एक आध्यात्मिक जीवन
एक आध्यात्मिक जीवन

एक आध्यात्मिक जीवन  

आभा बंसल
व्यूस : 4049 | अप्रैल 2006

चाचा जी जैसी शख्सियत के लिए कुछ भी लिखना सरल कार्य नहीं है लेकिन उनकी जीवन शैली, उनके विचार और उनका जीवन के प्रति दृष्टिकोण मुझे बहुत समय से उनके बारे में लिखने के लिए प्रेरित कर रहा था। चाचा जी का जन्म अलीगढ़ के पास जमों गांव में सन् 1918 में हुआ। वे अपने बहन भाइयों में सबसे छोटे थे। उनके पिता गांव के जमींदार थे जिनकी गांव में काफी जमीन जायदाद थी।

चाचा जी की जमींदारी के कामों में बचपन से ही रुचि नहीं थी। वे हमेशा अपने में अथवा अपनी पढ़ाई में खोए रहते। उनके पिता उन्हें पैसा उगाही के लिए भेजते तो वह सारा पैसा गरीबों में बांट कर आ जाते और पूछने पर कह देते कि उनका दुख उनसे देखा नहीं गया। उनके पिता समझ गए कि यह काम उनके बस का नहीं है। पिता के देहांत के बाद उनके दो बड़े भाइयों ने काम संभाला लेकिन चूंकि दोनों वरिष्ठ सरकारी पद पर आसीन थे, इसलिए दिल्ली में आकर बस गए।

चाचा जी गांव में ही रहे। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा उच्च दर्जे से उत्र्तीण की और उन्हें क्लास वन आॅफीसर की नौकरी भी मिली। कुछ दिन उन्होंने काम भी किया पर वहां का माहौल उन्हें रास नहीं आया और वे इतनी प्रतिष्ठित नौकरी छोड़ कर वापस आ गए। घर वालों ने अपना माथा ठोक लिया, उन्हें समझ नहीं आया कि क्या किया जाए। आखिरकार उनके विवाह को ही आखिरी हथियार समझा गया कि शायद वैवाहिक जीवन उन्हें घर के प्रति अधिक जिम्मेदार बना देगा। इसे भाग्य की विडंबना ही कहेंगे कि चाचा जी की पत्नी उनके स्वभाव के एकदम विपरीत अत्यंत जिद्दी, भौतिकवादी एवं कर्कश वाणी वाली महिला थीं।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


उनके घर में रोज कलह रहने लगेगा। उनके दोनों भाई साल में एक बार फसल कटने के समय दिल्ली से गांव आते और फसल बेच कर उन्हें उनके हिस्से के पैसे दे देते। पर चाचा जी के उस पैसे को लेने के लिए गांव के गरीब ब्राह्मण पहले से ही आस लगाए बैठे रहते। विवाह के उपरांत भी जब उनके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया तो उनके बड़े भाई, जो रेलवे में अधिकारी थे, उन्हें दिल्ली अपने घर ले आए और गांव में अपनी माता जी के नाम पर स्कूल खोल दिया जहां गांव के छात्रों को मुफ्त शिक्षा दी जाने लगी।

इसे भाग्य का खेल ही कहेंगे कि चाचा जी की कोई संतान नहीं हुई। यों तो उनके नाम दिल्ली में मकान है, पर आज तक वे उस मकान में नहीं रहे। चाची जी उनके भतीजे के साथ रहती हैं और वे खुद या तो भतीजों के घर रहते हैं अथवा गांव में किसी के भी घर रहने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता। उनकी जमा पूंजी के नाम पर कुछ पुस्तकें हैं और फिर सारा संसार उनका है। पूरे संसार की घटनाओं से उनका सरोकार रहता है और संसार की छोटी से छोटी घटना भी उन्हें व्यथित कर जाती है।

उनके अनुसार यह संसार प्रभु का रूप है, प्रभु को प्राप्त करने के लिए संसार की सेवा करनी चाहिए। उनके चेहरे का तेज, भौतिक वस्तुओं से विरक्ति एवं स्पष्ट वाणी सब उनके व्यक्तित्व में एक ठहराव देते हैं। उन्हें ब्रह्म दर्शन हो चुके हैं। वाणी से निकले अनेक वाक्य सच्चे सिद्ध हो जाते हैं। अपने परिवार, गांव एवं देश की अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का वे पहले से ही फलादेश कर चुके हैं। अंग्रेजी एवं हिंदी साहित्य, अध्यात्म अथवा अन्य पुस्तकों को बहुत चाव से पढ़ते हैं।

शुरू से मैं यही सोचती थी कि उनके जन्म काल में ऐसे कौन से ग्रह योग थे जिनके कारण सभी भौतिक सुख होते हुए भी वे उनका भोग नहीं कर सके। पत्नी होते हुए भी पत्नी का सुख न भोग सके, न ही बच्चों का और न ही उन्होंने कभी अच्छा खाने पीने की चाह की। हर हाल में खुश रहना और सभी को एक दृष्टि से देखना कोई महात्मा ही कर सकता है। उन्हें न हम संन्यासी कह सकते हैं न ही गृहस्थी। आज जब बच्चे अपने माता-पिता का साथ नहीं देते, उनके भतीजे उन्हें पूर्ण मान-सम्मान देते हैं और उनके आदेश को तत्काल पूरा करने के लिए तत्पर रहते हैं।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


ऐसा कौन सा ग्रह है जिसने उन्हें इतना मान-सम्मान दिलाया। निश्चित रूप से उन्हें कोई ईश्वरीय शक्ति प्राप्त है और जहां तक मैं समझती हूं ऐसे विरले ही होते हैं जिन्हें ऐसी विलक्षण शक्ति प्राप्त हो, जो इस भौतिकवादी युग में सभी ऐशो आराम को ठोकर मार कर एक संन्यासी का जीवन जीने की क्षमता रखते हों अथवा जिन्हे ं माया का मोह न हो। वे वास्तव में अपने मन के मालिक हैं। चाहे कितना भी बड़ा अफसर अथवा धनाढ्य व्यक्ति हो, चाचा जी का सभी सम्मान करते हैं और सभी को समान रूप से नमन करना एवं झुक कर स्वागत करना उनका स्वभाव है।

अक्सर देखा जाता है, कि कोई व्यक्ति जब किसी बड़े ओहदे पर पहुंच जाता है तो अपनी जन्मभूमि अथवा अपने मूल स्थान को भूल जाता है, पर चाचा जी की आत्मा मानो अपने गांव में ही रहती है। वे हरदम लोगों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं। उन्हीं की प्रेरणा से जहां गांव में माध्यमिक पाठशाला चल रही है, वहीं दूसरी ओर जगत जननी देवी का मंदिर भी स्थापित किया गया है। अमेरिका स्थित एक भतीजे द्वारा गांव वासियों की आंखों का मुफ्त इलाज करने के लिए शिविर लगाए जाते हैं जहां हजारों लोगों की आंखें ठीक कीे जा चुकी हैं। हर रविवार को मुफ्त दवाइयां बांटी जाती हैं।

यह चाचा जी का आशीर्वाद एवं दूर दृष्टि ही है कि सभी लोग दूर रह कर भी गांव की मिट्टी से जुड़े हंै। मैं यही कामना करती हूं कि चाचा जी दीर्घायु होकर अपने परिवार एवं गांव को हमेशा आशीर्वाद देते रहें और उनके पद चिह्नों पर उनके भाई के वंशज भी चलते रहें। अगर इसी तरह से हर गांव में एक महात्मा हो जाए तो निश्चित रूप से लोगों का उद्धार हो जाएगा। आइए चाचा जी की कुंडली का अवलोकन करें इनकी कुंडली में लग्नेश बुध चतुर्थ स्थान केंद्र में अपनी उच्च राशि में स्थित होने से पंच महापुरुष योगों के अंतर्गत भद्र नामक उत्तम महापुरुष योग बना रहा है।


Know Which Career is Appropriate for you, Get Career Report


इस योग के कारण इन्हें दीर्घायु, विवेक, विद्वत्ता, धार्मिक प्रवृत्ति, परोपकारी स्वभाव एवं महान विचारधारा प्राप्त हुई। बुध ग्रह से यह योग बन रहा है जो ग्रह कुंडली में लग्नेश तथा चतुर्थेश है। चतुर्थ स्थान का संबंध गृह भूमि से होता है। अतः बुध की शुभ स्थिति और साथ में कुटुंबेश, पराक्रमेश, त्रिकोणेश, चंद्रमा, सूर्य एवं शुक्र की युति के कारण इनकी अपनी जन्मभूमि एवं समाज के प्रति गहरी सहानुभूति बनी रही। इनकी कुंडली के चतुर्थ भाव का भावकारक चंद्र अस्त है और चतुर्थ भाव का स्वामी भी अस्त होकर चतुर्थ भाव में स्थित है।

इस ग्रह स्थिति वाले व्यक्ति से जनता नाजायज फायदा उठाती है। अतः जहां सुखेश आध्यात्मिक सुख और उच्च विचारधारा का मालिक बना रहा है वहीं अस्त होने के कारण उन्हें अपने सुख का त्याग कर दूसरों को सुख प्रदान करने की प्रवृत्ति भी दे रहा है। एक बात अवश्य लिखना चाहूंगी कि चाचा जी से बहुत से लोग अनावश्यक आर्थिक लाभ लेने की कोशिश करते रहते हैं और अनेक बार सफल भी हो जाते हैं। इस बात को लेकर चाचा जी के अपने लोग उन्हें कह भी देते हैं जिस पर उनका जवाब होता है कि वह अपना कार्य कर रहे हैं और लेने की इच्छा रखने वाले अपना कार्य। भगवान की शायद यही इच्छा है। नि

योग हृदये शुभ संयुक्ते स्वोच्चमित्रगृहान्विते। शुभ ग्रहाणां क्षेत्रेवा निष्कापटयंविनिर्दिशेत।। ् (सर्वार्थचिन्तामणि अ.4/श्लो.143) इनकी कुंडली में शुभ ग्रह चंद्रमा के शुभ राशि में चतुर्थ स्थान में स्थित होने से निष्कपट योग बन रहा है, अतः उनका स्वभाव निष्कपट है और उनमें उदार मानसिक वृत्ति, दीन दुखियों के प्रति करुणा आदि शुभ संस्कार विकसित हुए। नीच भंग राज योग नीच स्थितो जन्मनि यो ग्रहः स्यात्तद्राशिनाथोऽपि तदुच्चनाथः स चन्द्रलग्नाद्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद्धर्मिकचक्रवर्ती। (फलदीपिका अ.7/श्लो.26) इनकी कुंडली के चतुर्थ स्थान में अपनी नीच राशि में स्थित शुक्र नीच भंग राजयोग बना रहा है।

अर्थात शुक्र की नीच राशि के स्वामी बुध के चंद्रमा से केंद्र में होने तथा शुक्र की उच्च राशि के अधिपति बृहस्पति के भी चंद्रमा से केंद्र में होने के कारण नीच भंग राजयोग बन रहा है। इस योग के कारण इन्हें उच्च पद की सरकारी नौकरी एवं लोगों से मान सम्मान प्राप्त हुआ तथा आध्यात्मिक साधना में सफलता प्राप्त हुई। अमर योग चतुष्वपि केन्द्रेषु क्रूराः सौम्या यदा ग्रहाः क्रूरौ पृथ्वीपति विद्यात्सौम्यैर्लक्ष्मीपतिर्भवेत् (मानसागरी अ.4/श्लोक 1) इनकी कुंडली में सभी शुभ ग्रह केंद्र में ही स्थित होने के कारण अमर योग बन रहा है। इस योग ने उन्हें धन संपत्ति का स्वामी बनाया।

इनकी कुंडली में शुभ ग्रहों से बने इस योग के कारण इन्होंने अपने धन संपत्ति का सात्विक एवं शुभ कार्यों में व्यय किया। विद्वान योग: सुखेशे केन्द्रभावस्थे तथा केन्द्रे स्थितो भृगुः, शशिजं स्वोच्चराशिस्थे विद्वान्पण्डित एव सः। (बृहत्पाराशर होराशास्त्र अ.12/श्लो 68) कुंडली में सुखेश और शुक्र केंद्र में तथा बुध उच्च राशि में है। इस ग्रह स्थिति के कारण विद्वान योग बन रहा है। इस योग ने उन्हें अध्ययन के प्रति गंभीर बनाया तथा वे जीवनभर अध्ययनरत रहे। यही योग उन्हें वाक् सिद्धि योग भी प्रदान कर रहा है।


Get the Most Detailed Kundli Report Ever with Brihat Horoscope Predictions


स्वगृही सप्तमेश बृहस्पति की लग्न से सप्तम स्थान पर पूर्ण दृष्टि पड़ रही है जिसके कारण इनकी वैवाहिक जीवन में अभिरुचि न होने पर भी इनका विवाह हुआ। शुक्र के नवमांश लग्न के स्वामी होने के कारण इनकी पत्नी भौतिकवादी विचारधारा की हंै। दूसरी ओर केंद्राधिपति दोष से दूषित बृहस्पति के शत्रु राशि में स्थित होने, पत्नी कारक शुक्र के नीच राशि का होने तथा काल सर्प योग के कारण उन्हें वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त नहीं हुआ। सप्तमांश कुंडली का लग्नेश मंगल अपनी नीच राशि में है, पंचमेश शुक्र नीचस्थ है, कारक ग्रह बृहस्पति दोषयुक्त है और शनि की पंचम स्थान पर दृष्टि है।

इस सारी ग्रह स्थिति के कारण इनके जीवन में संतान का अभाव रहा। बारहवें भाव में केतु की स्थिति तथा शनि की नवम भाव पर दृष्टि के कारण इनकी मोक्ष साधना की ओर अभिरुचि बन रही है। पहले भी इन्हें इस प्रकार की साधनाओं में सफलता प्राप्त हो चुकी है। कुंडली में ग्यारहवें भाव से बड़े भाइयों का विचार किया जाता है। ग्यारहवें से पंचम भाव तृतीय भाव हुआ।

इस भाव के स्वामी सूर्य के केंद्र में होने एवं इस भाव से ग्यारहवें भाव के अधिपति बुध के उच्च स्थिति में होने से इन्हें अपने बड़े भाइयों की संतान से विशेष सुख सम्मान प्राप्त हुआ। उनकी कुंडली में काल सर्प योग भी विद्यमान है अपने व्यक्तित्व के अनुकूल जितना यश और कीर्ति उन्हें मिलनी चाहिए थी इस योग के कारण नहीं मिल पाई।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.