तेजी-मंदी वार व मास शकुन के द्वारा विचार
तेजी-मंदी वार व मास शकुन के द्वारा विचार

तेजी-मंदी वार व मास शकुन के द्वारा विचार  

अंजना अग्रवाल
व्यूस : 15090 | अप्रैल 2016
ƒ -जो वस्तु सोमवार को तेज रहे, तो वह वस्तु मंगलवार को मंदी हो तथा जिस वस्तु में सोमवार को मंदी रहे, उसमें मंगलवार को तेजी आती है। ƒ-जिस वस्तु में सोमवार को अचानक तेजी आवे तो वह तेजी मंगलवार को दोपहर तक रहती है। ƒ -किसी वस्तु में सोमवार को मंदी आवे और मंगलवार को भी मंदी रहे तो उस वस्तु में बुधवार के दोपहर तक मंदी रहकर गुरुवार तक तेजी आ जाया करती है अर्थात् सोमवार से आई हुई तेजी या मंदी बुधवार के दोपहर तक रहती है। ƒ -कुछ सटोरियों का यह भी मत है कि कभी-कभी सोमवार की चली हुई तेजी या मंदी गुरुवार तक रहती है। ƒ -किसी वस्तु में मंगलवार को मंदी रहे तो उस वस्तु में बुधवार को दोपहर के 12 बजे बाद तेजी आती है। ƒ -किसी वस्तु में मंगलवार को तेजी रहे तो बुधवार के 12 बजे तक वह तेजी रहती है। बाद में मंदी आ जाती है। ƒ -किसी वस्तु में मंगलवार को तेजी आए और बुधवार को भी तेजी रहे तो उस वस्तु में गुरुवार को एक बार तेजी रहकर पीछे से मंदी आती है। ƒ -मंगलवार की चली हुई तेजी या मंदी गुरुवार के दोपहर के 1 बजे तक रहती है। ƒ -कभी-कभी मंगलवार की चली हुई तेजी या मंदी शुक्रवार तक रहती है। ƒ -किसी वस्तु में बुधवार को तेजी या मंदी चले तो उस वस्तु को वह तेजी या मंदी शुक्रवार के 12 बजे तक समाप्त हो जाएगी। ƒ -किसी वस्तु की तेजी या मंदी शुक्रवार को उठे तो उस वस्तु की वह तेजी या मंदी शनिवार तक रहती है। ƒ -किसी वस्तु में यदि गुरुवार को तेजी रहे तो उस वस्तु में शुक्रवार दोपहर के बाद मंदी आ जायेगी। ƒ -किसी वस्तु की मंदी गुरुवार को समाप्त होकर तेजी चल पड़े तो उस वस्तु में अच्छी तेजी आती है। ƒ -शुक्रवार को तेजी व मंदी अस्थायी होती है। यदि किसी वस्तु में शुक्रवार को तेजी या मंदी आए तो यह शीघ्र ही समाप्त हो जाती है। ƒ -शुक्रवार को तेजी आए तो शनिवार को मंदी आती है और शुक्रवार को मंदी आए तो शनिवार को तेजी आती है। ƒ -कभी-कभी बहुत ही कम शुक्रवार की चली हुई तेजी अथवा मंदी सोमवार को समाप्त होती है। ƒ -किसी वस्तु में शनिवार को तेजी चले हो तो उस वस्तु में वह तेजी एक सप्ताह तक और यदि मंदी चले तो वह मंदी एक सप्ताह तक स्थायी रहती है। ƒ -शनिवार से चली हुई तेजी या मंदी मंगलवार के दोपहर 12 बजे तक चला करती है। ƒ -किसी वस्तु का शनिवार के दिन ऊंचे से ऊंचा या नीचे से नीचा जो भाव बनेगा वह भाव सोमवार को दोनों में से कोई एक भाव अर्थात् ऊंचे से ऊंचा या नीचे से नीचा अवश्य आएगा। ƒ -किसी वस्तु के व्यापार का रूख तेजी का हो तो उस वस्तु में शनिवार के भाव से ऊंचे भाव सोमवार को आएंगे और यदि रूख मंदी का हो तो उस वस्तु में शनिवार के भाव से भी नीचे भाव सोमवार को बनेंगे। ƒ -शनिवार से चली हुई तेजी मंगलवार तक चला करती है और यदि और भी आगे चले तो शनिवार को ही समाप्त होती है। ƒ -कभी-कभी जिस वार से तेजी या मंदी उठती है उसी ही दिन जाकर समाप्त होती है। ƒ -उस वस्तु में शनिवार को अवश्य तेजी आयगी जिस वस्तु में गुरुवार को तेजी आकर शुक्रवार के 12 बजे बाद मंदी आ गई हो। वार सात माने गए हैं। इन सातों वारों को मिलाकर एक सप्ताह बनता है तथा 30 दिन का एक मास होता है। अतः एक मास में 4 सप्ताह 2 दिन अर्थात् एक मास में सातों वारों में से प्रत्येक वार 4-4 बार तो आ ही जाता है और दो दिन शेष होने से कोई से भी दो वार जब कि किसी मास में तिथि की घट-बढ़ न हो पांच बार आते हैं। अतएव किसी में कोई से भी पांच वार आते हैं। उनसे क्या प्रभाव पड़ता है, उसकी जानकारी यहां दे रहे हैं। ƒ- किसी मास में पांच रविवार पड़े तो उस मास में वर्षा ऋतु के होते हुए भी वर्षा न हो और यदि वर्षा हुई भी तो बिल्कुल साधारण। जनता एवं शासन में आपसी मतभेद अधिक बढ़े। वर्षा की कमी से कृषि उत्पादन पर कुप्रभाव पड़े तथा जनता रोग, अशांति, भय आदि से अधिक दुःखी रहे। ƒ- जिस मास में पांच सोमवार पड़े तो वर्षा उत्तम रहे एवं कृषि उत्पादन भी अच्छा हो तथा धान्य की वृद्धि हो। व्यापारिक जिन्सों में अच्छी घटा-बढ़ी के साथ रूख मंदी का प्रबल रहता है तथा मंदीकारक समय रहता है। ƒ- किसी भी मास में पांच मंगलवार हों तो जनता में विक्षोभ, आपसी कलह तथा अशांति और रक्त विकार से हानि, बच्चों में चेचक एवं स्त्रियों में रक्त विकार, का रोग अधिक फैले। लाल वस्तुओं तथा धान्य के भाव तेज हों। ƒ- जिस मास में पांच बुधवार हों तो कहीं वर्षा अधिक अच्छी हो और कहीं साधारण आवश्यकतानुसार। ध्न्य आदि के भाव सम रहें, न तो अच्छी तेजी और न अच्छी मंदी हो। समय शुभकारक रहता है। जनता में शांति एवं सुख की वृद्धि होती है।जिस मास में पांच गुरुवार पड़ जायें तो पाश्चात्य देशों में राज्य विग्रह एवं अशांति रहती है। व्यापारिक वस्तुओं में घटा-बढ़ी के साथ रूख मंदी का ही रहता है। केवल रसादि पदार्थों में तेजी के भाव चलते हैं। ƒ -जिस मास में पांच शुक्रवार हों तो वर्षा अच्छी होती है। जनता में मित्रता के भाव अधिक जागरूक होते हैं तथा सुख व शांति की वृद्धि होती है। व्यापारिक वस्तुओं में भी घट-बढ़ के बाद मंदी का ही रुख रहता है तथा रसादि पदार्थों में भी मंदी अपना प्रभाव रखती है। ƒ -जो मास पांच शनिवार का हो तो उस मास में जनता में अराजकता, अशांति आदि का प्रभाव पड़े तथा जातक रोगादि से भयभीत रहे। हर वस्तु में तेजी अपना अति प्रभाव रखे एवं कृषि को किन्हीं कारणों से क्षति पहुंचे। मास-शकुन द्वारा तेजी-मंदी विचार ƒ चैत्र मास की वर्षा अच्छी नहीं होती। चैत्र मास में वर्षा हो जाय तो श्रावण मास में वर्षा नहीं होती, इस कारण अनाज आदि तेज होते हैं। यदि चैत्र शुक्लपक्ष में पंचमी को वर्षा हो तो भी श्रावण मास में वर्षा नहीं होती। सभी प्रकार के अनाज आदि के भाव तेज होते हैं और यदि इसी पंचमी को रोहिणी, सप्तमी को आद्र्रा, नवमी को पुष्य तथा पूर्णिमा को स्वाति नक्षत्र हो तो वर्षा अति उत्तम होती है। ƒ- वैशाख मास में कृष्ण पक्ष की सप्तमी शनिवारी हो और मंगल ग्रह भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा में से किसी नक्षत्र पर हो तो पीपल, नारियल, तांबा, कांसा, सुपारी, लाल वस्त्र आदि तेज होते हैं। यदि कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी मंगलवार या शनिवार की हो तो गुड़, खांड, नागरपान, सेंधा नमक, लाल चंदन आदि में तेजी आती है और यदि अमावस्या को रेवती नक्षत्र हो तो वर्ष श्रेष्ठ होगा। यदि रोहिणी नक्षत्र हो तो जनता को कष्ट एवं अनाज आदि के भाव तेज होंगे। यदि अश्विनी नक्षत्र हो तो संवत समान रहे तथा सर्व वस्तु के भाव घटा-बढ़ी में रहें। यदि भरण नक्षत्र हो तो जनता भय और रोगादि से पीड़ित रहे और यदि कृत्तिका नक्षत्र हो तो वर्षा कम हो तथा दो देशों में परस्पर युद्ध की संभावना उत्पन्न हो। ƒ -वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को पूर्वदिशा को वायु चले तो वर्षा अति उत्तम हो, उत्तरी वायु चले तो भी वर्षा अति उत्तम हो, दक्षिणी या नैर्ऋत्य की वायु चले तो वर्षा न हो और यदि पश्चिमी वायु चले तो वर्षा तो अच्छी हो परंतु अनाज आदि का उत्पादन कम हो। ƒ- ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा रविवारी हो तो अग्नि आदि की अधिक घटनाएं घटित हों, यदि सोमवारी हो तो श्रावण मास से आश्विन मास तक वर्षा अच्छी हो, यदि मंगलवार की हो तो वर्षा श्रेष्ठ हो, यदि बुधवारी हो तो पाले आदि से कृषि को क्षति पहुंचे, यदि गुरुवार या शुक्रवार की हो तो वर्षा अच्छी हो और यदि शनिवारी हो तो अकाल की पूर्ण संभावना समझें एवं अनाज आदि के भाव तेज हों। ƒ -श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा गुरुवार की हो तो उड़द, तिल, तेल आदि में तेजी आवे। कृष्ण पक्ष की एकादशी को रोहिणी नक्षत्र हो तो अनाज आदि के भाव घटी अनुसार तेज या मंदे होते हैं एवं संवत् श्रेष्ठ हो तथा वर्षा अच्छी हो, यदि कृत्तिका नक्षत्र हो तो संवत् मध्यम रहे और यदि मृगशिरा नक्षत्र हो तो वर्षा कम हो तथा दुर्भिक्ष की संभावना समझें और यदि अमावस्या को वर्षा हो तो जीव मात्र अच्छी तरह से सुखी रहें। ƒ- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन सूर्यास्त के समय वर्षा न हो तो कुछ शकुनियों की ऐसी धारणाएं है कि शीघ्र ही प्रलय हो, यदि अष्टमी के दिन प्रातःकाल सूर्य मेघों से अच्छादित हो तो वर्षा अति उत्तम हो, यदि दशमी शनिवारी हो और सूर्य सिंह राशिगत हो तो अनाज का अच्छा उत्पादन हो और यदि पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र हो और इस नक्षत्र में वर्षा हो तो अन्नादि का उत्पादन अच्छा रहे तथा पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय मेघों से आच्छादित आकाश में हो तो वर्षा अति श्रेष्ठ रहे तथा जनता सुखी रहे। ƒ - भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अमावस्या रविवारी हो तो जौ, गेहूं, चना एवं पशुओं का तृण उसी मास से तेज हो और यदि भाद्रपद कृष्ण पक्ष की पंचमी गुरुवार या शनिवार अथवा रविवार की हो तथा उस दिन रोहिणी नक्षत्र हो तो गेहूं, मटर, जौ, चना आदि के संग्रह से मास के अंतिम दिनों में लाभ हो। ƒ- भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की अष्टमी सोमवार या रविवार की हो और उसी दिन मूल नक्षत्र भी हो तो दूध, दही, गाय, बैल, सन, सूत, कपड़ा, जिनौला, सोना, चांदी, श्वेत वस्त्र, घृत, गुड़, शक्कर आदि में तेजी आती है। ƒ -आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को आकाश मेघों से आच्छादित हो तो कार्तिक मास में वर्षा न हो तथा गेहूं, चना, जौ आदि में तेजी आवे और यदि इस पक्ष में किसी तिथि की वृद्धि हो जाय तो अगहन मास में गल्ले में तेजी आती है। ƒ -कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को सूर्य के चारों ओर चक्र दिखाई दे तो तिल, तैलादि में तेजी आती है। ƒ- मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मघा नक्षत्र हो और आकाश मेघों में आच्छादित हो अथवा वर्षा हो तो सर्व अनाजादि मंदा होता है तथा आषाढ़ मास में वर्षा अच्छी होती है। यदि पंचमी को आकाश मेघों से आच्छादित हो तो वर्षा विशेष होती है और शीतकाल में भी अति वर्षा से कृषि को हानि पहुंचती है जिससे अनाजादि तेज होते हैं और यदि षष्ठी को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र हो तो आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में तीन दिन एवं रात्रि वर्षा अच्छी हो और अन्नादि का उत्पादन भी अच्छा होता है। ƒ -पौष मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी मंगलवारी हो और उस दिन वर्षा भी हो तो उस वर्ष अन्नादि का उत्पादन अच्छा रहेगा एवं अन्नादि में मंदी भी आती है किंतु लाल रंग की वस्तुओं तथा अलसी, घृत, मजीठ आदि में तेजी आती है। यदि कृष्ण पक्षीय त्रयोदशी मंगल, शुक्र या शनिवार की हो तो उन दिनों वर्षा अच्छी होती है और गेहूं के संग्रह में अच्छा लाभ होता है क्योंकि गेहूं आदि में। इसी मास में तेजी आती है। यदि अमावस्या को ज्येष्ठ नक्षत्र हो तो पशुओं के चारे और अनाज आदि में शीघ्र ही तेजी आती है और यदि मूल नक्षत्र हो तो सर्व अनाज आदि में मंदी आती है। ƒ -पौष मास की शुक्ल पक्षीय सप्तमी की रेवती, अष्टमी की अश्विनी और नवमी की भरणी नक्षत्र हो और आकाश को मेघ आच्छादित करके गर्जन करें तथा बिजली चमके तो उसी वर्ष में ही वर्षा अच्छी होगी, गल्ले आदि के भाव मंदे हों तथा उत्पादन भी अच्छा रहे एवं जनता भी सुखी रहे। ƒ -माघ मास में कृष्ण पक्ष की सप्तमी, फाल्गुन तथा चैत्र मास को कृष्णपक्षीय द्वितीया और वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन आकाश मेघों से आच्छादित हो, बिजली चमके तथा वर्षा हो तो सर्व अन्नादि तेज होते हैं। ƒ -माघ मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को वर्षा हो और वायु चले तो घृत, तेलादि का भाव मंदा होता है, यदि तृतीया को बादल न हो तो गेहूं आदि में तेजी आती है, यदि चतुर्थी को मेघों की गर्जना हो, वर्षा हो एवं बिजली चमके तो पान, नारियल आदि में मंदी आती है और यदि नवमी रविवारी हो तथा पुष्य नक्षत्र हो तो अनाज आदि में तेजी आती है। ƒ -फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मेघ गर्जन हो तो गल्ले आदि का भाव तेज होता है एवं जनता को कष्ट होता है। ƒ -फाल्गुन मास की शुक्ल पक्षीय सप्तमी या त्रयोदशी को वर्षा हो तो सर्व अन्नादि में तेजी आती है और यदि पूर्णिमा रवि अथवा मंगलवार की हो तो भी अन्नादि तेज होते हैं।


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