनी बीमारियों से जूझने के लिए सिर्फ दवाइयों का सहारा है। सुमन भी अब अपनी जिंदगी और प्रिया की जिंदगी से हताश हो चुकी हंै और यही सोचती हैं कि प्रिया के साथ ऐसा क्यों हुआ और क्या वह ऐसी ही रहेगी या कभी उस पर और खुद उन पर ईश्वरीय कृपा होगी। आईये, देखें ज्योतिष के आइने से सुमन: लग्न में लाभेश एवं कर्मेश सूर्य व बुध बुधादित्य योग बना रहे हैं।
पति कारक गुरु लाभ भाव में और सप्तमेश शुक्र स्वगृही होने के कारण, इनका विवाह एक उच्च अधिकारी के साथ हुआ तथा इन्हें अनेक देशों में रहने के संयोग बने। सप्तमेश शुक्र पर राहु की दृष्टि तथा मंगल की दृष्टि एवं बाधक चंद्रमा की दृष्टि होने से पति दीर्घायु न हो सके जिसके फलस्वरूप इन्हें लंबे समय तक पति सुख से भी वंचित होना पड़ा। बृहस्पति इनकी लग्न कुंडली में पंचमेश होने के साथ ही पंचम भाव का कारक होकर एकादश भाव में शत्रुराशि में स्थित है तथा बृहस्पति ग्रह पर अकारक अशुभ शनि की तीसरी दृष्टि पड़ रही है।
चलित कुंडली में बृहस्पति मारकेश शुक्र के साथ बारहवें भाव में है, जिसके कारण जीवन में इन्हें संतान के कारण दुखी जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। केवल बृहस्पति की स्वराशि पर दृष्टि होने से संतान तो प्राप्त हो गई परंतु वह दुखदायी रही। इनके भाग्य भाव पर विचार करने पर यह प्रतीत होता है कि इन सबके लिए इनका खराब भाग्य भी उŸारदायी रहा। भाग्य भाव का स्वामी छठे भाव में मारकेश शुक्र तथा अशुभ शनि से दृष्ट है एवं भाग्य भाव में नीच का मंगल एवं अशुभ शनि की युति बन रही है जो कि इनके अशुभ भाग्य स्थिति की ओर इशारा करती है।
चतुर्थ भाव अर्थात् माता का भाव इस भाव का भावेश भाग्य में होने सेे इनको इनकी माता का सुख, सहयोग प्राप्त हो रहा है जिसके सहारे यह अपना जीवन-यापन कर पा रही हैं। इसके अतिरिक्त लग्नेश मंगल नीच राशि में होने के कारण भी उनको जीवन में सब कुछ होने के बावजूद सुख नहीं मिल सका। इस सबके उपरांत देखें तो माता का लग्न वृश्चिक राशि है और पुत्री का लग्न तुला राशि है
अर्थात् इनकी पुत्री इनकी चिंता और मानसिक व आर्थिक हानि का कारण बनेगी। यह सुमन की कुंडली के द्वादश भाव में शुक्र की उपस्थिति से भी सुनिश्चित होता है कि कोई शुक्र कारक अर्थात कोई स्त्री वह भी तुला लग्न वाली स्त्री जातक के व्यय का कारण बनेगी। इस प्रकार उसकी तुला लग्न वाली पुत्री संतान के रूप में सुमन के व्यय का कारण बनीं।
प्रिया: प्रिया की जन्म कुंडली पर विचार करें तो लग्नेश शुक्र एवं भाग्येश बुध अशुभ ग्रह केतु के साथ अष्टम भाव में पाप कर्तरी प्रभाव से ग्रसित है, सप्तम भाव में सूर्य एवं नवम भाव में शनि होने से अष्टम भाव पाप कर्तरी प्रभाव में है तथा साथ ही अशुभ ग्रह मंगल की भी अष्टम भाव पर दृष्टि होने से व लग्न पर सूर्य की दृष्टि होने से इस जातिका की ग्रह स्थिति इन्हें रोगी होने से नहीं बचा सकी। रोग स्थान की स्थिति भी खराब है। रोगेश बृहस्पति रोग स्थान में ही स्थित है।
रोगेश एवं रोग भाव भी पाप कर्तरी प्रभाव में है, जिसके कारण बहुत इलाज करने पर भी रोग ठीक नहीं हो सका। चंद्रमा की स्थिति भी खराब है। वह पाप ग्रह शनि की दृष्टि में है, जिसके कारण मानसिक रोग एवं अस्थमा जैसी बीमारी से ग्रसित हैं। इसके चतुर्थ भाव का स्वामी शनि अपने भाव से छठे भाव में स्थित है, जिसके कारण जातक को कभी भी मानसिक शांति, जीवन का सुख व सुख सुविधाएं नहीं मिल पायीं। ऐसा केवल प्रिया की कुंडली में ही नहीं सुमन की कुंडली में भी देखने को मिलता है।
सुमन की कुंडली में भी चैथे भाव का स्वामी शनि चैथे से छठे भाव में स्थित है जिसके कारण मां-बेटी दोनों की अमन-चैन और शांति हमेशा भंग ही रही। एकादशेश सूर्य जो कि छठे से छठे भाव का स्वामी है, वह भी उच्च का होकर लग्न को शत्रु दृष्टि दे रहा है जिसके कारण उसका स्वास्थ्य हमेशा खराब ही रहा। साथ ही क्रूर ग्रह शनि की तीसरी दृष्टि एकादश भाव पर पड़ने से उसके रोग भाव को हमेशा प्रभावित करती रही है।
अभी प्रिया की राहु की दशा 2015 तक चल रही है। उसके पश्चात गुरु की दशा प्रारंभ होगी। यह गुरु की दशा प्रिया के लिये और भी कष्टकारी हो सकती है। गुरु की दशा में प्रिया की स्थिति संभलने की बजाय और बिगड़ने के आसार नजर आ रहे हैं। इस समय में 2014 के पश्चात् इस पर शनि की साढे़साती भी आरंभ हो चुकी होगी। जब शनि धनु राशि पर से गोचर कर रहा होगा तो यह तीसरे भाव से आयुष्य कारक चंद्रमा से गोचर कर रहा होगा।
इस समय शनि की दृष्टि जन्मकालिक मंगल पर होगी तथा भाग्य स्थान तथा द्वादश भाव दोनों पर होगी। वह समय जातक के लिये अत्यधिक कष्टप्रद व मृत्युतुल्य कष्टदायक रहेगा। उसी समय उसकी मां सुमन की कुंडली में गुरु में बुध की दशा चल रही होगी।
बुध पुनः अकारक ग्रह की दशा का फल देगी जिसके कारण सुमन को एक बार पुनः आत्मिक कष्ट होगा। अतः सुमन की मां को बुध ग्रह की उपासना, दान व पूजा-पाठ आदि करना चाहिए एवं प्रिया को गुरु की पूजा, उपासना व मंत्र, दान व पूजा पाठ करके ग्रह की शांति करनी चाहिए।