बैकुंठ चतुर्दशी व्रत
बैकुंठ चतुर्दशी व्रत

बैकुंठ चतुर्दशी व्रत  

व्यूस : 5292 | नवेम्बर 2008
संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत श्रीगणेश संकटों से उबारने वाले देवता हैं और संकष्टी चतुर्थी व्रत की महिमा सर्वविदित है। जब कोई भारी कष्ट में हो, संकटों और मुसीबतों से घिरा हो या किसी अनिष्ट की आशंका हो, तो संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से अतिशय लाभ होता है। कहा जाता है कि यह व्रत करके महाराज युधिष्ठिर ने अपना राज्य फिर पा लिया था और हनुमान जी ने सीता का पता लगाया था। त्रिपुर को मारने के लिए शिवजी ने भी यह व्रत किया था और यही व्रत करके पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया था। वैसे तो यह व्रत प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है, लेकिन माघ, श्रावण, मार्गशीर्ष और भाद्रपद में इसका विशेष माहात्म्य है। प्रातः काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृŸा होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके दाहिने हाथ में पुष्प, अक्षत, गंध और जल लेकर संकल्प करें। फिर सामथ्र्यानुसार गणेशजी का पूजन-आवाहन कर धूप-दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली आदि अर्पित करें। फिर लड्डुओं का भोग लगाएं और आरती करें। सायंकाल (भाद्रमास को छोड़कर) चंद्र का पूजन कर अघ्र्यदान करें। तत्पश्चात् गणपति को भी अघ्र्य दें और उनसे अपने कष्टों को दूर करने का निवेदन करें। कथा: श्रीस्कंदपुराण के अनुसार अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण से जब अपना खोया हुआ राजपाट पुनः प्राप्त करने का उपाय पूछा तो उन्होंने संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने की सलाह दी और कहा कि इस व्रत की महिमा अपार है। इसके प्रभाव से राजा नल ने अपना खोया राज्य प्राप्त कर लिया था। सत्युग में नल नामक एक राजा थे, जिनकी दमयंती नाम की रूपवती पत्नी थीं। जब राजा नल पर विकट समय आया तो उनके घर -वार, राज पाट आदि सब चैपट हो गए। उन्हें अपनी पत्नी के साथ वन में भटकना और फिर पत्नी से बिछुड़ना भी पड़ा। पेट की आग बुझाने के लिए उन्हें कई जगह काम भी करना पड़ा। एक दिन दमयंती ने शरभंग ऋषि की कुटिया में पहुंच कर उन्हें अपना कष्ट बताया, ‘हे मुनि श्रेष्ठ! मैं अपने पति और पुत्र से बिछुड़ गई हंू। मेरे पति, के उन छिने हुए राज्य और पुत्र की प्राप्ति फिर से कैसे हो, कोई उपाय बताने की कृ पा करें। महामुनि शरभंग ने कहा-‘हे दमयंती! मैं तुम्हें एक ऐसा व्रत बताता हूं, जिसके करने से समस्त संकट दूर होकर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत करने से निश्चय ही तुम्हारे कष्ट दूर हो जाएंगे और पति का खोया हुआ राज्य पुनः मिल जाएगा। तत्पश्चात रानी दमयंती ने भाद्रपद मास की कृष्ण चतुर्थी से यह व्रत आरंभ करके लगातार सात माह तक गणेश पूजन किया, जिससे अपने पति, पुत्र और खोया हुआ राज्य सब फिर से प्राप्त हो गए।



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