देव गुरु बृहस्पति एक वरदान
देव गुरु बृहस्पति एक वरदान

देव गुरु बृहस्पति एक वरदान  

पुखराज बोरा
व्यूस : 25546 | अप्रैल 2011

ऋषि मुनियों ने बृहस्पति की कल्पना ऐसे पुरूष के रूप में की है जो बृहदकाय, विद्वान, सात्विक एवं मिष्ठानप्रिय है। बृहस्पति देव की कृपा के बिना किसी भी जातक का जीवन सुखी एवं संतुष्ट होना असंभव है। जन्मकुंडली में बृहस्पति कर्क, धनु, मीन राशियों तथा केंद्र 1,4,7,10 या त्रिकोण 5,9 भावों में स्थित होने पर शुभ फल देने वाला और योगकारक कहा गया है। आइए जानते हैं कि किस प्रकार जन्म व चंद्र कुंडली में शुभ प्रभाव में स्थित देव गुरु बृहस्पति जातक को विद्यावान, धनवान, सद्चरित्रवान एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति बनाता है।

सौरमंडल के केंद्र, सूर्य के बाद विशाल आकार में बृहस्पति का स्थान आता है। यह सूर्य के अतिरिक्त शेष सभी ग्रहों से विशालकाय ग्रह है। ऋषि महात्मा ने बृहस्पति की कल्पना ऐसे पुरूष के रूप में की जो बृहद्काय विद्वान सात्विक एवं मिष्ठानप्रिय है। बिना बृहस्पति की कृपा दृष्टि के किसी भी जातक का जीवन सुखी और संतुष्ट होना असंभव है। भगवान विष्णु ने इन्हें लोक कल्याण के जो कार्य सौंपे हैं

उनके अनुसार यह ग्रह लोक को एक दार्शनिक, आध्यात्मिक मार्ग का निर्देशन देता है और लोगों में धर्म, मर्यादा, सामाजिक कला, पितृ भक्ति, गुरु भक्ति और देव भक्ति की आध्यात्मिक भावना जागृत करता है। किसी जातक की कुंडली में शुभ बलि एवं दुष्प्रभावों से मुक्त होकर बैठा बृहस्पति उनके लिए वरदान है। इस रूप में बृहस्पति बुद्धि, सदव्यवहार, सम्मान, धन संपत्ति, पुत्र प्राप्ति, नैतिकता और उच्च तार्किक क्षमता आदि का दाता कारक एवं संचालक होता है। फलदीपिका में मंत्रेश्वर महाराज ने कहा है बृहस्पति लग्न वा चंद्र लग्न से दूसरे, पांचवें, नौवें, दसवें व ग्यारहवें भावों का कारक भी होता है। सबसे विशेष बात यह है


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कि बृहस्पति मूलतः सात्विक ग्रह होने के कारण जातक को यह ग्रह भौतिक सुख समृद्धि का विरोध नहीं करता है। हां, अलबता यह पूरी तरह भौतिकता में डूबे व्यक्ति को धर्म और अपनी मर्यादाओं का अहसास जरूर करवा देता है। उपरोक्त स्थिति के विपरीत यदि बृहस्पति कुंडली में बलहीन और दुष्प्रभावित होकर बैठा हो तो संबंधित जातक के लिए अभिशाप होता हैं ऐसी स्थिति में जातक मानवीय और धार्मिक भावनाओं से वंचित हो जाता है और अपना विवेक खो देता है और उसकी अंतरात्मा गूंगी हो जाती है। जन्मकुंडली में बृहस्पति कर्क, धनु, मीन राशियों तथा केंद्र (1, 4, 7, 10) या त्रिकोण (5, 9) भावों में स्थित होने पर शुभ फल देने वाला और योग कारक कहा गया है।

बृहस्पति की केंद्रस्थ स्थिति की महत्ता इतनी अधिक है कि उत्तर कालामृत में कालीदास ने लिखा है कि ”किं कुर्वति सर्वेग्रहा यष्य केन्द्रे बृहस्पति“ अर्थात सब प्रतिकूल ग्रह मिलकर भी जातक का क्या बिगाड़ लेंगे जिसके केंद्र में बृहस्पति हो। उक्त स्थितियों में यदि बृहस्पति चंद्रमा या शुक्र या दोनों के साथ हो या उनकी शुभ दृष्टि में हो अथवा चंद्रमा से केंद्र में हो तो अत्यंत प्रभावशाली योग बनताता है। कुछ ज्योतिर्विदों ने केंद्र भाव के स्वामी होने पर बृहस्पति को अशुभ माना है

और वह यदि स्व राशि में केंद्र में स्थित हो तो मारक माना है। उन विद्वानों का मत है कि बृहस्पति की यह मारक स्थिति अपनी राशि में लग्न से दसवें भाव में स्थित होने पर सर्वाधिक घातक होती है। लेकिन हम इससे सहमत नहीं है और इसके विपरीत केंद्र में स्वराशि में स्थित बृहस्पति हंस योग बनाता है जो जातक को दीर्घायु स्वस्थ सुखी और प्रतिष्ठित तथा संपन्न बनाता है। इसी प्रकार बृहस्पति यदि छठे भाव में स्थित हो तो जातक के लिए शत्रुनाशक होता हैं अष्टम भाव में बैठा बृहस्पति यद्यपि जातक को दीर्घायु बनाता है लेकिन कुछ विद्वानों के मतानुसार बृहस्पति धन संपत्ति का नाश करके जातक को गरीबी की ओर धकेल देता है। यहां भी हम सहमत नहीं है

अष्टम भाव में बैठा बृहस्पति जातक को धनवान, बुद्धिमान एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति बनाता है क्योंकि अष्टम भाव में स्थित बृहस्पति द्वितीय एवं चतुर्थ स्थान को देखकर उन भावों को पुष्ट करता है तथा षष्ठ से द्वादश एवं द्वितीय स्थान को दृष्टिपात करके लग्न को ‘शृभ मध्यत्तव’ का लाभ पहुंचाता है जिससे लग्न भाव को बल मिलता है। लग्न बलशाली होने से मनुष्य के जीवन में मूल्य की प्राप्ति होती है जो उसे स्वास्थ्य, बुद्धिमान, धनवान, सदचरित्रवान एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति बनाता है। इसके अतिरिक्त द्वितीय स्थान का शासन से घनिष्ट संबंध है और द्वितीयेश का केंद्रादि में स्थित होकर बलवान होना राज्य की प्राप्ति करवाता है।


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आइए जानते हैं कि किस प्रकार जन्म व चंद्र कुंडली में शुभ प्रभाव में स्थित देव गुरु बृहस्पति व्यक्ति को विद्यावान, धनवान सदचरित्रवान एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति बनाता है। इस बात को निम्न कुंडलियों से स्पष्ट करते हैं। कुंडली 1 में गुरु अष्टम भाव में चंद्रमा से दशम केंद्र कन्या राशि में अपनी धनु राशि से दशम एवं मीन राशि से सप्तम (केंद्र) में स्थित होकर गजकेसरी योग का सुंदर सृजन कर रहे हैं, द्वितीयांश बृहस्पति पंचमेश बुध की कन्या राशि में स्थित होकर राशि मिथुन को बल दे रहे हैं जिससे पंचम एवं द्वितीय भाव को पूर्ण बल मिला है।

अब जरा चंद्र कुंडली पर विचार किजिये यहां बृहस्पति लग्नेश चतुर्थेश होकर प्रमुख केंद्र दशम में स्थित होकर दशम भाव तथा लग्न भाव दोनों को प्रभावित एवं लाभान्वित कर रहा है। अतः दशम तथा लग्न प्रदिष्ट गुण ख्याति धन आदि की सृष्टि कर रहा है। यस्य जन्मसमये शशिलग्नात् स्दगृहो यदि च कर्मणि संस्थः। तस्य कीर्तिरमला भूवि तिष्ठेदाः युषोतमविनाशनसंपत अर्थात जिस मनुष्य के जनम समय में चंद्र लग्न से दशम भाव में शुभ ग्रह हो उसकी कीर्ति निर्मल होकर आयु पर्यंत रहती है और वह मनुष्य स्थायी संपत्ति वाला होता है। यहां तो दशम भाव में गुरु स्वयं विराजमान है।

इसके परिणामस्वरूप जातक दसवीं व बारहवीं में उच्च प्रथम श्रेणी आई.आई.टी. में वरिष्ठ प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है। जातक की योग्यता सादगी एवं ईमानदारी एक मिसाल है। ऐसी है देव गुरु बृहस्पति की कृपा। कुंडली 2 मीन लग्न की है। यह जातक आई.आई.टी. दिल्ली से बी. टेक एवं अहमदाबाद से एम.बी.ए. है एवं बहुत ही उच्च पद पर आसीन है और अपने स्वयं का व्यवसाय करने की भी सोच रहे हैं। यहां बृहस्पति पुनः कन्या राशि में सप्तम भाव (केंद्र) में अपनी राशि धनु एवं मीन से दशम एवं चतुर्थ स्थित है।

पंचमेश चंद्रमा से केंद्र में स्थित होकर गजकेसरी योग का सृजन कर रहे हैं मीन राशि के शुक्र से द्विपात संबंध स्थापित हो रहा है। चंद्रमा एवं शुक्र से पूर्ण संबंध होने से एक बहुत ही उत्कृष्ट योग का सृजन हुआ है और इसी कारण जातक तेजस्वी धन-धान से युक्त मेधावी एवं राजप्रिय है। कुंडली 3 एक मुख्य इंजिनियर एवं अतिरिक्त संयुक्त सचिव की है। जिसने करीब पंद्रह वर्षों तक विभागीय अध्यक्ष के पद पर कार्य किया और अपने कार्य क्षेत्र में यश एवं मान सम्मान प्राप्त किया। यहां भी देखिए देव गुरु बृहस्पति लग्नेश होकर सप्तम केंद्र में स्थित है।


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बृहस्पति पुनः कन्या राशि में चंद्रमा से केंद्र में विराजमान होकर प्रमुख केसरी योग का सृजन कर रहे हैं। बृहस्पति की चंद्र से केंद्र में स्थिति के कारण पंचमेश चंद्रमा पर प्रभाव पड़ने से चंद्रमा के गुण और भी बढ़ गये हैं चुंकि चंद्र लग्नवत् है अतः गुरु के प्रभाव के कारण जातक तेजस्वी धन-धान्य से युक्त राज्य (सरकार) से लाभ उठाने वाला हुआ है। यहां यह बात ध्यान रखने की है कि चंद्रमा मन है, मन में गुरु की मेघा शक्ति का संचार होने से अन्य शुभ गुणों की प्राप्ति भी हुई है

और तो और गुरु राज्य कृपा का कारक है अतः निज को राज्य कृपा की प्राप्ति हुई। कुंडली 4 में बृहस्पति पंचमेश एवं द्वितीयेश होता हुआ अपनी धनु एवं मीन राशियों से क्रमशः सप्तम एवं चतुर्थ स्थान में विद्यमान है। पंचमेश चंद्र से चतुर्थ केंद्र में गुरु स्थित होकर उत्तम गजकेसरी योग का सृजन कर रहे हैं साथ ही बृहस्पति का चंद्र पर शुभ प्रभाव पड़ने के कारण चंद्रमा के गुण और भी बढ़ गये हैं। चूंकि चंद्रमा लग्न वृत है एवं बृहस्पति हो गया है,

गुरु मिथुन राशि में स्थित होकर शुक्र एवं द्वितीय भाव का दृष्टिपात कर धन और विद्या की अतीव बृद्धि कर रहा है। विद्या की दृष्टि से देखें तो जातक आई आई टी उच्च प्रथम श्रेणी में, एम.बी.ए. अहमदाबाद से उच्च प्रथम श्रेणी की योग्यता से तथा भारतीय प्रशासनीक सेवा में भारत में आठवां स्थान प्राप्त कर एक कीर्तिमान स्थापित किया है, इससे और अधिक देव गुरु बृहस्पति की क्या कृपा हो सकती है। कुंडली 5 में बृहस्पति एवं चंद्रमा चतुर्थ केंद्र में पुनः बुध के कन्या राशि में स्थित है

हम पूर्व में भी कह चुके हैं कि यदि शुभ बृहस्पति कन्या मिथुन राशि में स्थित है। शुभ बृहस्पति कन्या मिथुन राशि का होता हुआ शुभ चंद्रमा से केंद्र में स्थित हो तो जातक बहुत बुद्धिमान एवं उच्च शिक्षित होता है। यहां जातक एम.ए. उच्च प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर भारतीय पुलिस सेवा में उच्च रैंक पाने में सफल हुए। मात्र 45-46 वर्ष की आयु में आई.जी. के पद पर पदोन्नत हुए थे एवं वर्तमान में अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस के पद पर कार्यरत है। संक्षेप में हम कह सकते हैं

कि यदि किसी जातक की जन्म लग्न व चंद्र लग्न की कुंडली में बृहस्पति योग कारक होता हुआ कन्या/मिथुन राशि में शुभ चंद्रमा से केंद्र में हो तो निश्चय ही जातक बहुत बुद्धिमान, उच्च शैक्षणिक एवं उच्च/सर्वोच्च पद पर ईमानदारी से कार्य करने वाला होता है एवं लोगों में आदर की दृष्टि से देखा जाता है जातक धनवान भी होगा लेकिन जहां तक संभव हो गलत नीति अथवा भ्रष्ट तरीकों से धन संग्रहित नहीं करेगा।


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