व्यवसाय की पसंदगी का प्रश्न युवा वर्ग को चिंतित करता है। विद्यार्थी की उच्च शिक्षा के लिए बुध या शुभ ग्रह लग्न, चैथे, पांचवें, सातवें, भाग्य में या दसवे बलवान-स्वग्रही उच्च का होना चाहिए। चैथा, पांचवां स्थान शुभ ग्रह से बलवान जरूरी है।
इंजीनियर बनने के लिए स्वास्थ्य, बुद्धि एवं याददाश्त तेज हेाना आवश्यक है। उसके लिए मंगल, सूर्य को बलवान होना चाहिए। चैथा सुख स्थान प्रतिष्ठा पांचवंा स्थान बुद्धि प्रतिभा बताता है। बुद्धि प्रतिभा अच्छे होते हुए भी चैथा स्थान कमजोर हो तो इंजीनियरिंग के क्षेत्र में व्यक्ति असफल रहता है। शनि का चैथा एवं पांचवें शुक्र के साथ का संबंध इंजीनियरिंग धंधे में सहायक बनता है। भूमिपुत्र मंगल खनिज, रंग, रसायन, फार्मेसी, धातु, सीमेंट तथा फैक्टरियों का कारक ग्रह है जबकि शनि मशीनरी, लोाहा, पत्थर, मजदूरी, प्रधान धंधा, हार्डवेयर, लकड़ी, शस्त्र, ईंट, इलेक्ट्रिकल कार्योंं का कारक है। शारीरिक श्रम व टेक्निकल कार्यांें के लिए शनि, मंगल ग्रह महत्व के हैं।
इंजीनियर की कुंडली में बुध, गुरु, शनि, मंगल बलवान देखे जाते हैं। कर्क, तुला, वृश्चिक एवं मीन राशि का लग्न चंद्र या सूर्य सफल इंजीनियरों की कुंडली में देखने को मिलेगा। बिजली रेलवे का कारक मंगल है। मंगल बुध अच्छे हों तो व्यक्ति इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हो सकता है। जहाज बनाने के लिए वायु या जलराशि का कारक चंद्र केंद्र में हो एवं शुभ ग्रह की दृष्टि में हो तो व्यक्ति विमान चालक बन सकता है।
रेडियों इंजीनिरयर के लिए दूसरे, तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें मंगल हों, उस बुध शनि में से एक ग्रह शुभ योग में होना जरूरी है।
इलेक्ट्रिकल्स इंजीनियर क्षेत्र के व्यक्ति की कुंडली में चंद्र, गुरु एवं शुक्र ग्रह का शुभ योग हो तो वह व्यक्ति सफलता प्राप्त कर आर्थिक स्थिति मजबूत करता है। मजदूरी के लिए शनि, यांत्रिक कार्यों के लिए मंगल, गगनचुंबी इमारतों के लिए शनि, मंगल की श्ुाभ दृष्टि स्थिति होना आवश्यक है। रेडियो रिपेयरिंग के लिए भाग्य स्थान शुभ होना चाहिए। तीसरे स्थान में बुध, शनि हों रेडियो इलेक्ट्रानिक के साथ काम करने वाले की कुंडली में बुध एवं भाग्येश बलवान रहता है। धनेश लाभेश का संबंध, लग्नेश मंगल का संबंध, गुरु मंगल की यंति या दृष्टि शनि मंगल का परिवत्रन योग, शनि मंगल का पंचमेश के साथ शुभयोग, सूर्य, मंगल का संबंध, मकर, कुंभ राशि या तुला राशि का उच्च का शनि चैथी, पांचवे या दसवें हो तेा व्यक्ति इंजीनियर बनता है। धन भवन या लाभ भवन मैं दूसरे या ग्यारहवें स्थान में शनि या मंगल हो या उनकी दृष्टि हो तो व्यक्ति यांत्रिक व्यवसाय करता है। शनि या मंगल इंजीनियर क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति की कुंडली में आत्माकारक होता है। विद्यार्थी की कुंडली में किसी भी स्थान में सूर्य, बुध की युति हो एवं उसका पंचमेश अथवा कर्मेश के साथ संबंध हो तथा मंगल की दृष्टि हो या साथ में हो उसको टेक्निकल इंजीनियर क्षेत्र में प्रयास करना चाहिए। सूर्य, मंगल दोनों ग्रह केंद्र में बलवान हो तो इलेक्ट्रिकल इंजीनियर क्षेत्र पसंद करना चाहिए। चंद्र शनि दोनों कारक ग्रह बनकर केंद्र, त्रिकोण में बलवान होते हों तो वन संबंधी रेंजर इंजीनियर बन सकता है।
डाॅक्टर की कुंडली में मेष, वृषभ, सिंह, कन्या, धनु, मकर, राशि का मंगल लग्न तीसरे, छठे, भाग्य या लाभ स्थान में देखने को मिलता है। मिथन, तुला एवं कुंभ राशि का मंगल वाला डाॅक्टर रोग के निदान में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। सिंह, वृश्चिक या मेष राशि में मंगल सूर्य की युति छठे, दसवें डाॅक्टर को सर्जन बनाती है। सर्जन की कुंडली में सूर्य मंगल का दशमेश, धनेश एवं भाग्येश के साथ संबंध देखने को मिलेगा। सूर्य, मंगल, शनि छठे स्थान में हों या षष्ठेश के साथ हों या बुध मंगल छठे हों तो युवक-युवती डाॅक्टर बन सकते हैं। कर्म स्थान में अश्विनी, आश्लेषा या मूल स्थान में दशमेश हो तो विद्यार्थी डाॅक्टर बन सकता है। चर्म रोग का प्रसिद्ध डाॅक्टर बनने के लिए बुध का षष्ठेश एवं कर्मेश के साथ योग होना जरूरी है। आंख के डाॅक्टर के लिए शुक्र ग्रह का द्वितीयेश, षष्ठेश एवं कर्मेश के साथ योग होना जरूरी है। प्रसिद्ध हृदय रोग डाॅक्टर की कुंडली में चंद्र, सूर्य सुखेश, षष्ठेश एवं कर्मेश का संबंध देखा जाता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डाॅक्टर की कुुंडली में शुक्र, मंगल संबंधित हों धनेश, भाग्येश, कर्मेश, शुक्र एवं पंचमेश संबंधित हो रहे हों। कान, नाक तथा गले के डाॅक्टर की कुंडली में लग्नेश, षष्ठेश एवं कर्मेश का शुभ स्थान में संबंध होता है।
फिजीशियन की कुंडली में बुध एवं गुरु का धनेश, पंचमेश, षष्ठेश कर्मेश का संबंध देखा जाता है। मंगल आॅपरेशन, हड्डी तथा दवाओं का कारक ग्रह है। इसलिए सर्जन की कुंडली में मंगल बलवान देखा जाता है। डाॅक्टर को स्वयं का अस्पताल बनाना हो उसकी कुंडली में चतुर्थेश स्वग्रही या उच्च का बलवान होना चाहिए।
व्यापारियों की कुंडली में वृषभ, सिंह, कन्या, तुला, मकर, लग्न विशेष देखने को मिलती है। जन्म चंद्र पर गुरु अथवा शुक्र, सूर्य का शुभयोग मानव जीवन की उपयेागी अनाज, किराना, दूध घर की नित्य उपयोगी का व्यवसाय लाभदायक रहता है। जन्म कुंडली में बुध पर चंद्र, गुरु, शुक्र के साथ शुभयोग हो, अथवा बुध धनभाव या कर्मभाव में हो तो स्टेशनरी, सुगंधित पदार्थों, दूध से बनने वाले पदार्थ, जेवरात आभूषण, मौज, शौक की वस्तुएं, प्रिंटिंग मेटीरियल आदि का व्यापार करने की प्रेरणा मिलती है। बलवान बुध गुरु तंत्री, संपादक या पत्रकार के क्षेत्र में सफलता दिलाता है। बुध, गुरु, शुक्र, चंद्र गुरु के शुभ योग प्रतिष्ठित लेखक की कुंडली में पाए जाते हैं।
वकालत के व्यवसाय में वाणी का महत्व है। बातचीत करने की कला जन्म कुंडली के दूसरे स्थान से मालूम पड़ती है। वकील की कुंडली में कोर्ट-कचहरी के लिए सातवां स्थान, वाणी के लिए बलवान बुध होना चाहिए। बुध शनि का धनेश, लाभेश, कर्मेश या भाग्येश के साथ संबंध देखा जाता है। बुध तर्क शक्ति, ज्ञान एवं निर्णय शक्ति का कारक है। सफल व्यापारी की कुंडली में लग्नेश, धनेश की युति या दूसरे भाव में होती है।
1. चंद्र से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवें शुभ ग्रह हो।
2. धनेश, लग्नेश, की युति धनभाव या दसवें कर्मभाव में देखी जाए।
3. धनेश, लग्नेश, कर्मेश की युति लग्न में, चैथे, सातवें, दसवें, पांचवें या नवें हो।
4. धनेश, लग्नेश का परिवर्तन योग हो।
5. दूसरे केंद्र या त्रिकोण में चंद्र मंगल की युति लक्ष्मी योग बताती है।
6. कर्मेश, केंद्र, त्रिकोण या लाभ स्थान में बलवान हो।