शिक्षा
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सी. एल. अस्थाना
व्यूस : 6629 | अकतूबर 2010

विश्लेषण: जातक की कुंडली में शिक्षा का विश्लेषण करने के लिए नीचे लिखे कुछ सिद्धांतों को अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए।

1. लग्न से पंचम भाव तथा पंचमेश: पंचम भाव में स्थित ग्रहों का अन्य ग्रहों से संबंध Û पंचमेश की स्थिति तथा अन्य ग्रहों से संबंध Û पंचमेश की ग्रहों/भावों पर दृष्टि

2. पंचम से पंचम अर्थात् नवम भाव: यहां से शैक्षिक उपलब्धियों का पता चलता है इसलिए नवम भाव नवमेश की स्थिति तथा अन्य ग्रहों से संबंध से जातक की शिक्षा का पता करना चाहिए।

3. वर्ग का प्रभाव: जातक की शिक्षा का पता करते समय हमें वर्गों में भी देखना चाहिए। जैसा कि नवांश, चतुर्विशांश, चंद्र कुंडली में पंचम/पंचमेश की स्थिति तथा अन्य ग्रहों के साथ संबंध मुख्यतः वे राजयोग जो नवांश कुंडली में बन रहे हैं।

4. बुध से पंचम भाव: क्योंकि बुध ग्रह बुद्धि, चेतना तथा ज्ञान का कारक माना गया है इसलिए कुंडली में बुध की स्थिति व पंचम भाव से शिक्षा का अध्ययन करना चाहिए।

5. नक्षत्र प्रभाव: जन्म कुंडली में ग्रहों की प्रभाव क्षमता के बाद उनके नक्षत्रों की प्रवृति को भी देखना चाहिए जिनमें ग्रह स्थित हैं क्योंकि इन नक्षत्रों का प्रभाव भी जातक की शिक्षा पर पड़ता है।

6. दशा प्रभाव: अगर जातक की शिक्षा के समय पंचमेश, नवमेश की महादशा, अंतर्दशा तथा प्रत्यंतर दशा के स्वामियों से संबंध हो जाता है तो उŸाम शिक्षा बिना रुकावट के होगी। जन्म कुंडली का विश्लेषण-

1. पंचमेश शनि जो सूर्य के नक्षत्र में है और शुक्र की राशि में मंगल जो अपने ही नक्षत्र में बृहस्पति (जो मंगल नक्षत्र में है) से युत है।


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2. अष्टमेश शुक्र तथा केतु जो कि दोनों राहु के नक्षत्र में तथा राहु द्वारा दृष्ट भी हैं, पंचम भाव में है।

3. राहु जो शुक्र के नक्षत्र में उच्च सूर्य की राशि में तथा मंगल द्वारा दृष्ट एकादश भाव में है।

4. नवमेश बुध जो द्वादशेश भी है और अपने ही नक्षत्र में होकर दशमेश चंद्र के साथ षष्ठम भाव में बृहस्पति की राशि में बैठा है और विपरीत राजयोग बन रहा है।

5. षष्ठेश बृहस्पति जो मंगल के नक्षत्र में है अष्टम भाव में पंचमेश शनि तथा द्वितीयेश मंगल के साथ शुक्र ग्रह की राशि में बैठा और विपरीत राजयोग बना रहा है।

6. पंचमेश शनि तथा अष्टमेश शुक्र का राशि परिवर्तन है।

7. पंचमेश शनि एकादश, द्वितीय तथा पंचम भाव को दृष्टि दे रहा है तथा इन भावों के स्वामी क्रमशः सूर्य, मंगल तथा शनि हैं।

8. बुध ग्रह से पंचमेश चंद्र जो कि शनि के नक्षत्र में भी है षष्ठम भाव में नवमेश बुध के साथ है और शनि योगकारक भी है तथा चैथे, पांचवें भाव का स्वामी है जो शिक्षा के भाव माने जाते हैं। नवांश कुंडली से विश्लेषण-

1. पंचमेश शनि अपने ही नवांश में है और शुक्र के साथ नवम भाव में है।

2. शुक्र वर्गोŸाम भी है और नवम भाव में है।

3. सूर्य भी वर्गोŸाम एकादश भाव है।

4. तृतीय तथा नवम भाव से बृहस्पति, शुक्र तथा शनि आपस में दृष्टि दे रहे हैं।

5. मंगल अष्टम तथा पंचमेश शनि तृतीय दृष्टि से वर्गोŸाम सूर्य को देख रहे हैं। चंद्र कुंडली से विश्लेषण-

1. चंद्र तथा बुध की लग्न में युति और लग्न पाप कर्Ÿारी योग में है।

2. सूर्य, शुक्र तथा केतु राहु से दृष्ट।

3. मंगल से राहु दृष्ट और शनि से शुक्र व केतु दृष्ट। चतुर्विशांश कुंडली से विश्लेषण:

1. पंचमेश शनि राहु केतु की युति में षष्ठम भाव में जिसका भावेश शुक्र है।

2. पंचमेश शनि से चंद्र दृष्ट है जो कि अष्टम भाव में जिसका स्वामी बृहस्पति है।

3. अष्टम भाव में स्थित चंद्र, द्वितीय भाव में स्थित शुक्र तथा मंगल दृष्टि दे रहे हैं।

4. चतुर्थ भाव में अपनी राशि में स्थित सूर्य तथा दशम भाव शनि की राशि में स्थित बृहस्पति आपस में दृष्टि दे रहे हैं।

5. पंचमेश शनि अष्टम द्वादश तथा तृतीय भावों की दृष्टि दे रहा है जिनके राशिपति क्रमशः बृहस्पति, मंगल, चंद्र है। उपरोक्त विश्लेषण लग्नेश, चंद्र, बुद्धिकारक बुध, ज्ञान कारक बृहस्पति, भूमि तथा पराक्रम कारक मंगल का पंचम भाव तथा पंचमेश का एक अटूट संबंध दर्शा रहे हैं।

वर्गों तथा नक्षत्रों में ग्रहों की स्थिति तथा आपसी संबंध (शनि, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु, केतु, शुक्र, बृहस्पति) के प्रभाव से विज्ञान के विषयों की शिक्षा तथा व्यवसाय तकनीकी शिक्षा में प्रबल रुचि दर्शाता है।

यह ऐसी शिक्षा की ओर संकेत दे रही है जो प्रकृति से तकनीकी पर जिसका व्यवसाय में प्रयोग होगा। बुध और चंद्र षष्ठ भाव में स्थित हैं जो कि प्रतियोगिता का भाव होता है अतः बुध अपनी दशा में अच्छी परिश्रम और पराक्रम से प्रतियोगिता के द्वारा उच्च तकनीकी शिक्षा देने की ओर ईशारा कर रहा है।


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षष्ठेश बृहस्पति का अष्टम भाव में जाना विपरीत राजयेाग तथा मंगल व शनि से युति, प्रतियोगिता में सफलता दर्शाती है और ऐसा ही जातक के साथ हुआ, वह जब कभी भी प्रतियोगिता में बैठा वह सदैव उस में सफल हुआ। तकनीकी शिक्षा का विश्लेषण: अगर हम जातक की तकनीकी शिक्षा का विश्लेषण जन्म कुंडली, वर्गों व नक्षत्रों से देखें तो हम प्रायः शनि, शुक्र और मंगल आपस में एक प्रबल संबंध को दर्शाते हैं।

शुक्र ग्रह: Û फाइन आर्टस एक सधी हुई ड्राइंग का संबंध (इंजीनियरिंग चित्र) Û बाॅटनी पेड़ पौधों की शिक्षा, लेन्ड स्केपींग।

शनि ग्रह: Û आरक्योलाॅजी पुरानी इमारतों का अध्ययन (पुरातत्व)। Û इमारतों के बनाने के प्रति शिक्षा (भवन निर्माण)

मंगल ग्रह: Û इंजीनियरिंग Û भूमि, इमारत बनाने के प्रति शिक्षा (भवन निर्माण)

राहू ग्रह: Û भूमि, इमारत बनाने वाला माल-मसाला (पदार्थ) बुध ग्रह: Û योजना के साथ चित्र बनाना। Û कैमरे से विचारों को कैद करना, दृष्टिक्रम इत्यादि। इन ग्रहों के संबंध तथा कारकत्वों से एक प्रबल संकेत मिलता है कि जातक ने जो शिक्षा पाई जिनमें इस सब का योगदान था और जातक एक सफल आरकीटैक्ट बना जिसमें फाइन ड्राइंग, भूमि सौंदर्य (पेड़ व झाड़ियां) पृथ्वी व भवन निर्माण सामग्री से संबंधित गणितीय विश्लेषण और ऐतिहासिक इमारतों का अध्ययन।

उच्च शिक्षा के समय जातक को बुध की 17 वर्ष की दशा मिली तथा जन्म समय 13 वर्ष बाकी शनि की दशा मिली थी। शनि तथा बुध की महादशा में जातक ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी। जातक ने बुध की महादशा की महादशा में विज्ञान विषयों तथा इंजीनियंगि चित्र के साथ बारहवीं कक्षा पास की और तब शुक्र की अंतर्दशाचल रही थी इसके बाद बुध की महादशा सूर्य की अंतर्दशा में प्रि. इंजीनियरिंग की।

फिर बुध की महादशा और चंद्र की अंतर्दशा में बी.एस.सी. (रसायन) में प्रवेश लिया और कुछ देर बाद इसी इश में प्रतियोगिता में भाग लिया और वास्तुविद कोर्स के लिएचुन लिया अंत तक पढ़ाई करके आरकीटैक्ट (वास्तुविद) बन गया। बुध/शुक्र की दशा में बारहवीं बुध/सूर्य की दशा में प्रि. इंजीनियरिंग बुध/चंद्र की दशा में बी.एस.सी. रसायन बुध/चंगी की दशा में प्रतियोगिता बुध/मंगल की दशा में आरकीटैक्ट कोर्स बुध/शनि की दशा में कोर्स पूर्ण किया। जब कभी महादशानाथ, अंतर्दशानाथ तथा प्रत्यंतर्दशानाथ का संबंध किसी तरह से पंचम भाव, पंचमेश, नवम भाव नवमेश बृहस्पति तथा उन की युति में ग्रहों से हो जाता है

तो ये सब अपने समय में बहुत बढ़िया शिक्षा प्रदान करते हैं। यहां ठीक वैसा हुआ क्योंकि नवमेश बुध की महादशा तथा पंचमेश शनि की अंतर्दशा पंचमेश चंद्र (बुध ग्रह से) और तकनीकी ग्रहों तथा उनके अधिपतियों की दशाओं का भी प्रभाव पंचम/पंचमेश होने से जातक तकनीकी शिक्षा बिना किसी रुकावट पाने में सफल हुआ।



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