दूध: अमृत समान औषधि
दूध: अमृत समान औषधि

दूध: अमृत समान औषधि  

व्यूस : 15108 | आगस्त 2013
दूध हर जीव का प्रथम आहार है। जीव के जन्म से ही कुदरत ने उसे दूध का आहार प्रदान किया। जीव के जन्म से पहले कुदरत ने माता के स्तनों में दूध का निर्माण किया जो जीव के जन्म पर जीव को उपलब्ध हुआ। दूध की उत्पत्ति जीव के जन्म से ही जुड़ी है। वास्तव में जब जीव बड़ा हो जाता है तो मां के स्तनों से दूध भी बनना बंद हो जाता है क्योंकि बच्चे के विकास के लिए दूध ही सर्वश्रेष्ठ पदार्थ है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए दूध जितना उपयोगी है उससे अधिक रोगी के लिए तथा उससे भी अध्क छोटे बच्चों और वृद्धों के लिए लाभकारी है। उचित मात्रा में पिया गया दूध जल्दी पच जाता है तथा षक्ति और स्वास्थ्य प्रदान करता है। जो व्यक्ति बचपन से वृद्धावस्था तक दूध का सेवन करता है वह सदैव षक्तिषाली, बलवान, वीर्यवान और दीर्घजीवी होता है। ऋषियों ने दूध को धातुपौष्टिक, वीर्य वर्धक, वृद्धावस्था तथा रोगों को जीतने वाला एवं स्त्री-प्रसंग की षक्ति बढ़ाने वाला माना है दूध पीने के नियम:- गाय, भैंस, बकरी आदि किसी का भी दूध हो उबाल कर ही पीना चाहिए। दूध को निकालकर लगभग आधे घण्टे तक उबाल लेना चाहिए। जिस दूध को निकले तीन घंटे या अधिक समय हो गया हो वह दूध बासी हो जाता है ऐसा दूध त्रिदोषकारक होता है। दूध गर्म कर उसमें रुचि अनुसार खाण्ड, चीनी आदि डालकर पीना चाहिए। ठण्डा दूध भी पीया जा सकता है, लेकिन ठण्डा दूध भी उबाला हुआ होना चाहिए। भोजन के तुरन्त बाद दूध नहीं पीना चाहिए क्योंकि भोजन में मसाले और नमक होते हंै जो दूध के गुणों को नष्ट कर देते हं। इससे कई अन्य प्रकार के रोग हो सकते हैं, खास तौर पर चर्म रोग इसी कारण होते हैं। कई बार देखा गया है कि सुबह के नाष्ते में लोग परांठे खाते हैं, उसके साथ दूध भी पी जाते हैं। ऐसा करने से पाचन भी बिगड़ जाता है और रोग भी उत्पन्न होते हैं। दूध सुबह पीयें या षाम को इसके एक घण्टे पहले और एक घण्टे बाद तक कुछ न खायें तो अच्छा है दोपहर के पहले पिया हुआ दूध अत्यन्त बलवर्धक, पुष्टिकारक तथा अग्निवर्धक होता है। कफ तथा पित्त का नाष करता है। रात को दूध पीना बालकों की वृद्धि में सहायक है क्षयादि रोगों का नाष करता है। अनेक दोषों को षांत करता है तथा नेत्रों के लिए हितकारी है। दूध पीने का सबसे अच्छा समय सायंकालीन भोजन के दो-तीन घण्टे बाद होता है क्योंकि संध्याकाल का दूध प्रातः काल से हल्का होता है और वात-कफ को नष्ट करता है जबकि प्रातः काल का दूध सायं काल के दूध से भारी लेकिन षीतल होता है। रात को दूध पीना हो तो सिर्फ दूध ही पीना चाहिए उसके साथ कोई अन्य आहार नहीं लेना चाहिए। रोग में औषधि के तौर पर दूध चिकित्सक की सलाह से पीयें। दूध अधिक समय का रखा हुआ हो, उसका रंग बदल गया हो और स्वाद भी बिगड़ गया हो अथवा जो खट्टा हो गया हो, जिसमें दुर्गन्ध आने लगी हो या गरम करते ही फट गया हो उस दूध को कभी नहीं पीना चाहिए। ऐसा दूध पीने से बुद्धि नष्ट हो जाती है तथा बहुत से दोष उत्पन्न हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा दूध जानलेवा भी सिद्ध हो जाता है। बच्चों को गाय, भैंस या बकरी आदि का दूध पिलाना हो तो पहले दूध में थोड़ा पानी मिलाकर उबालना चाहिए। साथ ही साथ षक्कर भी मिला दें ताकि वह मीठा स्वादिष्ट हो जाए और बच्चा उसे मजे से पी सके। यदि कच्चा दूध पीना हो तो तुरन्त का निकाला हुआ दूध पीना चाहिए। वैसे कच्चा दूध बल को बढ़ाने वाला-भारी, देर से पचने वाला, बादीकारक, कब्ज करने वाला तथा दोषयुक्त होता है। जो व्यक्ति कच्चा दूध पीने के आदी हों उन्हें गाय या बकरी का ही कच्चा दूध पीना चाहिए। भेड़ का दूध तो सदा गरम करके ही पीना चाहिए। विभिन्न किस्म का दूधः- गाय का दूध-गाय का दूध बल वर्धक, रोगनाषक, होता है। सफेद गाय का दूध भारी, देर से पचने वाला तथा कफ कारक होता है। इसी प्रकार काली गाय का दूध वातनाषक होता है। अन्य रंगों की गायों की अपेक्षा काली गाय का दूध श्रेष्ठ होता है। वात रोग से पीड़ित लोगों को केवल काली गाय का दूध पीना चाहिए। पीली गाय का दूध अन्य गायों के समान होता है, इसमें केवल एक गुण होता है कि यह वात-पित्त को षान्त करता है। चितकबरी गाय का दूध सामान्य होता है। लाल गाय का दूध काली गाय की भांति वात नाषक होता है। जवान गाय का दूध मीठा, रसायन और त्रिदोष नाषक होता है। बूढ़ी गाय के दूध में उतनी ताकत नहीं होती जितनी जवान गाय के दूध में होती है। गाभिन गाय का दूध, गाभिन होने के तीन महीने पहले पित्तकारक, नमकीन और मीठा होता है। नई ब्यायी हुई गाय का दूध रक्त विकार उत्पन्न करने वाला पित्त को बढ़ाने वाला रूखा होता है। बहुत दिनों की ब्यायी गाय का दूध भी नमकीन और मीठा तथा दाहकारक होता है। छोटे बछडे़ वाली गाय का दूध त्रिदोष कारक होता है। बाखरी गाय का दूध बल कारक, तृप्ति कारक और वात, कफ, पित्त नाषक होता है। इसे रात में पीना अधिक लाभकारी होता है। खल और सानी खाने वाली गाय का दूध कफ को बढ़ाने वाला होता है। घास और बिनौले खाने वाली गाय का दूध सर्वरोग नाषक होता है। ऐसा दूध सभी रोगों में सभी के लिए लाभदायक होता है। भैंस का दूध- गाय के दूध से भैंस का दूध अधिक मीठा, चिकना, वीर्य को बढ़ाने वाला, भारी एवं निद्रा लाने वाला षीतल होता है। यह भूख को जागृत करता है और कफ का उत्पत्तिदायक है। यह दूध पीने से मन तरोताजा रहता है। चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है। गाय के दूध और भैंस के दूध में षेष सभी समानता हैं। अर्थात् गाय के दूध से भैंस का दूध भारी और रंगत में अधिक सफेद होता है। बकरी का दूध- बकरी का दूध हल्का, ठंडा और मीठा तथा बहुत कड़वाहट लिए होता है। यह ज्वर, खांसी, क्षय, रक्तपित्त और अतिसार के रोगियों के लिए लाभदायक है। बकरी का दूध सभी रोगों का नाष करता है। भेड़ का दूध- भेड़ का दूध गरम-स्वादिष्ट चिकना, तृप्तिदायक वीर्यवर्धक, कफ और पित्त का कारक होता है ऊंटनी का दूध- राजस्थान, अरब देष यहां ऊंट अधिक पाये जाते हैं। यहां लोग ऊंटनी का दूध पीते हैं। ऊंटनी का दूध हल्का, मीठा, खारा बादीकारक, दस्तावर और अग्नि को दीप्त करने वाला होता है। अनेक रोगों में यह औषधि का कार्य करता है। कफ, कोढ़, अफरा, सूजन और पेट के समस्त रोगों को नष्ट करता है। घोड़ी का दूध- दूध खट्टा, खारा, हल्का गरम, स्वादिष्ट और बलदायक होता है वात रोगों में इसका सेवन और मालिष लाभदायक है। औषधि के रूप में इसका प्रयोग कई रोगों में किया जाता है। यूं तो दूध की और भी किस्में हैं लेकिन अधिकतम गाय, भैंस, बकरी के दूध का ही सेवन किया जाता है। गांव के लोग तो हर किस्म के दूध का प्रयोग कर लेते हैं और दूध के विषय में जानते भी हैं। लेकिन शहर के लोगों को कहां असली दूध नसीब होता है। वह तो थैली का दूध ही पीते हैं जिसमें गाय, भैंस, बकरी आदि सभी मिश्रित ही होते हैं। कुछ रोगों में दूध का प्रयोगः- कण्ठ रोग- कण्ठ रोग में बकरी के दूध के गरारे करने से बहुत लाभ होता है पेट की अकड़न- बकरी के दूध के सेवन से पेट की अकड़न ठीक होती है और मसाने को षक्ति मिलती है। कब्ज- सायंकाल दूध गाय-भैंस किसी का भी हो पीने से कब्ज खुल जाती हैं। आँखों की जलन- एक कपड़े की पट्टी या रूई को गाय के दूध में तर करके आँखों पर रखें। फिर फिटकरी पाउडर ऊपर से बुरक दें। कुछ ही दिनों के प्रयोग से आँखों की जलन दूर हो जाएगी। सर्दी-जुकाम- गाय के दूध को उबालकर मिश्री, काली मिर्च मिलाकर पीने से पुराने से पुराना जुकाम ठीक हो जाता है। आधा सीसी का दर्द- गाय के दूध में बादाम की खीर बनाकर नित्य कुछ दिनों तक सेवन करने से लाभ होता है। सिर दर्द- गाय के दूध में साबुत सोंठ पीसकर गाढ़ा-गाढ़ा लेप करने से सिर दर्द दूर होता है। वात रोग- काली गाय का दूध पीने से वात रोगों में लाभ होता है। षिषु के कान का दर्द- मां का दूध कान में डालने से षिषु के कान का दर्द ठीक हो जाता है। इसी प्रकार आंख में डालने से आंखों के रोग में लाभ मिलता है षारीरिक दुर्बलता- गाय, भैंस के दूध के सेवन से दुर्बल व्यक्ति में बल और षक्ति का संचार होता है। इसी प्रकार कई अन्य रोगों जैसे- दाद, प्यास, हृदय रोग, षूल, वस्ति रोग, बवासीर, रक्तपित्त, अतिसार, जीर्ण ज्वर, मानसिक रोग, उन्माद मूच्र्छा, भ्रम, संग्रहणी पीलिया, योनि रोग, गर्भस्राव आदि रोगों में भी दूध बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है। ऋषि मुनियों ने दूध को सर्वोत्तम माना है तथा प्रत्येक जीव-जन्तु एवं मनुष्य के आहारों में श्रेष्ठ आहार कहा है। यौवन, षक्ति, स्फूर्ति, नपुंसकता षारीरिक सौन्दर्य वर्धन में दूध अपना विषेष महत्व रखता है। नियमित रूप से दूध पीने वाला व्यक्ति निरोगी रहता है। उसके चेहरे पर तेज और चमक बनी रहती है। उसे विषेष षक्ति प्राप्त होती है।



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