मधुमेह एवं षष्ठ्यांश विचार
मधुमेह एवं षष्ठ्यांश विचार

मधुमेह एवं षष्ठ्यांश विचार  

अमित कुमार राम
व्यूस : 3743 | जून 2017

इंसुलिन हार्मोन खून में शक्कर को नियंत्रित करता है। पेट के पीछे की ओर स्थित पैंक्रियाज में आइलेट ऑफ लैगरहैन्स कोशिकायें होती हैं, इनमें कुछ अल्फा और कुछ बीटा कोशिकायें होती हैं। अल्फा कोशिकाओं में ग्लूकोगाॅन तथा बीटा कोशिकाओं में इंसुलिन हार्मोंस बनते हैं। यह यकृत में उपस्थित निर्माण पर नियंत्रण रखता है। यह शरीर की कोशिकाओं में ग्लूकोज के आॅक्सीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाता है तथा अतिरिक्त ग्लूकोज को यकृत तथा मांसपेशियों में ग्लायकोजिन के रूप में निक्षेपित करता है। यदि पैंक्रियाज में इंसुलिन कम मात्रा में बनने लगे तो व्यक्ति मधुमेह रोग से पीड़ित हो जाता है।

इससे खून में शुगर की मात्रा सामान्य से अधिक बढ़ जाती है। मधुमेह के रोगी को बार-बार मूत्र त्यागने की प्रवृत्ति होती है। मूत्र के द्वारा काफी मात्रा में शुगर निकल जाता है, जिसके कारण रोगी को अत्यधिक भूख-प्यास लगती है और साथ ही शरीर में कमजोरी और शिथिलता आने लग जाती है। किन ज्योतिष योगांे के कारण मधुमेह रोग होता है: ज्योतिष में गुरु ग्रह को यकृत का मुख्य कारक माना गया है, तो वहीं शुक्र ग्रह को पैंक्रियाज का कारक माना गया है।


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दूसरी ओर मधुमेह रोग का संबंध पेट की कार्यप्रणाली से भी है, जिसका अध्ययन पंचम व छठे भाव से किया जाता है। इस प्रकार गुरु, शुक्र और पांचवें व छठे भाव का विचार मधुमेह रोग का ब्यौरा देते हैं। यदि इन उपरोक्त भाव में व उपरोक्त ग्रहों में से जितने भी अधिक पाप प्रभाव में होंगे, उतने ही मधुमेह रोग के होने के आसार ज्यादा होंगे। इसके अतिरिक्त निम्न योग होने पर भी मधुमेह रोग होता है:

- गुरु ग्रह शनि व राहु के प्रभाव में हो या अस्त हो तो मधुमेह रोग होता है।

- यदि छठे और बारहवें भाव के स्वामियों के बीच आपस में राशि परिवर्तन हो व पंचम भाव पीड़ित हो तो मधुमेह रोग होता है।

- छठे भाव का स्वामी बारहवंे भाव में स्थित हो तथा बारहवंे भाव के स्वामी का गुरु से संबंध हो तो मधुमेह रोग होता है।

- पंचम भाव या पंचमेश का संबंध, षष्ठ, षष्ठेश, अष्टम या द्वादश भाव से बन रहा हो तो मधुमेह रोग होता है।

- यदि शुक्र छठे में व गुरु बारहवंे में हो तो भी मधुमेह रोग होता है।

- गुरु अपनी नीच राशि में स्थित हो या 6, 8 व 12 वें में से कहीं स्थित हो व पंचम भाव पाप प्रभाव में हो तो मधुमेह रोग होता है।

- यदि जलीय राशि तथा शुक्र की तुला राशि में दो या अधिक ग्रह हो व पंचम भाव दूषित हो तो मधुमेह रोग होता है। अब कुछ उदाहरण कुंडलियांे से मधुमेह रोग को जानने का प्रयास करते हैं और षष्ठ्यांश कुंडली से भी इस रोग का विचार करते हैं।

उदाहरण कुंडली 1 के जातक को गुरु/गुरु की दशा में मधुमेह रोग हुआ। मधुमेह रोग से यह जातक लम्बे समय तक परेशान रहा। गुरु/ गुरु दशा में मधुमेह रोग शुरू हुआ और गुरु/शनि/गुरु दशा तक विशेष कष्ट प्राप्त होते रहे। ध्यान से कुंडली 1: जातक जन्म दिनांक: 06-11-1980, 20ः50, सोनीपत (हरियाणा) देखें तो षष्ठ्यांश कुंडली में महादशा स्वामी गुरु अष्टमेश है और अंतर्दशा स्वामी शनि अष्टम भाव में स्थित है। बुध भी शनि से दृष्ट है। बारहवें भाव के स्वामी मंगल के साथ केतु भी स्थित है। शुक्र षष्ठेश है। सभी ग्रह 6, 8, 12 से संबंधित हंै जिसके कारण जातक आज तक रोग एवं हॉस्पिटल से अपना पीछा नहीं छुड़ा पाया है।

उदाहरण कुंडली 2 के जातक की कुंडली में दशा शुक्र/शनि/केतु में मधुमेह रोग हुआ था। षष्ठ्यांश कुंडली में शुक्र द्वादश स्वामी होकर द्वितीय मारक भाव में षष्ठेश मंगल के साथ स्थित है। वहीं शनि मारक भाव सप्तम से लग्न भाव को देख रहा है। केतु बारहवें भाव में स्थित है और छठे भाव को देख रहा है, अतः यहाँ भी 1, 6, 8 व 12 भावों का संबंध दिखाई देता है जो रोग को गंभीर दशा में ले जाने का संकेत देता है।

उदाहरण कुंडली 3 के जातक की कुंडली में दशा बुध/राहु/चंद्र में जातक अत्यधिक मधुमेह रोग से पीड़ित रहे। लापरवाही के कारण मधुमेह रोग ने इन्हें मृत्यु के लगभग करीब ही पहुँचा दिया था। कई बार मधुमेह रोग में ये सीरियस हुए और कई-कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे। षष्ठ्यांश कुंडली में बुध मारकेश होकर द्वादशेश मंगल के साथ स्थित है। वहीं राहु अष्टम भाव में स्थित हो शनि से दृष्ट है।

प्रत्यन्तर दशा स्वामी चंद्रमा अष्टमेश होकर मारक भाव में स्थित है तथा लग्नेश गुरु स्वयं वक्री है और नवम दृष्टि से पंचम स्वामी मंगल को देख रहे हैं। जातक जन्म दिनांक: 30-10-1951 जन्म समय: 16: 00 जन्म स्थान: सोनीपत (हरियाणा) यहाँ हमें 1, 2, 7, 8, 12 भाव का रोग से प्रत्यक्ष संबंध दिखाई देता है।


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